Sunday, August 23, 2009

दस दिवसीय गणेश महोत्सव शुरू


गणपति बप्पा मौर्या:::महाराष्ट्र में आंतकी हमले, बारिश और स्वाइन फ्लू के डर को नजरअंदाज कर आज दस दिवसीय गणेश महोत्सव की शुरूआत हुई।करीब 5,500 'सार्वजनिक' मंडलों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा लगाई गई है तथा शहर के 88 स्थानों पर महोत्सवनुमा माहौल देखा जा रहा है। मुंबई के लाखों घरों और सार्वजनिक गणेश मंडलों में भगवान गणेश की प्रतिमा लगाई गई हैं। शहर के कई भागों में बारिश के बावजूद लोगों में महोत्सव के प्रति उत्साह देखा जा रहा है। आंतकी हमले के अलर्ट की पृष्ठभूमि में मुंबई पुलिस ने महोत्सव के मद्देनजर व्यापक सुरक्षा योजना बनाई है तथा इसके तहत महत्वपूर्ण स्थानों पर सीसीटीवी लगाए जा रहे हैं तथा निगरानी के लिए ऊंचे टावर बनाए गए हैं। महत्वपूर्ण स्थानों पर सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की गई है तथा भीड़ पर नजर रखने के लिए 50 टावर बनाए गए हैं। पुलिस के मुताबिक प्रमुख गणेश मंडलों पर बम खोजी दस्ते और बम निष्क्रिय दस्तों को तैनात किया गया है एवं आयोजकों से सीसीटीवी लगाने का कहा गया है।

रहमत और बरकत से भरे रमजान के महीने का आगाज


चंद्र कैलेंडर पर टिका रमजान: मुस्लिम रमजान के लिए चंद्र कैलेंडर का इस्तेमाल करते हैं। रमजान उस कैलेंडर का नौंवा महीना है। चंद्र वर्ष 365 दिन के सौर वर्ष से छोटा होता है, लिहाजा पश्चिमी कैलेंडर के मुताबिक रमजान कुछ पहले शुरू हो जाता है।रोजा की वर्जनाएं: स्वस्थ्य और वयस्क लोग सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ भी ग्रहण नहीं करते। पानी भी नहीं। रोजे की हालत में यौन संबंध और धूम्रपान वर्जित होता है। रोजा में रोजमर्रा के कामकाज में कोई रुकावट नहीं है। हां, यह हो सकता है कि काम के घंटे कम कर दिए जाएं।रोजे की वजह: कुरान के मुताबिक हर स्वस्थ्य मुस्लिम का यह धार्मिक कर्तव्य है। इससे व्यक्ति का शुद्धिकरण होता है और उसका ईमान पुख्ता होता है।उत्सव का माहौल: सूर्योदय के पहले हल्का खाना खाया जाता है। सूर्योदय के बाद इफ्तार और लोग नमाज पढ़ने के लिए एकत्र होते हैं। शाम को उत्सव जैसा माहौल होता है।ईद से अंत: ईद-उल-फिज के साथ ही रमजान खत्म हो जाता है। लोग नमाज पढ़ते हैं और एक-दूसरे को को तोहफे देते हैं।रहमत और बरकत से भरे रमजान के महीने का आगाज हो चुका है। मोमिनों को अल्लाह से प्यार और लगन जाहिर करने के साथ खुद को खुदा की राह की सख्त कसौटी पर कसने का मौका देने वाला यह महीना बेशक हर बंदे के लिए नेमत है। रमजान में दिन भर भूखे-प्यासे रहकर खुदा को याद करने की मुश्किल साधना करते रोजेदार को अल्लाह खुद अपने हाथों से बरकतें नवाजता है।यह महीना कई मायनों में अलग और खास है। अल्लाह ने इसी महीने में दुनिया में कुरान शरीफ को उतारा था जिससे लोगों को इल्म और तहजीब की रोशनी मिली। साथ ही यह महीना मोहब्बत और भाईचारे का संदेश देने वाले इस्लाम के सार तत्व को भी जाहिर करता है।रोजा न सिर्फ भूख और प्यास बल्कि हर निजी ख्वाहिश पर काबू करने की कवायद है। इससे मोमिन में न सिर्फ संयम और त्याग की भावना मजबूत होती है बल्कि वह गरीबों की भूख-प्यास की तकलीफ को भी करीब से महसूस कर पाता है। रमजान का महीना सामाजिक ताने-बाने को भी मजबूत करने में मददगार साबित होता है। इस महीने में सक्षम लोग अनिवार्य रूप से अपनी कुल सम्पत्ति का एक निश्चित हिस्सा निकालकर उसे जकात के तौर पर गरीबों में बांटते हैं।रमजान की शुरुआत सन दो हिजरी से हुई थी और तभी से अल्लाह के बंदों पर जकात भी फर्ज की गई थी।मजान के महीने में अल्लाह के लिए हर रोजेदार बहुत खास होता है और खुदा उसे अपने हाथों से बरकत और रहमत नवाजता है।इसमें बंदे को एक रकात फर्ज नमाज अदा करने पर 70 रकात नमाज का सवाब (पुण्य) मिलता है। साथ ही इसमें शबे कद्र की रात में इबादत करने पर एक हजार महीनों से ज्यादा वक्त तक इबादत करने का सवाब हासिल होता है।कुरान शरीफ में लिखा है कि मुसलमानों पर रोजे इसलिए फर्ज किए गए हैं ताकि इस खास बरकत वाले रूहानी महीने में उनसे कोई गुनाह नहीं होने पाए। उन्होंने कहा कि यह खुदाई असर का नतीजा है कि रमजान में लगभग हर मुसलमान इस्लामी नजरिए से खुद को बदलता है।नई पीढ़ी के मुसलमानों में भी रमजान के प्रति श्रद्धा और आस्था में कोई कमी नहीं आई है।

Tuesday, August 18, 2009

जसवंत पर सवार जिन्ना का भूत




शराब और विलायती कपड़ों के बेहद शौकीन मुहम्मद अली जिन्ना ने वकालत के पेशे में जल्दी नाम कमा लिया था। 1896 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने। मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में हुई थी किंतु जिन्ना 1913 में इसमें शामिल हुए। कांग्रेस में वे जब तक रहे उन्हें धर्मनिरपेक्ष माना जाता रहा, जो हिंदू-मुस्लिम एकता की लगातार बात करता था। कांग्रेस में सात साल रहकर जब जिन्ना ने 1920 में पार्टी यह कर छोड़ी कि गांधीजी के जनसंघर्ष का सिद्धांत हिंदू-मुसलमानों के बीच दूरियां बढ़ाएगा। इस जनांदोलन से खाई पैदा होगी। मुस्लिम लीग ने अपने पैतरें बदले और कर डाली अलग चुनाव क्षेत्र की मांग, जबकि पंडित जवाहर लाल नेहरू संयुक्त रूप से चुनाव लड़ने के पक्षधर थे। जिन्ना जब नहीं माने और धर्म व जाति के नाम पर एक समझौता हुआ। 1937 में हुए सेंटल लेजिस्लेटिव असेंबली चुनाव में मुस्लिम लीग ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर देते हुए ज्यादातर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों पर कब्जा किया। 1930 के दशक में जिन्ना मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग करने लगे। 1937 में मुस्लिम लीग को पुनर्गठित कर 1940 में लाहौर प्रस्ताव पारित कर अलग देश बनाने की औपचारिक मांग तक कर डाली।जिन्ना कहीं से धर्मनिरपेक्ष नहीं लगते हैं। राजनैतिक फायदे के लिए उन्होंने धर्म का इस्तेमाल किया। पाकिस्तान बनाने के बाद जिन्ना ने कहा था कि अब यहां पर हर नागरिक सिर्फ पाकिस्तानी होगा। पंडित नेहरू ने कहा था कि जिन्ना उस शख्स की याद दिलाते हैं, जो अपने मां-बाप का कत्ल करके अदालत से इस बुनियाद पर माफी चाहता है कि वह यतीम है।फिर भाजपा नेता जसवंत सिंह को क्या सूझी थी कि उन्होंने जिन्ना को भारत का अभिन्न मित्र और पंडित नेहरू और सरदार पटेल को देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। अपनी सफाई में वह कहते हैं कि पांच साल के शोध के बाद मैंने यही पाया कि जिन्ना भारत के अभिन्न मित्र थे। इसका प्रस्तुतीकरण उन्होंने जिन्ना पर लिखी किताब में किया। इससे भाजपा में इनकी किरकिरी हो रही है। यहां तक कि भाजपा की भी बदनामी हो रही है। अब पार्टी ने जसवंत से दूरियां बनानी शुरू कर दी हैं। शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने यहां तक की दिया कि क्या जिन्ना जसवंत के रिश्तेदार लगते हैं। भाजपा में इसके पूर्व भी जिन्ना को लेकर घमासान मच चुका है जब लालकृष्ण आडवानी को पार्टी के अध्यक्ष पद से हाथ धोना पड़ा था। आखिरकार भाजपा के नेता लोग जिन्ना का महिमामंडप क्यों करते हैं।भारतीय जनमानस के पटल पर देश के विभाजन के लिए जिन्ना को सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है।जिन्ना-इंडिया, पार्टिशन, इंडिपेंडेंस नाम से जसवंत सिंह ने किताब लिखी है। धर्म के नाम पर जिन्ना और भाजपा का कोण एक जगह जरूर टकराता है। भाजपा भी धर्म के आड़ में राजनीति करती चली आ रही है। जिन्ना ने भी धर्म के नाम पर राजनीति की और मुसलमानों को एक जुट कर पाकिस्तान बना डाला। उनको धर्मनिरपेक्ष भारत पसंद नहीं आया। इस बंटवारे से जन और धन की जो हानि हुई थी उसे आज भी लोग भूल नहीं पाए हैं। धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों को कभी भी धर्मनिरपेक्ष नहीं कहा जा सकता है। सोमवार को किताब का विमोचन भी हो चुका है। मुझे तो शर्म आती है कि जसवंत को क्या सूझी थी कि उन्होंने जिन्ना पर लिखी किताब में उनका महिमामंडप किया। इससे उनका कदम छोटा अवश्य हुआ। उन्होंने जिस उद्देश्य से यह किताब लिखी है वह तो पूरा नहीं होगा।

Sunday, August 16, 2009

कर्जन की चली होती तो दिल्ली नहीं बनती राजधानी


ब्रिटिश सरकार ने अगर भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड कर्जन (1899-1905) की बात मानी जाती तो दिल्ली देश की राजधानी नहीं होती। 1905 में बंगाल विभाजन करके लिए कुख्यात कर्जन देश की राजधानी को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से हटाने के खिलाफ थे। उन्होंने हाउस आफ लार्ड्स में इस मुद्दे पर खासी आपत्ति जताई थी। आखिरकार 1912 (वायसराय लार्ड हार्डिग के काल) में कलकत्ता की जगह नई दिल्ली को देश की राजधानी बनाया गया। कर्जन का मत था कि कलकत्ता से राजधानी हटाना सरकार के लिए ज्यादा नुकसानदेह होगा। हाउस आफ लार्ड्स में कर्जन ने कहा था कि समुद्र के पास होना, जूट, कोयला तथा चाय आपूर्ति के स्रोतों व इन चीजों के व्यवसायियों का उनके प्रतिष्ठानों से करीब होना कलकत्ता को महत्वपूर्ण बनाता है। कर्जन के मुताबिक यह गंभीर खतरा है। जब आप दिल्ली को अपनी राजधानी बनाएंगे तो सरकार लोगों से अलग-थलग होकर नौकरशाही से जकड़ जाएगी। दिल्ली न तो एक निर्माणकर्ताशहर बन सकती है और न वितरण का केंद्र। व्यापार के लिए राजधानी का समुद्र से नजदीकी बहुत जरूरी है।कर्जन ने ब्रिटिश सरकार को दिल्ली को राजधानी न बनाने के तीन कारण बताए थे। पहली बात यह है कि इससे सरकार की प्रतिष्ठा कम होगी। दूसरा इससे प्रशासन की कार्यक्षमता प्रभावित होगी। तीसरा, भारत में ब्रिटिश शासन सिकुड़ जाएगा। लेकिन कर्जन के तमाम तर्को के बावजूद ब्रिटिश सरकार ने भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर दी।

Saturday, August 15, 2009

सूखे को झेल रहा भारत ने मनाई अपनी 63वीं आजादी







वैश्विक मंदी, कमजोर मानसून, स्वाइन फ्लू और आतंकवाद के स्याह साए के बीच रोशनी और बेहतर भविष्य की उम्मीद के साथ कृतज्ञ राष्ट्र ने शनिवार को 63वां स्वतंत्रता दिवस मनाया।
स्वतंत्रता दिवस का मुख्य समारोह राजधानी दिल्ली में मनाया गया जहां देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लालकिले की प्राचीर से देशवासियों को संबोधित करते हुए उन्हें आश्वस्त किया कि हालात ऐसे नहीं है कि डर और घबराहट की वजह से हमारे रोजमर्रा के काम रुक जाएं। यकीन है कि हम इन परिस्थितियों का सामना बखूबी कर पाएंगे।
उधर, देश के विभिन्न भागों में स्वतंत्रता दिवस का राष्ट्रीय पर्व परंपरागत ढंग से मनाया गया। सभी राज्यों की राजधानियों में भव्य समारोहों का आयोजन कर तिरंगा फहराया गया। प्रधानमंत्री ने देश में सूखे की स्थिति से निपटने के लिए किसानों को हर संभव मदद देने का वादा करने के साथ स्वाइन फ्लू से निपटने के लिए कारगर कदम उठाने की भी बात कही। प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था में सुधार के प्रति आशा व्यक्त करते हुए कहा कि इस वर्ष के अंत तक विकास की रफ्तार में काफी सुधार होगा। देश के 63वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रिमझिम फुहारों और 21 तोपों की सलामी के बीच ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र ध्वज तिरंगा फहराया।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भाषण के प्रमुख बिंदु :- कालाबाजारी बर्दाश्त नहीं,-कोई भूखा नहीं रहेगा,-एच1एन1 फ्लू से भयभीत होने की जरूरत नहीं। दैनिक कामकाज बाधित नहीं होना चाहिए,-देश के हर नागरिक को समृद्ध और सुरक्षित बनाना होना और उन्हें एक सम्मानित जिंदगी देनी होगी,-नौ फीसदी की विकास दर हासिल करना सबसे बड़ी चुनौती है। हम आशा करते हैं कि इस साल के अंत तक स्थिति में सुधार होगी,-कठिन स्थिति से सामना और सामाजिक दायित्व के निर्वाह के लिए व्यापारियों और उद्योगपतियों से सहयोग की अपील,- इस साल मानसून में कमी दर्ज की गई है। सूखे से निपटने के लिए हम अपने किसानों को हर संभव सहयोग मुहैया करवाएंगे,-किसानों की ऋण अदायगी तारीख बढ़ा दी गई है। इसके अलावा किसानों को लघु काल के ऋणों पर ब्याज की अदायगी में अतिरिक्त सहयोग दिया जाएगा,- हमारे पास आनाज का पर्याप्त भंडार है। अनाजों, दालों और अन्य जरूरी चीजों की कीमतों को रोकने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे,-देश को एक और हरित क्रांति की जरूरत। कृषि चार फीसदी के विकास का लक्ष्य पांच वर्षो में हासिल कर लिया जाएगा,-खाद्य सुरक्षा कानून बनाया जाएगा जिसके तहत गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले प्रत्येक परिवार को निम्न दर पर एक निश्चित मात्रा में आनाज मिलेगा,-महिलाओं व बच्चों की जरूरतों के लिए विशेष कदम उठाए जाएंगे। मार्च 2012 तक आईसीडीएस के तहत छह साल के तक के सभी बच्चों को शामिल किया जाएगा,-नरेगा योजना में और सुधार किया जाएगा और इसे ज्यादा पारदर्शी व जिम्मेदार बनाया जाएगा,-शिक्षा का अधिकार कानून बन गया है, धन की कोई कमी नहीं होगी,-विकलांग बच्चों की जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा,-माध्यमिक शिक्षा को बढ़कर यह सुनिश्चित किया जाएगा देश के हर बच्चे को इससे लाभ मिले,- बैंक ऋण और छात्रवृत्ति अधिक से अधिक छात्रों को मुहैया करवाई जाएगी,-आर्थिक रूप से पिछले छात्रों को नई योजना के तहत कम ब्याज दर पर शिक्षा ऋण मिलेगा। इससे लिए करीब पाच लाख छात्रों को लाभ मिलेगा,-राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को शामिल किया जाएगा,-भारत निर्माण के लिए अतिरिक्त कोष आवंटित किया जाएगा,- भौतिक आधारभूत सुविधाओं के विकास में तेजी लाई जाएगी और प्रति दिन 20 किलो मीटर राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण होगा,- रेलवे ने फ्रेट कॉरीडोर पर काम शुरू कर दिया है।,-जम्मू एवं कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में सड़क, रेल और विमान परियोजनाओं का विस्तार होगा,-देश को झुग्गी-झोपड़ी मुक्त बनाने के लिए राजीव आवास योजना की शुरुआत,-भारत जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटेगा,- जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सौर्य ऊर्जा मिशन की शुरुआत 14 नवंबर को होगी,-ऊर्जा संरक्षण की एक नई संस्कृति की जरूरत।

Thursday, August 6, 2009

धुंधला दिखा चंद्रग्रहण


पीली आभा से दमकता पूर्ण चंद्रमा आज सुबह उपच्छाया ग्रहण के असर से हल्के लाल रंग का हो गया। इस ग्रहण का विश्वभर के वैज्ञानिकों और शौकिया खगोलविदों ने बारीकी से निरीक्षण किया। चंद्र ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा इस तरह से धरती के पीछे आ जाता है कि धरती सूर्य की किरणों के चांद तक पहुंचने में अवरोध लगा देती है। उपच्छाया चंद्र ग्रहण में धरती की परछाई का हल्का हिस्सा चंद्रमा पर पड़ता है। ग्रहण सुबह चार बजकर 34 मिनट 17 सेकेंड पर शुरू हुआ और सुबह सात बजकर 34 मिनट नौ सेकेंड पर खत्म हुआ। ग्रहणीय संयोजन सुबह साढ़े छह बजे हुआ, जबकि ग्रहण सुबह छह बजकर 10 मिनट 11 सेकेंड पर अपने चरम पर था। ग्रहण के दौरान चंद्रमा मकर राशि तारामंडल में था, इसलिए यूरोप, दक्षिणी अमेरिका तथा अफ्रीका में यह स्पष्ट रूप से नजर आया। चंद्रग्रहण को पूर्वी उत्तर अमेरिका में उगते हुए और एशिया में ढलते हुए देखा गया।यह ग्रहण 0.899 मैग्नीट्यूड के साथ वर्ष का सबसे धुंधला उपच्छाया ग्रहण था। इस साल गत 22 जुलाई को हुआ पूर्ण सूर्य ग्रहण दो उपच्छाया चंद्र ग्रहणों के बीच पड़ा था। एक उपच्छाया चंद्र ग्रहण गत सात जुलाई को हुआ था ्र जबकि दूसरा आज पड़ा। इससे पहले इस तरह का अंतिम उदाहरण 1908 में देखने को मिला था और इस तरह का अगला उदाहरण 2074 में देखने को मिलेगा। देश नौ फरवरी और सात जुलाई को पहले ही दो उपच्छाया चंद्र ग्रहण देख चुका है। एक और आंशिक चंद्र ग्रहण 31 दिसंबर को पड़ेगा। 22 जुलाई को लोगों ने पूर्ण सूर्य ग्रहण देखा था जो अब 123 साल बाद दिखेगा।

Wednesday, August 5, 2009

राष्ट्र ने मनाया पारंपरिक तरीके से रक्षाबंधन


भाई और बहन के अटूट संबंधों को दर्शाने वाला त्यौहार रक्षाबंधन आज राष्ट्र पारंपरिक उत्साह के साथ मना रहा है। बहिनों ने भाइयों के तिलक लगाकर राखियां बांधी और खुशहाली की प्रार्थनाएं की और उपहारों का आदान-प्रदान खूब हुआ।स्कूलों के बच्चों ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को राखियां बांधीं। बदले में छात्रों को राष्ट्रपति ने एक सांकेतिक तोहफा और नाश्ते का पैकेट दिया। इसके अतिरिक्त उन्हें राष्ट्रपति भवन की सैर कराई गई। राष्ट्रपति की कलाई पर राखी बांधने वाली एक नेत्रहीन लड़की ने कहा कि मैं उन्हें देख नहीं सकी लेकिन अपने गाल पर उनके स्पर्श को मैंने महसूस किया। काश मैं इस क्षण को देख सकती। विभिन्न स्कूलों और गैर सरकारी संगठनों से जुड़े बच्चों ने प्रधानमंत्री की कलाई पर राखी बांधी और उन्हें मिठाइयां खिलाईं। इस अवसर पर दिए गए संदेश में प्रधानमंत्री ने कहा कि इस त्योहार से हमारे पारंपरिक संबंधों की पवित्रता को बल मिलता है। उन्होंने कहा कि इससे मतभेद दूर करने तथा बंधुत्व और भाईचारे के संबंधों को मजबूत करने का अवसर मिलता है।रक्षाबंधन के अवसर पर विभिन्न कार्यालयों में महिला कर्मी छुट्टी पर थीं। इस अवसर पर जब रक्षाबंधन से संबंधित फिल्मी गाने दिल को छूने वाले बजते हैं तो मन भावुक हो जाता है। जैसे भइया मेरे राखी के बंधन को निभाना.. राखी बंधवालो मेरे वीर..भइया मेरे छोटी बहन को न भुलाना..आदि गानों के साथ जब राखी बांधी जाती है तो वास्तव में भाई-बहन का असली प्रेम सामने आ ही जाता है। यही है इस त्यौहार का असली मकसद।

Sunday, August 2, 2009

राखी के बंधन को निभाना


इंतजार करते-करते आ गया रक्षाबंधन। प्यारी-प्यारी राखी अपने भाई की कलाई पर बांधने के बाद किसी भी बहन को इंतजार रहता है तो सिर्फ उस नेग का जिसे वह बेसब्री से इंतजार करती है। राखी की सबसे लोकप्रिय कथा राजनीतिक हित सिद्धि से जुड़ी है। जब ग्रीस के राजा सिकंदर और हिंदू राजा पोरस के बीच युद्ध मैदान में सिकंदर की पत्‍नी ने राजा पोरस को राखी के रूप में धागा भेजकर यह नेग मांगा कि आप मेरे पति सिकंदर को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। पोरस ने किया भी ऐसा ही था। उसने राखी की लाज रखी और युद्ध मैदान से हट गया। महाभारत युद्ध की शुरूआत में ही द्रोपदी ने कृष्ण को राखी बांधकर भाई मान लिया था और कृष्ण ने महाभारत युद्ध में पांडवों का साथ दिया था। बाली भगवान विष्णु का परम भक्त था, एक दिन उसने विष्णु से कहा कि आप मेरे राज्य से निकल जाइए। यह सुनकर भगवान विष्णु की पत्‍‌नी लक्ष्मी जी दुखी हुई क्योंकि वह घर नहीं छोड़ना चाहती थीं। लक्ष्मी जी बाली के पास राखी का धागा लेकर पहुंची और बाली के कलाई पर बांध दिया और नेग मांगा कि आप घर छोड़ने के लिए नहीं कहेंगे। बाली खुद विष्णु के पास गया और कहा कि आप घर नहीं छोड़ेंगे। सोलहवीं सदी में राजस्थान के चित्तौड़ घराने की रानी कर्णवती ने मुस्लिम शासक हुमायूं को राखी के रूप में रेशमी धागा तब भेजा था जब गुजरात का बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर चढ़ाई की धमकी दी थी। राखी पाकर हुमायूं चित्तौड़ को बचाने के लिए गया था, लेकिन तब तक चित्तौड़ लुट चुका था। चित्तौड़ की रानी समेत 1,30,000 राजपूत महिलाओं के साथ जौहर अर्थात आत्महत्या कर ली थी।रक्षाबंधन सावन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। उत्तरी भारत में इसे राखी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। जबकि पश्चिमी भारत महाराष्ट्र, गोवा और गुजरात में नारियल पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। देश के केंद्रीय हिस्सों में कजरी पूर्णिमा के नाम से लोग पर्व मनाते हैं। दक्षिण भारत में इसे अवानी अविट्टम, उपकर्म के नाम से मनाते हैं। गुजरात के कुछ हिस्सों में इसे पवित्रोपड़ के नाम से मनाते हैं। इस दिन भगवान शिव की पूजा करते हैं।भारत देश इतना बड़ा है कि एक ही पर्व अनेक नामों से जाना जाता है। भाई और बहनों का अब यह पर्व आधुनिक बनता जा रहा है।अब बहनें अपने भाइयों से अच्छे उपहारों की उम्मीद रखती हैं। यदि चार भाई हैं और तीन भाई इस दिन को बहिन को अच्छा उपहार देते हैं, चौथा भाई की स्थिति अच्छी नहीं है वह शर्म की वजह से बहिन के घर जाने में संकोच करता है। सच्चाई तो यह है कि इन कीमती उपहारों ने राखी के बंधन के महत्व को कम करके उपहार बंधन का रूप धारण कर लिया। राखियां भी अब सादा नहीं रहीं। हम चाहते हैं कि यह त्योहार फिर से वही रूप ले जो पहले जाति-धर्म से हटकर बहनें अपनी रक्षा के लिए भाई की कलाई पर सिर्फ एक धागा बांधती थी। भइया मेरे राखी के बंधन को निभाना।