
तकरीबन एक दशक तक माओवादी हिंसा से जूझते रहे नेपाल की गिनती दुनिया के गरीब देशों में से है जहां ईधन की किल्लत और तेल तथा अनाजों की बेतहाशा मंहगायी सबसे बड़ी समस्या है। माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड के कल नेपाल के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही नेपाल में सरकार बनाने को लेकर जारी गतिरोध तो खत्म हो जाएगा लेकिन बतौर प्रधानमंत्री उनके समक्ष कई बड़ी चुनौतियां होंगी। प्रचंड के शपथ लेने के साथ ही नये मंत्रिमंडल का गठन भी किया जाएगा लेकिन यह रास्ता सहज नहीं दीखता। अपै्रल में हुए संविधान सभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करने से चूकने के बावजूद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे माओवादियों ने लोगों से वायदा किया था कि वह नेपाल को एक नया रूप देगें। देश से राजशाही का अंत कर लोकतांत्रिक व्यवस्था बहाल करने का कदम उठाकर उन्होंने पहली कामयाबी तो हासिल कर ली लेकिन जनता से किए गए कयी वायदे अभी पूरे किए जाने हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो माओवादियों को नेपाल में बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, रोजगार और खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने की चुनौती से निबटना है। जबतक यह पूरी नहीं होतीं देश में स्थायी शांति संभव नहीं होगी। सरकार के सामने कई समस्याएं है, मसलन अगले दो वर्षो में नया संविधान तैयार करना है। माओवादियों ने देश के एकात्मक शासन व्यवस्था को संघीय रूप देने का वायदा किया है। पर इस रास्ते में देश के दक्षिणी मैदानी इलाकों में सक्रिय मधेसी समुदाय सबसे बडी मुश्किल है जो अपने लिए स्वायत्ता राज्य की मांग कर रहा है हालांकि माओवादियों कहा है कि सरकार में मधेसियों को मुख्य घटक के रूप में शामिल किया जाएगा।
3 comments:
ताज भले ही काँटों का हो सब को प्यारा होता है ..अच्छा लिखा है आप ने ..
देखना तो ये है कि भारत के लिए प्रचंड का रुख किस तरह का होता है। ताज तो ताज ही है, हमें तो रुख से मतलब क्योंकि माओवादी चलाएंगे सरकार।
सत्ता के विरुद्ध सत्ता से बाहर रह कर संघर्ष आसान है। साझा सरकार में रह कर सत्ताधारी वर्ग से संघर्ष और जनपक्षधरता निभाते हुए क्रांति को आगे ले जाने में सफल होना मौजूदा समय का दुनियाँ का सब से दुष्कर कार्य है। इसे कर पाए तो प्रचंड दुनियाँ के शीर्ष नेताओं में शामिल हो जाएंगे।
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