Wednesday, January 20, 2010

बुंदेलखंड की प्यास कौन बुझाएगा

उत्तर प्रदेश राज्य का पिछड़ा क्षेत्र बुंदेलखंड, जिसकी सीमा मध्य प्रदेश राज्य से सटी हुई है, विकास से परे है। जिस बुंदेलखंड के विकास के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने न सिर्फ 80,000 हजार करोड़ की मांग प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से की थी बल्कि अलग बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण गठित करने की पुरजोर कोशिश की थी, अब उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की बात नहीं कही। अलग बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण गठित होने से अलग राज्य की मांग को और बल मिलता, किंतु अब ऐसा दिखाई नहीं पड़ता। क्योंकि इसके लिए दोनों राज्य तहेदिल से तैयार नहीं हैं।वैसे देखा जाए अलग राज्य बनने से नेताओं के स्वार्थ तो अवश्य पूर्ण होते हैं लेकिन क्षेत्रीय जनता ही विकास से दूर रहती है। असम को भी सात राज्यों में विभाजित करके टुकड़े तो अवश्य हो गए लेकिन वह राज्य आज भी विकास से दूर हैं। राज्यों के टुकड़े करने से विकास की कल्पना करना व्यर्थ है। प्रतिवर्ष जब हर जिले के विकास के लिए प्रोजेक्ट निर्धारित होता है तो वह धन कहां चला जाता है। क्यों नहीं इस धन का ईमानदारी से विकास कार्यो में लगाया जाता है। ठेकेदारी प्रथा में विकास के खर्चो में आए हुए धन का बंदर बांट हो जाता है। यही कारण है कि बनी हुई नई सड़कें कुछ ही महीनों के बाद खराब हो जाती हैं। सरकारी बसों की खरीद में जमकर बंदर बांट होता है। सरकारी इमारत बनाने में भी यही स्थिति है। अब तो क्षेत्रीय विकास के लिए सांसद और विधायकों के कोटे भी निर्धारित हैं। सरकार अलग से खर्च कर रही है, फिर भी विकास से क्षेत्र पिछड़े हुए हैं। इसकी वजह है कि विकास के लिए सरकारी कार्य कागजों पर ही होते हैं। और यदि विकास कार्य होगा भी तो किसी निश्चित दायरे में ही। बिहार से अलग झारखंड राज्य को गठित हुए काफी समय हो गया है किंतु वहां विकास नहीं हो पाया। वहां की जनता आज भी अपने को असुरक्षित मानती है। तेलंगाना को लेकर जो घमासान चल रहा है वह भी गलत है। सभी लोगों को मिलकर ईमानदारी से बीड़ा उठाना होगा कि क्षेत्र के विकास के लिए कार्य करूंगा। ठेकेदारी के नाम पर जनता का करोड़ों रुपए डकार नहीं जाऊंगा।बुंदेलखंड की जनता जब सूखे की चपेट में आयी थी तब कहां चली गई थी मायावती की सरकार। वहां के लोग पलायन कर रहे थे, क्यों नहीं रोका गया था उन लोगों को। बुंदेलखंड में बिजली की समस्या, पानी की समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है, जबकि वहां बिजली उत्पादन के लिए चार-चार बांध बने हुए हैं, फिर भी जनता लालटेन जलाने के लिए मजबूर है। सिंचाई के लिए पानी को बेंच दिया जाता है, लेकिन किसानों को खेत सींचने के लिए पानी नहीं मिलता। बुंदेलखंड आज भी प्यासा है। इसकी प्यास को कौन बुझाएगा। कौन बिजली की रोशनी से जगमगाहट करेगा इन गांवों को। कौन पक्की सड़कों से हर गांव को जोड़ेगा। उद्योगों के नाम कुछ नहीं है। जो उद्योग लगाए भी गए थे उनकी भी बुरी हालत है। नए उद्योग लग नहीं रहे हैं। फिर भी क्षेत्रीय जनता और क्षेत्रों की तुलना में संयम का परिचय दे रही है। मैं चाहता हूं कि बुंदेलखंड राज्य गठित भी न हो और क्षेत्र का विकास भी हो जाए।

Sunday, January 17, 2010

वामपंथ का मजबूत स्तंभ ज्योति बसु नहीं रहे


भारत में वामपंथ की बात अगर की जाए तो ज्योति बसु एक ऐसा नाम है जिसके बिना इतिहास अधूरा रह जाए। पश्चिम बंगाल में दक्षिणपंथी दलों का वर्चस्व तोड़ वहां वामपंथी शासन कायम करने वाले इस राजनेता ने 23 साल तक न केवल उस राज्य के मुख्यमंत्री का पद संभाला बल्कि वहां अनेक कांतिक्रारी परिवर्तन किए। देश में सबसे लंबे समय तक किसी राज्य का मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल करने वाले ज्योति बसु ने आज यहां एक अस्पताल में अंतिम सांस लीं। एक जनवरी को उन्हें निमोनिया की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन पिछले कुछ दिन से उनके अधिकांश अंगों ने काम करना बंद कर दिया था और उन्हें वेंटीलेटर पर रखा जा रहा था। आज सुबह करीब साढ़े ग्यारह बजे उन्होंने अपनी आंखें मूंद लीं। बसु के निधन के साथ ही देश में वामपंथी आंदोलन का एक अध्याय समाप्त हो गया और उनके निधन से पैदा हुए शून्य को भर पाना शायद ही संभव हो। 95 वर्षीय बसु ने लंदन के मिडिल टेम्पल में वकालत त्याग कर राजनीति को अपनाया और वह लगभग पांच दशक तक देश के राजनीतिक परिदृश्य पर छाए रहने वाले एक ऐसे करिश्माई व्यक्तित्व थे जिन्हें दलगत भावना से ऊपर उठकर सभी दलों के नेताओं ने भरपूर सम्मान दिया। वर्ष 1977 में मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में वाममोर्चा सरकार के अगुवा के रूप में राज्य की सत्ता संभालने वाले बसु पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक समय तक इस पद पर रहने वाले मुख्यमंत्री थे। गठबंधन की राजनीति के तहत जब उन्हें 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार का प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया गया तो उनकी पार्टी ने इस पर सहमति नहीं दी और पार्टी ने सत्ता में भागीदारी करने से ही इंकार कर दिया। इस पेशकश को स्वीकार नहीं करने को बाद में बसु ने 'ऐतिहासिक गलती' करार दिया था। पार्टी ने उनके इस विचार को हालांकि उनका व्यक्तिगत विचार बताते हुए इसे खारिज कर दिया।बसु मा‌र्क्सवाद में पूरी तरह विश्वास करने के बावजूद व्यवहारिक थे और पार्टी की कट्टर विचारधारा के बीच उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में विदेशी निवेश और बाजारोन्मुख नीतियां अपना कर अपने अद्भुत विवेक का परिचय दिया था। कुशल राजनीतिज्ञ, योग्य प्रशासक सुधारवादी और अनेक मामलों में नजीर पेश करने वाले बसु को 1952 से पश्चिम बंगाल विधानसभा की सदस्यता लगातार हासिल करने का श्रेय जाता है। इसमें एक बार केवल 1972 में व्यवधान आया था। बसु ने पंचायती राज और भूमि सुधार को प्रभावी ढंग से लागू कर निचले स्तर तक सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया। पूर्व प्रधानमंत्री स्व राजीव गांधी ने भी बसु के कामकाज की सराहना की थी और वर्ष 1989 में पंचायती राज पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था। बसु की पहल पर लागू किए गए भूमि सुधारों का ही नतीजा था कि पश्चिम बंगाल देश का ऐसा पहला राज्य बना जहां फसल कटकर पहले बंटाईदार के घर जाती थी और इस तरह वहां बिचौलियों की भूमिका खत्म की गई। बसु ने राज्य को एक मजबूत उद्योग नीति भी दी। उन्होंने केन्द्र राज्य संबन्धों को नए सिरे से परिभाषित करने के लिए आवाज उठाई जिसके चलते अस्सी के दशक के अंत तक सरकारिया आयोग का गठन किया गया। उन्होंने गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को एकजुट कर केन्द्र के समक्ष अपनी मांगें भी रखी थीं। बसु ने राज्य में लोकतंत्र के दायरे में रहते हुए पार्टी को मजबूत करने के लिए भी अपने सहयोगियों और कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया।कोलकाता में आठ जुलाई 1914 को जन्मे बसु ने सेंट जेवियर्स स्कूल से इंटर पास करने के बाद 1932 में प्रेसीडेन्सी कॉलेज से अंग्रेजी में ऑनर्स किया। वर्ष 1935 में वह विधि की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड गए। पांच साल बाद वह भारत लौटे और राजनीति की राह चुनी। उन्होंने 1941 में विवाह किया लेकिन कुछ ही महीनों में उनकी पत्नी का निधन हो गया। इसके बाद 1948 में उन्होंने दोबारा विवाह किया जिनसे उनके एक पुत्र है। उनकी पत्नी का कुछ वर्ष पूर्व निधन हो चुका है। वर्ष 1957 में बसु विपक्ष के नेता बने और अगले दस साल तक उन्होंने बड़ी कुशलता के साथ इस दायित्व का निर्वाह किया। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय ने भी विपक्ष के नेता के रूप में बसु की भूमिका की तारीफ की थी। वर्ष 1967 में पहली बार बसु पश्चिम बंगाल के उप मुख्यमंत्री बने। राजनीति का सफर बढ़ता गया और इस माकपा नेता ने एक के बाद एक कई उपलब्धियां हासिल कीं। इस दौरान उन्होंने राज्य में मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और वाममोर्चा दोनों को भी लगातार मजबूत किया।

Thursday, January 14, 2010

लम्बी अवधि तक दिखने वाला सूर्य ग्रहण


खगोल प्रेमियों के लिए कल का दिन महत्वपूर्ण है जब वह इस सदी में सबसे अधिक अवधि तक दिखाई देने वाले सूर्यग्रहण को देखेंगे। 15 जनवरी को लगने वाला वलयाकार सूर्यग्रहण 21वीं सदी में सबसे लम्बी अवधि तक दिखाई देने वाला ग्रहण होगा। धरती और सूर्य के बीच से चंद्रमा के गुजरने पर सूर्यग्रहण लगता है जिससे आंशिक अथवा पूरी तरह सूर्य ढक जाएगा। वलयाकार सूर्यग्रहण तब लगता है जब चांद सामान्य की तुलना में धरती से दूर हो जाता है। नतीजतन उसका आकार इतना नहीं दिखता कि वह पूरी तरह सूर्य को ढक ले। वलयाकार सूर्यग्रहण में चांद के बाहरी किनारे पर सूर्य 'आग के घेरे' की तरह काफी चमकदार नजर आता है जिसका लैटिन भाषा में अर्थ है 'रिंग'। भारत के कुछ हिस्सों में यह दस मिनट से अधिक समय तक दिखेगा। भारत में वह केरल, तमिलनाडु और मिजोरम के ऊपर दिखाई देगा जबकि उसका कुछ हिस्सा देश में सभी जगह से नजर आएगा।भारत के अलावा वलयाकार सूर्यग्रहण अफ्रीका, हिन्द महासागर, मालदीव, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया में दिखाई देगा। सूर्यग्रहण की शुरूआत सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में 05:13:54 :यूनिवर्सल टाइम : पर शुरू होगी और यह 08:59:01 पर चायनीज यल्लो सी के तट पर खत्म होगा। कुल मिलाकर सूर्यग्रहण 11 मिनट 08 सेकेन्ड से अधिक समय तक रहेगा। सबसे अधिक ग्रहण 07:06:31 यूटी पर लगेगा। दिल्ली में यह सुबह 11 बजकर 53 मिनट पर शुरू होगा और अपराह्न तीन बजकर 11 मिनट पर खत्म होगा।

Tuesday, January 5, 2010

रुचिका मामले में राठौड़ की समस्या और बढ़ी

हरियाणा पुलिस ने आज रुचिका छेड़छाड़ मामले में दोषी पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौड़ के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का ताजा मामला दर्ज किया। जिससे भविष्य में राठौड़ की समस्या और बढ़ सकती है।आईपीसी की धारा 306 के तहत राठौड़ और कुछ अन्य के खिलाफ तीसरी प्राथमिकी दर्ज की गई।पुलिस ने सिफारिश की है कि मामले की जांच 'विशेष जांच दल :एसआईटी:' को सौंपी जाए जो राठौड़ के खिलाफ दो अन्य नए मामलों की जांच कर रहा है। 1990 में रुचिका के साथ छेड़छाड़ के मामले में राठौड़ को हाल ही में छह माह की कैद की सजा सुनाई गई थी।एसआईटी राज्य सरकार से सिफारिश करेगी कि तीनों मामलों को सीबीआई को सौंपा जाए, जैसा कि रुचिका गिरहोत्रा परिवार ने मांग की थी। लोग खुश हैं कि हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने अपना वादा निभाया। पिछले हफ्ते हुड्डा ने संकेत दिया था कि राठौर के खिलाफ रुचिका के भाई आशु द्वारा दर्ज शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज हो सकती है।प्राथमिकी यह संकेत भी देती है कि राठौड़ का प्रभाव कम हो रहा है। इसके पूर्व राठौड़ ने हर कदम पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया था।उम्मीद है कि जांच एजेंसियां समयबद्ध तरीके से काम पूरा करेंगी और अंतत: न्याय मिलेगा।कुछ दिन पहले आईपीसी की धारा 306 के तहत शिकायत दर्ज की गई थी और हरियाणा के मुख्यमंत्री ने उस समय कहा था कि पुलिस इस पर कानूनी सलाह मांग रही है।जब तंत्र जागता है तो सबकुछ हो जाता है। केंद्र सरकार भी इस मामले में दबाव बना रही है ताकि ऐसा दोबारा नहीं हो। अपनी कार्रवाई से अब उन्होंने आम आदमी को दिखाया है कि इस देश में कानून है। रुचिका ने छेड़छाड़ की घटना के तीन साल बाद 1993 में आत्महत्या कर ली थी। उसके भाई आशु ने पंचकूला पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराकर राठौड़ और कुछ अन्य पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 के तहत मामला दर्ज करने की मांग की थी। पहले दर्ज दो प्राथमिकियों में आरोप लगाया गया था कि पूर्व डीजीपी राठौड़ ने रुचिका के भाई आशु की हत्या की कोशिश की थी और रुचिका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ छेड़छाड़ की थी। आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आईपीसी की धारा 306 के तहत अधिकतम सजा 10 साल की कैद दी जा सकती है।

Sunday, January 3, 2010

महंगाई पर काबू पाने के लिए मौद्रिक उपाय जरूरी

रिजर्व बैंक तंत्र से अतिरिक्त तरलता हटाए जाए ताकि खाद्य वस्तुओं की महंगाई पर अंकुश लगाया जा सके। रिजर्व बैंक 29 जनवरी को मौद्रिक नीति की समीक्षा करेगा और संभावना जताई जा रही है कि बैंकिंग तंत्र से तरलता निकालने के लिए रिजर्व बैंक प्रमुख दरों में बढ़ोतरी कर सकता है जिससे मांग पर अंकुश लगाकर मुद्रास्फीति को काबू में लाया जा सके।खाद्य वस्तुओं की उच्च मुद्रास्फीति के लिए आपूर्ति में बाधा और अधिक मांग जिम्मेदार है, जहां सरकार को आपूर्ति पर ध्यान देने की जरूरत है, वहीं मांग पर अंकुश लगाने की भी जरूरत है। वैश्विक वित्तीय संकट के बाद रिजर्व बैंक ने सीआरआर, एसएलआर, रेपो और रिवर्स रेपो जैसी प्रमुख दरें नरम कर दी थीं। वहीं, अक्तूबर में मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान रिजर्व बैंक ने एसएलआर 24 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसद कर दी थी। वार्षिक थोक मूल्य सूचकांक अक्तूबर में 1.34 फीसद था जो नवंबर में बढ़कर 4.78 फीसद पर पहुंच गया और रिजर्व बैंक के अनुमान के मुताबिक इसके मार्च के अंत तक बढ़कर 6.5 फीसद के स्तर पर पहुंचने की संभावना है। इसके अलावा, खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति दिसंबर में बढ़कर करीब 20 फीसद पर पहुंच गई।

नए साल की धमाकेदार शुरूआत करना चाहेगा भारत

भारत 2009 में सफलता की नई ऊंचाइयां छूने के बाद कल से यहां शुरू हो रही एकदिवसीय क्रिकेट त्रिकोणीय सीरीज में उपमहाद्वीप के अपने प्रतिद्वंद्वियों श्रीलंका और बांग्लादेश के खिलाफ अपने नए व्यस्त सत्र की धमाकेदार शुरूआत करने के लक्ष्य के साथ उतरेगा।सीरीज के पहले मुकाबले में मेजबान बांग्लादेश कल श्रीलंका के खिलाफ दिन रात्रि के मैच में उतरेगा जबकि भारत अपने अभियान की शुरूआत मंगलवार को श्रीलंका के खिलाफ करेगा। आईसीसी एकदिवसीय रैंकिंग में दूसरे स्थान पर काबिज भारत के पास चोटी पर चल रहे आस्ट्रेलिया और अपने बीच के अंतर को कम करने का मौका है। आस्ट्रेलिया 130 अंक के साथ भारत से सात अंक आगे है। भारत ने एकदिवसीय श्रृंखला में श्रीलंका को 3-1 से हराने वाली टीम के अधिकांश अहम खिलाडि़यों को मौका दिया है जबकि तेज गेंदबाज इशांत शर्मा, प्रवीण कुमार और बाएं हाथ के स्पिनर प्रज्ञान ओझा को बाहर कर दिया गया है। सचिन तेंदुलकर को आराम दिया गया है। तेंदुलकर के हटने का फायदा रोहित शर्मा को मिला है जबकि लेग स्पिनर अमित मिश्रा और तेज गेंदबाज अशोक डिंडा 16 सदस्यीय टीम में जगह बनाने में सफल रहे हैं। स्वाइन फ्लू के कारण श्रीलंका के खिलाफ सीरीज से बाहर रहे तेज गेंदबाज एस श्रीसंत को भी टीम में जगह मिली है।श्रीलंका के खिलाफ सीरीज के बाद टीम इंडिया को आराम के लिए एक हफ्ते का समय भी नहीं मिला लेकिन महेंद्र सिंह धोनी और उनकी टीम जीत की लय को बरकरार रखने को बेताब है।श्रीलंका के लिए 2009 मिश्रित सफलता भरा रहा और उसने भारत के खिलाफ घरेलू और विदेशी सरजमीं पर एकदिवसीय सीरीज गंवाई लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ दो सीरीज जीता। टीम यहां कई नए चेहरों के साथ आई है जबकि मुथैया मुरलीधरन, सनथ जयसूर्या और महेला जयवर्धने जैसे बडे़ नाम नदारद हैं। बल्लेबाज चामरा सिलवा और लेग स्पिनर मलिंगा बंडारा की टीम में वापसी हुई जबकि कंधे की चोट के कारण भारत दौरे के बीच से लौटे तिलन तुषारा को भी मौका दिया गया है। नवोदित बल्लेबाज लाहिरू थिरिमाने को भी जगह मिली है। कुछ बड़े खिलाडि़यों की गैर-मौजूदगी में श्रीलंका की उम्मीदें काफी हद तक फार्म में चल रही तिलकरत्ने दिलशान और उपुल थरंगा की सलामी जोड़ी के अलावा कप्तान कुमार संगकारा पर टिकी होगी।दूसरी तरफ बांग्लादेश ने पिछले साल 19 में से 14 मैच जीते और वह इस लय को बरकरार रखना चाहेगा। टीम ने हालांकि श्रीलंका और भारत जैसी बड़ी टीमों का jyaada सामना नहीं किया। बांग्लादेश ने कैरेबियाई दौरे पर वेस्टइंडीज की कमजोर टीम को हराया जबकि जिम्बाब्वे के खिलाफ अपनी और उसकी सरजमीं पर एकदिवसीय श्रृंखला जीती। टीम को हालांकि उस समय झटका लगा जब 26 सदस्यीय प्रारंभिक टीम में कप्तान के रूप में शामिल तेज गेंदबाज मशरेफ मुर्तजा त्रिकोणीय सीरीज से बाहर हो गए। वह घुटने की चोट से उबरने में विफल रहे और साकिब अल हसन को टीम की कमान सौंपी गई। खराब प्रदर्शन के कारण कप्तानी गंवाने वाले मोहम्मद अशरफुल को 2010 में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद होगी जबकि युवा रुबेल हसन टीम के ट्रंप कार्ड हो सकते हैं।

Saturday, January 2, 2010

नए साल में शेयर बाजार में तेजी जारी रहने की उम्मीद

नए साल में भारतीय शेयर बाजार में तेजी जारी रहने की उम्मीदें हैं और सेंसेक्स नई बुलंदियों को छू सकता है, लेकिन इसका लाभ आम निवेशकों तक भी पहुंचना चाहिए। शेयर बाजारों को नए साल में नरम कर प्रणाली, खुदरा निवेशकों की बढ़ी हुई भागीदारी तथा सरकारी विनिवेश कार्यक्रम में तेजी की उम्मीद है। वैश्विक आर्थिक मंदी के बावजूद वर्ष 2009 में शेयर बाजार के निवेशकों का धन दोगुना हो गया। भारतीय शेयर बाजार के नए वर्ष में और बढ़ने की क्षमता है और विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार लाभ केवल प्रवर्तकों और विदेशी निधियों तक पहुंचने के बजाय खुदरा निवेशकों तक पहुंचना चाहिए।वर्ष 2010 में लक्ष्य 21,206.77 अंक की अब तक की सर्वोच्च ऊंचाई (यह ऊंचाई 2008 में हासिल की गई थी) को फिर से हासिल करना और उससे भी आगे जाने का है। वर्ष 2009 के अंत में सेंसेक्स एक साल पहले के स्तर के मुकाबले 81 प्रतिशत या 7,817.50 अंक की बढ़त के साथ 17,464.81 अंक पर पहुंच गया। इस प्रक्रिया में बाजार में निवेशकों का धन लगभग दोगुना होकर 60,00,000 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। विदेशी निवेशकों ने दुनिया की दूसरी सबसे तेजी सी बढ़ती अर्थव्यवस्था के प्रति अपना भरोसा जताते हुए निवेश किया।अगर सब कुछ ठीक रहा, तो बाजार में निवेशकों का धन 1,00,00,000 करोड़ रुपए तक पहुंच जाने की क्षमता है।आज, भारत दुनिया भर में इक्विटी निवेशकों का तरजीही गंतव्य है जैसा कि विदेशी संस्थागत निवेशक और इस वर्ष प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह (35 अरब डालर) से स्पष्ट है।बाजार का उतार-चढ़ाव दर्शाने वाला इंडेक्स घटकर 20 अंक पर आ गया है जो वर्ष भर पहले करीब 80 अंक के स्तर पर था। यह बाजार में बढ़ते विश्वास की ओर संकेत करता है और इस प्रकार से जबर्दस्त प्रवाह के जारी रहने की उम्मीद है।हमारे खुद के लोग, विशेषकर खुदरा निवेशक भी इसकी पहचान कर सकते हैं तथा ऐसी अर्थव्यवस्था में निवेश करने का दीर्घावधि लाभ उठा सकते हैं जिसके आगे के कई वर्षो में 7.5 से आठ प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है। हमें घर की मुर्गी को दाल बराबर नहीं समझना चाहिए। और अवसरों को नहीं चूकना चाहिए।नए साल से बाजार को जो उम्मीदें हैं उनमें कम कारोबारी लागत, दीर्घावधि पूंजी लाभ कर से जारी विस्तारीकरण और मुद्रास्फीति को अंकुश में रखने के उपाय शामिल हैं ताकि कम ब्याज दर की व्यवस्था कायम रहे।शेयर बाजार ने वर्ष 2009 में सरकार के राजकोषीय पैकेज और सतत पूंजी अंत:प्रवाह से ताकत हासिल की। भारत ने चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में सात प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर अर्जित की जिसका श्रेय बढ़ी हुई विनिर्माण गतिविधियों को जाता है। विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 80,000 करोड़ रुपए के शेयर खरीदे जो रिकार्ड ऊंचाई है। हालांकि, खुदरा निवेशकों की भागीदारी कोई खास महत्वपूर्ण नहीं थी जिसका उल्लेख किया जाए।