Saturday, August 30, 2008

कोसी के कहर से मातम में डूबा बिहार


कोसी नदी के तटबंध में टूट की वजह से बिहार में तबाही मची हुई है। राज्य के बाढ़ प्रभावित जिले सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, अररिया और पूर्णिया में बाढ़ की भयावहता को देखते हुए वहां राहत कार्य चलाये जाने के लिए संकट की इस घड़ी में सभी लोगों की मदद की जरूरत है। बेघर हुए लाखों लोग न सिर्फ आर्थिक सहायता के मोहताज हैं, बल्कि मानवीय मूल्यों को जिंदा बनाए रखने के लिए सभी पहलुओं पर से गुजरना पड़ेगा। इस बाढ़ में कहीं मां से बेटा बिछुड़ रहा है, बेटे से मां बिछुड़ रही है, कहीं भाई से बहिन बिछुड़ रहा है। बाढ़ का पानी गांवों में घुसते ही लोग भाग रहे हैं अपना घर द्वार छोड़कर। ऐसी स्थिति में परिवार के सदस्य बिछुड़ते जा रहे हैं, क्योंकि भागने की होड़ मची हुई है। हजारों की संख्या में लोग बह चुके हैं, जिनका अब मिलना नामुमकिन है। ऐसा मार्मिक दृश्य देखकर आंखें नम हो जाती है, उन लोगों के लिए जो बाढ़ के शिकार हो चुके हैं। यहां तक कि पालतू जानवरों गाय, भैंसों का तो अता पता ही नही है। वह तो कब के बाढ़ की बिभीषका के शिकार हो चुके हैं। ऐसी बाढ़ 300 साल के बाद देखने को मिली है।बिहार की बाढ़ को देखते हुए केंद्र सरकार ने भले ही एक हजार करोड़ की सहायता व खाद्यान्न दिया है, लेकिन स्थिति को देखते हुए यह कम लग रही है। हालांकि गैर-सरकारी संस्थाएं भी आगे आयी हैं और बचाव कार्य में जुटी हुई हैं। अपनी जान जोखिम में डालकर सेना व अ‌र्द्धसैनिक बल युद्ध स्तर से बचाव कार्य में जुटी हुई है। नावों के द्वारा लोगों को बाढ़ क्षेत्र से निकाला जा रहा है। कहीं-कहीं तो यह भी सुनने को आया है कि इस मुसीबत में फंसे लोगों को निकालने के लिए व्यावसायिक लोग अधिक पैसा ऐंठ रहे हैं। ऐसी स्थिति में मानवता का तकाजा बनता है कि लोग निस्वार्थ भावना से बाढ़ पीडि़तों की मदद करें। बिहार पर आई इस संकट की घड़ी में लोगों को दिल खोलकर मदद करनी चाहिए। बाढ़ का पानी घटने पर महामारी फैलने का भी खतरा बन चुका है।अब हम लोगों का कर्तव्य बनता है कि मिले हुए धन व खाद्यान्न सामग्री को ईमानदारी से बाढ़ पीडि़तों में बांटें।केंद्र में वाजपेयी सरकार ने कहा था कि सभी नदियों को मिलाया जाए। यदि सभी नदियां मिल जाएं तो बाढ़ के कहर से न सिर्फ लोगों को छुटकारा मिल जाएगा, बल्कि व्यर्थ में बहरा पानी का विद्युत बनाने आदि में उपयोग किया जा सकता है।

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

आओ जाओ उस ओर जाओ,मेरे यार को मेरा पैगाम सुनाओ।वो सुने या न सुने,मेरे दिल की कह सुनाओ।।लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती।कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।।नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है।चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है।मनका विश्वास रगों में साहस भरता है।चढ़कर गिरना गिरकर चढ़ना न अखरता है।मेहनत उसकी बेकार हर बार नहीं होती।कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।।असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो।क्या कमी रह गयी देखो और सुधार करो।जब तक न सफल हो नींद चैन की त्यागो तुम।संघर्षो का मैदान छोड़ मत भागो तुम।कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीं होती।कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।।

Thursday, August 28, 2008

सुलगते कश्मीर को बुझाने वाला चाहिए


जम्मू और कश्मीर दो अलग नाम और दोनों के काम भी अलग-अलग। एक हिंदूवादी तो एक मुस्लिमवादी। दोनों ही जगहों पर परिवहन व्यवस्था में भी गाडि़यों के रजिस्ट्रेशन में जे-1 और जे-2 शब्द प्रयोग हो रहे हैं। जम्मू के लिए जे-1 और कश्मीर के लिए जे-2 नंबर है। भारत संघ का यही एक ऐसा राज्य है, जहां पर राष्ट्र का नहीं राज्य का झंडा फहराया जाता है, राष्ट्रपति नहीं राज्यपाल शासन लगता है, ऐसा क्यों? क्योंकि कश्मीर पाक में मिलना चाहता है, वहां पर पाकिस्तान का झंडा फहराया जा रहा है जो संवैधानिक रूप से गलत ही नहीं है संज्ञेय अपराध भी है। फिर भी भारत सरकार मौन धारण किए हुए है। यदि कश्मीर के अलावा और किसी जगह की यह घटना होती तो पुलिस तुरंत कार्यवाही कर जेल में ठूंस देती पर वहां तो पुलिस भी लाचार है। 1947 में भारत के विभाजन के बाद अनेक राजा, महाराजाओं ने सरदार बल्लभभाई पटेल की सक्रियता के कारण अपने-अपने राज्य को भारत संघ में मिला दिया लेकिन इस संबंध में जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह की हिचकिचाहट बनी रही और उन्होंने यथास्थिति बनाए रखने के लिए पाकिस्तान से एक समझौता भी कर लिया था और जिन्ना ने आनन-फानन में कश्मीर को पाक में मिलाने के लिए पठानों की एक फौज को वहां भेज कर स्थानीय लोगों को डरा धमका कर पाक में शामिल होने के लिए एक माहौल बनाने लगे। राजा हरि सिंह तो डरकर श्रीनगर आ गए और भारत संघ से करार करने को दबे मन से मजबूर हो गए। यह राज्य भारत में सशर्त मिला। पटेल की कड़ी नीति वहां पर बेकार हो गई जब जवाहर लाल नेहरू ने इस राज्य का जिम्मा खुद ले लिया और इस राज्य के लिए अलग संवैधानिक व्यवस्था की गई। शेख अब्दुल्ला ने तो यहां तक कह दिया कि इस राज्य का भारत में पूर्ण विलय वास्तविकता से दूर है। जनसंघीय नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इसके खिलाफ 1952 में यक आंदोलन चलाया, किंतु शेख अब्दुल्ला ने उनको गिरफ्तार करा लिया और बंदी गृह में ही उनकी संदिग्धावस्था में मौत हो गई। इसके बाद शेख अब्दुल्ला की सरकार सदरे रियासत कर्ण सिंह ने बर्खास्त कर दी। तब से आज तक इसका इतिहास घातों और प्रतिघातों से भरा पड़ा है।आज जम्मू-कश्मीर जल रहा है। अमरनाथ यात्रियों के लिए बेहतर सुविधा देने के लिए जमीन तो एक बहाना है। साठ वर्ष पूर्व पृथकता के जो बीज बो दिए गए थे आज उसी की फसल पक कर तैयार हो चुकी है। काश इस राज्य के विलय का ठेका पटेल से न लिया होता तो शायद यह नौबत नहीं आती। यदि नेहरू ने इसके विलय की जिम्मेदारी ली थी तो इसका निर्वहन करना चाहिए था जो कि नहीं किया गया। कई ऐसे मौके आए कि भारत यदि चाह लेता तो कश्मीर हमेशा-हमेशा के लिए भारत का अंग बन जाता, लेकिन यहां के नेता शक्तिशाली देशों के दबाव में आकर यह कारनामा नहीं कर सके।पाकिस्तान में किसी की भी सरकार हो उसका रवैया भारत के ही खिलाफ होगा। वहां के मदरसों में भारत विरोधी शिक्षा दी जाती है, जब खिलाफत की शिक्षा जेहन में चली जाती है तो फिर आसानी से निकलती नहीं है। भारत यह जानते हुए भी कि पाक में आतंकियों को न सिर्फ प्रशिक्षण दिया जा रहा है, बल्कि उन्हें सेना की मदद से चोरी छिपे भारत में प्रवेश करवाया जा रहा है फिर भी चुप है। भारत-पाक के बीच अंतरराष्ट्रीय रेखा पर जो संधि हुई थी उसका भी पाक आए दिन उल्लंघन कर रहा है, फिर भी हम चुप हैं। भारत सिर्फ अपनी आपत्ति दर्ज करा सकता है, सो वह करता है इसके आगे उसके कदम नहीं बढ़ सकते। ऐसी क्या मजबूरी है कि हमसे हर मामले में एक छोटा सा देश, जिसकी कुल आबादी लगभग उत्तर प्रदेश के बराबर है, मुझे घूर रहा है, मुझे ललकार रहा है, मुझे आतंकित कर रहा है, नन्हें बच्चों को बम धमाकों से उड़ाया जा रहा है। हम चुप हैं। एक ओर तो हम शक्शिाली राष्ट्र होने का डंका पीटते हैं और कारनामें एक कमजोर राष्ट्र के जैसे। हमारी फौज विश्वसनीय और बहादुर हैं, हमें उन पर नाज है, फिक्र है। लेकिन उन्हें चलाने के लिए एक हिम्मत वाला सेनापति चाहिए। निर्भय होकर निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए। जब तक हम पाक के खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाएंगे तब तक वह कश्मीर में अमन चैन कायम नहीं रहने देगा। उसका एक ही मकसद है कि वहां के लोगों में इतना भय पैदा कर दो कि लोग खुद ही मजबूर हो जाएं पाक का हिस्सा बनने के लिए।

Monday, August 25, 2008

गिरा बीजिंग ओलंपिक का पर्दा


लंदन में फिर से मिलने के वायदे के साथ गिरा बीजिंग ओलंपिक का पर्दा। आगाज जितना अद्भुत, अंजाम उतना ही अविश्वसनीय। मानो परीलोक जमीन पर उतर आया हो। बेहतरीन तकनीक, कलाकारों का हैरतअंगेज प्रदर्शन और आतिशबाजी का भव्य नजारा, सभी कुछ था बीजिंग ओलंपिक के समापन समारोह में। दिल की धड़कनों को बिजली की रफ्तार देने वाले अठारह दिनों के रोमांचक सफर के बाद चीन ने यादों के रंगबिरंगे गुलदस्तों के साथ मेहमानों को विदा किया और नए कीर्तिमानों और मीठी यादों के साथ ओलंपिक की ये विरासत लंदन को सौंप दी। चार साल बाद लंदन की मीठी शामें खेलप्रेमियों को नए रोमांच से भरेंगी। आतंकवाद, प्रदूषण और सफल आयोजन की चुनौतियों भी एशियाई सुपरपावर के संकल्प को नहीं डिगा पाई और उसने अपना वायदा बखूबी निभाया। इस खेल महाकुंभ में अमेरिकी बादशाहत को खत्म कर खेलों की नई महाशक्ति बने चीन की सफलता की धमक पूरे विश्व ने सुनी। भला किसने सोचा था कि जिस देश ने अपना पहला ओलंपिक पदक ही 1984 में जीता हो वो 24 साल में ही खेलों की दुनिया पर राज करेगा। चीन ने 51 स्वर्ण, 21 रजत, 28 कांस्य पदक सहित कुल 100 पदक अपने नाम कर ये उपलब्धि हासिल की। भारत के लिहाज से भी बीजिंग ओलंपिक यादगार रहा जब पहली बार वो किसी ओलंपिक से तीन पदकों के साथ लौटेगा। अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर पिस्टल में स्वर्ण, सुशील कुमार ने कुश्ती में 66 किग्रा. भारवर्ग में कांस्य और विजेंद्र कुमार ने मुक्केबाजी का पहला कांस्य भारत की झोली में डाला।समारोह की शुरुआत में चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) के अध्यक्ष जैक्स रोगे रंग-बिरंगे माहौल में बर्ड नेस्ट स्टेडियम में अवतरित हुए। इसके बाद ड्रम वादकों ने अद्भुत प्रदर्शन की ऐसी छटा बिखेरी जिसे देखकर सभी ने खुद को दूसरी ही दुनिया में पाया। भव्यता के ओलंपिक की ये वो स्वप्निल दुनिया थी जहां सभी कुछ असाधारण था। कलाकारों ने जब एक के बाद एक शानदार प्रदर्शनों की झड़ी लगाई तो कोई भी आश्चर्यचकित हुए बिना न रह सका और जब सैकड़ो कुंगफू छात्र प्रदर्शन के लिए नेशनल स्टेडियम में उतरे तो पूरा स्टेडियम ही एकटक उनकी मेहनत को साकार होते हुए देखता रह गया। दुनिया के सबसे आबादी वाले देश ने मानव मीनार बनाकर अपनी पहचान को एक चेहरा दिया। इसके बाद ओलंपिक में भाग लेने वाले 204 देशों के ध्वजवाहक मैदान पर उतरे। भारतीय तिरंगा विजेंद्र के हाथों में था जो बीजिंग ओलंपिक में भारत की सफलता की कहानी बयां करता नजर आया। आयोजन समिति के अध्यक्ष लियु कुई और रोगे ने ओलंपिक ध्वज फहराए जाने और ओलंपिक गान से पहले खचाखच भरे स्टेडियम को संबोधित किया। बीजिंग से ओलंपिक ध्वज लंदन ने थाम लिया। लंदन की लाल दोमंजिली बस समूचे स्टेडियम में घूम गई। बस का ऊपरी हिस्सा खुला और टावर ब्रिज, बैटरसी बिजलीघर और पार्लियामेंट के पुतलों के बीच से लंदन मुस्कराने लगा। पाप गायक लियोना लेविस और गिटार वादक पेज ने इस शानदार शाम को यादगार बनाने में कोई कसर न छोड़ी। बस पर खड़े इंग्लैंड के पूर्व फुटबाल कप्तान डेविड बेकहम ने जैसे ही स्टैंड्स में भीड की ओर गेंद उछाली अचानक सबके सामने बर्मिघम पैलेस कौंध गया।इस एक पखवाड़े में कई ख्वाब परवान चढे़ और कितने ही धूल में मिल गए। बेशक अमेरिका के माइकल फेल्प्स ने वाटर क्यूब और जमैका के यूसैन बोल्ट ने बर्ड नेस्ट में खलबली मचा दी हो मगर उनके फौलादी इरादों को कामयाबी की जुबान चीन की धरती ने ही दी। फेल्प्स ने तरणताल में हर रिकार्ड डुबाया और रिकार्ड आठ स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास पुरुष बने जबकि बोल्ट दुनिया के सबसे तेज धावक बने और उन्होंने तीन विश्व रिकार्ड के साथ तीन सोने के तमगे अपने गले में डाले। बीजिंग के आयोजन ने लंदन के लिए आयोजन की नई चुनौती पेश कर दी है। शुक्रिया बीजिंग, गुडलक लंदन।

Sunday, August 24, 2008

मैया मैं नहीं माखन खायो




माखन चोर कन्हैया की शिकायत जब यशोदा से होती है तब कृष्ण जी कहते हैं कि मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो। जब मैया और सख्ती से पेश आती हैं तो वह कहने लगते हैं कि मैया मोरी मैं ने ही माखन खायो। यह तो तय था कि चोरी छिप नहीं सकेगी क्योंकि मुंह पर माखन लगा हुआ था और माखन खाते हुए पकड़कर मां यशोदा के पास लाया गया था। आज इन्हीं का जन्म है, जिसे जन्माष्टमी के नाम से पूरा देश जानता है। विशेषकर मथुरा में जहां पर पैदा हुए थे, वह जगह थी मथुरा नरेश कंस की जेल, जहां पर कंस की बहिन देवकी ने नवीं संतान के रूप में कृष्ण को जन्म दिया था। आज न सिर्फ मथुरा बल्कि हिंदुस्तान के प्रमुख मंदिरों को सजाया जाता है और रात के ठीक बारह बजे मंदिरों की घंटियां बजने लगती हैं और पूरा वातावरण ही कृष्णमय हो जाता है। लोगों की भीड़ अपने आप खिची चली आती है। वह तो विष्णु के अवतार थे। पृथ्वी पर जन्म लेने का मकसद तभी होता है जब धर्म का पतन होने लगता है। अन्याय की जड़ें मजबूत होने लगती हैं, तब भगवान को पृथ्वी पर मानव के रूप में जन्म लेना पड़ता है न्याय और धर्म का पालन न करने वालों को खातमें के लिए। कंस ने भी यही किया था। था तो उनका भांजा, लेकिन धर्म और न्याय से बड़ा पारिवारिक संबंध नहीं होता। दुष्ट कंस को मौत की सजा दी। न सिर्फ मथुरा बल्कि गोकुल, बृंदावन, नंदगांव में बाल लीलाओं का प्रदर्शन किया। प्रेम के इतने भूखे थे कि आदमी क्या पशु भी उनके तरफ खिंचे चले आते थे। मीराबाई ने तो यहां तक कह दिया था कि मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोय। ऐसे प्रभु को मैं आज उनके जन्म दिवस पर शत-शत बार नमन करते हैं।

Thursday, August 21, 2008

सौदेबाजी से पाक पर मंडराया खतरा


मुशर्रफ के इस्तीफे के लिये सऊदी अरब और ब्रिटेन की मध्यस्थता से हुई सौदेबाजी से पाक गठबंधन पर खतरा मंडराने लगा है, क्योंकि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पीएमएल एन के प्रमुख नवाज शरीफ ने धमकी दी कि यदि पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ द्वारा बर्खास्त जजों को कल तक बहाल नहीं किया गया तो उनकी पार्टी सत्तारूढ़ गठबंधन से समर्थन वापस ले लेगी और विपक्ष में बैठना पसंद करेगी। इस मामले को लेकर जरदारी पशोपेश में पड़ गए हैं, वह चाहते हैं कि लाठी भी न टूटे और सांप भी मर जाए, पर ऐसा होने वाला नहीं है। शरीफ आर-पार की लड़ाई लड़ने जा रहे हैं। उन्हीं के दबाव में जरदारी ने मुशर्रफ के खिलाफ महाभियोग लाने का फैसला किया था, किंतु उसके पहले ही एक करार के तहत मुशर्रफ ने राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे दिया और गठबंधन सरकार को धर्मसंकट में डाल दिया। इसके पीछे एक बड़ी चाल यह भी है कि मैं तो गद्दी छोड़कर जा ही रहा हूं, लेकिन तुम्हें भी आराम से नहीं बैठने दूंगा। पाकिस्तानी के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथ उनके इस्तीफे को लेकर हुई सौदेबाजी में एक शर्त यह भी थी कि सुप्रीम कोर्ट के बर्खास्त चीफ जस्टिस इफ्तिकार मुहम्मद चौधरी को बहाल नहीं किया जायेगा। पीपीपी के सह-अध्यक्ष आसिफ अली जरदारी भी जजों की बहाली के खिलाफ हैं। इस सौदेबाजी से गठबंधन सरकार में दरार का खतरा पैदा हो गया है क्योंकि पीपीपी की सहयोगी पार्टी पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पीएमएल-एन पिछले साल आपातकाल के दौरान बर्खास्त जजों की बहाली के लिये 22 अगस्त की समयसीमा तय कर रही है। दोनों दलों ने मुशर्रफ पर महाभियोग लगाने की अपनी योजना की सात अगस्त को घोषणा करते हुए कहा था कि बर्खास्त जजों को राष्ट्रपति के हटने के तुरंत बाद बहाल कर दिया जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।मुशर्रफ को डर था कि वह उनके खिलाफ मामले शुरू कर सकते हैं। जरदारी सौदेबाजी के कारण किसी शासकीय आदेश के जरिये बर्खास्त जजों की बहाली के खिलाफ हैं और उन्होंने वर्तमान और बर्खास्त जजों की जगह नये चीफ जस्टिस का प्रस्ताव रखा है।नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल.एन के गठबंधन से हटने की संभावना है और उस सूरत में मुत्तहिदा कौमी मूवमैंट और पीएमएल-क्यू के काफी सांसद गठबंधन में शामिल होने को तैयार हैं। पाकिस्तान में शीघ्र ही महत्वपूर्ण राजनीतिक फैसले किए जाएंगे।

Wednesday, August 20, 2008

ओलंपिक में भारत ने इतिहास दोहराया


दक्षिण पश्चिम दिल्ली के नजफगढ़ में रहने वाले व रेलवे में कार्यरत और महाबली सतपाल के शिष्य ने 2006 में दोहा एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए सुशील कुमार ने इतिहास को दोहराते हुए पेइचिंग ओलम्पिक खेलों की फ्रीस्टाइल कुश्ती स्पद्र्धा के 66 किलोग्राम वर्ग में कजाखस्तान के लियोनिद स्पिरिदोनोव को चित करके कांस्य पदक जीत लिया। इसके साथ ही 29वें ओलम्पिक में भारत के पदकों की संख्या एक स्वर्ण और एक कांस्य समेत दो हो गई है। इतिहास में ऐसा पहली बार है जब भारत ने एक ओलम्पिक में दो पदक हासिल किये हैं। इस ओलंपिक में ही अभिनव बिन्द्रा ने निशानेबाजी का स्वर्णपदक जीता है। सुशील ने भारत को साढ़े पांच दशक बाद कुश्ती में पदक दिलाया है। इससे पहले केडी यादव ने 56 साल पहले हुए हेलसिंकी ओलम्पिक में भारत को कुश्ती में कांस्य के रूप में एकमात्र पदक दिलाया था। ओलंपिक की कुश्ती स्पर्धा में पदक जीतने वाले सुशील दूसरे पहलवान हैं। जाधव ने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था। पहलवान सुशील कुमार का बीजिंग में कुश्ती में जीता गया कांस्य पदक भारत का ओलंपिक खेलों में कांसे का छठा और कुल मिलाकर 19वां तमगा है। यही नहीं सुशील की इस उपलब्धि ने भारतीय खेलों के इतिहास में एक नया अध्याय भी जोड़ दिया। यह दूसरा अवसर है जबकि भारत ने एक ओलंपिक खेलों में दो पदक जीते लेकिन यह ऐसा पहला मौका है जबकि भारत के नाम पर दो व्यक्तिगत पदक दर्ज हुए। सुशील से पहले निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने दस मीटर एयर रायफल में स्वर्ण पदक जीतकर नया इतिहास रचा था। भारत ने 1952 में हेलसिंकी में खेले गये ओलंपिक खेलों में भी दो पदक जीते थे। उस समय भारत ने हाकी में स्वर्ण जबकि कुश्ती में के डी जाधव ने कांस्य पदक जीता था। इस तरह से भारत कुश्ती में 56 साल बाद पदक हासिल हासिल करने में सफल रहा। बिंद्रा से पहले भारत ने आठों स्वर्ण पदक हाकी में हासिल किये थे।

Tuesday, August 19, 2008

हड़ताल से बेहाल लोग

लोगों के जीवन पर हड़ताल का इतना गलत प्रभाव पड़ता है कि पूरी दिनचर्या ही खराब हो जाती है। यदि कोई व्यक्ति बैंक जाता है और ताला लटका हुआ पाते हैं तो उसका गुस्सा वहीं पर फूट पड़ता है। बैंक कर्मी अपने निहित स्वार्थ के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाते हैं, उन्हें लोगों की परेशानियों से कोई मतलब नहीं होता। सरकार को इस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा देना चाहिए। कल बैंकों में हड़ताल का दिन रहेगा। ट्रेड यूनियनों के साथ साथ सार्वजनिक बैंकों के कर्मचारियों ने अपनी विभिन्न मांगों को लेकर कल हड़ताल करने की घोषणा की है। इसका असर विशेषकर सार्वजनिक बैंकिंग परिचालन पर पड़ सकता है। सार्वजनिक बैंकों के कर्मचारियों के एक वर्ग ने विलय तथा बैंकिंग उद्योग में आऊटसोर्सिग के खिलाफ हड़ताल की घोषणा की है। एसबीआई तथा रिजर्व बैंक के कर्मचारी इसमें शामिल नहीं होंगे। सार्वजनिक बैंकों के साथ साथ क्षेत्रीय ग्रामीण एवं सहकारी बैंकों के कर्मचारी भी इस हड़ताल में भाग लेंगे। सार्वजनिक बैंकिंग क्षेत्र में एक ही हफ्ते में यह दूसरी बार हड़ताल होगी। उधर देश की आठ प्रमुख श्रमिक संगठनों ने सरकार की कतिपय श्रमिक विरोधी तथा नव उदारवादी नीतियों के खिलाफ कल हड़ताल की घोषणा की है। हड़ताल देशव्यापी होगी। एटक के अलावा सीटू ने भी इस हड़ताल का समर्थन किया है। इसी तरह केंद्र एवं राज्य सरकारों के 40 विभिन्न कर्मचारी संगठन भी इसमें शामिल होंगे।

Monday, August 18, 2008

एक तानाशाह का अंत


इतिहास गवाह रहा है कि दुनिया के तानाशाहों और ताकतवर शासकों का अंत हमेशा बुरा हुआ है। उन्हें या तो महाभियोगों का सामना करना पड़ा है या फिर इस्तीफा देना पड़ा है। कुछ को तो फांसी दे दी गई या फिर उनकी हत्या कर दी गई। पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव से पहले ही इस्तीफा देकर इतिहास को दोहराया है। मुशर्रफ से पहले हिटलर, मुसोलिनी से लेकर स्टालिन तक को इन्हीं रास्तों से गुजरना पड़ा है। हिटलर ने आत्महत्या कर ली जबकि स्टालिन को उनकी पार्टी ने उनके पद से हटा दिया। 19वीं सदी में अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की हत्या के बाद राष्ट्रपति बने एंड्रयू जानसन को भी 1868 में महाभियोग का सामना करना पड़ा था। 1867 में अमेरिकी कांग्रेस ने कार्यालय अवधि कानून बनाया जिसके तहत राष्ट्रपति सीनेट की अनुमति के बगैर किसी अधिकारी को बर्खास्त नहीं कर सकता था, लेकिन राष्ट्रपति जानसन ने अपने सेक्रेटरी वाफ कर एडविन एम स्टैंटन को बर्खास्त कर दिया। इसलिए उन्हें इस कानून के उल्लंघन के मामले में महाभियोग का सामना करना पड़ा, लेकिन एक वोट की कमी से महाभियोग पारित नहीं हो पाया और 26 मई 1868 को जानसन इस आरोप से बरी हो गए। सात अक्टूबर 1998 को प्रधान मंत्री नवाज शरीफ ने कई वरिष्ठ अधिकारियों को दरकिनार कर मुशर्रफ को सेनाध्यक्ष नियुक्त किया था। 1999 में नवाज शरीफ का तख्तापलट कर देश की बागडोर संभाली और 2001 में खुद को पांच साल के लिए देश का सैनिक राष्ट्रपति घोषित कर दिया। 2004 में सेनाध्यक्ष के पद से इस्तीफा देकर राष्ट्रपति बने रहे। आज पूरे पाक में खुशी का नजारा दिखाई दे रहा है। एक तानाशाह का अंत किसे अच्छा नहीं लगता है। वह सेना के बल पर देश पर हुकूमत करता रहा। लोकतांत्रिक व्यवस्था की धज्जियां उड़ा कर रख दी थी। तानाशाह शासकों का अंत हमेशा बुरा ही हुआ है। इसका गवाह न सिर्फ पाक है बल्कि अमेरिका समेत अन्य देश हैं। अब प्रश्न उठता है कि क्या गद्दी से हटकर मुशर्रफ देश में सुरक्षित रह पाएंगे। हो सकता है कि वह देश ही छोड़ दें। यदि देश छोड़ भी देते हैं तो कब तक उस देश में सुरक्षित रहेंगे, क्योंकि उनको तबाह करने वाले साए की तरह उनके पीछ पड़ेंगे और उनका मटियामेट करके ही मानेंगे। हो सकता मुशर्रफ को भी इसका आभास हो।

Sunday, August 17, 2008

प्रचंड को कांटों भरा ताज


तकरीबन एक दशक तक माओवादी हिंसा से जूझते रहे नेपाल की गिनती दुनिया के गरीब देशों में से है जहां ईधन की किल्लत और तेल तथा अनाजों की बेतहाशा मंहगायी सबसे बड़ी समस्या है। माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड के कल नेपाल के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही नेपाल में सरकार बनाने को लेकर जारी गतिरोध तो खत्म हो जाएगा लेकिन बतौर प्रधानमंत्री उनके समक्ष कई बड़ी चुनौतियां होंगी। प्रचंड के शपथ लेने के साथ ही नये मंत्रिमंडल का गठन भी किया जाएगा लेकिन यह रास्ता सहज नहीं दीखता। अपै्रल में हुए संविधान सभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करने से चूकने के बावजूद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे माओवादियों ने लोगों से वायदा किया था कि वह नेपाल को एक नया रूप देगें। देश से राजशाही का अंत कर लोकतांत्रिक व्यवस्था बहाल करने का कदम उठाकर उन्होंने पहली कामयाबी तो हासिल कर ली लेकिन जनता से किए गए कयी वायदे अभी पूरे किए जाने हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो माओवादियों को नेपाल में बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, रोजगार और खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने की चुनौती से निबटना है। जबतक यह पूरी नहीं होतीं देश में स्थायी शांति संभव नहीं होगी। सरकार के सामने कई समस्याएं है, मसलन अगले दो वर्षो में नया संविधान तैयार करना है। माओवादियों ने देश के एकात्मक शासन व्यवस्था को संघीय रूप देने का वायदा किया है। पर इस रास्ते में देश के दक्षिणी मैदानी इलाकों में सक्रिय मधेसी समुदाय सबसे बडी मुश्किल है जो अपने लिए स्वायत्ता राज्य की मांग कर रहा है हालांकि माओवादियों कहा है कि सरकार में मधेसियों को मुख्य घटक के रूप में शामिल किया जाएगा।

Saturday, August 16, 2008

संपन्न हुई अमरनाथ यात्रा


भूमि हस्तांतरण विवाद के कारण सुलगते जम्मू-कश्मीर के बीच आखिरकार छड़ी मुबारक आज सुबह 3,880 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पवित्र अमरनाथ गुफा पहुंच गई और इसी के साथ ही दो माह तक चलने वाली सालाना अमरनाथ यात्रा संपन्न हो गई। एक मुसलमान ने श्री अमरनाथ गुफा की खोज आज से 160 साल पहले की थी। उसके बाद से आज तक वहां दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या इतनी कभी नहीं रही जितनी इस साल रही। इस साल रिकार्ड साढ़े पांच लाख लोगों ने श्री अमरनाथ जी के शिवलिंग के दर्शन किये। पंजतरणी में रात्रि विश्राम के बाद छड़ी मुबारक ले कर इसके संरक्षक महंत दीपेन्द गिरि सुबह करीब नौ बजे पवित्र गुफा पहुंचे। पंजतरणी अमरनाथ गुफा के मार्ग पर पड़ने वाला तीसरा एवं अंतिम विश्राम केंद्र है। 300 क्यूबिक मीटर क्षेत्र में फैली गुफा के मंदिर में 250 से अधिक साधुओं की मौजूदगी में छड़ी मुबारक की पूजा की गई। इस वर्ष करीब 5.50 लाख श्रद्धालुओं ने पवित्र अमरनाथ गुफा में पूजा की। यह संख्या अब तक की सर्वाधिक संख्या है और यह एक रिकार्ड है। इससे पहले 2004 में चार लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने पवित्र गुफा में पूजा की थी। इस वर्ष यात्रा के दौरान 68 व्यक्तियों की मौत हुई जिनमें से ज्यादातर के कारण प्राकृतिक थे। मृतकों में यात्रा मार्ग पर तैनात सीमा सुरक्षा बल का एक जवान और एक पुलिसकर्मी एक कुली और एक दुकानदार भी शामिल हैं। श्रद्धालुओं की अधिक संख्या के कारण प्रशासन ने इस वर्ष यह यात्रा निर्धारित समय से एक दिन पहले 17 जून से आरंभ कर दी थी।

Friday, August 15, 2008

इसकी शान न जाने पाए, चाहे जान भले ही जाए


देश आज आजादी की 62वीं वर्षगांठ मना रहा है। सरकारी इमारतों पर राष्ट्रीय तिरंगा झंडा न सिर्फ देश में ही बल्कि विदेशों में भी भारतीय दूतावासों आदि पर फहराए गए। आज हिंदुस्तान के बच्चे-बच्चे तक ने जिस झंडे को लेकर भारत की आन, बान और शान को बरकरार रखा, और शपथ खाई की इसकी शान नहीं जाने देंगे, चाहे जान भले ही जाए। इसी अवधारणा के तहत ही आजादी के लिए छेड़े गए आंदोलन के दौरान लोग तिरंगे को झुकने नहीं देते थे, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के शासक लोग इस तिरंगे को पैर से कुचला करते थे। किसी भी देश का झंडा उसकी शान हुआ करती है, उसकी पहचान हुआ करती है। आजादी के दीवानों ने इस तिरंगे की रक्षा करने में अपने प्राणों की बाजी तक लगा दी थी, हजारों लोग मारे भी गए लेकिन हिम्मत नहीं हारी। तब जाकर देश को आजादी मिली। अब इस धरोहर को बरकरार रखना हमारा प्रमुख दायित्व बनता है। हर वर्ष आज के ही दिन हम कसम खाते है कि देश की आन, बान और शान के ढांचे को बरकरार रखेंगे। लोगों को आज के दिन विशेष संकल्प लेना चाहिये ताकि उन लोगों को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सके, जिन्होंनें देश को आजाद कराने में अपनी कुर्बानी दी। बासठवें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि वह एक ऐसा नया भारत देखना चाहते है, जिसमें वैज्ञानिक सोच हो और जहां शिक्षा का फायदा समाज के हर तबके को मिलता हो। कश्मीर घाटी में कडे़ सुरक्षा प्रबंधों के बीच आज 62वां स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज 62वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले पर तिरंगा फहरानें के बाद राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि मैंने अपने जिंदगी के पहले दस साल एक छोटे से गांव में बिताए जहां न बिजली थी, न पीने का पानी का सही इंतजाम, न कोई डाक्टर, न सड़क, न ही फोन। मुझे मीलों पैदल चलकर स्कूल जाना पडता था। मुझे रात में मिट्टी क े तेल के लैंप की हल्की रोशनी में पढ़ाई करनी पड़ती थी। आजादी मिलने के बाद ग्रामीण इलाकों में काफी विकास हुआ है फिर भी जिस तरह की जिंदगी मैंने बचपन में गुजारी थी वैसी ही जिंदगी अभी भी हमारे देश में बहुत से लोग गुजार रहे हैं। आज देश में जनसंख्या के अनुपात में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। और यह अभाव बना रहेगा क्योंकि जब तक देश के मंत्री, नेता ईमानदार होकर सरकारी धन को विकास योजना के लिए नहीं लगाएंगे तब तक उम्मीद करना बेकार है कि विकास होगा। केंद्र से आवंटित धन को राज्य सरकारें गलत ढंग से तैयार किए गए रजिस्टर के माध्यम से खा-पी रहीं है। यह देश का दुर्भाग्य है कि ईमानदार लोग नेता नहीं बन रहे है, और जो नेता है वह ईमानदार नहीं है। स्वतंत्रता दिवस पर आज हम शपथ लें कि बेईमान, भ्रष्ट नेताओं को समाज में प्रमुख स्थान न दें, क्योंकि वह हमारा ही पैसा खाकर हमें ही विकास से दूर रख रहे हैं। आजादी के उन रणबांकुरों के प्रति, जिन्होंने अपने प्राणों को देश के प्रति न्यौछाबर कर दिए थे उनके लिए देश को आजाद कराना पहली प्राथमिकता थी, को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब आज के नेताओं को ईमानदारी, कानून का ज्ञान, समाज में रहने के तौर-तरीके व चरित्र को न गिरने देने की शिक्षा आ जाएगी।

Thursday, August 14, 2008

केंद्रीय कर्मियों को स्वतंत्रता दिवस का तोहफा

सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के लिये गठित छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को मामूली फेरबदल के साथ मंजूरी दे दी। उसकी मुख्य बातें इस प्रकार हैं:.. नये वेतनमान जनवरी 2006 से लागू। .. बढ़ा हुआ वेतन अगले महीने से मिलेगा।.. बकाया का नकद भुगतान दो किस्तों में। चालीस प्रतिशत की पहली किस्त का भुगतान इस वर्ष, बाकी 60 प्रतिशत का भुगतान अगले वित्त वर्ष में।.. भत्तों सहित कम से कम वेतन 10 हजार रुपये और अधिकतम 90 हजार रुपये।.. वार्षिक वेतनवृद्धि तीन प्रतिशत।.. ए-वन और ए श्रेणी के शहरों के लिये न्यूनतम परिवहन भत्ता 600 रुपये तथा अन्य शहरों के लिये 400 रुपये।.. सैनिक, असैनिक कर्मचारियों को सेवाकाल में कम से कम तीन पदोन्नति अवश्य मिलेंगी।.. विशेष सैन्य सेवा वेतन के तहत सेना के जवानों को 2000 रुपये और अधिकारियों को 6000 रुपये का अतिरिक्त भुगतान।..प्रत्येक राज्य में पुलिसमहानिदेशक तथा प्रधान मुख्य वन संरक्षक के एक-एक पद को 80 हजार रुपये के शीर्ष ग्रेड में रखा जायेगा।..चालू वित्त वर्ष में नये वेतनमान का 15700 करोड़ रुपये का बोझ केन्द्रीय बजट पर और 6400 करोड़ रुपये का बोझ रेलवे बजट पर पड़ेगा।केंद्रीय कर्मचारियों की वेतन बढ़ोतरी का मुद्रास्फीति पर कुछ खास असर नहीं होगा लेकिन निश्चित तौर पर राजकोषीय घाटे और ब्याज दरों पर इसका प्रभाव पड़ेगा क्योंकि मुद्रास्फीति आपूर्ति पक्ष की समस्या है। सरकार का राजकोषीय घाटा जीडीपी के 0.4 प्रतिशत के बराबर बढ़ेगा क्योंकि केन्द्र सरकार को वेतन बिल की भरपायी के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाने होंगे। सरकार ने आज छठे वेतन आयोग की संशोधित सिफारिशों को मंजूरी दे दी। इससे चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोष पर 22 हजार करोड़ रुपये से अधिक का बोझ पड़ेगा। सरकार ने 2008-09 के दौरान एरियर के 40 फीसदी और अगले वित्त वर्ष में शेष 60 फीसदी के भुगतान का भी ऐलान किया है ।

Wednesday, August 13, 2008

स्वर्ण पदक विजेता महिला की मार्मिक कहानी


यह एक बेटी के पिता से बिछड़ने की मार्मिक कहानी है और यह बेटी कोई और नहीं बल्कि चीन की ओलंपिक चैंपियन गुआओ वेनजुन है जिसके पिता नौ साल पहले उससे बिछड़ गये थे। चौबीस वर्षीय गुआओ ने महिलाओं की दस मीटर एयर पिस्टल में नये ओलंपिक रिकार्ड के साथ स्वर्ण पदक जीता और फिर अपनी कहानी सबके सामने बयां की और आशा जतायी कि इस सफलता से उनका दूसरा सपना सच हो जाएगा और वह फिर से अपने पिता को देख पाएगी। तभी से गुआओ के पिता को ढूंढने के लिये आनलाइन पर खोज अभियान शुरू हो गया है। चाइना डेली के अनुसार गुआओ जब 14 साल की थी तब उनके माता-पिता में तलाक हो गया था। उसने अप्रैल 1999 से अपने पिता को नहीं देखा है। गुआओ को अगले दिन सिचुआन प्रांत के चेंगदु में राष्ट्रीय एयर पिस्टल प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये जाना था लेकिन उससे पहली रात उसके पिता चुपचाप उसे छोड़कर चले गये। इस निशानेबाज के पास अपने पिता की निशानी के तौर पर सलेटी रंग का कोट और उसके कोच हुआंग यानहुआ के लिये लिखा गया पत्र है। इस पत्र में उन्होंने लिखा था मैं बहुत दूर जा रहा हूं, मैं चाहता हूं कि आप मेरी पुत्री के साथ अपनी बेटी जैसा व्यवहार करो और उसे अपना सर्वश्रेष्ठ हासिल करने में मदद करो। अपनी बेटी के उज्जवल भविष्य के लिए पिता का पत्र कोच को लिखा जाना मार्मिक घटना है, पिता धर्म निभाना है, किंतु उसे कोच के सहारे छोड़ कर घर से भाग जाना कहां की बहादुरी है। क्या यही पिता का धर्म होता है कि अपनी संतान को दूसरों के हवाले कर घर हमेशा के लिए छोड़कर चले जाना। लेकिन हिम्मत की दाद देनी होगी इस बेटी को जिसने हिम्मत न हारते हुए अपने लक्ष्य को पाया, क्योंकि ओलंपिक में हर खिलाड़ी का एक ही लक्ष्य होता है पदक जीतना, और यह पदक यदि सोना हो तो कहना ही क्या। कोच ने भी अपनी भूमिका अदा की, कि उसे इस काबिल बना दिया कि आज विश्व को उस पर नाज है। कर्तव्य विहीन पिता की उसे याद सालती रहेगी।

Tuesday, August 12, 2008

एक सितारा चमका तो दूसरा बेनूर, फौजी रो पड़ा


हमेशा जीत का जज्बा रखने वाले फौजी राज्यवर्धन सिंह राठौड़ आज बीजिंग ओलंपिक की डबल ट्रैप स्पर्धा में मिली नाकामी के बाद अपने आंसू नहीं छिपा सके और उन्होंने कहा कि वह प्रतिस्पर्धी निशानेबाजी छोड़ सकते हैं। स्पर्धा के फाइनल में पहुंचने में नाकाम रहने के बाद एथेंस ओलंपिक का यह रजत पदक विजेता फफक पड़ा और अब उसे गंभीरता से सोचना होगा कि वह निशानेबाजी रेंज में दोबारा प्रतिस्पर्धा पेश करेगा या नहीं।अभिनव बिंद्रा के रूप में भारत को ओलंपिक का एक नया महानायक मिला तो एथेंस में कामयाबी की दास्तान लिखने वाले निशानेबाज राज्यवर्धन सिंह राठौड़ एक अरब की आबादी की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाए। यानी एक सितारा चमका तो दूसरा बेनूर हो गया।ओलंपिक में मैन्स डबल ट्रेप प्रतिस्पर्धा से बाहर होने पर भारतीय निशानेबाज फौजी राज्यवर्धन सिंह राठौड़ रेंज में ही रो पडे़। सेमीफाइनल के लिए क्वालीफाई न कर पाने का दुख उनके चेहरे पर साफ नजर आया और हताश होकर यहां तक भी कह दिया कि मुझे मालूम नहीं कि अगले ओलंपिक में आ पाऊंगा या नहीं।

एक सितारा चमका तो दूसरा बेनूर, फौजी रो पड़ा

हमेशा जीत का जज्बा रखने वाले फौजी राज्यवर्धन सिंह राठौड़ आज बीजिंग ओलंपिक की डबल ट्रैप स्पर्धा में मिली नाकामी के बाद अपने आंसू नहीं छिपा सके और उन्होंने कहा कि वह प्रतिस्पर्धी निशानेबाजी छोड़ सकते हैं। स्पर्धा के फाइनल में पहुंचने में नाकाम रहने के बाद एथेंस ओलंपिक का यह रजत पदक विजेता फफक पड़ा और अब उसे गंभीरता से सोचना होगा कि वह निशानेबाजी रेंज में दोबारा प्रतिस्पर्धा पेश करेगा या नहीं।अभिनव बिंद्रा के रूप में भारत को ओलंपिक का एक नया महानायक मिला तो एथेंस में कामयाबी की दास्तान लिखने वाले निशानेबाज राज्यवर्धन सिंह राठौड़ एक अरब की आबादी की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाए। यानी एक सितारा चमका तो दूसरा बेनूर हो गया।ओलंपिक में मैन्स डबल ट्रेप प्रतिस्पर्धा से बाहर होने पर भारतीय निशानेबाज फौजी राज्यवर्धन सिंह राठौड़ रेंज में ही रो पडे़। सेमीफाइनल के लिए क्वालीफाई न कर पाने का दुख उनके चेहरे पर साफ नजर आया और हताश होकर यहां तक भी कह दिया कि मुझे मालूम नहीं कि अगले ओलंपिक में आ पाऊंगा या नहीं।

Monday, August 11, 2008

सोने पर लगा निशाना

भारत की कभी हाकी में दुनिया में तू-तू बोला करती थी, लोगों में ऐसी आस्था बन गई थी कि हाकी का स्वर्ण तो भारत के खाते में ही जाएगा। और सच बात भी है कि ओलंपिक में भारत ने आठ स्वर्ण पदक सिर्फ हाकी में मिले थे, लेकिन व्यक्तिगत स्पर्धा में भारत की झोली में कोई भी स्वर्ण पदक नहीं आए थे। इस कमी को आज भारत के सच्चे सपूत भारतीय निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर राइफल शूटिंग प्रतियोगिता में पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतकर ओलम्पिक में इतिहास रच कर पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं। भारत की झोली में 1980 के मास्को ओलंपिक में आखिरी स्वर्ण गिरा था जो हाकी टीम ने जीता था। एथेंस ओलंपिक में चूके चंडीगढ़ के इस निशानेबाज की मेहनत रंग लाई और खेलों के महासमर में भारत का यह योद्धा आखिरकार तीसरे प्रयास में नाकाम नहीं रहा। राजीव गांधी खेल रत्न प्राप्त बिंद्रा की यह उपलब्धि भारतीय खेलों की दशा और दिशा बदल देगी। यह भारत के इतिहास के महानतम दिनों में से एक है। अभिनव ने सोमवार को 10 मीटर रायफल शूटिंग प्रतियोगिता के लिए क्वॉलिफाई किया था। पूरे देश में खुशी की लहर है। हालांकि, भारत के ही गगन नारंग इसी प्रतियोगिता के फाइनल में प्रवेश करने से चूक गए। वह 600 में से 595 अंक जुटाकर प्रतियोगिता में नौवें स्थान पर रहे। नारंग ने 97 100 100 98 100 के राउंड खेले। वहीं, खेल रत्‍‌न से सम्मानित बिंद्रा क्वॉलिफाइंग राउंड में चौथे स्थान पर रहे थे। उन्होंने 596 अंक के साथ फाइनल के लिए क्वॉलिफाई किया था। उन्होंने 100 99 100 98 100 और 99 के राउंड खेले। बिंद्रा ने 700.5 अंक हासिल कर स्वर्ण पर निशाना साधा। इनमें से 596 अंक क्वालीफाइंग मुकाबले में और 104.5 अंक फाइनल मुकाबले में हासिल किए। उल्लेखनीय है कि ओलम्पिक में हॉकी को छोड़कर भारत कभी किसी खेल में स्वर्ण पदक नहीं जीत पाया था। लेकिन ¨बद्रा ने नया इतिहास रचते हुए न केवल स्वर्ण जीता बल्कि भारत को बीजिंग ओलम्पिक की पदक तालिका में भी स्थान दिला दिया। 25 वर्षीय ¨बद्रा ने भारत को 28 साल के अंतराल के बाद ओलम्पिक में स्वर्ण पदक दिलाया है। भारत ने वर्ष 1980 के मास्को ओलम्पिक में हॉकी का स्वर्ण जीता था।

Sunday, August 10, 2008

15 अगस्त को 165 वर्ष बाद पृथ्वी वरुण ग्रह के निकट पहुंचेगी

सौर परिवार के ग्रहों के निकट आने के संयोग तो कई बार बनते है लेकिन इनके परिवार में पृथ्वी तथा वरुण ग्रह करीब डेढ़ सौ वर्ष से अधिक समय बाद आगामी 15 अगस्त को अत्यधिक निकट आ जायेगें। सौरमंडल में प्रतिवर्ष ग्रहों के निकट आने की खगोलीय घटनाएं होती है और इसके चलते पृथ्वी के वातावरण एवं मौसम पर भी इसका काफी प्रभाव देखा जाता है लेकिन पृथ्वी 15 अगस्त को वरुण ग्रह के निकट पहुंच जायेगी। इसके निकट आने के संयोग के चलते पृथ्वी पर इसका आंशिक प्रभाव देखा जायेगा तथा वैज्ञानिकों के लिये इन ग्रहों की निकट आने की घटना अपने आप में महत्वपूर्ण होगी। यू तो पृथ्वी वरुण ग्रह के नजदीक से गुजरती है लेकिन वरुण ग्रह की कक्षा अंडाकार होने के कारण इस वर्ष 15 अगस्त को 165 वर्ष बाद दोनों ग्रहों की दूरी न्यूनतम हो जायेगी। यह घटना इसके पूर्व सन् 1843 को हुई थी। वरुण सौरमंडल का अंतिम व चौथा सबसे बड़ा नीले रंग का ग्रह है और यह हाईड्रोजन गैस से निर्मित है तथा इसकी सतह पर ठोस जमीन नहीं है। इस ग्रह के वातावरण में हवा दो हजार किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से प्रचंड तूफान के रूप में बहती है। वरुण ग्रह का व्यास 48 हजार किलोमीटर एवं इसके दिन रात 15 घंटे 48 मिनट के होते है और इस ग्रह का तापमान माईनस 220 डिग्री सेंटीग्रेड है तथा इसके वातावरण में मात्र एक टुकड़ा सफेद बादल की तरह तैरता रहता है जिसे खगोल वैज्ञानिक स्कूटर के नाम से पहचानते है। पृथ्वी से इसकी अधिकतम दूरी चार अरब 80 करोड़ किलोमीटर होती है लेकिन 15 अगस्त को इसकी न्यूनतम दूरी चार अरब 35 करोड़ किलोमीटर हो जायेगी। हालांकि इसकी 45 करोड़ किलोमीटर की दूरी कम होगी और कभी कभी दिखने वालक वरुण ग्रह को कोरी आंखों से देखना असंभव है। पृथ्वी से इसको 15 अगस्त के दिन शक्तिशाली टेलीस्कोप से आसानी से देखा जा सकता है।

Saturday, August 9, 2008

राखी के बंधन को निभाना

भईया मेरे राखी के बंधन को निभाना। एक बहिन की आवाज भाई के लिए, इस पवित्र रिश्ते को कायम रखने के लिए याद ही नहीं दिलाती है बल्कि मौका आने पर सुरक्षा देना। यह त्यौहार सिर्फ भाई-बहिन के लिए नहीं है,बल्कि कोई भी महिला किसी पुरुष से सहायता के लिए राखी भेज सकती है। राजपूताना जब खतरे में पड़ा तब चित्तौड़ की रानी कर्णवती ने मुगल बादशाह हुमायूं को धागा भेज कर राज्य की सुरक्षा की मांग की थी, उसने न सिर्फ धागा को स्वीकार किया, बल्कि सेना भी भेजी, किंतु तब तक देर हो चुकी थी और राज्य गुजरात के बहादुर शाह द्वारा लुट चुका था। महिलाएं धागा के माध्यम से अपनी सुरक्षा की मांग करती थीं। बस यहीं से रक्षाबंधन शुरू हो गया। आज महिलाएं रक्षा के साथ-साथ पैसे की भी मांग करती हैं। धागा की जगह आधुनिक राखी ने ले ली है। कहने का तात्पर्य है कि क्या महिला असुरक्षित हैं, जो वह राखी के बदले अपनी सुरक्षा की मांग करती हैं। नारी सशक्कतीकरण के बावजूद भी नारी सुरक्षित नहीं है। समाज में कई प्रकार के दरिंदगे मौजूद हैं, जो उन्हें अकेला पाकर सब वो काम कर डालते हैं, जिससे वह घर, समाज में रहने लायक नहीं रहती है। अंतत: वह आत्महत्या कर लेती है,क्योंकि नारी इज्जत के साथ जीना चाहती है। जब उसकी इज्जत चली जाती है तब वह जीकर क्या करेगी। देखा जाए महिला कभी भी सुरक्षित नहीं रही है। छोटी उम्र तक वह भाई के अधीन रही, शादी के बाद वह पति के अधीन और मां बनने पर वह अपने पुत्र या पुत्रों के अधीन रहती है। जब तक यह सुरक्षा का क्रम चलता रहा तब तक महिलाओं पर अत्याचार की घटनाएं बहुत कम हुआ करती थीं, लेकिन आज नारी आजाद है, अकेले घूम फिर रही हैं, उसी का लाभ ले रहे हैं समाज में मौजूद असमाजिक तत्व। नारी को सशक्कत होना होगा, उसे असमाजिक तत्वों से लड़ने की कला सीखनी होगी। छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत ने कहा कि एक नहीं दो-दो मात्राएं नर से भारी नारी।

राखी के बंधन को निभाना

भईया मेरे राखी के बंधन को निभाना। एक बहिन की आवाज भाई के लिए, इस पवित्र रिश्ते को कायम रखने के लिए याद ही नहीं दिलाती है बल्कि मौका आने पर सुरक्षा देना। यह त्यौहार सिर्फ भाई-बहिन के लिए नहीं है,बल्कि कोई भी महिला किसी पुरुष से सहायता के लिए राखी भेज सकती है। राजपूताना जब खतरे में पड़ा तब मेवाड़ की रानी कलावती ने हुमायूं को धागा भेज कर राज्य की सुरक्षा की मांग की थी, उसने न सिर्फ धागा को स्वीकार किया, बल्कि सेना भी भेजी, किंतु तब तक देर हो चुकी थी और राज्य गुजरात के बहादुर शाह द्वारा लुट चुका था। महिलाएं धागा के माध्यम अपनी सुरक्षा की मांगा करती थीं। बस यहीं से रक्षाबंधन शुरू हो गया। आज महिलाएं रक्षा के साथ-साथ पैसे की भी मांग करती हैं। धागा की जगह आधुनिक राखी ने ले ली है। कहने का तात्पर्य है कि क्या महिला असुरक्षित हैं, जो वह राखी के बदले अपनी सुरक्षा की मांग करती हैं। नारी सशक्कतीकरण के बावजूद भी नारी सुरक्षित नहीं है। समाज में कई प्रकार के दरिंदगे मौजूद हैं, जो उन्हें अकेला पाकर सब वो काम कर डालते हैं, जिससे वह घर, समाज में रहने लायक नहीं रहती है। अंतत: वह आत्महत्या कर लेती है,क्योंकि नारी इज्जत के साथ जीना चाहती है। जब उसकी इज्जत चली जाती है तब वह जीकर क्या करेगी। देखा जाए महिला कभी भी सुरक्षित नहीं रही है। छोटी उम्र तक वह भाई के अधीन रही, शादी के बाद वह पति के अधीन और मां बनने पर वह अपने पुत्र या पुत्रों के अधीन रहती है। जब तक यह सुरक्षा का क्रम चलता रहा तब तक महिलाओं पर अत्याचार की घटनाएं बहुत कम हुआ करती थीं, लेकिन आज नारी आजाद है, अकेले घूम फिर रही हैं, उसी का लाभ ले रहे हैं समाज में मौजूद असमाजिक तत्व। नारी को सशक्कत होना होगा, उसे असमाजिक तत्वों से लड़ने की कला सीखनी होगी। छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत ने कहा कि एक नहीं दो-दो मात्राएं नर से भारी नारी।

Friday, August 8, 2008

एक पदक की दरकार

बीजिंग ओलंपिक में भारत इस बार भी उम्मीदों के सहारे ओलंपिक महा संग्राम में उतर रहा है। मुक्केबाजों, एथलीटों, पहलवानों, तीरंदाजों और तैराकों पर खास नजरें टिकी हुयी हैं। हमारी तैयारी ओलंपिक को लक्ष्य मानकर नहीं की जाती है। हाकी हमारे लिए ओलंपिक में अब गए इतिहास की बात हो चुकी है। इतने बड़े देश से महज एक पदक की उम्मीद, फिर भी भारतीय खिलाडि़यों को सलाम व शुभकामनाएं। एक अरब की आबादी वाले देश में खिलाडि़यों से सिर्फ एक कांस्य पदक की उम्मीद लगाना, बड़ा अटपटा लगता है। जबकि सत्तर के दशक में मेरे देश की हाकी एक शान हुआ करती थी, ओलंपिक में तो एक स्वर्ण पदक पहले से ही मान लिया जाता था। और होता भी था। आज हाकी सिर्फ नाम की रह गयी है। जबकि भारतीय हाकी का विश्व में डंका पिटा करता था। ध्यानचंद्र, केडी बाबू सिंह जैसे खिलाडि़यों ने हाकी को जो ताकत दी थी आज उनकी गैर-मौजूदगी में हाकी की छड़ी कमजोर पड़ चुकी है। पेनाल्टी को गोल में तब्दील करने में भारत आज ढ़ीला पड़ चुका है। दरअसल, खेल में राजनीति आड़े आ रही है। खिलाडि़यों का चुनाव राजनीति के चश्में से होता है, न कि उनके प्रदर्शन के आधार पर। ग्रामीण क्षेत्र में खिलाडि़यों की भर मार है, लेकिन उनकी तरफ सरकार का ध्यान नहीं जाता है। यदि हमें खेल क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान को फिर से बनाना है, तो सबसे पहले खिलाडि़यों के चुनाव में निष्पक्ष भावना अपनानी होगी, खेल स्तर को सुधारना होगा।

Thursday, August 7, 2008

ईश्वर के यहां न्याय है अन्याय नहीं

कहा जाता है कि ईश्वर के यहां न्याय है अन्याय नहीं। तानाशाही शासन के शासकों का अंत बुरा ही होता है। खासकर पाकिस्तान में तो ऐसे कई उदाहरण हैं जिनका अंत बहुत बुरा हुआ है। तानाशाह बनकर प्रजा पर शासन तो किया जा सकता है पर उनकी बददुआएं ही उस शासक के पतन का कारण बन कर उभरती हैं। प्रजा की आवाज को बंद कर देने वाले मुशर्रफ आज अपनी गद्दी बचाने में जुटे हुए हैं, लेकिन उम्मीद कम ही लगती है कि वह इसमें सफल हो पाएंगे। पाकिस्तान में सत्तारुढ़ गठबंधन के दोनों प्रमुख दलों पीपीपी और पीएमएल-एन ने कहा कि वे राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पर महाभियोग चलाने के लिए और मुशर्रफ द्वारा पिछले साल बर्खास्त किये गये न्यायाधीशों को बहाल करने के संबंध में सहमति पर पहुंच गये हैं। मुशर्रफ पर महाभियोग के बाद 24 घंटों के भीतर बर्खास्त न्यायाधीशों को बहाल किया जायेगा। पाकिस्तान के सत्तारुढ़ गठबंधन ने राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पर महाभियोग लगाने की तैयारी कर ली है। सरकार ने मुशर्रफ के खिलाफ 11 अगस्त को महाभियोग लगाने का फैसला किया है। संसद में 11 अगस्त को इस संबंध में प्रस्ताव लाया जाएगा। नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन ने कहा है कि तीन दिनों की बातचीत के बाद आसिफ अली जरदारी की पीपीपी के साथ सभी प्रमुख मुद्दों पर सहमति हो गयी है।

Monday, August 4, 2008

सीडी का लुका छिपी खेल

संसद की गरिमा को शर्मसार करने वाले सांसद रिश्वत कांड में संप्रग की भूमिका के आरोपों के जवाब में संप्रग के सहयोगी दल समाजवादी पार्टी, राजद और लोक जनशक्ति पार्टी ने एक सीडी जारी कर भाजपा के आरोपों को बेबुनियाद बताकर आरोप लगाया है कि सांसद रिश्वत कांड संप्रग के खिलाफ एक साजिश थी, जो खुद भाजपा ने रची थी। इन दलों ने एक स्वर में कहा कि इस संदर्भ में भाजपा जिस सीडी व सबूतों का हवाला दे रही है, वो सब झूठे हैं। इस सीडी में भाजपा सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते की आवाज की रिकॉडिंग भी है, जिसमें भाजपा सांसद समाजवादी पार्टी के सांसदों को खरीदना के लिए सौदेबाजी कर रहे हैं। इसके अलावा इसमें सपा महासचिव अमर सिंह के करीबी माने जाने वाले संजीव सक्सेना को यह कहते हुए दिखाया गया है कि वो अरुण जेटली के कहने पर यह सब कर रहे हैं। पिछले दिनों उमा भारती ने सांसद घूसकांड से जुडी़ एक सीडी जारी की थी, जिसमें संजीव सक्सेना को एक बैग लेकर अरुण जेटली के घर से बाहर निकलते हुए दिखाया गया था। सीडी में यह भी दिखाया गया था कि संजीप सक्सेना वही बैग लेकर भाजपा सांसद अशोक अर्गल के निवास पर पहुंचे थे। संसद में विश्वास मत के दौरान भाजपा सांसदों अशोक अर्गल, महावीर भगोरा और फग्गन सिंह कुलस्ते ने सदन में नोटों की गड्डियां दिखाते हुए आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार द्वारा पेश विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने के लिए सपा की ओर से उन्हें नौ करोड़ रुपए रिश्वत की पेशकश की। भाजपा सांसदों ने आरोप लगाया था कि वोट के लिए नोट समझौते के तहत फिलहाल तीनों को एक करोड़ रुपए भी दिए गए, जिसे वो सदन के पटल पर रख रहे हैं और बाकी की रकम बाद में देने की बात कही गई है। देश के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में यह ऐसी पहली घटना है। भाजपा ने इस कांड में सपा महासचिव अमर सिंह, सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल और सपा नेता रेवती रमण सिंह के शामिल होने का आरोप लगाया था। सांसद रिश्वत कांड मामले में भाजपा और संप्रग की ओर से आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। इस संदर्भ में दोनों ही खुद को पाक-साफ बता रहे हैं। भाजपा के एक नेता ने दावा किया था कि उनके पास संप्रग को दोषी साबित करने के लिए पर्याप्त सबूह हैं। भाजपा नेता ने संजीव सक्सेना और अमर सिंह की बातचीत के एक टेप का भी हवाला दिया था और कहा था कि उस रिकॉडिंग में सारा सच छुपा है।

Sunday, August 3, 2008

फ्रेंडशिप डे सिर्फ दिखावा

आज लोग फ्रेंडशिप डे मना रहें हैं। लोग गुलाब का फूल देकर, एसएमएस भेजकर या फिर मोबाइल पर हेपी फ्रेंडशिप डे कहकर इस डे की इतिश्री कर लेते हैं। क्या यही है फ्रेंडशिप डे। मित्रता तो राम और सुग्रीव ने भी की थी। कहा जाता है कि मित्रता की है तो निभानी ही पड़ेगी। ऐसे कितने लोग हैं जो मित्रता को निभाते हैं। मित्र के साथ छल कपट करके अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। आपके पास पैसा है तो ढ़ेर सारे मित्र बन जाऐंगे और जब कमी हुई तो यही मित्र आपके पास आएंगे भी नहीं, क्या इसी को मित्रता कहते हैं। मित्र तो वह होता है जो सुख-दुख सहित हर परिस्थिति में साथ दे। मित्रता में निस्वार्थ की भावना छिपी रहती है, उसके अंदर आपके प्रति गलत भावना नहीं रहती है। अच्छे मार्ग पर चलने के लिए हमेशा प्रेरणा देते हैं, गलत रास्ते पर जाने से रोकना ही एक मित्र का दायित्व होता है। इस दायित्व को आज कितने लोग निभा रहे हैं। मित्रता कभी टूटती नही हैं, वह आजीवन भर चलती है। जो टूट गया वह मित्र नहीं है। मित्रता में भावना ही सर्वोपरि होता है। यही मित्रता समाज को अच्छे मार्ग की तरफ ले जाता है। आज समाज में विकृतियां इसलिए आ गयीं हैं क्योंकि अच्छे मित्रों का पूरी तरह अभाव नजर आ रहा है। लोग एक दूसरे की टांग खींचने में लगे हुए हैं। एक दूसरे को नीचा दिखाने पर लगे हैं, फिर भी हम फ्रेंडशिप डे मनाते हैं। यह सिर्फ दिखावा

Saturday, August 2, 2008

आतंक के साए में सार्क सम्मेलन

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (दक्षेस) के दो दिवसीय सम्मेलन की शुरूआत ही विवाद से हुई है। कोलंबों में सम्मेलन के लिए बनाए गए प्रवेश द्वार के ठीक बीच में लगा भारत का झंडा उल्टा छपा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तस्वीर के ठीक ऊपर छपे देश के राष्ट्रीय ध्वज में हरा रंग ऊपर है जबकि केसरिया रंग नीचे है। सम्मेलन के आयोजकों की ओर से की गयी यह एक बड़ी भूल है, इस पर उन्हें क्षमा अवश्य मांगनी चाहिए। कुछ इसी तरह की एक घटना और घटी थी जब मुशर्रफ भारत के दौरे पर आए थे और उनके जहाज पर भारत का झंडा उल्टा लगा था। यह ऐसी भूल हैं जिससे पता चलता है कि झंडा लगाते वक्त यह नहीं देखा जाता है कि झंडा सही लगा भी है कि नहीं। यह एक लापरवाही ही है।सार्क सम्मेलन में प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान से स्पष्ट रूप से कहा है कि वह अपनी जमीन से आतंकवाद को जड़ से समाप्त करें। सभी जानते हैं कि पाकिस्तान आतंकवादियों को पनाह ही नहीं देता है बल्कि प्रशिक्षण भी देता है। इसलिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आतंकवाद को सबसे बड़ा खतरा बताया है। मौजूदा दौर में आतंकवाद ने दुनिया भर में अपनी पैठ बना ली है। आतंकवाद से लड़ने के लिए सभी देशों को एकजुट होना पड़ेगा। दक्षेस देशों में बने खुला व्यापार क्षेत्र, आतंकवाद के खात्मे के लिए संयुक्त कार्रवाई बल का गठन, आपराधिक मामलों पर आपसी कानूनी सहयोग सम्बन्धी समझौता होना चाहिए। सार्क सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने काबुल में पिछले महीने भारतीय दूतावास पर हुए हमले और भारत में बंगलौर और अहमदाबाद में हुए सीरियल धमाकों का मुद्दा उठाया उठाकर सराहनीय कार्य किया है।

एक और बाधा पार

भारत-अमेरिका परमाणु समझौते ने एक और बड़ी बाधा पार कर ली। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के संचालक मण्डल ने भारत केन्द्रित परमाणु सुरक्षा मानकों के समझौते के मसौदे को आम सहमति से मंजूरी दे दी। बैठक के दौरान आईएईए के प्रमुख अलबरदेई ने साफ कहा कि भारत केन्द्रित परमाणु निगरानी उपाय अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हैं। भारत को भरोसा है कि अमेरिका से करार में कोई दिक्कत नहीं आएगी। भारत ने कहा कि आयरलैण्ड, पाकिस्तान और फिनलैण्ड जैसे कुछ देश अपने किन्तु-परन्तु लगा सकते हैं लेकिन ये करार की राह में बाधा नहीं बन पाएंगे। अब सारा दारोमदार अमेरिकी कांग्रेस पर है। हमें उसका इन्तजार करना है। अब करार की अगली परीक्षा परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) देशों के सामने होगी। एनएसजी के 45 सदस्यीय संचालक मण्डल की 21-22 अगस्त को बैठक होगी। इसमें ये देश भारत पर तीन दशक से लगे प्रतिबंध हटाने पर अपनी मुहर लगाएंगे। ऑस्ट्रेलिया और चीन की सहमति के बाद अब यहां किसी रुकावट की आशंका नजर नहीं आती। एनएसजी के बाद करार अमेरिकी कांग्रेस में जाएगा जिसकी अंतिम बैठक 22 सितम्बर को सम्भावित है। अमेरिका की तैयारी है कि भारत से करार 22 सितम्बर से पहले पारित हो जाए। समझौते के अनुसार भारत वर्ष 2014 तक अपने 14 असैन्य परमाणु संयंत्र आईएईए की निगरानी में ले आएगा। सैन्य संयंत्र इसके दायरे से बाहर रहेंगे।