Thursday, December 30, 2010

इंजीनियरिंग के लिए 12 वीं के मार्क्स को मिलेगी वेटेज

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने शुक्रवार को साफ कर दिया कि सरकार इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (आईआईटी) के एंट्रेंस के पूरे सिस्टम को बदलने जा रही है। सिब्बल ने कहा कि बढ़िया स्टूडेंट्स के आईआईटी में दाखिले के लिए जरूरी है कि मौजूदा कोचिंग सिस्टम खत्म किया जाए।

शुक्रवार को आईआईटी काउंसिल की बैठक के बाद सिब्बल ने कहा कि इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम के पैटर्न में बदलाव की सिफारिश मंत्रालय ने पहले भी की थी। आईआईटी खड़गपुर के डायरेक्टर दामोदर आचार्य के तहत एक कमिटी बनी थी जिसने इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए 12वीं के रिजल्ट को वेटेज देने और जेईई से पहले नैशनल लेवल का एप्टिट्यूड टेस्ट लेने की बात कही थी। कमिटी अपनी रिपोर्ट दे चुकी है और इस बात पर सभी रजामंद हैं कि एंट्रेंस एग्जाम के सिस्टम को बदलने की जरूरत है। नया सिस्टम कैसा हो, यह अभी फाइनल किया जाना बाकी है।

सिब्बल ने कहा कि हमें स्टूडेंट के 12वीं लेवल पर परफॉर्मेंस को भी देखना चाहिए... वरना कुछ राज्यों के स्टूडेंट्स तो आईआईटी में एडमिशन ले ही नहीं पाएंगे। 12वीं के एग्जाम के मार्क्स को वेटेज दी जाएगी और ये मार्क्स पूरे साल स्टूडेंट की परफॉर्मेंस के आधार पर तय होंगे। इससे कोचिंग का ट्रेंड अपने आप खत्म हो जाएगा।

सिब्बल ने कहा कि साइंस ऐंड टेक्नॉलजी सेक्रेटरी टी. रामासामी के तहत एक कमिटी बनाई गई है और यह अपनी रिपोर्ट तीन महीने में पेश करेगी। इसके बाद हम सभी आईआईटी के साथ रिपोर्ट पर चर्चा करेंगे। सभी आईआईटी ने कहा है कि वे जॉइंट एंट्रेंस एग्जाम को जारी रखना चाहते हैं। पर अगर विकल्प दिया जाएगा तो वे अपनी फैकल्टी के साथ उसे डिस्कस करेंगे।

विदेशी स्टूडेंट्स और फैकल्टी: आईआईटी में विदेशी स्टूडेंट्स और परमानेंट विदेशी फैकल्टी को भी शामिल किया जाएगा। विदेशी स्टूडेंट्स का पर्सेंट 25 तक होगा और उन्हें पीजी लेवल पर ही एडमिशन मिलेगा। विदेशी फैकल्टी 10 पर्सेंट से ज्यादा नहीं रखी जाएगी। विदेशी स्टूडेंट्स की सीटें पहले से मौजूद भारतीय छात्रों की सीटों के अलावा जोड़ी जाएंगी।

मेडिकल स्ट्रीम भी जुड़ेगी: सिब्बल ने कहा कि आईआईटी में पीजी लेवल पर मेडिसिन और मेडिकल रिसर्च के कोर्स भी शुरू किए जाएंगे। चूंकि मेडिसिन फील्ड में इंजीनियरिंग तकनीक की बेहद जरूरत होती है, इसलिए आईआईटी में मेडिसिन कोर्स की जरूरत महसूस की गई। इस बारे में मेडिकल काउंसिल से अप्रूवल मिलने के बाद आईआईटी एक्ट में जरूरी बदलाव भी किए जा सकते हैं।

Wednesday, December 29, 2010

आरुषि के मर्डर की गुत्थी नहीं सुलाझा पाई सीबीआई

नोएडा के बहुचर्चित आरुषि तलवार मर्डर केस में करीब ढाई साल की जांच के बाद भी केंद्रीय जांच ब्यूरो ( सीबीआई ) के हाथ कुछ भी नहीं लगा। सीबीआई ने गाजियाबाद के स्पेशल कोर्ट में जांच करने के लिए पर्याप्त सबूत न मिलने की बात कहते हुए इसकी जांच को बंद करने की रिपोर्ट फाइल कर दी। सीबीआई ने कोर्ट को बताया कि उसे घटना स्थल पर पर्याप्त सबूत नहीं मिल पाए थे।।

नोएडा के जलवायु विहार अपार्टमेंट में 16 मई 2008 को आरुषि का शव मिला था। अगले ही दिन यानी 17 मई को घर की छत पर नौकर हेमराज भी मृत मिला था। 15 दिनों तक केस पर काम करने के बाद यूपी पुलिस के किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाने के कारण इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी। एक जून 2008 को जॉइंट डायरेक्टर अरुण कुमार के नेतृत्व में सीबीआई ने आरुषि के पिता राजेश तलवार की गिरफ्तारी के साथ ही इस मामले की जांच शुरू की।

राजेश तलवार 50 दिनों तक जेल में भी रहे थे। बीआई ने इस मामले में आरुषि के पिता डॉ. राजेश तलवार के कपाउंडर कृष्णा को आरोपी बनाया था। उत्तर प्रदेश पुलिस का कहना था कि शवों के पोस्टमार्टम के बाद यह बात सामने आई कि दोनों हत्याओं में एक ही तरह के हथियार का इस्तेमाल किया गया।
वह बहुत होनहार थी। उसके हौसले भी बुलंद थे, लेकिन उसके सारे सपनों को चूर कर दिया उसे बेरहमी से कत्ल करने वालों ने। दो साल पहले आरुषि तलवार का नोएडा के जलवायु विहार स्थित उसके घर में बेरहमी से कत्ल कर दिया गया था। आरुषि जिंदगी में बहुत कुछ हासिल करना चाहती थी। उसे पढ़ाई के साथ हर एक्टिविटी में आगे रहना पसंद था। आरुषि के दोस्तों का कहना है कि वह एक इंटेलिजेंट लड़की थी।

उसे डांस बहुत पसंद था। अपनी परफॉर्मेंस को और बेहतर बनाने के लिए वह नोएडा के एक डांस इंस्टिट्यूट से क्लास ले रही थी। वह सालसा डांस में बेहतरीन प्रदर्शन करना चाहती थी। उसकी अच्छी परफॉर्मेंस का ही नतीजा था कि उसे एक शो में जल्द ही पूर्व मिस वर्ल्ड युक्ता मुखी के साथ परफॉर्म करने का मौका मिलने वाला था। आकांक्षा बताती है कि उसे तो मौके की तलाश होती थी, फिर तो वह छोटी से छोटी पार्टी में भी डांस करना नहीं छोड़ती थी। फिल्मी गानों पर तो यूं ही थिरकने लगती थी। उसे स्विमिंग का भी काफी शौक था। एक प्राइवेट ट्रेनिंग संस्थान से वह स्विमिंग की ट्रेनिंग ले रही थी। उसे फ्रेशनेस और अच्छी फिटनेस के लिए भी स्विमिंग करना पसंद था।

स्कूल में भी हमेशा अव्वल रहती। उसे स्कूल में स्कॉलर प्लेजर मिला था। यह उसी को मिलता है जो एग्जाम में अच्छा स्कोर करे। चाहे डिबेट हो या क्विज, वह हर प्रतियोगिता में हिस्सा लेती थी। उसे कविताएं लिखना भी पसंद था। एक अच्छी और पढ़ाई में होशियार छात्र होने के नाते उसे स्कूल के लगभग सभी टीचर जानते थे। उसके सीनियर छात्रों के मुताबिक वह बहुत खुशमिजाज थी और अपने से बड़े स्टूडेंट्स को पूरी इज्जत देती थी। अंकिता बताती है कि स्कूल में होने वाले हर कॉम्पिटिशन में वह हिस्सा लेती थी और अधिकतर में अव्वल रहती। सभी के साथ वह अच्छा बिहैव करती थी।

आरुषि-हेमराज मर्डर को देश की सबसे बड़ी मिस्ट्री बनने की वजह घटनास्थल से सबूत जुटाने में हुई पुलिस की लापरवाही है। पुलिस ने घटनास्थल से फोटो लेने में भी लापरवाही की थी। महज दो-तीन एंगल से ही फोटो लिए गए थे। घटना के दो दिनों बाद तक हेमराज के कमरे में पड़ी शराब की बोतल और तीन ग्लास को भी कब्जे में नहीं लिया गया था। आरुषि के कमरे में ब्लड और कुछ गिरे हुए बाल को भी नहीं उठाया गया था। इसलिए जांच की दिशा तय करने में ही परेशानी हो रही है।

पुलिस ने शुरुआती जांच में जमकर लापरवाही बरती। अगर पुलिस ने साइंटिफिक एविडेंस कलेक्ट किए होते तो जांच आसान हो जाती। 16 मई को आरुषि की डेड बॉडी मिलने के दूसरे दिन रिटायर्ड डिप्टी एसपी मौके पर पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि मुआयना करने के दौरान ही साक्ष्यों को नहीं उठाए जाने को देख मैं बारीकी से पड़ताल करने लगा। घर के बाहर सीढ़ी की रेलिंग पर कुछ ब्लड स्पॉट दिखे। छत के दरवाजे पर भी कुछ निशान देखा। इसलिए तत्कालीन थाना प्रभारी की मदद से दरवाजे का ताला तोड़ा और छत पर पहुंचे तो हेमराज की डेड बॉडी मिली। इसके बाद केस में नया मोड़ आया था।

कातिल को लेकर सस्पेंस बना हुआ है। जहां तक मेरी तफ्तीश है तो तलवार दंपती और नौकरों, दोनों पर शक की सूई है। हेमराज के कमरे में मिली शराब की बोतल और तीन ग्लास से नौकरों पर शक है। आरुषि के कमरे से ली गई तस्वीरों को देखने से साफ होता है कि उसके साथ जबर्दस्ती की गई, जिसे अभी तक छिपाया गया है। आशंका इस बात की भी है कि देर रात दो या तीन लोग हेमराज के कमरे में दाखिल हुए। उन्होंने मिलकर देर रात शराब पी। इसके बाद नशे में इस घटना को अंजाम दे दिया। हेमराज इस घटना का चश्मदीद बन गया, इसलिए बहाने से उसे छत पर ले जाकर ठिकाने लगा दिया गया।

वहीं, तलवार दंपती पर शक इसलिए होता है कि 16 मई की सुबह बहुत जल्दबाजी में ब्लड के निशान को साफ कर दिया गया। खून से गद्दे को डॉ. तलवार की छत के बजाय पड़ोसी की छत पर रख दिया गया। ऐसा आखिर क्यों किया गया? अगर तलवार की छत के गेट पर लगे लॉक की चाबी नहीं थी तो उसे तोड़ देना चाहिए था। जबकि ऐसा नहीं किया गया।

डरबन में भारत ने साउथ अफ्रीका को हराया

वीवीएस लक्ष्मण की जादूगरी और बोलर्स के शानदार प्रदर्शन की बदौलत भारत ने दक्षिण अफ्रीका को 87 रन से हराकर सीरीज में वापसी कर ली। इस जीत के साथ ही भारत इस सीरीज में 1-1 से बराबरी पर आ गया। वीवीएस लक्ष्मण को मैन ऑफ द मैच घोषित किया गया।

भारत का 303 रन का लक्ष्य किंग्समीड की असमान उछाल लेती पिच पर दक्षिण अफ्रीका के लिए पहाड़ जैसा बन गया और उसकी पूरी टीम इस कम स्कोर वाले मैच के चौथे दिन दूसरे सेशन में 215 रन पर सिमट गई। जहीर खान और एस श्रीशांत ने तीन-तीन जबकि हरभजन सिंह ने दो विकेट लिए।

इस तरह से भारत ने सेंचुरियन में पहले टेस्ट मैच में पारी और 125 रन की करारी हार का बदला चुकता कर लिया। इसके साथ ही यह सुनिश्चित कर दिया कि एक अप्रैल तक उसका नंबर एक का ताज सुरक्षित रहेगा। दक्षिण अफ्रीका को इस बार भी दूसरे नंबर से ही संतोष करना पड़ेगा। भारत की यह दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ कुल सातवीं और उसकी सरजमीं पर दूसरी जीत है। इससे पहले उसने दिसंबर 2006 में जोहानिसबर्ग में पहला टेस्ट मैच 123 रन से जीता था।

दक्षिण अफ्रीका ने सुबह जब तीन विकेट 111 रन से आगे खेलना शुरू किया तो दोनों टीमों का पलड़ा बराबरी पर लग रहा था।
लेकिन जाक कालिस और एबी डिविलियर्स दोनों सहजता से नहीं खेल पाए। इन दोनों के बीच चौथे विकेट के लिए 41 रन की पार्टनरशिप हुई। श्रीशांत ने कालिस को आउट कर इस पार्टनरशिप को तोड़ी।

पिच से असमान उछाल मिल रही थी और श्रीशांत ने इसी का फायदा उठाकर कालिस को शॉर्ट पिच बॉल फेंकी। इस अनुभवी बल्लेबाज ने उसे छोड़ना चाहा लेकिन वह उनके दस्तानों को चूमती हुई गली में वीरेंद्र सहवाग के हाथों में चली गई। कालिस ने 17 रन बनाए जिसके लिए उन्होंने 52 गेंद खेली और 2 चौके लगाए।

हरभजन ने दूसरे खतरनाक बल्लेबाज डिविलियर्स (33) को एलबीडब्ल्यू आउट करके भारतीय खेमे में खुशी की लहर दौड़ा दी। डिविलियर्स अंपायर के इस फैसले से खुश नहीं थे और टीवी रीप्ले से भी लगा कि इस दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाज का भाग्य ने साथ नहीं दिया।

डिविलियर्स के विकेट के बाद जहीर ने 43वें ओवर में मार्क बाउचर को भी एलबीडब्ल्यू आउट कर दिया। हालांकि तब भी लग रहा था कि गेंद मुड़ती हुई ऑफ स्टंप से बाहर जा रही थी।

जहीर ने इसके बाद डेल स्टेन (10) को आउट करके भारत को जीत के करीब ला दिया। स्टेन ने ड्राइव करने का प्रयास किया लेकिन गेंद उनके बल्ले का किनारा लेकर तीसरी स्लिप में चेतेश्वर पुजारा के हाथों में समा गई।

बुरे फंसे संजू बाबा

बॉलिवुड ऐक्टर संजय दत्त और फिल्म प्रड्यूसर शकील नूरानी के बीच वित्तीय विवाद में बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के बाद दत्त का दफ्तर भी कुर्क कर दिया गया। घर पर कुर्की वॉरंट मंगलवार को ही लगा दिया गया था।

इस बीच पूरे मामले में नया मोड़ तब आ गया जब संजय दत्त के वकील ने दावा किया कि उनके मुवक्किल को नूरानी के कहने पर फिरौती और जान से मारने की धमकी मिली थी। वकील ने कहा, ‘ सन् 2005 में संजय से फिरौती मांगी गई थी और न देने पर जान से मारने की धमकी मिली थी। पुलिस में इसकी शिकायत भी दर्ज कराई गई थी। ’

धमकी के आरोप के जवाब में नूरानी ने पलटवार करते हुए कहा, ' संजय दत्त के अब भी अंडरवर्ल्‍ड से संबंध हैं। मैंने उन्‍हें जान से मारने की धमकी नहीं दी बल्कि उन्‍होंने ही मुझे कई बार धमकी दी थी। संजय दत्त ने मुझसे कहा था कि वो मुझे गोली मरवा देंगे। ’ जब नूरानी से पूछा गया कि यदि उन्‍हें संजय दत्त की ओर से जान से मारने की धमकी मिली थी तो उन्‍होंने इसकी रिपोर्ट पुलिस में क्‍यों नहीं लिखवाई, तो नूरानी ने कहा कि वह अभी इस बारे में असोसिएशन से चर्चा के बाद ही कोई कदम उठाएंगे।

नूरानी ने संजय दत्त को अपनी फिल्म 'जान की बाजी' के लिए बतौर साइनिंग अमाउंट 50 लाख रुपये दिए थे। संजय दत्त डेट्स देने के बाद भी शूटिंग के लिए नहीं आए। इसके बाद नूरानी, संजय दत्त से 2.03 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति की मांग करते हुए इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रड्यूसर्स असोसिएशन (इंपा) में चले गए थे। ऐसे वित्तीय विवादों को इंपा और सिने आर्टिस्ट्स असोसिएशन के बीच पंचाट के जरिये सुलझाने का समझौता है। इस साल जनवरी में इंपा ने इस मामले में मुंबई में संजय दत्त की दो संपत्तियों को कुर्क करने का फैसला सुनाया था। इस फैसले पर मुंबई हाई कोर्ट ने भी मंगलवार को मुहर लगा दी थी।

नूरानी ने कहा, इंपीरियल हाइट्स स्थित उनके घर को कुर्क करने का वॉरंट मंगलवार को ही सौंपा गया था। बुधवार को वेस्ट सांताक्रूज स्थित ऑफिस पर भी कुर्की का नोटिस चस्पा कर दिया गया। संजय दत्त मुंबई में हैं, लेकिन दोनों ही जगहों पर वॉरंट सौंपे जाने के वक्त वह मौजूद नहीं थे।

नूरानी ने कहा,'घर पर संजय दत्त के जीजा ओवेन रोनकोन मौजूद थे जबकि आज दफ्तर में उनका सेक्रेटरी मौजूद था।' फिल्म प्रड्यूसर के वकील के मुताबिक, ऐक्टर के पास अभी भी यह विकल्प है कि वह दावे की रकम 30 दिनों के अंदर अदा कर दें। ऐसा नहीं होने पर उनके घर और ऑफिस की नीलामी कर दी जाएगी।

उन्होंने कहा कि संजय दत्त इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दे सकते थे लेकिन उन्होंने इंपा के आदेश को चुनौती नहीं दी और इसलिए उनके कैंपस में नोटिस चिपका दिया गया।

उधर, संजय दत्त के वकील सतीश मनेशिंदे ने बताया कि वह हाई कोर्ट और इंपा के फैसले पर विचार करेंगे, जिसके बाद इस बारे में कोई उचित फैसला किया जाएगा।

Monday, December 27, 2010

कोहरे में ऐसे करें ड्राइविंग

कोहरे में हेडलाइट्स को कभी भी हाई बीम पर न रखें। ऐसा करने से कोहरे में रोशनी बिखर जाती है और कुछ नजर नहीं आता। हेडलाइट्स हमेशा लो बीम पर रखें। इससे न सिर्फ आपको देखने में आसानी होगी, बल्कि सामने वाले को भी गाड़ी की सही स्थिति का पता चल सकेगा।

सड़क का किनारा देखें
घने कोहरे में चलने का सबसे अच्छा तरीका है, सड़क के बाएं किनारे को देखकर उसके साथ-साथ चलते रहें। इससे गाड़ी एक सीधी दिशा में बिना इधर-उधर भटके चलती रहेगी। कुछ बड़ी सड़कों पर पीले रंग की लाइनें भी होती हैं। सड़क के किनारे के साथ बनी पीली लाइन को फॉलो करके भी चल सकते हैं। सड़के के बीचोबीच न चलें।

इंडिकेटर जल्दी
कोहरे में चलने का अच्छा तरीका है कि आगे वाली कार या बस वगैरह के पीछे अपनी गाड़ी लगा दें। आम दिनों के मुकाबले थोड़ी ज्यादा दूरी बनाए रखें, ताकि इमरजेंसी में ब्रेक लगाने के लिए वक्त मिल जाए। कोहरे में सड़कें भी गीली रहती हैं इसलिए ब्रेक के लिए ज्यादा दूरी रखना अच्छा रहता है। अगर कहीं मुड़ना है तो काफी पहले से इंडिकेटर दे दें जिससे दूसरी गाडि़यों को टाइम मिल जाए।

खुद को दिखाना भी जरूरी
आमतौर पर लोग यह सोचते हैं कि कोहरे में ज्यादा साफ कैसे देखा जाए, लेकिन यह देखना भी उतना ही जरूरी है कि आप को भी सड़क पर चलने वाले दूसरे गाड़ी वाले अच्छी तरह देख सकें। कुछ लोग कोहरे में हेडलाइट्स बंद करके सिर्फ फॉग लाइट्स जला लेते हैं। यह खतरनाक हो सकता है क्योंकि दूर से आने वाले को फॉग लाइट्स दिखाई नहीं देतीं, जबकि लो बीम पर जली हेडलाइट्स को दूसरे ड्राइवर्स आसानी से देख सकते हैं।

फॉग लैंप में इनका रखें ध्यान
-फॉग लैंप्स हेडलाइट्स की तरह ज्यादा दूर तक रोशनी नहीं फेंकते। इनसे निकलने वाली रोशनी कम दूरी तक जाती है, लेकिन ज्यादा वाइड एरिया कवर करती है। फायदा यह होता है कि फॉग लैंप की रोशनी इस तरह से सड़क पर फैलती है कि घने कोहरे के बीच भी गाड़ी के आगे का रास्ता दिखता रहता है।
- फॉग लाइट्स को हमेशा कार के बंपर में नीचे की ओर फिट करवाना चाहिए। इसका फायदा यह होता है कि लाइट्स सड़क के करीब रहती हैं जिससे घने कोहरे के वक्त कार के आगे की सड़क ज्यादा साफ दिखाई देती है। कारों के हाईएंड मॉडलों में ये पहले से ही हेडलाइट के नीचे फिट होती हैं और निचले वैरियंट्स में इन्हें लगाने की पहले से ही जगह छोड़ी गई होती है।
- कुछ लोग अपनी कारों और जीपों के ऊपर फॉग लाइट्स लगवा लेते हैं , लेकिन इससे कोहरे में कोई फायदा नहीं मिलता। ऊपर लगी लाइटों से ड्राइवर को तो देखने में कोई मदद नहीं ही मिलती लेकिन सामने से आने वाली गाडि़यों के ड्राइवरों को जरूर सामने का कुछ भी दिखना बंद हो जाता है।

दिसंबर की ठंड ने पिछले दस सालों का रेकॉर्ड तोड़ दिया है। अधिकतम पारा लुढ़ककर 18.8 डिग्री तक पहुंच गया। दिन भर आसमान घने कोहरे के आगोश में छिपा रहा। धूप न खिलने की वजह से पूरे दिन कंपकंपी का अहसास होता रहा।

शनिवार की शाम से कोहरे का असर बढ़ना शुरू और रविवार को दोपहर तक कुछ कम हुआ। सुबह करीब 9.30 बजे तक कई इलाकों में दृश्यता का स्तर 50 मीटर से कम हो गया था। हालांकि छुट्टी का दिन होने की वजह से थोड़ी राहत रही, लेकिन बाहर निकलने वालों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। दोपहर तक लोग गाडि़यों की लाइट जलाकर ड्राइव करते दिखे। धुंध का असर पूरी तरह से छंटने के इंतजार में ही शाम हो गई और दोबारा इसका असर बढ़ने लगा। मौसम विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान अधिकतम तापमान सामान्य से तीन डिग्री कम और न्यूनतम एक डिग्री कम रेकॉर्ड किया गया। इस बार दिसंबर में जितनी ठंड हुई है, इतनी पिछले दस सालों के दौरान नहीं देखी गई थी। भारतीय मौसम विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान दिसंबर में कभी भी अधिकतम तापमान इतना नीचे नहीं गया था, लेकिन इस बार महीने के दूसरे सप्ताह में ही ठंड ने रफ्तार पकड़ ली थी। पहले न्यूनतम तापमान में गिरावट शुरू हुई और सारे रेकॉर्ड टूट गए और अब अधिकतम तापमान भी लगातार गिर रहा है।

मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, फिलहाल पश्चिमी विक्षोभ और अपर एयर साइकलोनिक सर्कुलेशन, दोनों प्रभावी हैं। ऐसे में, मंगलवार तक दिल्ली सहित चंडीगढ़, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और पश्चिमी यूपी में घने कोहरे का असर बरकरार रहेगा। हालांकि रात के तापमान में बदलाव के आसार नहीं हैं, मगर दिन में ठंड बढ़ सकती है, क्योंकि तेज धूप नहीं खिलेगी। बुधवार तक दिल्ली में बारिश होने की भी आशंका है। इसके बाद कोहरा छंट जाएगा, लेकिन ठंडी हवाएं चलनी शुरू हो सकती हैं।
पिछले पांच साल में 26 दिसंबर को दर्ज अधिकम तापमान
साल अधिकतम तापमान (डिग्री)
2009- 21
2008- 25
2007- 24
2006- 23
2005- 21.

Sunday, December 26, 2010

जारी रहेगा गुर्जर आंदोलन

सरकारी नौकरियों में गुर्जरों को 5 % आरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला और राजस्थान सरकार के प्रतिनिधि की बातचीत बेनतीजा रही है। प्रदेश के ऊर्जा मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह रविवार को सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर पीलूपुरा में बैंसला से बातचीत की और उन्हें भरोसा दिलाया कि सरकार गुर्जरों की मांग को लेकर गंभीर है। बैंसला इस आश्वासन से संतुष्ट नहीं हुए और कहा कि जब तक शेष 4% आरक्षण नहीं मिल जाता आंदोलन जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि सरकार को सात दिन का समय दिया है। तय समय में मांग पूरी नहीं की तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा।

दूसरी और राजस्थान सरकार ने गुर्जर आंदोलनकारियों के साथ समाप्त हुई पहले दौर की बातचीत को लेकर फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं की है।

गुर्जर आंदोलनकारियों ने प्रदेश में सातवें दिन भी रेल मार्ग और कुछ हाइवे को कुछ समय के लिए जाम किया। पुलिस अधिकारी मानवेंद्र सिंह ने कहा कि आंदोलनकारियों ने धौलपुर के बसेड़ी में छोटी लाइन को जाम करने की कोशिश की लेकिन सुरक्षा बलों ने उन्हें पीछे हटा दिया गया और इस रूट पर फिर से ट्रेन सेवा बहाल कर दी गई। गुर्जर आंदोलनकारी पहले से ही चार रूटों पर ट्रेन सेवा को पूरी तरह से ठप कर चुके हैं। दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-जयपुर, जयपुर-कोटा और अजमेर-इंदौर रूट पर एक भी ट्रेन नहीं चल रही है।

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि गुर्जर आंदोलनकारियों का रेल पटरी पर कब्जा होने के कारण जयपुर-दिल्ली, जयपुर-मुंबई, अजमेर- चितौड़गढ़ और भरतपुर-सवाई माधोपुर रेलवे सेक्शन पर दिल्ली-मुंबई रेल रूट ठप पडा है। इस रूट पर चलने वाली 60 से अधिक ट्रेनों को रूट बदलकर और कुछ को अगले आदेश तक रद्द कर दिया गया है। आंदोलनकारियों ने आज अलवर बंद भी रखा।

Saturday, December 25, 2010

ऐसे चलाएं कोहरे में कार

कोहरे में ड्राइव करने से पहले अपनी गाड़ी को तैयार कर लें। सबसे जरूरी चीज है फॉग लैंप। फॉग लैंप की मदद से आप कोहरे में हेडलाइट के मुकाबले ज्यादा अच्छी तरह और ज्यादा दूर तक देख सकते हैं।

फॉग लैंप्स हेडलाइट्स की तरह ज्यादा दूर तक रोशनी नहीं फेंकते। इनसे निकलने वाली रोशनी कम दूरी तक जाती है, लेकिन ज्यादा वाइड एरिया कवर करती है।

फॉग लाइट्स को हमेशा कार के बंपर में नीचे की ओर फिट करवाना चाहिए। इसका फायदा यह होता है कि लाइट्स सड़क के करीब रहती हैं जिससे घने कोहरे के वक्त कार के आगे की सड़क ज्यादा साफ दिखाई देती है। कारों के हाईएंड मॉडलों में ये पहले से ही फिट होती हैं और निचले वैरियंट्स में इन्हें लगाने की जगह होती है।

अगर गाड़ी में फॉग लाइट लगाने की जगह है, तो कंपनी के सर्विस सेंटर में जाकर ही फिटिंग कराएं। सैंट्रो की फॉग लाइट्स करीब 5,500 रुपये में, ऑल्टो की 3,600 रुपये में, डिजायर की 3,700 और होंडा सिटी की 22,900 रुपये में लगती हैं। अगर आप सस्ते में छूटना चाहते हैं, तो कश्मीरी गेट या करोल बाग के ऑटो माकेर्ट में जाकर भी लगवा सकते हैं।

कुछ लोग अपनी कारों और जीपों के ऊपर फॉग लाइट्स लगवा लेते हैं, लेकिन इससे कोहरे में कोई फायदा नहीं मिलता। ऊपर लगी लाइटों से ड्राइवर को तो देखने में कोई मदद नहीं ही मिलती, इनसे सामने से आने वाली गाडि़यों के ड्राइवरों को भी दिक्कत होती है।

कोहरे में ड्राइविंग : कुछ सावधानियां
हाई बीम नहीं : कोहरे में हेडलाइट्स को कभी भी हाई बीम पर न रखें। ऐसा करने से कोहरे में रोशनी बिखर जाती है और कुछ नजर नहीं आता। हेडलाइट्स हमेशा लो बीम पर रखें। इससे न सिर्फ आपको देखने में आसानी होगी, बल्कि सामने वाले को भी गाड़ी की सही स्थिति का पता चल सकेगा।

खुद को दिखाना भी जरूरी : आमतौर पर लोग यह सोचते हैं कि कोहरे में ज्यादा साफ कैसे देखा जाए, लेकिन यह देखना भी उतना ही जरूरी है कि आप को भी सड़क पर चलने वाले दूसरे गाड़ी वाले अच्छी तरह देख सकें। कुछ लोग कोहरे में हेडलाइट्स बंद करके सिर्फ फॉग लाइट्स जला लेते हैं। यह भी खतरनाक हो सकता है क्योंकि दूर से आने वाले को फॉग लाइट्स दिखाई नहीं देतीं, जबकि लो बीम पर जली हेडलाइट्स को दूसरे ड्राइवर्स आसानी से देख सकते हैं।

धीमे चलें : कोहरे में एक्सिडेंट्स बढ़ जाते हैं और इसकी वजह होती है खराब विजिबिलिटी में भी तेज रफ्तार और जल्दबाजी। खुद को और दूसरों को सेफ रखने के लिए धीरे चलें। स्पीडोमीटर पर नजर रखें। ऐसा देखा गया है कि कुछ देर कोहरे में चलने के बाद ड्राइवर खुद को ऐडजस्ट कर लेता है और गाड़ी की स्पीड बढ़ने लगती है। ओवरटेक करने से जितना हो सके, बचें।

इंडिकेटर थोड़ा जल्दी : कोहरे में चलने का अच्छा तरीका है कि आगे वाली कार या बस वगैरह के पीछे अपनी गाड़ी लगा दें। आम दिनों के मुकाबले थोड़ी ज्यादा दूरी बनाए रखें, ताकि इमरजेंसी में ब्रेक लगाने के लिए वक्त मिल जाए। कोहरे में सड़कें भी गीली रहती हैं इसलिए ब्रेक के लिए ज्यादा दूरी रखना अच्छा रहता है। अगर कहीं मुड़ना है तो काफी पहले से इंडिकेटर दे दें जिससे दूसरी गाडि़यों को टाइम मिल जाए।

सड़क का किनारा देखें : घने कोहरे में चलने का सबसे अच्छा तरीका है, सड़क के बाएं किनारे को देखकर उसके साथ-साथ चलते रहें। इससे गाड़ी एक सीधी दिशा में बिना इधर-उधर भटके चलती रहेगी। कुछ बड़ी सड़कों पर पीले रंग की लाइनें भी होती हैं। सड़क के किनारे के साथ बनी पीली लाइन को फॉलो करके भी चल सकते हैं। सड़के के बीचोबीच न चलें।

Thursday, December 23, 2010

'शीला की जवानी' पर मचा बवाल

फिल्म तीस मार खां का गाना शीला की जवानी बजाने पर मंगलवार रात राजपुरकलां गांव में जमकर बवाल मचा। आरोप है कि नामकरण संस्कार के दौरान इस गाने पर डांस कर रहे युवकों पर पड़ोसियों ने हमला कर दिया।

बताया गया है कि पीड़ितों के पड़ोस में शीला नाम की एक महिला रहती है। आरोप है कि बुधवार सुबह भी हमलावरों ने घर में घुसकर युवकों की पिटाई की। इस घटना में 6 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। पीड़ित पक्ष ने पड़ोस में रहने वाले राहुल, सौरभ, गौरव समेत 5 लोगों के खिलाफ तहरीर दी है। गांव में तनाव को देखते हुए पुलिस और पीएसी तैनात कर दी गई है।

रामपुरकलां गांव में रहने वाले दलित ओमप्रकाश के पोते का मंगलवार को नामकरण संस्कार था। रात में डीजे पर डांस शुरू हुआ। कुछ देर बाद शीला की जवानी गाना बजाया गया। ओमप्रकाश के रिश्तेदार इस गाने को बार-बार बजवाकर डांस करने लगे। बताया गया है कि ओमप्रकाश के पड़ोस में शीला नाम की महिला रहती है। यह गाना बजने से उसके परिजनों को गुस्सा आ गया।

पड़ोसी ओमप्रकाश के घर पहुंचे और डांस कर रहे रिश्तेदारों की पिटाई करने लगे। इससे पार्टी में भगदड़ मच गई। डीजे भी गिरा दिया गया। मारपीट में ओमप्रकाश पक्ष के 6 लोग घायल हो गए। घायलों को पहले बिलासपुर स्थित निजी अस्पताल में एडमिट कराया गया। वहां उनकी हालत गंभीर देखते हुए उन्हें बुलंदशहर रेफर कर दिया गया।

पीड़ित परिजनों ने रात में ही दनकौर पुलिस को सूचना दे दी थी। पुलिस मौके पर पहुंची। तब तक आरोपी फरार हो गए। इस घटना से गांव में तनाव है। तनाव को देखते हुए गांव में पुलिस और पीएसी तैनात कर दी गई है। पीड़ित पक्ष ने पड़ोस में रहने वाले राहुल, सौरभ, गौरव समेत 5 लोगों के खिलाफ तहरीर दी है। एसपी देहात अतुल सक्सेना का कहना है कि आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

एन.डी. तिवारी का होगा DNA टेस्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने कांग्रेस के सीनियर नेता नारायण दत्त तिवारी को एक युवक के दावे की सचाई का पता लगाने के लिए डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दिया है। युवक ने दावा किया था कि वह तिवारी का बॉयोलॉजिकल (जैविक) पुत्र है।

गौरतलब है कि पूर्व केंदीय मंत्री शेर सिंह के 29 साल के नाती रोहित शेखर दिल्ली हाई कोर्ट में मामला दायर कर कहा है कि वह तिवारी और अपनी मां उज्ज्वला सिंह के बीच रहे संबंधों से पैदा हुआ, जो खुद भी कांग्रेस पार्टी से जुड़ी हुई हैं। इस बारे में उज्ज्वला का कहना है कि तिवारी द्वारा रोहित को अपना बेटा मानने से इनकार कर देने पर उसे दिल्ली हाइ कोर्ट जाना पड़ा।

इसके पहले नारायण दत्त तिवारी को दिल्ली हाई कोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया है था। अदालत ने उनसे जवाब मांगा है कि उनका बॉयोलॉजिकल(जैविक) पुत्र होने का दावा करने वाले रोहित शेखर के आरोप की सत्यता का पता लगाने के लिए क्यों नहीं उनका डीएनए टेस्ट करवाया जाए।

Wednesday, December 22, 2010

प्याज में तेजी से सरकार की आंखों में आंसू

प्याज के दाम में आई तेजी से केंद्र सरकार पसोपेश में हैं। उसे समझ नहीं आ रहा है कि अचानक प्याज की कीमतों में आए उछाल को किस तरह कम किया जाए। नैफेड के एक उच्चाधिकारी ने तो यहां तक कह दिया कि हमारी तो समझ में ही नहीं आ रहा है कि प्याज के रेट एकदम इतने कैसे बढ़ गए।
इधर, प्याज के मामले में सरकार में एकमत नजर नहीं आया। यूपीए के कई सीनियर कैबिनेट मंत्रियों ने शरद पवार के इस बयान पर कड़ा ऐतराज जताया कि प्याज में तेजी बरसात में फसल खराब हो जाने के कारण आई है। इन मंत्रियों का मानना है कि पवार के इस बयान से लोगों में यह संदेश गया है कि सरकार ने सब कुछ बाजार पर छोड़ दिया है।
इस मामले में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बातचीत की है। इसके बाद प्रधानमंत्री ने खाद्य और आपूर्ति मंत्रालय को पत्र लिखकर कारगर कदम उठाने को कहा। इसके अलावा, खाद्य और आपूर्ति मंत्रालय से प्याज की पैदावार, सप्लाई और निर्यात के आंकड़े भी मांगे गए हैं ताकि पता लगाया जा सके कि आखिर प्याज की सप्लाई में इतनी कमी कैसे आ गई।
प्रणव मुखर्जी भी इस बात का जवाब चाहते हैं कि प्याज की सप्लाई अचानक इतनी कम कैसे हो गई। वह इस मामले में तुरंत उपाय करने के पक्षधर हैं। वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा और गृह मंत्री पी. चिदंबरम भी मानते हैं कि सरकार को जल्द कुछ कारगर कदम उठाकर लोगों को यह संदेश देना चाहिए कि उसका मैनेजमेंट विफल नहीं हुआ है। सिर्फ डिमांड और सप्लाई की बात कहकर हालात को टाला नहीं जा सकता। यह देखना होगा कि डिमांड और सप्लाई में आखिर इतना अंतर कैसे आ गया है। हालांकि प्रणव ने साफ कहा कि कोशिश करनी होगी कि प्याज की डिमांड और सप्लाई के बीच के अंतर को किस तरह से भरा जाए। मैं इस सिलसिले में संबंधित मंत्रालय से बात करूंगा।
इधर, खाद्य और आपूर्ति मंत्रालय का मानना है कि पिछले कई दिनों से प्याज की डिमांड और सप्लाई में 18 से 20 पर्सेंट की कमी चली रही थी। मगर यह कमी अचानक 40 से 50 पर्सेंट हो जाएगी, इसका अनुमान नहीं था। यह आंकड़े चौंकाने वाले हैं। जहां तक बरसात के कारण प्याज की फसल बर्बाद होने का मामला है, सिर्फ 20-22 पर्सेंट फसल बर्बाद हुई है। अब यह पता करने की जरूरत है कि आंकड़ा 22 से बढ़कर 40 पर्सेंट कब और कैसे पहुंच गया। इसके कारण प्याज की सप्लाई एकदम कम हुई और दाम अचानक बढ़ गए।

Tuesday, December 21, 2010

प्याज की कीमतों पर पवार की खिंचाई

प्याज की बढ़ी हुई कीमतों ने आम लोगों के साथ-साथ यूपीए सरकार के कर्णधारों के भी पसीने छुड़ा दिए हैं। प्रधानमंत्री के ऑफिस ने शरद पवार के मंत्रालय की खिंचाई करते हुए पूछा है कि एक सप्ताह में प्याज का थोक मूल्य दोगुना कैसे हो गया। साथ ही प्याज की कीमतों को जल्द से जल्द घटाने के लिए उपाय करने को कहा गया है।

पीएमओ की ओर से उपभोक्ता मामलों और कृषि मंत्रालय के सचिवों को भेजी चिट्ठी में मनमोहन ने प्याज की कीमतों में अचानक आए बेहतहाशा उछाल पर चिंता जताई है। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि प्याज की कीमतों में बेतहाशा तेजी पर अंकुश लगाने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएं, जिससे इसे उचित स्तर पर लाया जा सके। प्रधानमंत्री ने तेजी से कदम उठाने और इनकी रोजाना के आधार पर निगरानी के निर्देश दिए हैं।

इस बीच, कृषि मंत्री शरद पवार का ने कहा है कि प्याज की कीमतों में कमी आने में दो-तीन सप्ताह का समय लगेगा।

100 रुपए तक महंगी हो सकती है एलपीजी

तेल मंत्रालय बहुत जल्द आपके किचेन का बजट बढ़ा सकता है। अगस्त के बाद से रसोई गैस की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में हुई 66 फीसदी की बढ़ोतरी के मद्देनजर मंत्रालय कुकिंग गैस के हर सिलिंडर पर 50-100 रुपए बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। गैस की कीमतों में बढ़ोतरी के राजनीतिक असर पर विचार-विमर्श करने के बाद सरकार अगले बुधवार को इस पर आखिरी फैसला लेगी। दरअसल, अगले साल इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) के 20,000 करोड़ रुपए का एफपीओ जारी होने से पहले सरकार कंपनी के बहीखाते को मजबूत करना चाहती है।

अगस्त से अब तक एलपीजी के अंतरराष्ट्रीय दाम में दो-तिहाई की तेजी आ चुकी है, जिसका असर घरेलू तेल कंपनियों के बहीखाते पर पड़ा है, क्योंकि देश में सालाना 30 लाख टन लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलपीजी) आयात किया जाता है। इस मामले की सीधी जानकारी रखने वाले दो अधिकारियों ने बताया कि अगले साल 1 जनवरी से प्रति सिलिंडर सब्सिडी का बोझ बढ़कर 367 रुपए हो जाएगा है, जो राजधानी में सिलिंडर के मौजूदा रीटेल भाव 345.35 रुपए से भी ज्यादा है।

अधिकारियों ने बताया कि तेल मंत्रालय 22 दिसंबर को होने वाली बैठक में मंत्रियों के अधिकारप्राप्त समूह (ईजीओएम) से एलपीजी की कीमत बढ़ाने की अनुमति लेगा। उम्मीद है कि इस बैठक में डीजल के दाम बढ़ाने पर भी विचार किया जाएगा। तेल मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'हम यह नहीं बता सकते हैं कि कुकिंग गैस और डीजल की कीमतों में कितनी बढ़ोतरी की जाएगी, क्योंकि इस पर ईजीओएम ही फैसला लेगा।' ईजीओएम का फैसला आखिरी होगा क्योंकि इसके लिए कैबिनेट की मंजूरी की जरूरत नहीं है।

पूर्वी एशिया में एलपीजी का सबसे ज्यादा उपभोग भारत में होता है और इसकी आपूर्ति के लिए सालाना 30 लाख टन कुकिंग गैस का आयात किया जाता है। तेल मंत्रालय की शाखा पेट्रोलियम प्लानिंग ऐंड एनालिसिस सेल का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान देश में एलपीजी की मांग 1.40 करोड़ टन रहेगी। देश के एलपीजी उपभोग में सालाना 5-8 फीसदी की बढ़ोतरी होने से आयातित एलपीजी पर देश की निर्भरता बढ़ रही है। सरकारी तेल कंपनियां नई दिल्ली में 345.35 रुपए प्रति सिलिंडर बेच रही हैं। अधिकारियों ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार भाव की तुलना में सरकारी तेल कंपनियों को घरेलू बाजार में एलपीजी सिलिंडर की बिक्री पर 1 जनवरी से 367 रुपए का घाटा होगा, क्योंकि अगले महीने से आयात और महंगा होने वाला है।

सरकारी तेल कंपनियों ने इस बारे में कुछ भी बताने से इनकार कर दिया कि अगले महीने से वे किस कीमत पर एलपीजी कार्गो आयात कर रही हैं। उनका कहना है कि यह गोपनीय है। नाम जाहिर न करने की शर्त पर सरकारी तेल कंपनियों के एक विश्लेषक ने कहा कि इस साल अगस्त में वैश्विक बाजार में एलपीजी की कीमत 600 डॉलर प्रति टन थी, जो अब बढ़कर 1,000 डॉलर प्रति टन से ज्यादा हो गई है और अभी भी इसमें तेजी जारी है। पिछले हफ्ते तेल कंपनियों ने पेट्रोल की कीमतों में प्रति लीटर लगभग 3 रुपए का इजाफा किया था, लेकिन उन्हें डीजल, कुकिंग गैस और केरोसन की कीमतें बढ़ाने की छूट नहीं है।

Monday, November 8, 2010

ओबामा ने बोला, जय हिंद

महात्मा गांधी के रंग में रंगे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सोमवार को भारत की संसद में राष्ट्रपति बनकर खड़े होने का श्रेय ही राष्ट्रपिता को दे दिया और धन्यवाद से लेकर जय हिंद तक के नारे से देश का दिल जीत लिया।
अपने भाषण के अंत में तो ओबामा सीधे भारतीय जनता से संवाद करने लगे और उनसे कहने लगे कि उन्हें अपना मुस्तकबिल खुद तय करना होगा और इस सफर में अमेरिका उन्हें अपना अपरिहार्य सहयोगी मानता है। पूरे भाषण में उन्होंने महात्मा गांधी को केंद्र में रखा और उनके प्रेम और अहिंसा के संदेश तथा इंसाफ के लिए अहिंसा का अस्त्र उठाने को अपनी मूल प्रेरणा बताया। उन्होंने कहा कि युवा मार्टिन लूथर किंग भारत आकर आपके राष्ट्रपिता के यही सिद्धांत लेकर गए थे और अगर मैं आज राष्ट्रपति बनकर आपके सामने खड़ा हूं तो यह उसी प्रेरणा का परिणाम है।
अपने भाषण की शुरुआत ही उन्होंने भारतीयों से मिले आतिथ्य के लिए बहुत धन्यवाद कहते हुए की और जय हिंद से जब उन्होंने अपना भाषण समाप्त किया तो संसद के गुम्बद तालियों से देर तक गूंजते रहे। शून्य से लेकर सूचना टेक्नोलॉजी और ई-पंचायत से लेकर सूचना के अधिकार तक ओबामा भारत की सभ्यता विविधता की शक्ति और सभी को साथ लेकर लोकतांत्रिक ढंग से प्रगति करने की अगाध प्रशंसा करते रहे।
ओबामा ने कहा कि मैं हर भारतीय नागरिक से कहना चाहता हूं कि आपकी प्रगति के सफर में अमेरिका सिर्फ दूर खड़े होकर तालियां नहीं बजाएगा। मैं आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहूंगा। हमें इस भारत के भविष्य पर यकीन है और हमें इस बात पर भी भरोसा है कि भविष्य वैसा ही बनता है जैसा हम बनाना चाहते हैं।
स्वामी विवेकानंद से लेकर संविधान निर्माता भीमराव अम्बेडकर तक का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हमें लगता है कि हम कहीं भी रहते हों और कहीं से भी आते हों पर हम अपनी ईश्वर प्रदत्त क्षमताओं को साकार कर सकते हैं जैसे डा अम्बेडकर जैसे दलित नेताओं ने खुद को ऊपर उठाया और भारत का संविधान लिखा।
उन्होंने कहा कि हमारा यह भी मानना है कि हम कहीं भी रहते हों। भले ही वह पंजाब का कोई गांव हो या चांदनी चौक की कोई गली में रहता हो या कोलकाता की पुरानी सड़कों का बाशिंदा हो या बेंगलूर की ऊंची इमारत में रहता हो। हर किसी को सुरक्षा और शान से जीने का अधिकार है। शिक्षा और काम हासिल करने और अपने बच्चों को बेहतर भविष्य देने का अधिकार है।
राष्ट्रपति ओबामा ने कहा कि भारत और अमेरिका की कहानी एक है और वह यह है कि अपने मतभेदों के बावजूद सब मिलकर काम कर सकते हैं और सफल होकर गौरवशाली राष्ट्र बन सकते हैं। और आखिरी शब्दों तक ओबामा ने संसद को मंत्रमुग्ध किया। जब उन्होंने जय हिंद कहकर भाषण का समापन किया तो संसद के गुम्बद विभोर हो उठे। उन्होंने कहा कि भारत अमेरिका की दोस्ती अमर रहे।

ओबामा ने भारत को दिया लोलीपॉप

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के भारत के दावे का सोमवार को पुरजोर समर्थन किया तथा पाकिस्तान को उसकी सरजमीं पर आतंकवादी अड्डों को नष्ट करने और मुंबई हमलों के दोषियों को सजा देने की हिदायत दी।
दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोकतांत्रिक देश के नेता ओबामा ने सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की संसद के केन्द्रीय कक्ष में सांसदों को संबोधित करते हुए कहा कि अमेरिका को यह देख कर खुशी होगी कि भारत सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्य के आसन पर बैठे।
उन्होंने संयुक्तराष्ट्र में सुधारों की वकालत करते हुए कहा कि उनका देश सुरक्षा परिषद में अधिक भूमिका निभाने के भारत के इरादे का स्वागत करता है। ओबामा की इस घोषणा का सांसदों ने देर तक तालियां बजा कर स्वागत किया। अमेरिकी राष्ट्रपति ने आशा व्यक्त की कि आने वाले बरसों में भारत इस शक्तिशाली विश्व संस्था में स्थाई सदस्यता हासिल कर लेगा।
यह पहला अवसर है जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने स्थाई सदस्यता के भारतीय दावे का खुल कर समर्थन किया है। हालांकि उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया कि भारत को स्थायी सदस्यता दिलाने के लिए अमेरिका की ओर से क्या पहल होगी। पाकिस्तान से भारत विरोधी आतंकवादी कार्रवाइयों के संदर्भ में ओबामा ने कहा कि पाकिस्तानी सरजमीं पर आतंकवादी अड्डों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। मुंबई के आतंकवादी हमलों को बर्बर करार देते हुए उन्होंने पाकिस्तान को साफ शब्दों में हिदायत दी कि हमलावरों को कानून के कटघरे में खड़ा किया जाए।
ओबामा ने विश्व में भारत की बढती हुई सशक्त भूमिका का जिक्र करते हुए कहा कि अब वह एक उभरती हुई ताकत नहीं है बल्कि एक ऐसी ताकत है जो अपनी साख कायम कर चुकी है। इक्कीसवीं सदी की दुनिया में शांति, सुरक्षा और समृद्धि कायम करने में भारत की भूमिका को कोई नजरंदाज नहीं कर सकता तथा आज अमेरिका इस सच्चाई को पहचानते हुए द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी को नई ऊंचाइयां देना चाहता है।
भारत के पुराने इतिहास, विश्व सभ्यता को उसके योगदान और महात्मा गांधी के संदेश का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत ने दुनिया में मुक्ति, संघर्ष और उपेक्षित वर्गों को न्याय दिलाने में प्रेरणा दायक भूमिका निभाई है। मार्टिन लूथर किंग पर महात्मा गांधी की शिक्षाओं के असर की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इस अमेरिकी महानायक ने अपने भारत भ्रमण को एक तीर्थयात्रा की संज्ञा दी थी।
अपने राष्ट्रपति बनने का कुछ श्रेय महात्मा गांधी को देते हुए उन्होंने कहा कि आज अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में वह जब संसद को संबोधित कर रहे हैं तो यह भी गांधीजी के जीवन संघर्ष का ही नतीजा है। ओबामा ने न्यूयार्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, भारतीय संसद और मुंबई आतंकवादी हमलों को जोड़ते हुए कहा कि आतंकवाद अमेरिका और भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए बड़ा खतरा है। उन्होंने कहा कि भारतीय संसद को आतंकवादियों ने इसलिए निशाना बनाया कि यह लोकतंत्र का प्रतीक है।
आतंकवादियों के साथ पाकिस्तान की साठगांठ की ओर इशारा करते हुए ओबामा ने कहा कि आज वहां के नेता भी यह मानने लगे हैं कि आतंकवाद उनके लिए भी विनाशकारी है। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान से हाल में मिल रहे सहयोग की सराहना करते हुए कहा कि अल कायदा और तालिबान के उन्मूलन तक हमारा अभियान जारी रहेगा।
कश्मीर विवाद के सीधे उल्लेख से बचते हुए ओबामा ने कहा कि क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी है कि भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता प्रक्रिया जारी रहे। कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के नेताओं की आशाओं पर पानी फेरते हुए ओबामा ने इस प्रकरण में अमेरिकी मध्यस्थता से इनकार किया और कहा कि यह मुद्दा दोनों देशों के लोगों को स्वंय ही सुलझाना है।
ओबामा ने पाकिस्तान को आतंकवादी अड्डे नष्ट करने और मुंबई हमलों के दोषियों को दंडित करने की हिदायत देने के साथ ही भारत को यह नसीहत भी दी कि एक लोकतांत्रिक, समृद्ध और स्थायित्व वाला पाकिस्तान भारत के हित में है। ओबामा ने अपने संबोधन में अमेरिकी विदेश नीति के लिए सिरदर्द बने ईरान के परमाणु कार्यक्रम, अल कायदा के विश्वव्यापी नेटवर्क और म्यांमार में लोकतंत्र के दमन के मुद्दों को भी छुआ। उन्होंने इन चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत के सहयोग को जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि ईरान को भारत से सबक लेना चाहिए जिसने दशकों से दुनिया को परमाणु हथियारों से मुक्त करने की मुहिम चला रखी है।
म्यांमार में हाल में संपन्न चुनावों को छलावा बताते हुए ओबामा ने आंग सान सू ची के लोकतांत्रिक आंदोलन को अपना समर्थन दिया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी जनता की स्वाभाविक चाह है जिसकी कोई उपेक्षा नहीं कर सकता। एक अश्वेत परिवार की मुसीबतों का सामना करने वाले ओबामा ने खुद को भारत के दलितों के साथ जोड़ते हुए कहा कि समाज के सभी लोगों को रंग, जाति और वर्ग से ऊपर उठते हुए समान अवसर हासिल करने का अधिकार है। उन्होंने भारत में दलित उत्थान में डा भीमराव अंबेडकर की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने एक समता मूलक समाज के निर्माण के लिए काम किया।
भारत और अमेरिका की समान लोकतांत्रिक विरासत का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि दोनों देशों के संविधान एक ही शब्दावली, वीदी पीपल, हम जनता जनार्दन से शुरू होते हैं। यही समान मूल्य और आदर्श भारत और अमेरिका को स्वाभाविक सहयोगी बनाते हैं और उनका सहयोग 21वीं सदी के सुरक्षित और समृद्ध विश्व की बुनियाद साबित होगा।
ओबामा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा शुरू किए गए आर्थिक सुधारों की प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत में लाइसेंस राज के खात्मे के बाद आर्थिक प्रगति का नया दौर शुरू हुआ है। करोड़ों लोगों को गरीबी की रेखा से ऊपर उठाने में सफलता मिली है तथा देश में दुनिया का सबसे बड़ा मध्यवर्ग अस्तित्व में आया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि हरित क्रांति के जरिए भारत ने भूख पर विजय प्राप्त की है तथा देशवासियों को खाद्य सुरक्षा प्रदान की है। कृषि और उद्योग दोनों क्षेत्रों में चमत्कारी सफलता हासिल करने वाले भारत को ओबामा ने विश्व अर्थव्यवस्था के इंजन की संज्ञा दी।
भारत-अमेरिका सहयोग को दोनों देशों के राजनीतिक दलों से मिल रहे समर्थन की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में अलग-अलग गठबंधन वाली पिछली दो सरकारों ने मैत्रीपूर्ण संबंधों को आगे बढ़ाया जबकि अमेरिका में रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक प्रशासन के दो प्रमुखों ने भी इसी दिशा में काम किया है।
पिछले दशकों में भारत और अमेरिका के बीच विभिन्न मुद्दों पर तीखे मतभेदों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन के कारण विकसित और विकासशील देशों के बीच उपजी कटुता और शीत युद्ध का दौर अब खत्म हो गया है। राष्ट्रहित को सरकार की नीतियों का आधार बताते हुए उन्होंने कहा कि भारत ही यह तय करेगा कि उसके राष्ट्रीय हित क्या हैं। इसी तरह अमेरिका भी अपने राष्ट्रीय हित तय करता है, लेकिन जिन क्षेत्रों में दोनों देशों के समान हित हैं उनमें निकट सहयोग दुनिया के हित में है।
हाल के बरसों में ओबामा बिल क्लिंटन के बाद अमेरिका के दूसरे राष्ट्रपति हैं जिन्होंने संसद को संबोधित किया। केन्द्रीय कक्ष में गरिमापूर्ण उपस्थिति के बीच उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी ने मेहमान नेता को स्वागत किया तथा लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रति आभार व्यक्त किया। ओबामा के संसद भवन पहुंचने पर अंसारी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और लोकसभा अध्यक्ष ने उनकी अगवानी की।

Thursday, October 14, 2010

शुक्रिया दिल्ली, अब ग्लासगो में मिलेंगे

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में 19वें कॉमनवेल्थ गेम्स का भव्य समापन समारोह हुआ। 14 अ क्टूबर की शाम को दुनिया ने भारतीय संस्कृति की बेहतरीन झलक देखी। इसके साथ ही दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स के विधिवत समापन की घोषणा हुई और 2014 में ग्लासगो में फिर मिलने का संकल्प लिया गया। इस मौके पर भारतीय ओलिंपिक ऑर्गेनाइजेशन के चेयरमैन सुरेश कलमाड़ी ने कहा कि भारत के लिए यह समापन नहीं, बल्कि भारतीय खेलों की नई शुरुआत है। इसके बाद कॉमनवेल्थ गेम्स का झंडा दिल्ली के उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना ने ग्लासगो के गवर्नर को सौंप दिया। इसके पहले कॉमनवेल्थ गेम्स के समापन समारोह की भव्य शुरुआत हुई। कार्यक्रम की शुरुआत में सबसे पहले वैदिक ऋचाओं का सस्वर पाठ किया गया। इसके बाद परंपरागत भारतीय कला का बेहतरीन नमूना हमारे उत्तर-पूर्व राज्य के कलाकारों ने दिखाया। इसके बाद भारतीय सेना के तीनों अंगों ने बेहतरीन सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए। मिलिटरी बैंड के धनों पर देशभक्ति गीतों ने समां बांध दिया। फिर बारी आई स्कूली बच्चों की। दिल्ली के इन स्कूली बच्चों ने वंदे मातरम् और शानदार रंगोली से दर्शकों का मनमोह लिया। इसके बाद गेम्स के सफलतापूर्वक समापन में सहयोग देने वाले वॉलिंटियर्स ने कार्यक्रम पेश किए।
भारत ने तमाम अड़चनों के बावजूद इस खेल का आयोजन सफलतापूर्वक कराया। समापन समारोह में देश प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी, कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी सहित कई गणमान्य व्यक्ति कार्यक्रम स्थल जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में पहुंच चुके हैं। समापन समारोह के मुख्य अतिथि श्रीलंका के प्रेजिडेंट महिंद्रा राजपक्षे भी रंगारंग कार्यक्रम का लुत्फ उठा रहे हैं। इन वीवीआईपीज के अलावा आम दर्शकों से भी स्टेडियम खचाखच भरा हुआ है। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में 19कॉमनवेल्थ गेम्स के समापन समारोह की शुरुआत हो चुकी है। स्टेडियम के बाहर और भीतर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था है। देश के तमाम गणमान्य नेता गण कार्यक्रम में मौजूद हैं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्रीलंका के प्रेजिडेंट महिंद्रा राजपक्षे मौजूद हैं। समापन समारोह में मौजूद दर्शकों के उत्साह को देखते ही बन रहा है। गौरतलब है 19वें कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत का अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन रहा है। इस गेम्स में भारत ने 38 गोल्ड, 27 सिल्वर और 36 ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं।

Thursday, September 30, 2010

न मेरी जय जय न तुम्हारी जय जय

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के माननीय तीन जजों ने बहुमत से फैसला दिया कि अयोध्या में विवादित स्थल को तीन हिस्सों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माेही अखाड़ा और राम लला पक्ष को बराबर बांटा जाए। फैसले में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड का दीवानी दावा खारिज करते हुए कहा कि विवादित स्थल पर रामलला की पूजा जारी रहेगी। तीनों न्यायमूर्तियों एस. यू. खान, सुधीर अग्रवाल और डी. वी. शर्मा ने दिए अलग-अलग फैसले। आज के फैसले के बारे में मैं यही कहना चाहूंगा कि इस फैसले में न किसी की जीत हुई है और न ही किसी की हार।

Tuesday, September 28, 2010

अयोध्या फैसला 30 को

घुंघरू की तरह बजता ही रहा अयोध्या विवाद, कभी इस ओर से कभी उस ओर से। साठ साल का बुजुर्ग विवाद का निपटारा आखिरकार देश के महत्वपूर्ण उच्च न्यायालयों में से एक इलाहाबाद उच्च न्यायालय को आज देश की शीर्ष न्यायालय ने अधिकृत कर दिया है कि अमुक न्यायालय रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला देने के लिए आजाद है। अब लखनऊ पीठ 30 सितंबर को 3:30 बजे फैसला सुनाएगी। साठ साल से चला आ रहा मालिकाना हक को लेकर विवाद का निपटारे की घड़ी आने वाली है। आज सुप्रीम कोर्ट ने सुलह याचिका खारिज कर जता दिया है कि हाईकोर्ट ही फैसला देने के लिए सर्वोत्तम संस्था है।

Thursday, September 23, 2010

विवाद के 60 साल

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद देश के सबसे अहम और संवेदनशील मामलों में से है।
60 साल से फैसले की बाट जोह रहे इस मामले में फैसला आनेवाला है। फैसला किसके हक में होगा और उसके क्या नतीजे होंगे, यह तो फैसले के बाद ही पता चलेगा लेकिन क्यों और कैसे यह मामला इतना चर्चित हो गया, यह जानना भी काफी मायने रखता है। ऐसा मामला, जो लाखों लोगों की धार्मिक भावना से ताल्लुक रखता हो और जो सरकार बनाने और गिराने की वजह बन गया हो, जाहिर है उसके फैसले पर पूरे देश की निगाहें हैं। इस हफ्ते राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर कोई नतीजा निकलने की उम्मीद है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच इस मामले पर फैसला सुनाएगी। लेकिन क्या किसी भी नतीजे से दोनों पक्ष सहमत हो पाएंगे? ऐसा नहीं हुआ तो क्या होगा? इन तमाम सवालों पर चर्चा से पहले जानते हैं कि आखिर एक मंदिर और मस्जिद को लेकर विवाद क्यों और किस हालत में पनपा? सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक अयोध्या से हिंदू धर्म का नाता जगजाहिर है लेकिन यह किसी एक मजहब की जागीर नहीं है। यहां बड़ी संख्या में मुसलमान भी रहते हैं। अनुमान है कि अयोध्या में पांच हजार से ज्यादा मंदिर हैं तो करीब 85-90 मस्जिदें भी हैं। दिलचस्प यह है कि कई मंदिर और मस्जिद तो एक दूसरे से सटे हुए हैं। ऐतिहासिक औरंगजेबी मस्जिद के ठीक पीछे सीताराम निवास कुंज मंदिर है। दोनों में महज एक दीवार का फासला है। यही नहीं, 5वीं और 7ठीं शताब्दी में चीनी इतिहासकारों ह्यान और ह्यून सांग ने यहां की यात्रा की, क्योंकि उस वक्त इसे बौद्ध धर्म की पवित्र नगरी माना जाता था। कह सकते हैं कि सांप्रदायिक भाईचारे का प्रतीक रही है अयोध्या नगरी। यहां तक कि जिस बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद है, उसमें मौजूद कुएं से सभी धर्मों के लोग पानी पीते थे। फैजाबाद के डिस्ट्रिक्ट गैजेटर (डीजीएफ) के मुताबिक इस कुएं के पानी को आसपास के लोग चमत्कारी और बीमारियों से निजात दिलाने वाला मानते थे। 1857 से पहले हिंदू और मुसलमान मिलकर मिलकर इस जगह पर पूजा करते थे, लेकिन गदर के बाद तस्वीर बदल गई। कैसे खड़ा हुआ विवाद 1853 में इस जगह के आसपास पहली बार दंगे हुए। 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी। मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई। फरवरी 1885 में महंत रघुबर दास ने फैजाबाद के उप-जज के सामने याचिका दायर की कि यहां मंदिर बनाने की इजाजत दी जाए। जज पंडित हरिकृष्ण ने यह कहकर इसे खारिज कर दिया कि यह चबूतरा पहले से मौजूद मस्जिद के इतना करीब है कि इस पर मंदिर बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। असली विवाद शुरू हुआ 23 दिसंबर 1949 को, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुसलमानों ने आरोप लगाया कि किसी ने रात में चुपचाप मूर्तियां वहां रख दीं। उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने यूपी के मुख्यमंत्री जी. बी. पंत से इस मामले में फौरन कार्रवाई करने कहा। यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया लेकिन जिला मैजिस्ट्रेट के. के. नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई। हालांकि नायर के बारे में माना जाता है कि वह कट्टर हिंदू थे और मूर्तियां रखवाने में उनकी पत्नी शकुंतला नायर का भी रोल था। बहरहाल, सरकार ने इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया। 16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद नामक शख्स ने फैजाबाद के सिविल जज के सामने अर्जी दाखिल कर यहां पूजा की इजाजत मांगी। उस वक्त के सिविल जज एन. एन. चंदा ने इजाजत दे दी। मुसलमानों ने इस फैसले के खिलाफ अर्जी दायर की। विवादित ढांचे की जगह मंदिर बनाने के लिए 1984 में वीएचपी ने एक कमिटी गठित की। यू. सी. पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज के. एम. पांडे ने 1 फरवरी 1986 को हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे पर से ताला हटाने का आदेश दिया। इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया गया। 06 दिसंबर 1992 को बीजेपी, वीएचपी और शिवसेना समेत लाखों हिंदूवादी कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। देश भर में हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे भड़के गए, जिनमें करीब दो हजार लोग मारे गए। दूसरी ओर, 1984 में सिर्फ दो लोकसभा सीटें जीतनेवाली बीजेपी इस मसले की बदौलत 1996 में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। मंदिर या मस्जिद! माना जाता है कि बाबर के सहायक मीर बाकी ने 1528 में यहां मस्जिद बनवाई। हिंदूवादियों का मानना है कि इस मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर कराया गया। बाबरनामा में इस बारे में कई जिक्र नहीं मिलता क्योंकि इस काल के पेज ही गायब हैं, जबकि तारीख-ए-बाबरी में लिखा है कि कई मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाई गईं। लेकिन इस जगह के बारे में साफ तौर पर कुछ नहीं कहा गया। हिंदूवादी मानते हैं कि 1940 तक इसे मस्जिद-ए-जन्मस्थान कहा जाता था और 1992 में मस्जिद गिराए जाने के दौरान यहां से कुछ अवशेष मिले, जो मंदिर होने की ओर इशारा करते हैं। दूसरी ओर, 'ए हिस्टोरियंस रिपोर्ट टु नेशन' में मशहूर इतिहासकार डी. एन. झा समेत तीन इतिहासकारों ने कहा कि इस जगह पर मंदिर के कोई सबूत नहीं मिले। एएसआई के बी. बी. लाल ने खुदाई में पाए गए जिन खंभों (1. 70 मी ऊंचे) की बात कही, उन पर मंदिर बनना मुश्किल है। जन्मस्थान शब्द का इस्तेमाल भी 18वीं शताब्दी में ही सुनने को मिलता है, उससे पहले नहीं। केस कैसे-कैसे इस विवाद को लेकर दो तरह के मामले चल रहे हैं : पहला, मालिकाना हक को लेकर और दूसरा, मस्जिद गिराए जाने में भूमिका को लेकर। 24 तारीख को जिन मामलों में फैसला आएगा, उनमें गोपाल सिंह विशारद (1950), निर्मोही अखाड़ा (1959), यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड (1961) और भगवान श्रीराम लल्ला विराजमान (1989) द्वारा दायर मामले हैं। अदालत फैसला सुनाएगी कि 1538 से पहले क्या यहां कोई मंदिर था या नहीं? मुसलमानों का इस जगह पर जायज हक है या उन्होंने गलत तरीके से हक जताया? इन मामलों की सुनवाई पहले फैजाबाद सिविल कोर्ट कर रहा था। 1989 में इलाहाबाद कोर्ट की स्पेशल बेंच बनाए जाने के बाद सारे मामले वहां ट्रांसफर कर दिए गए। बेंच ने 26 जुलाई को सुनवाई पूरी कर ली है। अब फैसले का इंतजार है। तर्क अपने-अपने मामले की सुनवाई कर रही बेंच के तीन जजों में से एक इसी महीने रिटायर हो रहे हैं। अगर वह फैसला किए बिना रिटायर हो जाते हैं तो भारतीय कानून के मुताबिक मामले की पूरी सुनवाई फिर से होगी। ऐसे में हो सकता है कि वह फैसला करके जाएं। यह भी हो सकता है कि फैसला टाल दिया जाए। यह तय है कि जिस पक्ष के खिलाफ फैसला आएगा, वह सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा। फैसले के बाद कोई हिंसा न भड़के , इसके लिए सरकार ने हिंदू और मुस्लिम नेताओं के साथ बातचीत शुरू कर दी है। ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी के पूर्व कनवीनर जावेद हबीब ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट के लिए पीएम को पत्र लिखा। लेकिन सभी इसके पक्ष में नहीं हैं। मामले में पहला केस दायर करनेवाले गोपाल सिंह विशारद के बेटे राजेंद्र सिंह विशारद का कहना है कि हम किसी तरह का समझौता नहीं चाहते। मंदिर से कम कुछ नहीं चाहिए। आखिर 60 साल से हम उसी के लिए लड़े हैं और हमें हमारा हक मिलना चाहिए। खुदाई में काफी ऐसे सबूत मिले हैं, जो बताते हैं कि यहां मंदिर था। अगर हम हार गए तो इंसाफ के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। क्या हो सकता है आगे बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी के कनवीनर जफरयाब जिलानी का दावा है कि उनके पास काफी मजबूत सबूत हैं। वह कहते हैं कि चारों मामलों में मैं 1986 से वकील हूं। हमें उम्मीद है कि फैसला हमारे हक में होगा लेकिन फिर भी हम हर फैसले के लिए तैयार हैं। अगर हम हार गए तो सुप्रीम कोर्ट में लड़ेंगे। आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट की बात बेमानी है, लेकिन हम किसी तरह की सांप्रदायिक हिंसा को सपोर्ट नहीं करेंगे। जिसके भी पक्ष में फैसला आएगा, दूसरे की नाराजगी तय है। इसके मद्देनजर यूपी सरकार ने अभी से सुरक्षा बढ़ानी शुरू कर दी है। प्रधानमंत्री हाल में संपादकों के साथ मीटिंग में कह चुके हैं कि कश्मीर मसला, नक्सल समस्या और अयोध्या पर फैसला आनेवाले भारत की तस्वीर तय करेंगे। वैसे, राजनीतिक हलकों में फैसले के लिए यह वक्त सही नहीं माना जा रहा। अगले महीने कॉमनवेल्थ गेम्स शुरू होने हैं तो आनेवाले कुछ महीनों में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, फ्रेंच राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी और रूसी राष्ट्रपति भारत आनेवाले हैं। ऐसे में किसी भी तरह का तनाव भारी पड़ सकता है। फिलहाल, 24 सितंबर का इंतजार करना बेहतर है! कब क्या हुआ 1528 : माना जाता है कि बाबर के सचिव मीर बाकी ने यहां बाबरी मस्जिद बनाई। 1853 : पहली बार इस जगह के पास सांप्रदायिक दंगे हुए। 1859 : अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी। मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर पूजा करने की इजाजत दी गई। 1949 : 23 दिसंबर को भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। मुसलमानों ने इसका विरोध किया। दोनों पक्षों ने मुकदमा दायर कर दिया। सरकार ने इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया। 1950 : 16 जनवरी को गोपाल सिंह विशारद नामक शख्स ने फैजाबाद के सिविल जज के सामने अर्जी दाखिल कर पूजा की इजाजत मांगी। सिविल जज ने इजाजत दे दी। मुसलमानों ने इस फैसले के खिलाफ अर्जी दायर की। 1984 : विवादित ढांचे की जगह मंदिर बनाने के लिए वीएचपी ने एक कमिटी गठित की। बाद में इस आंदोलन की कमान बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ले ली। 1986 : सरकार ने हिंदुओं को पूजा करने के लिए ढांचे से ताला हटाने का आदेश दिया। इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया गया। 1989 : वीएचपी ने मंदिर निर्माण आंदोलन तेज किया और विवादित ढांचे के पास राम मंदिर की नींव रखी। मुलायम सरकार के अनुरोध पर विवादित ढांचे से संबंधित सारे मामले इलाहाबाद की लखनऊ बेंच को ट्रांसफर कर दिए गए। 1992 : 12 दिसंबर को बीजेपी, वीएचपी और शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। देश भर में हिंदू मुसलमानों के बीच दंगे भड़के दंगों में करीब दो हजार लोगों की मौत हो गई। मामले की जांच के लिए 16 दिसंबर को लिबरहान आयोग गठित किया गया। जनवरी 2002 : प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस मामले को सुलझाने के लिए अयोध्या समिति का गठन किया। फरवरी 2002 : वीएचपी ने 15 मार्च से राम मंदिर निर्माण शुरू करने का ऐलान किया। सैकड़ों कार्यकर्ता अयोध्या में जमा हुए। हिंदू कार्यकर्ता जिस गाड़ी से लौट रहे थे, उस पर गोधरा में अराजक तत्वों ने आग लगा दी। इसमें 58 लोग जिंदा जल गए। इसके बाद हुए गुजरात दंगों में सैकड़ों लोगों की जानें गईं। 2003 : आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने मंदिरों के अवशेषों की तलाश में खुदाई शुरू की, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। 2009 : 30 जून को 17 साल और 48 बार एक्सटेंशन के बाद लिबरहान आयोग ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को रिपोर्ट सौंपी। इसमें अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी समेत बीजेपी, शिवसेना और आरएसएस के कई टॉप नेताओं पर सांप्रदायिक तनाव फैलाने का शक जाहिर किया गया।

मंदिर ना मस्जिद

तीन मामलों में फैसला-पहला क्या विवादित स्थल पर 1538 से पहले एक मंदिर था ? दूसरा क्या बाबरी कमिटी की तरफ से 1961 में दायर केस अब नहीं ठहरता है ? तीसरा क्या मुसलमानों ने उलट अधिग्रहण के जरिये अपनी मिल्कियत को पुख्ता किया है ? कोर्ट में राम जम्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादः तारीख दर तारीख टाइटल का पहला केस 1950 में गोपाल दास विशारद ने यह कहते हुए फाइल किया कि रामलला की पूजा की इजाजत दी जाए। उसी साल परमहंस रामचंद दास ने भी केस फाइल किया , लेकिन फिर उसे वापस ले लिया। तीसरा केस 1959 में निर्मोही अखाड़े ने फाइल किया और उस जगह का कब्जा रिसीवर से मांगा। चौथा केस 1961 में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दर्ज किया और कब्जा मांगा। छठा केस 1989 में रामलला की तरफ से दाखिल हुआ। फिलहाल उनमें से चार केस चल रहे हैं। अयोध्या विवाद के 60 साल सबसे लंबा मुकदमा किसी धार्मिक स्थल के स्वामित्व को लेकर लड़ा जा रहा यह देश के इतिहास का सबसे लंबा मुकदमा है। वैसे तो बाबरी ढांचा पर मालिकाना हक का मामला तो सौ बरस से भी अधिक पुराना है , लेकिन यह अदालत पहुंचा 1949 में। यह विवाद 23 दिसंबर 1949 को शुरू हुआ जब सुबह बाबरी मस्जिद का दरवाजा खोलने पर पाया गया कि उसके भीतर रामलला की मूर्ति रखी थी। अगले दिन वहां हजारों लोगों की भीड़ जमा हो गई और पांच जनवरी 1950 को डीएम ने सांप्रदायिक तनाव की आशंका से बाबरी ढांचा को विवादित इमारत घोषित कर उस पर ताला लगाकर इसे सरकारी कब्ज़े में ले लिया। 16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद की जिला अदालत में अर्जी दी कि हिंदुओं को उनके भगवान के दर्शन और पूजा का अधिकार दिया जाए। दिगंबर अखाड़ा के महंत और राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष परमहंस रामचंद्र दास ने भी ऐसी ही एक अर्जी दी। 19 जनवरी 1950 को फैजाबाद के सिविल जज ने इन दोनों अर्जियों पर एक साथ सुनवाई की और मूर्तियां हटाने की कोशिशों पर रोक लगाने के साथ साथ इन मूर्तियों के रखरखाव और हिंदुओं को बंद दरवाज़े के बाहर से ही मूर्तियों के दर्शन करने की इजाजत दे दी। साथ ही , अदालत ने मुसलमानों पर पाबंदी लगा दी कि वे इस ' विवादित मस्जिद ' के तीन सौ मीटर के दायरे में न आएं। उमेश चंद्र पांडे की एक याचिका पर फैजाबाद के जिला जज के एम पांडे ने एक फरवरी 1986 को विवादित मस्जिद के ताले खोलने का आदेश दिया और हिंदुओं को उसके भीतर जाकर पूजा करने की इजाजत दे दी। 1987 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में एक याचिका दायर कर विवादित ढांचे के मालिकाना हक के लिए जिला अदालत में चल रहे चार अलग अलग मुकदमों को एक साथ जोड़कर हाई कोर्ट में एक साथ सुनवाई की अपील की। इसके बाद 1989 में अयोध्या की जिला अदालत में एक याचिका दायर कर मांग की गई कि विवादित ढांचे को मंदिर घोषित किया जाए। हाई कोर्ट ने पांचों मुक़दमों को साथ जोड़कर तीन जजों की एक बेंच को सौंप दिया। 1993 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन बीजेपी सरकार ने विवादित स्थल के आसपास की 67 एकड़ जमीन को सरकारी कब्जे में लेकर वीएचपी को सौंप दिया। 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने इस फ़ैसले को निरस्त कर सरकार को आदेश दिया था कि विवादित ढांचे के आसपास की यह जमीन दोबारा अधिगृहीत की जाए और उस पर तब तक यथास्थिति बनाकर रखी जाए जब तक हाई कोर्ट मालिकाना हक का फैसला न कर दे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मालिकाना हक का फैसला होने से पहले अविवादित जमीन को भी किसी एक समुदाय को सौंपना धर्मनिरपेक्षता की भावना के अनुकूल नहीं होगा। अपने दावे के पक्ष में हिंदुओं ने 54 और मुस्लिम पक्ष ने 34 गवाह पेश किए।

अयोध्या: एक फैसला और 28 मुद्दे

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर 24 को फैसला आएगा। पूरा देश यह जानना चाहता है कि आखिर इस विवादित जमीन पर किसका मालिकाना हक है। इस मामले पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट की स्पेशल लखनऊ बेंच ने 28 मुद्दों को अपने फैसले का आधार बनाया है। यानी जमीन पर किसका मालिकाना हक इसको तय करने को लेकर कोर्ट ने इन 28 मुद्दों पर गौर फरमाया है। इस विवादित जमीन के लिए 5 मुकदमे चल रहे हैं। इसके अलावा कोर्ट एक दर्जन से ज्यादा मामला निपटा चुका है, जिसमें जमीन की मिल्कियत, पूजा-प्रार्थना के मामले को लेकर लोगों ने मुकदमें दायर किए थे। इस मामले में पहला मुकदमा 1885 में दायर किया गया था। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में यह मुकदमा दायर किया था। उन्होंने फैजाबाद कोर्ट से इजाजत मांगी थी कि उन्हें विवादित ढांचे के पास चबूतरा बनाने की इजाजत दी जाए, जहां पर भगवान की प्रार्थना की जा सके। लेकिन, कोर्ट ने इस मुकदमे को खारिज कर दिया था। कोर्ट का तर्क था कि 350 (1528) साल पहले यह विवाद हुआ था और आपने मुकदमा काफी लेट किया है। गौरतलब है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह बाबर के सिपहसलार मीर बाकी द्वारा 1528 में कराया गया था। हिंदू धर्माचार्यों का दावा है कि मीर बाकी ने हिंदू मंदिर को तोड़ कर वहां मस्जिद का निर्माण किया था। 1949 में कुछ लोगों ने विवादित ढांचे में जबरन भगवान राम की मूर्ति रख दी और पूजा की इजाजत मांगी, लेकिन प्रशासन ने उसे यथास्थिति बनाए रखा। इस मामले में 16 जनवरी 1950 को 2 अलग-अलग मुकदमे दायर हुए। ये मुकदमे हिंदू महासभा की तरफ से गोपाल सिंह विशारद और दिगंबर अखाड़ा की ओर से परमहंस रामचंद्र दास ने किए। जिस भी पार्टी के खिलाफ फैसला आएगा वह सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा। यहां तक कि क्यूरेटिव पिटिशन के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को भी चुनौती दिया जा सकता है। ये हैं 28 मुद्दे जिन के आधार पर फैसला होगा:- अयोध्या मसले पर अदालत का फैसला 24 सितंबर को आने वाला है। इस मामले में 28 मुद्दे शामिल हैं, जिन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने फ्रेम किए हैं। आइए नजर डालें - क्या ढहा दिया गया ढांचा मस्जिद था, जैसा कि वादी मुस्लिम संगठन दावा करते हैं? अगर हां, तो यह कब और किसने बनावाया था-मुगल बादशाह बाबर ने या उनके अवध गवर्नर मीर बाकी ने। क्या यह एक हिन्दू मंदिर को ध्वस्त कर बनाया गया था? क्या मुसलमान बाबरी मस्जिद में अनंत काल से इबादत करते आए थे? क्या मुसलमानों ने 1528 में कथित रूप से ढांचा बनाए जाने के बाद इस जायदाद को खुले रूप से और निरंतर अपने कब्जे में रखा था? क्या मुसलमानों ने इसे 1949 तक अपने कब्जे में रखा था, जब उन्हें इससे बेदखल कर दिया गया? क्या इस पर केस बहुत देर से दायर किया गया? क्या प्रतिकूल और लगातार कब्जे के जरिए हिन्दुओं ने उस स्थल पर पूजा करने का अधिकार हासिल कर लिया है? क्या भूखंड राम का जन्मस्थान है? क्या हिन्दुओं ने अनंत काल से वहां राम जन्मस्थान के रूप में पूजा की है? क्या मूर्तियां और पूजा की अन्य चीजें ढांचे के अंदर 22-23 दिसंबर, 1949 की रात में रखी गईं, या वे वहां उससे पहले से ही थीं? क्या विवादित ढांचे से लगा ऊंचामंच जिसे राम चबूतरा कहते हैं और भंडार और सीता रसोई मुख्य ढांचे के साथ ही ढहा दी गई? क्या ढांचे से लगे पूर्व, उत्तर और दक्षिण के भूखंड पर एक पुरानी कब्रगाह और एक मस्जिद थी? क्या ढांचा ऐसी जमीन से घिरा हुआ है कि हिन्दुओं के पूजा स्थलों को पार किए बिना ढांचे तक नहीं पहुंचा जा सकता है? क्या इस्लामी नियमों के मुताबिक उस भूखंड पर मस्जिद नहीं बनाया जा सकता (क्योंकि वहां मूर्तियां रख दी गई हैं)? क्या ढांचा कानूनी रूप से मस्जिद नहीं हो सकता, क्योंकि उसमें मीनारें नहीं थीं? क्या यह ढांचा एक मस्जिद नहीं हो सकता, क्योंकि यह 3 ओर से एक कब्रगाह से घिरा है? क्या ढांचे के विध्वंस के बाद इसे अभी भी मस्जिद कहा जा सकता है? क्या ढांचे को ढहा दिए जाने के बाद मुसलमान खुली जगह का इस्तेमाल नमाज पढ़ने के लिए कर सकते हैं? क्या वादी मुस्लिम संगठन राहत पाने के हकदार हैं और अगर हां तो क्या

अयोध्या विवाद के फैसले पर रोक लगी

अयोध्या विवाद पर शुक्रवार को आने वाले फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल एक सप्ताह तक के लिए रोक लगा दी है। मतलब साफ है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच का फैसला अब 24 को नहीं आएगा। सुप्रीम कोर्ट में अब इस मामले की अगली सुनवाई 28 सितंबर को होगी। रमेश चंद्र त्रिपाठी की याचिका पर दो जजों की पीठ ने सुनवाई की। दोनों जजों में मतभेद था। एक जज याचिका खारिज करने के पक्ष में थे, जबकि दूसरे इसके खिलाफ थे। इसलिए सुप्रीम कोर्ट की परंपरा के मुताबिक हाई कोर्ट को फैसला सुनाने से रोकने का निर्णय लिया गया।अब इस मामले की अगली सुनवाई 28 सितंबर को होगी। अदालत को इस बात की जानकारी है कि लखनऊ बेंच के एक जज रिटायर होने वाले हैं। इसलिए मामले पर 28 तारीख को सुनवाई होगी। सभी पक्षों को नोटिस जारी किया गया है और अटॉर्नी जनरल को भी इस दिन अदालत में उपस्थित रहने को कहा गया है।याचिका में अयोध्या विवाद पर फैसला टालने और इस जटिल मामले का अदालत से बाहर शांतिपूर्ण समाधान निकालने की संभावना तलाशने के लिए संबंधित पक्षों को निर्देश देने की अपील की गई थी। याचिका में कम से कम तीन से 14 अक्टूबर तक होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों तक इस फैसले को टालने की भी अपील की गई थी।

Sunday, September 12, 2010

सबकी नजर है अयोध्या पर आने वाले फैसले पर

अयोध्या के विवादित स्थल पर स्वामित्व संबंधी मुकदमों का निर्णय आने में अब बमुश्किल दो हफ्ते रह गए हैं। फैसला जो भी हो प्रभाव अखिल भारतीय होगा। लिहाजा राजनीतिक दलों ने अभी बिल्कुल खामोशी बना रखी है, जबकि प्रशासन ने अदालत के निर्णय पर किसी भी प्रकार की विपरीत प्रतिक्रिया से उत्पन्न होने वाली स्थिति पर काबू पाने के लिए कमर कस ली है।ऊपरी तौर पर हालांकि पूरी तरह शांति है, लेकिन कुछ राजनेताओं एवं धार्मिक संगठनों के बार-बार के इस कथन से तनाव की आशंका गहरा रही है कि अयोध्या का मामला आस्था और विश्वास का प्रश्न है।कानून और व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी संभाल रहे अधिकारियों को चिंता इस बात की है कि फैसला जो भी हो लेकिन मनमाफिक फैसला नहीं आने पर कुछ ताकतें और अराजक तत्व माहौल को बिगाड़ने की कोशिश कर सकते हैं।राम जन्म भूमि बाबरी मसजिद विवाद 1990 के दशक में देश की राजनीति पर अपना असर दिखा चुका है और इस पर स्वामित्व को लेकर 60 साल से चल रहे मुकदमों पर 24 सितंबर को अदालत फैसला जो भी सुनाए, कानून एवं व्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा होने की आशंका खारिज नहीं की जा सकती।बहरहाल, उत्तर प्रदेश प्रशासन किसी भी स्थिति पर काबू पाने के लिए अपनी कमर कस चुका है। प्रदेश में शांति और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए सभी आवश्यक तैयारियां कर ली गई हैं।विश्व हिन्दू परिषद अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए 10 लाख मंदिरो में यज्ञ कर रहे हैं और राष्ट्रपति को ज्ञापन भेज कर यह मांग करेंगे कि कानून बना कर मंदिर निर्माण की राह में आने वाली रुकावटें दूर की जाएं।पूर्व भाजपा नेता और 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचे के विध्वंस के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह ने भी अयोध्या में हर हाल में राम मंदिर के निर्माण की प्रतिबद्धता दोहराई है। उन्होंने कहा कि अदालत का फैसला भले ही हिंदुओं के विपरीत आए, लेकिन राम मंदिर से करोड़ों हिंदुओं की आस्था जुड़ी है, इसलिए संसद को कानून बना कर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ करना चाहिए।अयोध्या स्वामित्व विवाद में पक्षकार ने कहा है कि अदालत का जो भी फैसला आएगा उसका सम्मान किया जाएगा।उन्होंने कहा कि मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड और बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति मुसलमानों से अपील करेगी कि अदालत का फैसला विपरीत आने पर भी कोई अप्रिय प्रतिक्रिया न करें। आवश्यकता हुई तो हम सुप्रीम कोर्ट में जाएंगे।बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति के संयोजक ने कहा है कि निर्णय विपरीत आया तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा। पर्सनल ला बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य ने कहा कि जाहिर है कि दोनो पक्ष निर्णय अपने हक में होने की अपेक्षा रख रहे हैं, मगर महत्वपूर्ण बात यह है कि फैसला जो भी हो निहित स्वार्थी ताकतों और अराजक तत्वों को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का मौका नहीं मिलना चाहिए।सभी प्रमुख राजनीतिक दल अदालत के फैसले का सम्मान करने की बात कह रहे हैं, मगर राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि 1990 के दशक में प्रदेश और देश की राजनीति पर अपना व्यापक असर दिखा चुके इस मुद्दे पर फैसला आने के बाद राजनीति तो होगी ही।अयोध्या के विवादित स्थल पर स्वामित्व संबंधी मुकदमों की सुनवाई कर रही इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ का फैसला मुख्यत: तीन बिंदुओं पर केंद्रित है, पहला- क्या अयोध्या में विवादित स्थल पर 1528 के पहले कोई मंदिर था, जिसे तोड़ कर मस्जिद बनाई गई, दूसरा- क्या 1961 में बाबरी कमेटी की तरफ से दाखिल किया गया वाद 'टाइम बार' यानि निर्धारित समय सीमा के बाद दाखिल किया गया था और तीसरा, यह है कि क्या विवादित स्थल पर मुसलमानों का इसलिए कब्जा हो गया कि निश्चित समय के भीतर उसे चुनौती नहीं दी गई।अयोध्या विवाद यू तो सदियों पुराना है, मगर इसके मौजूदा स्वरूप का बीज 22 दिसंबर, 1949 में तब पड़ा जब मस्जिद में राम लला, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां रख दी गई और हिंदुओं ने उसे रामलला का प्रकटीकरण करार देकर वहां पूजा अर्चना शुरू कर दी। हालांकि रामलला के कथित प्रकटीकरण के बाद मस्जिद की बैरीकेडिंग कर दी गई, मगर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत को भेजे गए स्पष्ट निर्देश के बावजूद किसी ने मूर्तियों को वहां से हटाने का साहस नहीं दिखाया।यहां तक कि फैजाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी के.के. नैय्यर ने इसी मुद्दे पर अपना पद छोड़ दिया और बाद में हिंदू महासभा के टिकट पर सांसद चुने गए।अयोध्या के विवादित स्थल पर स्वामित्व संबंधी पहला मुकदमा 1950 में गोपाल सिंह विशारद की तरफ से दाखिल किया गया, जिसमें वहां रामलला की पूजा अर्चना जारी रखने की अनुमति मांगी गई थी। दूसरा मुकदमा इसी आशय से 1950 में ही परमहंस रामचन्द्र दास की तरफ से दाखिल किया गया, जिसे बाद में उन्होंने वापस ले लिया।तीसरा मुकदमा 1959 में निर्मोही अखाड़े की तरफ से दाखिल किया गया जिसमें विवादित स्थल को निर्मोही अखाड़े को सौप देने की मांग की गई थी।चौथा मुकदमा 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेन्ट्रल बोर्ड की तरफ से दाखिल हुआ और पांचवां मुकदमा भगवान श्रीरामलला विराजमान की तरफ से दाखिल किया गया।उपरोक्त पांचों मुकदमों में से परमहंस रामचन्द्र दास का मुकदमा वापस हो चुका है, जबकि शेष चार मुकदमों पर अदालत 24 सितंबर को फैसला सुनाएगी।

Sunday, August 15, 2010

तिरंगा फहराने के कायदे-कानून


रखरखाव के नियम - आजादी से ठीक पहले 22 जुलाई, 1947 को तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया। तिरंगे के निर्माण, उसके साइज और रंग आदि तय हैं। - फ्लैग कोड ऑफ इंडिया के तहत झंडे को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाएगा। - उसे कभी पानी में नहीं डुबोया जाएगा और किसी भी तरह नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। यह नियम भारतीय संविधान के लिए भी लागू होता है।प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 की धारा-2 के मुताबिक, फ्लैग और संविधान की इन्सल्ट करनेवालों के खिलाफ सख्त कानून हैं। - अगर कोई शख्स झंडे को किसी के आगे झुका देता हो, उसे कपड़ा बना देता हो, मूर्ति में लपेट देता हो या फिर किसी मृत व्यक्ति (शहीद हुए आर्म्ड फोर्सेज के जवानों के अलावा) के शव पर डालता हो, तो इसे तिरंगे की इन्सल्ट माना जाएगा। - तिरंगे की यूनिफॉर्म बनाकर पहन लेना भी गलत है। - अगर कोई शख्स कमर के नीचे तिरंगा बनाकर कोई कपड़ा पहनता हो तो यह भी तिरंगे का अपमान है। - तिरंगे को अंडरगार्मेंट्स, रुमाल या कुशन आदि बनाकर भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। फहराने के नियम - सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच ही तिरंगा फहराया जा सकता है। - फ्लैग कोड में आम नागरिकों को सिर्फ स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराने की छूट थी लेकिन 26 जनवरी 2002 को सरकार ने इंडियन फ्लैग कोड में संशोधन किया और कहा कि कोई भी नागरिक किसी भी दिन झंडा फहरा सकता है, लेकिन वह फ्लैग कोड का पालन करेगा। - 2001 में इंडस्ट्रियलिस्ट नवीन जिंदल ने कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि नागरिकों को आम दिनों में भी झंडा फहराने का अधिकार मिलना चाहिए। कोर्ट ने नवीन के पक्ष में ऑर्डर दिया और सरकार से कहा कि वह इस मामले को देखे। केंद्र सरकार ने 26 जनवरी 2002 को झंडा फहराने के नियमों में बदलाव किया और इस तरह हर नागरिक को किसी भी दिन झंडा फहराने की इजाजत मिल गई। राष्ट्रगान के भी हैं नियम - राष्ट्रगान को तोड़-मरोड़कर नहीं गाया जा सकता। - अगर कोई शख्स राष्ट्रगान गाने से रोके या किसी ग्रुप को राष्ट्रगान गाने के दौरान डिस्टर्ब करे तो उसके खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 की धारा-3 के तहत कार्रवाई की जा सकती है। - ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर अधिकतम तीन साल की कैद का प्रावधान है। - प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 का दोबारा उल्लंघन करने का अगर कोई दोषी पाया जाए तो उसे कम-से-कम एक साल कैद की सजा का प्रावधान है।

Tuesday, August 10, 2010

कामन के वेल्थ के नाम पर नेताओं का अपना वेल्थ

नई दिल्ली में तीन अक्टूबर से आरंभ होने जा रहे कामनवेल्थ गेम्स को लेकर पैसे के मामले में घमासान मचा हुआ है। एक तो गेम्स की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। कोई भी स्टेडियम अभी तक पूरी तरह से फिट नहीं हैं। चौदह दिन के खेल के लिए लगभग 13 हजार करोड़ रुपये पानी की तरह बहाया जा रहा है। लगभग एक दिन में एक हजार करोड़ रुपये खर्च होने जा रहे हैं, यह सब उन कागजों का कमाल है जो नेताओं की फाइलों में बंद हैं। ऐसा नहीं है कि नई दिल्ली को गेम्स के लिए भरपूर समय न दिया गया हो। एशियाड 1982 के बाद देश की राजधानी में इतने बड़े गेम्स हो रहे हैं। नेताओं और अधिकारियों ने खेल से जुड़ी कई परियोजनाओं को जानबूझकर पूरा करने में देरी की है, जिससे निर्माण लागत बढ़ी। देखा जाए तो अबतक सारी परियोजनाएं पूरी हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। मैं स्पष्ट कह देना चाहता हूं कि गेम्स के बाद कामनवेल्थ गेम्स की आयोजन समिति के सभी पदाधिकारियों, अधिकारियों, मंत्रीगण आदि पर सीबीआई जांच बिठाई जाए। प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने पहले ही कह दिया था कि पैसे की कोई कमी नहीं होने दूंगा। लेकिन नेतागणों और अधिकारियों तथा ठेकेदारों के बीच पैसे का बंदरबांट चल रहा है।देखा जाए तो भारत में इस तरह के खेल के आयोजन के लिए जगह सही नहीं है। भारत में इस तरह के खेल के आयोजन नहीं होने चाहिए। जहां पर भ्रष्टाचार का बोल बाला हो।यदि ईमानदारी से और अच्छा होमवर्क करके कार्य किया गया होता तो आज यह दुर्दशा नहीं होती। जबकि कोई भी नए स्टेडियम नहीं बन रहे हैं। बने हुए स्टेडियमों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है।

Thursday, July 15, 2010

आखिर रुपए को मिला अपना प्रतीक चिह्न


आखिर रुपए को अपना प्रतीक चिह्न मिल गया। कैबिनेट ने आईआईटी पोस्ट ग्रैजुएट डी. उदय कुमार के
डिजाइन को अपनी मंजूरी दे दी है। पांच सदस्यों वाले पैनल ने इस डिजाइन को कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा था। पैनल ने यह डिजाइन उन पांच डिजाइनों में से चुना जिन्हें आखिरी दौर के लिए चुना गया था। डी. उदय कुमार का तैयार किया हुआ यह प्रतीक चिह्न भारतीयता और अंतरराष्ट्रीयता का अद्भुत मेल जान पड़ता है। जैसा कि आप तस्वीर में देख सकते हैं इसमें देवनागरी के 'र' और रोमन कैपिटल 'R' (बगैर डंडे के) के संकेत मिलते हैं। वित्त मंत्रालय ने इसके लिए एक डिजाइन प्रतियोगिता आयोजित की थी और विजेता को 2.5 लाख रुपये के इनाम की घोषणा की थी। शर्त यह थी कि यह कंप्यूटर के स्टैंडर्ड कीबोर्ड में फिट हो जाए, राष्ट्रीय भाषा में हो और भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को दर्शाए। अभी तक भारतीय रुपये को संक्षिप्त रूप (abbreviated form) में अंग्रेजी में Rs या Re या फिर INR के जरिए दर्शाया जाता है। नेपाल , पाकिस्तान और श्रीलंका में भी मुद्रा का नाम रुपया ही है। लेकिन दुनिया की प्रमुख मुद्राओं का संक्षिप्त रूप के अलावा एक प्रतीक चिन्ह भी है जैसे अमेरिकी डॉलर को USD कहते हैं और इसका प्रतीक चिह्न $ होता है।

Thursday, July 1, 2010

कामयाब नहीं रहा शिमला समझौता

भारत और पाकिस्तान के रिश्ते में अमन-चैन कायम करने के मकसद से दो जुलाई, 1972 को हुआ शिमला समझौता अपना लक्ष्य पाने में कुछ हद तक ही कामयाब रहा है।समझौते का मकसद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते में पड़ी दरार को कूटनीतिक तरीके से पाटना था लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं हो सका और आज यह पूरी तरह अप्रासंगिक हो चुका है।यदि कूटनीतिक नजरिए से देखें तो शिमला समझौता बहुत अच्छा कदम नहीं था। इस समझौते का विरोध तत्कालीन विपक्षी दलों ने भी किया था और देश में इस पर आम सहमति नहीं बन पाई थी।उस समय इस समझौते के विरोध में जनसंघ ने एक नारा दिया था देश न हारी..फौज न हारी, हारी है सरकार हमारी।यह समझौता आज राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से कोई मायने नहीं रखता लेकिन यह सच है कि भारत और पाकिस्तान के बीच बेहतर रिश्ते कायम करने की कोशिशों की बुनियाद इसी समझौते ने रखी थी। इस समझौते के बाद भी कई दफा पाकिस्तान के साथ रिश्तों की बेहतरी के प्रयास किए गए लेकिन हालात अभी तक जस के तस हैं। शिमला समझौता रूपी आधार का इस्तेमाल कर दोनों देशों के संबंध मधुर बन सकते हैं।इस समझौते की सबसे बड़ी खामी यह थी कि इसमें 'सियाचिन ग्लेशियर-सालतोरो रिज' की लाइन को परिभाषित नहीं किया गया था।1984 में भारत ने इस क्षेत्र में अपनी सेना तैनात की और फिर पाक ने भी यहां अपनी सेना तैनात कर दी। दोनों देशों की ओर से सेना की तैनाती के बाद यह क्षेत्र दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र बन गया।

Thursday, May 20, 2010

राजीव गांधी का पंचायती राज का अधूरा सपना: राजीव गांधी की पुण्यतिथि 21 मई पर विशेष:


पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शासनकाल में त्रिस्तरीय पंचायती राज संबंधी जो ऐतिहासिक कानून बनाया गया उसके बारे में आज विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भले ही सत्ता के विकेंद्रीयकरण और महिलाओं के सशक्तीकरण में काफी मदद मिली हो लेकिन आज भी कई लक्ष्य हासिल किए जाने बाकी हैं तथा इसके लिए मजबूत निगरानी प्रणाली की जरूरत है।त्रिस्तरीय पंचायती राज लागू होने के कारण लोकतंत्र को लोगों के द्वार तक पहुंचा दिया गया। इससे निर्णय प्रक्रिया में जन भागीदारी बढ़ी है। लेकिन राजीव गांधी सहित जिन लोगों ने पंचायती राज व्यवस्था के लिए जो लक्ष्य सोचे थे वे अभी तक भ्रष्टाचार, लालफीताशाही आदि के कारण दूर का ख्वाब बने हुए हैं।निस्संदेह राजीव गांधी सरकार के शासनकाल में पारित किए गए पंचायती राज संबंधी कानून के कारण लोकतंत्र को चुस्त बनाने में काफी मदद मिली। आज देश में ढाई लाख पंचायतें एवं 32 लाख चुने हुए प्रतिनिधि हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें 12 लाख महिलाएं चुनकर आई हैं।पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के उम्मीदवारों की भागीदारी काफी बढ़ी है, जो हमारे लोकतंत्र की मजबूती का संकेत है।इन सबके बावजूद पंचायती राज के बारे में राजीव गांधी का जो सपना था, वह अभी तक अधूरा है। व्यावहारिक स्तर पर देखने में आता है कि पंचायती राज संस्थाओं की विकास योजनाओं में नौकरशाही अड़चनें पैदा करती है। इसके अलावा पंचायती राज संस्थाओं के मामले में कई राज्य सरकारों का रवैया उपेक्षापूर्ण रहता है।यदि सांसद, विधायक एवं राज्य सरकारें पंचायती राज संस्थाओं के मामले में अधिक रुचि दिखाए तो इन संस्थाओं के माध्यम से जमीनी स्तर पर विकास के कार्यो को तेज गति से अंजाम दिया जा सकता है।भले ही सरकार के शासनकाल में पंचायती राज संबंधी कानून संसद में पारित किया गया हो लेकिन इसका सारा श्रेय उन्हें ही नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सहित देश के प्रमुख नेताओं ने इसका स्वप्न देखा था। यदि पंचायती राज संस्थाएं आज ढंग से काम नहीं कर पा रही हैं तो इसके लिए कांगे्स अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती क्योंकि कानून लागू होने के बाद करीब सवा दशक तक उनकी सरकार केंद्र में रही।राजीव गांधी कहते थे कि केंद्र से जारी किए गए एक रुपये में से मात्र 15 पैसे ही जनता तक पहुंच पाते हैं। अब उनके पुत्र राहुल गांधी कह रहे हैं कि जनता तक मात्र दस पैसे ही पहुंच पा रहे हैं। स्थिति में जो गिरावट आई है क्या कांगे्स शासित सरकारें उसके लिए दोषी नहीं हैं।आज इस बात की बेहद जरूरत है कि पंचायती राज संस्थाओं द्वारा कराए जाने वाले कामकाज की 'सोशल आडिट' हो। इससे उनकी जवाबदेही बढ़ेगी। सोशल आडिट नौकरशाहों की बजाय जन प्रतिनिधियों, विशेषज्ञों से करवाया जाना चाहिए।ग्रामीण आबादी शहरों की तरफ नहीं भागे, यह सुनिश्चित करने के लिए पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त बनाना बेहद जरूरी है। राजीव गांधी ने इसी लक्ष्य के साथ संबंधित कानून बनाने की पहल की थी।राजीव गांधी चाहते थे कि पंचायती राज संस्थाओं को विकास के विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल किया जाए। इसके लिए जरूरी है कि विभिन्न मंत्रालयों की योजनाओं को इन संस्थाओं के जरिए लागू करवाया जाए। इससे गांवों के विकास में मदद मिलेगी।आज जमीनी स्तर पर इस बात की जरूरत महसूस की जा रही है कि पंचायती राज संस्थाओं द्वारा खर्च किए जा रहे धन और कराए जा रहे कार्यो की कड़ी निगरानी करवाई जाए। इस पर निगरानी से ठोस कार्य सुनिश्चित होंगे।

Monday, April 26, 2010

आईपीएल होता मापदंड तो बदल जाती भारतीय टीम

जरा सोचिए कि अगर ट्वेंटी-20 विश्व कप की टीम के चयन के लिए इंडियन प्रीमियर लीग का प्रदर्शन टीम मापदंड होता तो क्या युवराज सिंह, गौतम गंभीर, पीयूष चावला, प्रवीण कुमार और यहां तक की यूसुफ पठान को टीम में जगह मिल पाती।शायद नहीं क्योंकि तब वेस्टइंडीज जाने वाली पंद्रह सदस्यीय टीम में सौरभ तिवारी, रोबिन उथप्पा, अंबाती रायुडु, प्रज्ञान ओझा, अमित मिश्रा और इरफान पठान जैसे खिलाड़ी शामिल होते जिन्होंने आईपीएल में प्रभावशाली प्रदर्शन किया लेकिन वह के श्रीकांत की अगुवाई वाली चयनसमिति को प्रभावित करने में असफल रहे।कैरेबियाई देशों में 30 अप्रैल से शुरू होने वाले विश्व कप में भारत की जो टीम भाग लेगी उसमें कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो अच्छी फार्म में नहीं चल रहे हैं। इनमें कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को भी शामिल किया जा सकता है जो आईपीएल में लगातार अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए। धोनी ने 13 मैच में 287 रन बनाए जिसमें दो अर्धशतक के अलावा दो शून्य भी शामिल हैं।भारतीय टीम हालांकि सबसे अधिक चिंतित युवराज की फार्म को लेकर है जिन्होंने 2007 में दक्षिण अफ्रीका में खेले गए पहले विश्व कप के दौरान इंग्लैंड के स्टुअर्ट ब्राड के एक ओवर में छह छक्के जमाए थे। किंग्स इलेवन पंजाब की तरफ से खेलने वाले युवराज ने आईपीएल थ्री के 14 मैच में 21.55 की औसत से केवल 255 रन बनाए। वह किसी भी मैच में 50 रन की संख्या नहीं छू पाए।युवराज ने स्वयं स्वीकार किया कि उनका आत्मविश्वास डगमगाया हुआ है और वह अपनी फिटनेस के प्रति भी वह पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं।सलामी बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग भी आईपीएल में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए थे लेकिन वह कंधे की चोट के कारण विश्व कप टीम से बाहर हो गए। उनके जोड़ीदार गंभीर ने भी 11 मैच में दो ही अच्छी पारियां खेली। बायें हाथ के इस बल्लेबाज ने 30.77 की औसत से 277 रन बनाए और उनके बल्ले से केवल दो छक्के निकले।बिगहिटर यूसुफ पठान ने 14 मैच में भले ही 333 रन बनाए लेकिन इनमें उनकी 100 और 73 रन की दो पारियां शामिल हैं। यदि इन दोनों पारियों को निकाल दिया जाता है तो उनके नाम पर बाकी 12 मैच में केवल 160 रन दर्ज होंगे। दिनेश कार्तिक ने 14 मैच में 21.38 की औसत से 278 रन बनाए और विकेट के पीछे 12 शिकार किए।यदि आईसीसी की अनुमति होती और चयनसमिति आज बैठक कर रही होती तो शायद इन खिलाडि़यों की जगह सौरभ तिवारी [16 मैच में 419 रन ], रोबिन उथप्पा [16 मैच में 31.16 और 171.55 की स्ट्राइक रेट से 374 रन] और अंबाती रायुडु [14 मैच में 356 रन और आठ मैच में विकेटकीपर के तौर पर छह शिकार] रखे जा सकते थे। इरफान पठान ने कई अवसरों पर बल्ले और गेंद से अच्छा प्रदर्शन किया और 14 मैच में 34.50 की औसत से 276 रन बनाने के अलावा 15 विकेट भी लिए।अब यदि गेंदबाजी की बात की जाए तो शायद चयनकर्ता यह सोच रहे होंगे कि उन्होंने प्रज्ञान ओझा या अमित मिश्रा को क्यों टीम में नहीं लिया। ओझा ने 16 मैच में 20.42 की औसत से आईपीएल में सर्वाधिक 21 विकेट लिए जबकि अमित मिश्रा ने 14 मैच में 21.35 की औसत से 17 विकेट हासिल किए। चेन्नई सुपरकिंग्स के स्पिनर आर अश्विन और शादाब जकाती ने भी उम्दा प्रदर्शन करके प्रभावित किया।भारतीय टीम में चुने गए लेग स्पिनर पीयूष चावला 14 मैच में 30.58 की औसत से 12 विकेट ही ले पाए और उनका इकोनोमी रेट [7.48] भी ओझा और मिश्रा से अधिक है।तेज गेंदबाजों में प्रवीण कुमार 12 मैच में 38.00 की औसत से आठ विकेट ही ले पाए। उनसे बेहतर प्रदर्शन तो आर पी सिंह सिद्धार्थ त्रिवेदी का रहा जो कि टीम में शामिल नहीं हैं। तेज गेंदबाज जहीर खान [14 मैच में 15 विकेट], आशीष नेहरा [चार मैच में छह विकेट] और हरभजन सिंह [15 मैच में 17 विकेट] ने अच्छा प्रदर्शन किया। आर विनयकुमार को तो आईपीएल में ही अच्छे प्रदर्शन [14 मैच में 16 विकेट] का इनाम मिला और टीम में चुना गया।भारतीय टीम में शामिल बल्लेबाजों में सुरेश रैना ने सर्वाधिक प्रभावित किया और 16 मैच में 520 रन बनाए। रोहित शर्मा [16 मैच में 404 रन] ने भी टुकड़ों में अच्छा प्रदर्शन किया जबकि मुरली विजय को सहवाग के बाहर होने के कारण उनके आईपीएल में अच्छे प्रदर्शन का ही इनाम मिला। विजय ने 15 मैच में 458 रन बनाए जिसमें 26 छक्के भी शामिल हैं।

Wednesday, March 31, 2010

लिव इन रिलेशनशिप

लिव इन रिलेशनशिप यानी सहजीवन। आपको याद होगा कि अपने देश में इस विषय पर विवाद की शरुआत दक्षिण भारतीय सिने जगत की सुपर स्टार खुशबू के उस बयान से शुरू हुई थी जिसमें उन्होंने विवाह पूर्व सेक्स संबंधों को जायज ठहराया था और इसके फलस्वरूप तमिलनाडु में काफी हो-हल्ला हुआ था। अब कोर्ट ने उनके पक्ष में निर्णय देकर एकबार फिर उस विवाद को हवा दे दी है। पक्ष-विपक्ष में हर तरह के विचार आ रहे हैं। कुछ लोग विवाह नाम की संस्था को सामाजिक ढकोसला मानकर इसकी आवश्यकता पर ही प्रश्न चिह्न लगा रहे है।

प्रागैतिहासिक काल में विवाह नाम की संस्था नहीं थी, स्त्री-पुरुष आपस में सेक्स संबंध बनाने के लिए स्वतंत्र थे। समाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए कुछ नियम बनाए गए और विवाह नाम की संस्था ने जन्म लिया। समय के साथ समाज की रीति नीति में काफी परिवर्तन आए है, इंसान की पैसे की हवस और अहम की भावना ने इस संस्था को काफी नुकसान पहुँचाया है, लेकिन मात्र इसके कारण इसकी आवश्यकता पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता।

सहजीवन पश्चिमी अवधारणा है, जिसके कारण वहां का सबसे ज्यादा सामाजिक विघटन हुआ है। परंतु धीरे-धीरे अपने देश में भी लोकप्रिय हो रही है। खासकर देश के मेट्रोपोलिटन शहरों में रहने वाले युवाओं के मध्य इस तरह के रिश्ते लोकप्रिय हो रहे है। पहले इस तरह के रिश्ते समाज में एक तरह के टैबू के रूप में देखे जाते थे, पर अब फैशन के तौर पर इन्हें अपनाया जा रहा है। इस तरह के रिश्तों को युवाओं का समाज के रीति-रिवाजों के प्रति एक विद्रोह माना जाय या एक आसान जीवन शैली- जिसमें वे साथी की जिम्मेदारियों से मुक्त एक स्वतंत्र जीवन जीते है। यह एक तरह की ट्रायल एंड एरर जैसी स्थिति होती है जिसमें यदि परिस्थितियां मनोकूल रही हैं तो साथ लंबा रहता है अन्यथा पहले साथी को छोड़ कर आगे बढ़ने में देर नहीं लगती। अगर आप भावुक है और रिश्तों में वचनबद्धता को महत्व देते है तो आपको सहजीवन की अवधारणा से दूर ही रहना चाहिए, यहां वचनबद्धता जैसे नियम लागू नहीं होते। यहां सामाजिक नियमों को दरकिनार कर साथ रहने का रोमांच जरूर होता है, लेकिन इस बात की गारंटी नहीं होती कि परिवार और समाज की अवहेलना कर यह रोमांच कितनी अवधि तक जीवित रहेगा।

यहां पर मैं सुप्रीम कोर्ट के ही एक और निर्णय की ओर भी आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगी, जिसके अनुसार मां-बाप का यह हक है कि उनके बच्चे बुढ़ापे में उनकी देखभाल करें। ऐसा न करने पर उन्हें कानूनन दंडित किया सकता है। अब यही पर कन्फ्यूजन क्रिएट होता है। सहजीवन भारतीय समाज द्वारा मान्य नहीं है दूसरे ऐसे बच्चे जिनकी अपनी जीवन-धारा ही सुनिश्चित न हो, वे अपने मां-बाप को इसमें कैसे शामिल करेंगे? इस तरह के रिश्ते सिवाय सामाजिक विघटन के हमें और कुछ नहीं दे सकते।

अंत में मैं एक बार फिर अभिनेत्री खुशबू का उल्लेख करना चाहूंगी। खुशबू ने अपने लिव इन रिलेशनशिप से उस समय काफी गहरी चोट खाई थी, जब शिवाजी गणेशन के सुपुत्र प्रभु से अपने रिश्तों को सार्वजनिक करने के बाद भी, प्रभु ने न तो इन रिश्तों को स्वीकारा और न ही अपनी पत्नी से अलग हुए । बाद में खुशबू ने दक्षिण भारतीय फिल्मों के मशहूर एक्टर और डायरेक्टर सी.सुदंर से विवाह करने के लिए मुस्लिम धर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया। शायद उस समय तक उनको इस बात का अहसास पूरी तरह हो गया था कि विवाह ही एक ऐसी संस्था है जो आपको भावात्मक सुरक्षा और जीवन में साथ निभाने की वचनबद्धता देती है। सहजीवन थोड़े समय के लिए आपको रोमांचित तो कर सकता है, लेकिन लंबे साथ की कामना आप इससे नहीं कर सकते।

आज जरूरत है कि विवाह संस्था में आई कुरीतियों को दूर करने की, ताकि पारिवारिक संबंधों में पारस्परिक गरमाहट बढ़े। हमारा चिंतन परिवार नाम की संस्था को दृढ़ता बढ़ाने के लिए होना चाहिए।

Monday, March 22, 2010

सुखदेव को फांसी देना गलत था


अंग्रेजों ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था और वे हर कीमत पर इन तीनों क्रांतिकारियों को ठिकाने लगाना चाहते थे।लाहौर षड्यंत्र [सांडर्स हत्याकांड] में जहां पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया गया, वहीं अंग्रेजों ने सुखदेव के मामले में तो सभी हदें पार कर दीं और उन्हें बिना जुर्म के ही फांसी पर लटका दिया। सांडर्स हत्याकांड में सुखदेव शामिल नहीं थे, लेकिन फिर भी ब्रितानिया हुकूमत ने उन्हें फांसी पर लटका दिया।राजगुरू, सुखदेव और भगत सिंह की लोकप्रियता तथा क्रांतिकारी गतिविधियों से अंग्रेजी शासन इस कदर हिला हुआ था कि वह इन्हें हर कीमत पर फांसी पर लटकाना चाहता था।सांडर्स हत्याकांड में पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया गया और सुखदेव को इस मामले में बिना जुर्म के ही सजा दे दी गई। 15 मई 1907 को पंजाब के लायलपुर [अब पाकिस्तान का फैसलाबाद] में जन्मे सुखदेव भी भगत सिंह की तरह बचपन से ही आजादी का सपना पाले हुए थे। यह दोनों लाहौर नेशनल कॉलेज के छात्र थे। दोनों एक ही सन में लायलपुर में पैदा हुए और एक ही साथ शहीद हो गए।..तुझे जिबह करने की खुशी और मुझे मरने का शौक'तुझे जिबह करने की खुशी और मुझे मरने का शौक, है मेरी भी मर्जी वही जो मेरे सैयाद की है..'इन पंक्तियों का एक-एक लफ्ज उस महान देशभक्त की वतन पर मर मिटने की ख्वाहिश जाहिर करता है जिसने आजादी की राह में हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया।देशभक्ति की यह तहरीर भगत सिंह की उस डायरी का हिस्सा है जो उन्होंने लाहौर जेल में लिखी थी। शहीद-ए-आजम ने आजादी का ख्वाब देखते हुए जेल में जो दिन गुजारे, उन्हें पल-पल अपनी डायरी में दर्ज किया। 404 पृष्ठ की यह मूल डायरी आज भगत सिंह के पौत्र [भतीजे बाबर सिंह संधु के पुत्र] यादविंदर सिंह के पास है जिसे उन्होंने अनमोल धरोहर के रूप में संजोकर रखा है।दिल्ली के नेहरू मेमोरियल म्यूजियम में इस डायरी की प्रति भी उपलब्ध है ्रजबकि राष्ट्रीय संग्रहालय में इसकी माइक्रो फिल्म रखी है।उच्चतम न्यायालय में लगी एक प्रदर्शनी में भी इस डायरी को प्रदर्शित किया जा चुका है।डायरी के पन्ने अब पुराने हो चले हैं, लेकिन इसमें उकेरा गया एक-एक शब्द देशभक्ति की अनुपम मिसाल के साथ ही भगत सिंह के सुलझे हुए विचारों की तस्वीर पेश करता नजर आता है। शहीद-ए-आजम ने यह डायरी अंगे्रजी भाषा में लिखी है, लेकिन बीच-बीच में उन्होंने उर्दू भाषा में वतन परस्ती से ओत-प्रोत पंक्तियां भी लिखी हैं।भगत सिंह का सुलेख इतना सुंदर है कि डायरी देखने वालों की निगाहें ठहर जाती हैं। डायरी उनके समूचे व्यक्तित्व के दर्शन कराती है। इससे पता चलता है कि वह महान क्रांतिकारी होने के साथ ही विहंगम दृष्टा भी थे।बाल मजदूरी हो या जनसंख्या का मामला, शिक्षा नीति हो या फिर सांप्रदायिकता का विषय, देश की कोई भी समस्या डायरी में भगत सिंह की कलम से अछूती नहीं रही है।उनकी सोच कभी विदेशी क्रांतिकारियों पर जाती है तो कभी उनके मन में गणित, विज्ञान, मानव और मशीन की भी बात आती है। डायरी में पेज नंबर 60 पर उन्होंने लेनिन द्वारा परिभाषित साम्राज्यवाद का उल्लेख किया है तो पेज नंबर 61 पर तानाशाही का। इसमें मानव-मशीन की तुलना के साथ ही गणित के सूत्र भी लिखे हैं।इन 404 पन्नों में भगत के मन की भावुकता भी झलकती है जो बटुकेश्वर दत्त को दूसरी जेल में स्थानांतरित किए जाने पर सामने आती है।मित्र से बिछुड़ते समय मन के किसी कोने में शायद यह अहसास था कि अब मुलाकात नहीं होगी, इसलिए निशानी के तौर पर डायरी में भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के ऑटोग्राफ ले लिए थे। बटुकेश्वर ने ऑटोग्राफ के रूप में बीके दत्त के नाम से हस्ताक्षर किए।अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ होने के साथ ही भगत सिंह इतिहास और राजनीति जैसे विषयों में भी पारंगत थे।सभी विषयों की जबर्दस्त जानकारी होने के चलते ही हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी [एचएसआरए] के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने उन्हें अंग्रेजों की नीतियों के विरोध में आठ अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने की इजाजत दी थी।27 सितंबर 1907 को जन्मे भगत सिंह 23 मार्च 1931 को मात्र 23 साल की उम्र में ही देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए। देशवासियों के दिलों में वह आज भी जिन्दा हैं।

Sunday, March 7, 2010

महिला आरक्षण : संसद में इतिहास रचने की तैयारी

संसद में इतिहास रचने की तैयारी की जा रही है क्योंकि सोमवार को राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक को विचार और पारित किए जाने के लिए पेश किया जाएगा। कांग्रेस, भाजपा तथा वाम दलों ने जहां इसका समर्थन करने का ऐलान किया है वहीं इस विधेयक के विरोधियों के बीच मतभेद खुल कर सामने आ गए हैं।पिछले करीब डेढ़ दशक से आम सहमति का इंतजार कर रहे इस विधेयक की राह राज्यसभा से बन रही है जहां इस पर सोमवार को चर्चा होनी है। इस विधेयक को उच्च सदन में मंजूरी मिलना लगभग तय है क्योंकि कांग्रेस, भाजपा, वामदलों के अलावा अन्य छोटे दल जैसे तेदेपा, द्रमुक, अन्नाद्रमुक, अकाली दल और नेशनल कांफ्रेंस ने इसका समर्थन करने का ऐलान किया है।राज्यसभा की सदस्य संख्या 245 है लेकिन 12 रिक्तियों की वजह से सदन के सदस्यों की संख्या 233 हैं। इन 12 रिक्तियों में छह नामांकित सदस्यों के लिए रिक्तियां शामिल हैं।बिहार के मुख्यमंत्री और जद [यू] नेता नीतीश कुमार ने अचानक रुख बदल कर विधेयक के पक्ष में आवाज उठाई और विपक्ष को झटका दे दिया है।राज्यसभा में विधेयक का विरोध करने वाले सदस्यों की संख्या 26 से भी कम है क्योंकि जद [यू] में नीतीश कुमार के बयान के बाद गहरे मतभेद नजर आ रहे हैं।महिला आरक्षण के लिए संविधान में संशोधन करने वाले विधेयक को मतदान के दौरान सदन में विशेष बहुमत के लिए 155 मतों की जरूरत होगी। फिलहाल विधेयक के पक्ष में 165 से अधिक सदस्यों का समर्थन नजर आ रहा है।विधि एवं न्याय मंत्री एम वीरप्पा मोइली 'संविधान [108 वां संशोधन] विधेयक' को विचार विमर्श के लिए सदन में पेश करेंगे। महिला आरक्षण विधेयक के नाम से जाना जाने वाला यह विधेयक संयोगवश आठ मार्च को सदन में पेश करने का फैसला किया गया है जिस दिन दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाएगी।एक खास बात यह भी है कि आठ मार्च, 2010 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के सौ साल पूरे हो रहे हैं। इस विधेयक में लोकसभा और राज्यों की विधायिकाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान है।महिला आरक्षण विधेयक के विरोधियों ने इसके खिलाफ 'युद्ध' का ऐलान कर दिया है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और जद [यू] प्रमुख शरद यादव ने इस विधेयक के वर्तमान स्वरूप पर अपना विरोध बरकरार रखा है। यह दल इस विधेयक में पिछड़े वर्गो और मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं।राज्यसभा में कांग्रेस के 71 सदस्य, भाजपा के 45, माकपा के 15, अन्नाद्रमुक के सात, राकांपा के पांच, द्रमुक के चार, बीजद के चार, तेदेपा के दो, तृणमूल कांग्रेस के दो और फारवर्ड ब्लॉक का एक सदस्य है। इन सभी दलों ने विधेयक के लिए अपना समर्थन जताया है। सदन में अकाली दल के तीन सदस्य हैं। अकाली दल ने पहले ही विधेयक के प्रति अपने समर्थन की घोषणा कर दी है।विधेयक पर विचार-विमर्श से पूर्व सरकार ने इसके विरोधियों का समर्थन जुटाने के लिए एक स्वर में इसका समर्थन करने की अपील की तथा इसके विभिन्न पहलुओं पर बातचीत करने का आश्वासन दिया है।संसदीय मामलों के मंत्री पी के बंसल ने बताया कि उन सभी से यह अपेक्षा, उम्मीद और अपील है कि हमें इस महत्वपूर्ण विधेयक का इसके वर्तमान स्वरूप में समर्थन करना चाहिए। कानून के बहुत अच्छे पहलू हैं। अगर किसी के पास कोई और विचार हैं तो उन पर हम बाद में बात कर सकते हैं।कांग्रेस और भाजपा ने अपने-अपने सदस्यों को विधेयक का समर्थन करने के लिए व्हिप जारी किया है। भाकपा नेता डी राजा ने कहा है कि उन्होंने पार्टी सदस्यों से सदन में मौजूद रहने के लिए कहा है। माकपा नेताओं ने भी ऐसा ही किया है।संसदीय मामलों के मंत्री की तरह ही राजा भी मानते हैं कि अगर समर्थन करने वालों की संख्या पर गौर करें तो विधेयक की राह में कोई बाधा नहीं आएगी। राजा ने कहा कि द्रमुक, अन्नाद्रमुक, तेदेपा और बीजद आदि दल भी विधेयक का समर्थन कर रहे हैं।राजा से पूछा गया कि क्या आठ मार्च को संसद में 'रेड लेटर' डे होगा क्योंकि यह विधेयक लोकसभा में महिलाओं और पुरुषों की संख्या ही बदल देगा। इस पर भाकपा नेता ने उम्मीद जताई कि 'यह एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण निर्णय होगा और उन्हें कोई समस्या नजर नहीं आती।बहरहाल, विधेयक का विरोध करने वालों की संख्या कम है और इसे मूल्यवृद्धि, ईधन के दामों में वृद्धि जैसे मुद्दों को लेकर कायम विपक्षी एकता को तोड़ने का कांग्रेस का एक प्रयास समझा जा रहा है।राज्यसभा की सदस्य संख्या 245 है लेकिन 12 रिक्तियों की वजह से फिलहाल सदन के सदस्यों की संख्या 233 हैं। इन 12 रिक्तियों में छह नामांकित सदस्यों के लिए रिक्तियां शामिल हैं।विधेयक को संसद में पेश करने के प्रयास पिछले 13 साल से नाकाम होते रहे हैं। इसका विरोध करने वाले दल महिलाओं के लिए लोकसभा और विधायिकाओं में 33 फीसदी आरक्षण के कोटे के अंदर पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण का कोटा तय करने की मांग कर रहे हैं।वर्ष 1997 में लोकसभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल के हाथों से उनकी ही पार्टी जनता दल के सदस्यों ने विधेयक की प्रतियां छीन कर फाड़ दी थीं। जनता दल तत्कालीन संयुक्त मोर्चा सरकार की अगुवाई कर रहा था।राजग के कार्यकाल में तत्कालीन विधि मंत्री राम जेठमलानी ने जब लोकसभा में यह विधेयक पेश करना चाहा तब भी इसके विरोधियों ने इसकी प्रतियां फाड़ डालीं थीं।यह स्पष्ट हो चुका है कि कांग्रेस और भाजपा में इस विधेयक के लिए श्रेय लेने की होड़ मची है। अब ऐसा लगता है कि यह विधेयक सोमवार को सदन में पेश होने से पहले ही एक पड़ाव पार कर चुका है क्योंकि इसके धुर विरोधी और आलोचक जद [यू] में मतभेद खुल कर सामने आ गए हैं।

Wednesday, February 24, 2010

दीदी का भालो बजट


रेल मंत्री ममता बनर्जी द्वारा लोकसभा में पेश रेल बजट 2010-11 में यात्री किराए में कोई वृद्धि नहीं की गई है।रेल बजट की मुख्य बातें :. यात्री किराए में कोई बढ़ोतरी नहीं।. 54 नई रेलगाडी सेवाएं।. 28 नई यात्री गाड़ी सेवाएं।. 21 ट्रेनों का परिचालन क्षेत्र विस्तार।. 12 ट्रेनों के फेरों में वृद्धि।. 16 मागो' पर ' भारत तीर्थ ' नामक विशेष पर्यटक ट्रेनें।. लंबी दूरी की छह ' दूरंतो ' ट्रेनें।. कम दूरी की चार ' दूरंतो ' ट्रेनें।. महिला विशेष रेलों का नाम बदलकर ' मातृभूमि विशेष ' किया जाएगा।. ' कर्मभूमि ' नामक तीन अनारक्षित रेलगाडि़यां।. रविन्द्रनाथ टैगोर के 150वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में पूरे देश में ' संस्कृतिएक्सप्रेस ' ट्रेनें चलाई जाएंगी। इसे बांग्लादेश भी ले जाने का प्रस्ताव। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के 150वें जन्मदिन के अवसर पर उनके विचारों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए रेलवे संस्कृति एक्सपे्रस के नाम से एक विशेष ट्रेन चलाएगा।टैगोर विश्व के एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी कविताओं को दो देशों द्वारा राष्ट्रीय गान के रूप में अपनाया गया है.. बांग्लादेश के लिए आमार सोनार बांग्ला और भारत के लिए जन गण मन। टैगोर अविभाजित बंगाल में जिए और अपनी अनेक साहित्यिक रचनाओं का सर्जन किया।निजी आपरेटरों को विशेष मालगाडि़यां चलाने और बुनियादी ढांचे में निवेश की अनुमति मिलेगी।. उच्च क्षमता सामान्य प्रयोजन और विशेष प्रयोजन माल डिब्बों के लिए विशेष माल डिब्बा निवेश योजना।. दस जगहों पर आटोमोबाइल हब।. बिजली खपत कम करने के लिए रेल कर्मचारियों को 26 लाख सीएफएल वितरित करेगी रेलवे।. हरित शौचालयों के साथ दस रेक शुरू किए जाएंगे।. छह उच्च गति यात्री गलियारों की पहचान की गई है। इन पर आगे की कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय उच्च गति रेल प्राधिकरण की स्थापना की जाएगी।. बांग्लादेश छोर पर अखौरा और भारत के अगरतला के बीच रेल संपर्क।. रेल सुरक्षा बल को मजबूत बनाने के लिए उसमें पूर्व सैनिक होंगे शामिल।. मदर टेरेसा, टीपू सुल्तान, भगत सिंह के नाम पर कोलकाता मेट्रो के स्टेशनों का नामकरण और बालीगंज स्टेशन का नाम बहादुरशाह जफर के नाम पर होगा।रेल बजट की घोषणाएं:-कुछ गेज परिवर्तन परियोजनाओं में लागत के बंटवारे में निजी सार्वजनिक भागीदारी।-दूसरे राज्यों में जाकर काम करने वाले कामगारों के लिए 'कर्मभूमि' रेलगाडि़यां चलाई जाएंगी।-अहमदाबाद और उधमपुर के बीच नई 'जन्मभूमि' रेलगाडि़यां चलेगी।-रवींद्रनाथ टैगोर की 150वीं जयंती मनाने के लिए 'भारत तीर्थ' विशेष रेलगाड़ी पूरे देश में चलाई जाएगी।-सिक्किम की राजधानी गंगटोक को रेलमार्ग द्वारा रंगपो से जोड़ा जाएगा।-हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर से जम्मू एवं कश्मीर के लेह तक रेल मार्ग का विस्तार किया जाएगा।-अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के डिगलीपुर को रेलमार्ग द्वारा पोर्ट ब्लेयर से जोड़ा जाएगा।- वर्ष 2011 में रवींद्रनाथ टैगोर की 150वीं जयंती पर पश्चिम बंगाल से विशेष रेलगाड़ी बांग्लादेश जाएगी।- 4,411 करोड़ रुपये के आवंटन से वर्ष 2010-11 में विस्तार पर जोर।-छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से रेलवे पर पड़ा 55,000 करोड़ रुपये का बोझ।-वर्ष 2009-10 में सकल आय 88,281 करोड़ रुपये रही।-वर्ष 2009-10 में क्रियान्वयन खर्च 83,440 करोड़ रुपये रहा।- वर्ष 2010-11 के दौरान 87,100 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान।- कश्मीर रेल लिंक को सोपोर तक बढ़ाया जाएगा।- वर्ष 2009-10 में शुद्ध मुनाफा 1328 करोड़ रुपये रहने का अनुमान।- 10 अधीनस्थ ऑटोमोबाइल केंद्रों की स्थापना होगी।- ऊर्जा बचाने वाली 2.2 करोड़ सीएफएल लाइट्स वितरित की गई।-रेलवे की परियोजनाओं के लिए जमीन लिए जाने वाले परिवार के एक सदस्य को नौकरी देना का नीतिगत फैसला।- उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम माल ढुलाई गलियारे का निर्माण किया जाएगा।- अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त अधिक अस्पताल खोल जाएंगे।-80,000 महिला कर्मचारियों के बच्चों के लिए शिक्षा सुविधाओं का विकास किया जाएगा।-गैंगमेन के लिए विशेष सुविधाओं की स्थापना की जाएगी।-रेलवे की कारपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के तहत लाइसेंसधारी कूलियों के लिए बीमा की सुविधा।-भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और रक्षा शोध और विकास संगठन के साथ मिलकर रेलवे शोध केंद्र की स्थापना की जाएगी।-नीतियों के निर्माण में कर्मचारी संगठनों को शामिल किया जाएगा।- चेन्नई स्थिति एकीकृत डिब्बा कारखाना को आधुनिक बनाया जाएगा।- मुंबई में नया डिब्बा मरम्मत केंद्र की स्थापना।-बेंगलुरू में पहियों के डिजाइन, विकास और परीक्षण केंद्र की स्थापना।- महिला यात्रियों की सुरक्षा बढ़ाई जाएगी।- पांच साल के भीतर सभी मानवरहित रेलवे क्रासिंग को मानव युक्त कर दिया जाएगा।- सड़क ओवरब्रिज के अलावा और अंडरपास का निर्माण किया जाएगा।- रेलवे सुरक्षा बल में पूर्व सैनिकों की होगी भर्ती।- पांच खेल अकादमियों की स्थापना की जाएगी, हॉकी के विकास के लिए एस्ट्रोटर्फ मुहैया करवाई जाएगी और खिलाडि़यों की नौकरी की व्यवस्था की जाएगी।- राष्ट्रमंडल खेलों में रेलवे मुख्य भागीदार होगा।-यात्री सुविधाओं को बढ़ाने के लिए विशेष प्रस्ताव।-94 स्टेशनों को उन्नत बनाया जाएगा।- निजी-सार्वजनिक भागीदारी के तहत छह नए पेय जल संयंत्र लगाए जाएंगे।- रेलवे स्टेशनों पर आधुनिक शौचालय बनाए जाएंगे।-लोगों की सहूलियत के लिए और टिकट खिड़की खोली जाएंगी।- आधुनिक सुरक्षा प्रौद्योगिकी पर जोर।-1000 किलोमीटर रेल पटरियों का निर्माण।-नए व्यापारिक मॉडल बनाए जाएंगे।- निजीकरण नहीं, रेलवे सरकार की है लेकिन व्यापारिक समुदाय की भागीदारी बढ़ेगी।-चालू वित्त वर्ष की 120 में 117 रेलगाडि़यां शुरू हो चुकी हैं। कैंसर के मरीजों को तृतीय वातानुकूलित श्रेणी (एसी-3) में निशुल्क यात्रा की सुविधा मुहैया करवाई जाएगी।
यात्री किराए में कोई वृद्धि नहीं करने की घोषणा। उर्वरक और किरोसिन के मालढुलाई किराये में प्रति वैगन 100 रुपये की कटौती की घोषणा की।रेल बजट में घोषित प्रमुख ट्रेनों की सूची में 16 भारत तीर्थ, दस दूरंतो, तीन अनारक्षित कर्मभूमि, जवानों के लिए एक जन्मभूमि गाड़ी, भारत और बांग्लादेश के बीच एक संस्कृति एक्सप्रेस ट्रेन, छह मातृभूमि महिला स्पेशल के अलावा 52 नई एक्सप्रेस ट्रेनें, 28 पैसेंजर गाडि़यां, नौ मेमू, आठ डेमू शामिल हैं।इन गाडि़यों का विस्तृत विवरण इस प्रकार है :मातृभूमि गाडिं़यां :1. दिल्ली-पानीपत2. बारासात-सियालदह3. कृष्णानगर-सियालदह4. फलकनुमा-लिंगमपल्ली5. ठाणे-वाशी6. पनवेल-नेरूल-ठाणेकर्मभूमि गाडियां :1. दरभंगा-मुंबई एक्सप्रेस : साप्ताहिक :2. गुवाहाटी-मुंबई : साप्ताहिक : वाया हावड़ा-टाटानगर-झारसुगुडा-बिलासपुर-नागपुर3. न्यू जल्पाईगुड़ी-अमृतसर : साप्ताहिक : वाया कटिहार-सीतापुरजन्मभूमि गाड़ी :1. अहमदाबाद-ऊधमपुर : साप्ताहिक :भारत तीर्थ गाडि़यां :1. हावड़ा-गया-आगरा-मथुरा-वृन्दावन-नई दिल्ली-हरिद्वार-वाराणसी-हावड़ा2. हावड़ा-चेन्नई-पुडुचेरी-मदुरै-रामेश्वरम-कन्याकुमारी-बेंगलूरू-मैसूर-चेन्नई-हावड़ा3. हावड़ा-विजग-हैदराबाद-अरकू-हावड़ा4. हावड़ा-वाराणसी-जम्मूतवी-अमृतसर-हरिद्वार-मथुरा-वृन्दावन-इलाहाबाद-हावड़ा5. हावड़ा-अजमेर-उदयपुर-जोधपुर-बीकानेर-जयपुर-हावड़ा6. मुंबई-पुणे-तिरूपति-कांचीपुरम-रामेश्वरम-मदुरै-कन्याकुमारी-पुणे-मुंबई7. पुणे-जयपुर-नाथद्वार-रणकपुर-जयपुर-मथुरा-आगरा-हरिद्वार-अमृतसर-जम्मूतवी-पुणे8. पुणे-रत्नागिरि-गोवा-बेंगलूरू-मैसूर-तिरूपति-पुणे9. अहमदाबाद-पुरी-कोलकाता-गंगासागर-वाराणसी-इलाहाबाद-इंदौर-ओंकारेश्वर-उज्जैन-अहमदाबाद10. भोपाल-द्वारका-सोमनाथ-उदयपुर-अजमेर-जोधपुर-जयपुर-मथुरा-वृन्दावन-अमृतसर-जम्मूतवी-भोपाल11. भोपाल-तिरूपति-कांचीपुरम-रामेश्वरम-मदुरै-कन्याकुमारी-त्रिवेन्द्रम-कोच्चि-भोपाल12. मदुरै-चेन्नई-कोपरगांव-मंत्रालयम-चेन्नई-मदुरै13. मदुरै-इरोड-पुणे-उज्जैन-वेरावल-नासिक-हैदराबाद-चेन्नई-मदुरै14. मदुरै-चेन्नई-जयपुर-दिल्ली-मथुरा-वृन्दावन-इलाहाबाद-वाराणसी-गया-चेन्नई-मदुरै15. मदुरै-वाराणसी-गया-पटनासाहिब-इलाहाबाद-हरिद्वार-चंडीगढ-कुरूक्षेत्र-अमृतसर-दिल्ली-मदुरै16. मदुरै-मैसूर-गोवा-मुंबई-औरंगाबाद-हैदराबाद-मदुरैलंबी दूरी की दूरंतो :1. यशवंतपुर : बेंगलूरू :-दिल्ली एसी साप्ताहिक2. मुंबई-सिकंदराबाद एसी : सप्ताह में दो बार :3. पुणे-हावड़ा एसी : सप्ताह में दो बार :4. मुंबई-एर्णाकुलम एसी : सप्ताह में दो बार :5. इंदौर-मुंबई एसी : सप्ताह में दो बार :6. जयपुर-मुंबई एसी : सप्ताह में दो बार :कम दूरी वाली दूरंतो :1. चंडीगढ़-अमृतसर2. चेन्नई-कोयंबटूर3. पुरी-हावड़ा4. हावडा-दीघालंबी दूरी की एक्सप्रेस गाडि़यां :1. सुल्तानपुर-मुंबई एक्सप्रेस : साप्ताहिक :2. सुल्तानपुर-अजमेर एक्सप्रेस : साप्ताहिक :3. आसनसोल-दीघा एक्सप्रेस : साप्ताहिक :4. हावड़ा-काटपाडी : वेल्लोर :-पुडुचेरी एक्सप्रेस : साप्ताहिक :5. किशनगंज-अजमेर एक्सप्रेस : साप्ताहिक :6. कोलकाता-अजमेर एक्सप्रेस : साप्ताहिक :7. कोलकाता-आनंदपुर साहिब-नांगलडैम एक्सप्रेस : साप्ताहिक :8. ऊना-हरिद्वार लिंक एक्सप्रेस : सप्ताह में तीन दिन :9. सिऊडी-प्रांतीक-हावड़ा एक्सप्रेस : दैनिक :10. हल्दिया-चेन्नई एक्सप्रेस : साप्ताहिक :11. हैदराबाद-अजमेर एक्सप्रेस : सप्ताह में दो दिन :12. राजगीर-हावड़ा एक्सप्रेस : सप्ताह में तीन दिन :13. मुंबई-शिरडी इंटरसिटी एक्सप्रेस : सप्ताह में तीन बार :14. हरिद्वार-मुंबई सीएसटी एसी एक्सप्रेस : सप्ताह में तीन बार :15. वलसाड-हरिद्वार एक्सप्रेस : साप्ताहिक :16. अजमेर-इंदौर लिंक एक्सप्रेस : दैनिक :17. नागरकोइल-बेंगलूरू एक्सप्रेस : साप्ताहिक :18. कानपुर-चित्रकूट एक्सप्रेस : दैनिक :19. न्यू जल्पाईगुडी-चेन्नई एक्सप्रेस : साप्ताहिक :20. दिल्ली सराय रोहिल्ला-श्रीगंगानगर एक्सप्रेस : सप्ताह में तीन दिन :21. मंगलौर-तिरूचिरापल्ली एक्सप्रेस : साप्ताहिक :22. भुवनेश्वर-पुणे एक्सप्रेस : साप्ताहिक :23. हबीबगंज-जबलपुर इंटरसिटी एक्सप्रेस : दैनिक :24. कालीकट-तिरूवनंतपुरम जन शताब्दी एक्सप्रेस : सप्ताह में पांच दिन :25. पुणे-एर्णाकुलम सुपरफास्ट : सप्ताह में दो दिन :26. कोयंबटूर-तिरूपति इंटरसिटी : सप्ताह में तीन दिन :27. शिमोगा-मैसूर इंटरसिटी : दैनिक :28. बेंगलूरू-तिरूपति इंटरसिटी : तीन दिन :29. छत्रपति शाहूजी महाराज टर्मिनस-शोलापुर एक्सप्रेस : दैनिक :30. जयपुर-पुणे एक्सप्रेस : साप्ताहिक :31. रांची-जयनगर एक्सप्रेस : सप्ताह में तीन दिन :32. मदुरै-तिरूपति एक्सप्रेस : दो दिन :33. तिरूपति-सिकंदराबाद एक्सप्रेस : दो दिन :34. संबलपुर-हावड़ा एक्सप्रेस : साप्ताहिक :35. अहमदाबाद-आगरा एक्सप्रेस : तीन दिन :36. गोंडा-मडुवाडीह इंटरसिटी : दैनिक :37. बंगलोर-हुबली हम्पी एक्सप्रेस और बंगलोर-नांदेड एक्सप्रेस लिंक की बजाय स्वतंत्र रूप से चलेंगी।38. हरिप्रिया और रायलसीमा एक्सप्रेस लिंक की बजाय स्वतंत्र ट्रेनों के रूप में चलेंगी।39. सिकंदराबाद-मनुगुरू एक्सप्रेस : तीन दिन :40. अलीपुरदुआर-लमडिंग इंटरसिटी : दैनिक :41. गुवाहाटी-मरियानी इंटरसिटी : दैनिक :42. गांधीधाम-जोधपुर एक्सप्रेस : तीन दिन :43. राजकोट-पोरबंदर एक्सप्रेस : तीन दिन :44. कोलकाता-दरभंगा एक्सप्रेस : दो दिन :45. हावडा-बेहरामपुर एक्सप्रेस : तीन दिन :46. बारीपाडा-शालीमार एक्सप्रेस : तीन दिन :47. खड़गपुर-पुरूलिया इंटरसिटी : तीन दिन :48. ग्वालियर-छिंदवाड़ा एक्सप्रेस : दो दिन :49. रामपुर हाट-सियालदह इंटरसिटी : तीन दिन :50. हावड़ा-शिरडी एक्सप्रेस : साप्ताहिक :52. पुरी-वलसाड एक्सप्रेस : एक दिन :53. पुरी-दीघा एक्सप्रेस : एक दिन :
रेलवे का निजीकरण नहीं होगा। रेलवे सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए आरपीएफ में होगा परिवर्तन। समर्पित यात्री कारिडार भी बनाए जाएंगे। मितव्ययिता के प्रयासों से 2,000 करोड़ रुपये की बचत की।

Tuesday, February 23, 2010

लोक-लुभावन होगा दीदी का बजट


रेल मंत्री ममता बनर्जी बुधवार को संसद में वर्ष 2010-2011 का रेल बजट पेश करेंगी, जिसमें वह यात्रियों को दूरंतो ट्रेनों सहित अनेक नई ट्रेनों की सौगात दे सकती हैं। बजट में यात्री किराए में फेरबदल की संभावना नहीं है।संप्रग सरकार में रेल मंत्री के तौर पर ममता द्वारा पेश किए जाने वाले इस दूसरे रेल बजट में यात्री सुविधाओं और सुरक्षा संरक्षा पर जोर रहने के साथ ही वह लोक लुभावन उपायों के जरिए आम लोगों को खुश करने का प्रयास कर सकती हैं।इस बजट में आने वाले दशक के लिए रेलवे के महत्वाकांक्षी विजन दस्तावेज को लागू करने की दिशा में उठाए जाने वाले कदमों का भी खुलाया किए जाने की उम्मीद है। इनमें रेल नेटवर्क के विस्तार, ट्रेनों की स्पीड में बढोत्तरी, रेलवे की अतिरिक्त पड़ी भूमि के वाणिज्यिक इस्तेमाल जैसे मुद्दों के संबंध में किए जाने वाले उपाय शामिल हैं।रेल मंत्री ने पिछले साल संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान श्वेत-पत्र के साथ रेलवे के लिए विजन दस्तावेज पेश किया था।इस साल के अंत में बिहार और उसके बाद आने वाले समय में पश्चिम बंगाल में होने वाले विधान सभा चुनावों को देखते हुए ममता यात्री किरायों में फेरबदल कर आम यात्रियों का दिल दुखाना नहीं चाहेंगी। वैसे भी पिछले सात वर्षो से यात्री किराए में बढ़ोत्तरी नहीं की गई है।हालांकि कुछ वस्तुओं के मालभाड़े को युक्तिसंगत बनाया जा सकता है लेकिन इस मामले में खाद्यान्न सहित रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं को अलग रखे जाने की संभावना है। साथ ही सड़क मार्ग से ढोई जाने वाली वस्तुओं को रेलवे की ओर आकर्षित करने के लिए कुछ नए उपायों की घोषणा की जा सकती है।तेज रफ्तार नान-स्टाप दूरंतो ट्रेनों की लोकप्रियता को देखते हुए इस बजट में कुछ और नई दूरंतो ट्रेनें शुरू करने की घोषणा हो सकती है। पिछले रेल बजट में ममता ने पहली बार देश के विभिन्न स्थानों से एक दर्जन से ज्यादा दूरंतो ट्रेनें चलाने की घोषणा की थी। पश्चिम बंगाल का खास तौर पर ध्यान रखते हुए इस राज्य को रेलवे की कुछ परियोजनाओं और नई ट्रेनों की सौगात मिल सकती है।रेलवे में खानपान के गिरते स्तर को लेकर लगातार मिल रही शिकायतों के मद्देनजर इस बार बजट में खानपान में सुधार लाने के बारे में कुछ घोषणाओं की उम्मीद की जा रही है।रेल परिचालन के बारे में यात्रियों तक तत्काल सूचनाएं पहुंचाने के लिए रेलवे सैटेलाइट पर ट्रांसपोंडर की व्यवस्था कर सकता है। ममता किसानों के फायदे के लिए भी कुछ घोषणाएं कर सकती हैं जिसमें रेलवे स्टेशनों के पास भंडारण की सुविधा और वातानुकूलित मालगाडि़यों की व्यवस्था आदि शामिल है।राजधानी जैसी कुछ महत्वपूर्ण ट्रेनों में चिकित्सक उपलब्ध कराए जाने की घोषणा भी की जा सकती है। साथ ही महत्वपूर्ण पर्यटक स्थलों को जोड़ने के लिए कुछ और शाही डिब्बों वाली ट्रेनें शुरू की जा सकती हैं।ट्रेन यात्रियों की सुरक्षा को खास तवज्जो देते हुए बजट में यात्री सुरक्षा को लेकर कुछ नए उपायों की घोषणा किए जाने की संभावना है। ट्रेनों और स्टेशनों पर महिला यात्रियों की सुरक्षा के लिए रेल सुरक्षा बल की एक नई महिला बटालियन के गठन की घोषणा भी हो सकती है।रेल मंत्री ने पिछले दिनों उद्योग जगत से रेलवे के ढांचागत विकास में भागीदारी करने का आह्वान किया था और उम्मीद की जा रही है कि इस बजट में सार्वजनिक निजी भागीदारी [पीपीपी] के जरिए अनेक परियोजनाओं को अंजाम दिए जाने की संभावना है।बजट में यात्री सुविधाओं को और बेहतर बनाने, ट्रेनों और रेलवे प्लेटफार्मो की साफ-सफाई और ट्रेन परिचालन में समय का पूरा पालने करने पर जोर रहने की उम्मीद की जा रही है।

Wednesday, January 20, 2010

बुंदेलखंड की प्यास कौन बुझाएगा

उत्तर प्रदेश राज्य का पिछड़ा क्षेत्र बुंदेलखंड, जिसकी सीमा मध्य प्रदेश राज्य से सटी हुई है, विकास से परे है। जिस बुंदेलखंड के विकास के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने न सिर्फ 80,000 हजार करोड़ की मांग प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से की थी बल्कि अलग बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण गठित करने की पुरजोर कोशिश की थी, अब उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की बात नहीं कही। अलग बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण गठित होने से अलग राज्य की मांग को और बल मिलता, किंतु अब ऐसा दिखाई नहीं पड़ता। क्योंकि इसके लिए दोनों राज्य तहेदिल से तैयार नहीं हैं।वैसे देखा जाए अलग राज्य बनने से नेताओं के स्वार्थ तो अवश्य पूर्ण होते हैं लेकिन क्षेत्रीय जनता ही विकास से दूर रहती है। असम को भी सात राज्यों में विभाजित करके टुकड़े तो अवश्य हो गए लेकिन वह राज्य आज भी विकास से दूर हैं। राज्यों के टुकड़े करने से विकास की कल्पना करना व्यर्थ है। प्रतिवर्ष जब हर जिले के विकास के लिए प्रोजेक्ट निर्धारित होता है तो वह धन कहां चला जाता है। क्यों नहीं इस धन का ईमानदारी से विकास कार्यो में लगाया जाता है। ठेकेदारी प्रथा में विकास के खर्चो में आए हुए धन का बंदर बांट हो जाता है। यही कारण है कि बनी हुई नई सड़कें कुछ ही महीनों के बाद खराब हो जाती हैं। सरकारी बसों की खरीद में जमकर बंदर बांट होता है। सरकारी इमारत बनाने में भी यही स्थिति है। अब तो क्षेत्रीय विकास के लिए सांसद और विधायकों के कोटे भी निर्धारित हैं। सरकार अलग से खर्च कर रही है, फिर भी विकास से क्षेत्र पिछड़े हुए हैं। इसकी वजह है कि विकास के लिए सरकारी कार्य कागजों पर ही होते हैं। और यदि विकास कार्य होगा भी तो किसी निश्चित दायरे में ही। बिहार से अलग झारखंड राज्य को गठित हुए काफी समय हो गया है किंतु वहां विकास नहीं हो पाया। वहां की जनता आज भी अपने को असुरक्षित मानती है। तेलंगाना को लेकर जो घमासान चल रहा है वह भी गलत है। सभी लोगों को मिलकर ईमानदारी से बीड़ा उठाना होगा कि क्षेत्र के विकास के लिए कार्य करूंगा। ठेकेदारी के नाम पर जनता का करोड़ों रुपए डकार नहीं जाऊंगा।बुंदेलखंड की जनता जब सूखे की चपेट में आयी थी तब कहां चली गई थी मायावती की सरकार। वहां के लोग पलायन कर रहे थे, क्यों नहीं रोका गया था उन लोगों को। बुंदेलखंड में बिजली की समस्या, पानी की समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है, जबकि वहां बिजली उत्पादन के लिए चार-चार बांध बने हुए हैं, फिर भी जनता लालटेन जलाने के लिए मजबूर है। सिंचाई के लिए पानी को बेंच दिया जाता है, लेकिन किसानों को खेत सींचने के लिए पानी नहीं मिलता। बुंदेलखंड आज भी प्यासा है। इसकी प्यास को कौन बुझाएगा। कौन बिजली की रोशनी से जगमगाहट करेगा इन गांवों को। कौन पक्की सड़कों से हर गांव को जोड़ेगा। उद्योगों के नाम कुछ नहीं है। जो उद्योग लगाए भी गए थे उनकी भी बुरी हालत है। नए उद्योग लग नहीं रहे हैं। फिर भी क्षेत्रीय जनता और क्षेत्रों की तुलना में संयम का परिचय दे रही है। मैं चाहता हूं कि बुंदेलखंड राज्य गठित भी न हो और क्षेत्र का विकास भी हो जाए।