Wednesday, December 30, 2009

तेलंगाना को लेकर आंध्र की राजनीति में उबाल

तेलंगाना मामले ने वर्ष 2009 के अंत में आंध्रप्रदेश की राजनीति में तूफान ला दिया और यही मुद्दा कांग्रेस के गले की हड्डी बन गया। कांग्रेस कोई ऐसा तरीका खोजने में लगी है, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। इसी साल राज्य ने करिश्माई मुख्यमंत्री वाइ एस राजशेखर रेड्डी को एक हेलीकाप्टर दुर्घटना में खो दिया। राज्य से कांग्रेस ने इस साल अप्रैल मई में हुए लोकसभा चुनावों में रेड्डी के नेतृत्व में बड़ी संख्या में सांसदों को केंद्र में भेजा और राज्य विधानसभा में भी सफलतापूर्वक सत्ता हासिल की। राज्य विकास के पथ पर अग्रसर हो ही रहा था कि रेड्डी के असमय निधन ने बहुत कुछ उलटफेर कर दिया। तीन सितंबर को कुरनूल की पहाडि़यों के पास नल्लामाला के जंगल में एक हेलीकाप्टर हादसे में रेड्डी मारे गए। इसके बाद राज्य एक के बाद एक संकट में घिरता गया और प्रशासनिक व्यवस्था प्रभावित होती रही। राज्य के हालात सामान्य करने का जिम्मा वरिष्ठ कांग्रेस नेता के रोजैया को सौंपा गया लेकिन वे पार्टी की अंदरूनी कलह में घिर गए क्योंकि दिवंगत मुख्यमंत्री रेड्डी के समर्थक उनके पुत्र जगनमोहन को सत्ता की बागडोर देने की मांग कर रहे थे। राज्य में लगभग दो माह तक कांग्रेस मुख्यमंत्री के मुद्दे पर विभाजित रही। एक ओर रोजैया और दूसरी ओर जगनमोहन को मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठ रही थी। आखिरकार पार्टी आलाकमान रोजैया को मुख्यमंत्री बनाने के लिए विद्रोहियों को मनाने में सफल रहा।इससे पहले कि रोजैया सब कुछ ठीक कर पाते, उन्हें पृथक तेलंगाना राज्य बनाने की मांग से दो चार होना पड़ गया। इस राजनीतिक संकट ने राज्य को क्षेत्रीय आधार पर बांट दिया और बड़े राजनीतिक दिग्गजों ने भी खुद को हाशिए पर पाया। कांग्रेस में इस मुद्दे पर खुल कर मतभेद उभरे। तेदेपा ने इस मुद्दे का विरोध किया। मुख्य विपक्षी दल प्रजाराज्यम का तेलंगाना में आधार ही खत्म हो गया और पार्टी प्रमुख अखंड राज्य को समर्थन के अपने रूख से पलटते नजर आए। अलगाववादी तेलंगाना राष्ट्र समिति के लिए यह मुद्दा ''करो या मरो'' की स्थिति ले कर आया। तेलंगाना मुद्दा कांग्रेस के गले की हड्डी बन गया और उसने यह कहते हुए इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया कि इस बारे में आम सहमति बनाने के लिए राजनीतिक दलों के साथ व्यापक विचार विमर्श करना होगा। साल की शुरूआत राज्य में विधानसभा चुनावों के साथ हुई। कांग्रेस 155 सीटें हासिल कर किसी तरह सरकार बनाने में सफल रही। तेदेपा ने 294 सदस्ईय विधानसभा में 92 सीटें जीत कर दमदार वापसी की। चिरंजीवी की पार्टी को मात्र 18 सीटें मिलीं। टीआरएस केवल दस विधानसभा सीटों पर सिमट गई। उसे लोकसभा चुनावों में केवल दो सीटें मिलीं। तेजी से जनाधार खोती टीआरएस को उसके प्रमुख के चंद्रशेखर राव ने मजबूत करने की कोशिश की और पृथक तेलंगाना की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठ गए। लेकिन राज्य की राजनीति में उबाल लाने वाला यह मुद्दा फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया।

जाते बरस में इतिहास बन गई बहुत सी बातें

अपने 365 दिनों के सफर के आखिरी दिन में पहुंच चुके वर्ष 2009 में कई ऐसी हस्तियां हमसे हमेशा के लिए दूर चली गयीं जिन्हें कभी नहीं भुलाया जा सकता। इतिहास के पन्नों पर इनके अमिट हस्ताक्षर दर्ज हैं और पीछे रह गई हैं सिर्फ यादें दादासाहेब फाल्के पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता तपन सेन का कोलकाता में 15 जनवरी को 84 साल की उम्र में निधन हो गया। उनकी उल्लेखनीय हिंदी फिल्में जिंदगी जिंदगी, सगीना, एक डाक्टर की मौत तथा डॉटर्स ऑफ द सेंचुरी हैं। भारत के आठवें राष्ट्रपति आर वेंकटरामन का 27 जनवरी को निधन हो गया। उन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था। देश के प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम की पहल करने का श्रेय उन्हें ही जाता है। 22 फरवरी को ब्रिटिश रियलिटी शो की स्टार जेड गुडी का कैंसर से निधन हो गया। रियलिटी शो 'बिगब्रदर' की, बालीवुड की अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी पर जेड गुडी की नस्ली टिप्पणी के बाद बहुत चर्चा हुई और ब्रिटिश संसद में भी इसकी गूंज हुई थी। बाद में जेड गुडी को माफी मांगनी पड़ी थी। 'कटी पतंग', 'अमर प्रेम', 'अराधना' जैसी यादगार फिल्में सिने प्रेमियों को देने वाले निर्माता निर्देशक शक्ति सामंत का मुंबई में आठ अप्रैल को निधन हो गया। बॉलीवुड में खास शैली और अलग अंदाज रखने वाले अभिनेता, निर्माता, निर्देशक फिरोज खान का 27 अप्रैल को कैंसर से निधन हो गया। कुर्बानी, जांबाज और दयावान जैसी 50 से अधिक फिल्मों में अभिनय के जौहर दिखाने वाले फिरोज खान की अन्य उल्लेखनीय फिल्में आदमी और इन्सान, अपराध, उपासना, मेला, आग आदि हैं।चित्रकला के क्षेत्र में भारत को अनूठी पहचान देने वाले प्रख्यात चित्रकार तैयब मेहता का तीन मई को मुंबई में 84 साल की उम्र में देहांत हो गया। वर्ष 2007 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। बॉलीवुड के मेगास्टार अमिताभ बच्चन को पहली हिट फिल्म ''जंजीर'' देने वाले निर्माता निर्देशक प्रकाश मेहरा का मुंबई में 17 मई को निधन हो गया। उनकी अन्य हिट फिल्मों में नमकहलाल, शराबी और लावारिस प्रमुख हैं। प्रख्यात लेखिका कमला सुरैया का पुणे के अस्पताल में 31 मई को देहांत हो गया। उनके अंग्रेजी और मलयालम लेखन को पाठकों ने खूब सराहा था। छत्तीसगढ़ की अनूठी आदिवासी संस्कृति को रंगमंच के माध्यम से से दुनिया को परिचित कराने वाले प्रख्यात रंगकर्मी हबीब तनवीर का आठ जून को निधन हो गया। रंगकर्म के पर्यायवाची कहे जाने वाले तनवीर ने अपनी अमर कृति चरण दास चोर के माध्यम से दुनिया को छत्तीसगढ़ की झलक दिखाई। पॉप किंग माइकल जैक्सन का लॉस एंजिलिस में 26 जून को निधन हो गया। 80 के दशक में अपने ब्रेक डांस से लोगों को झूमने पर मजबूर करने वाले तथा अपने संगीत से लाखों दिलों को अभिभूत करने वाले जैक्सन का देहांत उनकी बहुप्रतीक्षित वापसी ''दिस इज दैट'' से कुछ ही हफ्ते पहले हुआ। हुबली में 21 जुलाई को प्रख्यात हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की गायिका और ''किराना घराना'' की गंगू बाई हंगल का 97 साल की उम्र में देहांत हो गया। 'अनुराधा' और 'ए रास्ते हैं प्यार के' जैसी फिल्मों में अपनी खूबसूरती और अभिनय से दर्शकों की वाहवाही लूटने वाली अभिनेत्री लीला नायडू का लंबी बीमारी के बाद मुंबई में 28 जुलाई को 69 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।वर्ष 1955 में मिस इंडिया का खिताब जीतने वाली लीला का नाम वोग पत्रिका में 'दुनिया की दस सबसे खूबसूरत महिलाओं' की सूची में जयपुर की पूर्व महारानी एवं राजमाता गायत्री देवी के साथ प्रकाशित हुआ था। अगले ही दिन 29 जुलाई को गायत्री देवी का जयपुर में लम्बी बीमारी के बाद 90 साल की उम्र में निधन हो गया। गायत्री देवी जयपुर की तीसरी महारानी थी और सवाई मान सिंह :द्वितीय: की पत्नी थीं। ब्रिटिश प्रेस ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए ऐसी भारतीय महारानी बताया, जिनका जीवन 'राज' के ग्लैमर और रोमांस को समेटे हुए है। फिलीपींस की पूर्व नेता तथा लोकतांत्रिक प्रतीक मानी जाने वाली कोरैजन अकीनो का मनीला में 76 साल की उम्र में एक अगस्त को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। अकीनो ने 1986 में ''पीपुल पावर'' :जनशक्ति: नाम से व्यापक आंदोलन चलाया जिससे दिवंगत तानाशाह फर्दिनंद मारकोस का तख्ता पलट गया था। सात अगस्त को मुंबई में गीतकार गुलशन बावरा का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उन्होंने 42 साल के फिल्मी सफर में जंजीर का 'यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी' तथा उपकार का 'मेरे देश की धरती सोना उगले' जैसे अमर गीत लिखे। भारत के धुर समर्थक और अमेरिका के जाने माने डेमोक्रेट सीनेटर एडवर्ड एम कैनेडी का दिमागी कैंसर के कारण 25 अगस्त को 77 वर्ष की उम्र में अमेरिका के मैसाच्यूसेट्स के ह्यानिस पोर्ट में निधन हो गया। एडवर्ड अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के छोटे भाई थे।ऊंची उपज और अधिक प्रतिरोधक क्षमता की गेहूं किस्म विकसित कर 'हरित क्रांति' की नींव रखने वाले नोबेल पुरस्कार प्राप्त मशहूर अमेरिकी वैज्ञानिक नोरमैन बोरलॉग का 12 सितंबर को 95 वर्ष की उम्र में अमेरिका के टैक्सास में निधन हो गया। हरित क्रांति के चलते ही भारत में गेहूं का उत्पादन दुगना हुआ था और विकासशील देशों में अकाल को रोकने में मदद मिली थी। बोरलॉग को 1970 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया था। कृषि के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। उनकी कृषि तकनीक से देश को मोटे अनाज के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने में मदद मिली थी। अपने जीवनकाल में 25 लोगों को फांसी पर चढ़ाने वाले जल्लाद नाटा मलिक का कोलकाता में 14 दिसंबर को 89 साल की उम्र में निधन हो गया। करीब पांच साल पहले मलिक ने बलात्कार और हत्या के दोषी धनजंय चटर्जी को फांसी पर लटकाया था। मलिक ने 1970 के दशक में मृणाल सेन की फिल्म 'मृगया' में जल्लाद की भूमिका निभाई थी। उन्होंने टेलीविजन कार्यक्रमों और रंगमंच में भी अपने अभिनय से लोगों का भरपूर मनोरंजन किया। 'अनारकली' और 'ताजमहल' जैसी फिल्मों में निभाए अपने किरदार के लिए मशहूर अदाकारा बीना राय का छह दिसंबर को दिल का दौरा पड़ने से 78 साल की उम्र में निधन हो गया। फिल्मफेयर अवार्ड विजेता बीना राय दिवंगत अभिनेता प्रेमनाथ की पत्नी थीं।
वर्ष 2009 विदा लेने को है। इस वर्ष कई योजनाओं और परियोजनाओं को पूरा किया गया तो कुछ को हमेशा के लिए बंद करने का भी फैसला किया गया। कुछ चीजें दुर्घटनावश भी नष्ट हो गयीं। आने वाले वर्ष के लिए यह सब अतीत की बातें होंगी। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में दिखने वाली उड़नतश्तरियां अभी भी एक गुत्थी बनी हुई हैं, लेकिन ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने खर्च में कटौती उपाय के तहत अपनी उड़नतश्तरी हॉट लाइन को इस साल दिसंबर से बंद कर दिया है। वह अब इस तरह की वस्तुओं के दिखने के मामलों की जांच पड़ताल नहीं करेगी। दिसंबर के पहले सप्ताह में मंत्रालय के हॉट लाइन और इसके ईमेल खाते को बंद किया जाना ब्रिटेन के उन कई लोगों की नाराजगी का कारण बन गया जो मानते हैं कि इस तरह का शोध महत्वपूर्ण कार्य है। उत्तरी नीदरलैंड में रखी गई डच ईस्ट इंडिया कंपनी के एक जहाज की 17वीं सदी की एक प्रतिकृति अब नजर नहीं आएगी क्योंकि 30 जुलाई को यह जलकर राख हो गई। यह जहाज 1980 में कई वर्षो तक जापान के नागासाकी में रहा। वर्ष 2003 में नीदरलैंड के उत्तरी बंदरगाह डेन हेल्डर में लौटा था और तब से वह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र था। मूल जहाज का निर्माण 1649 में हुआ था। वह डच व्यापारिक कंपनी का सबसे बड़ा जहाज था। 1662 में यह जहाज मेडागास्कर के पास डूब गया था। फिर इसकी प्रतिकृति बनाई गई थी।ब्रिटेन में 30 जुलाई को एक ऐतिहासिक घटना हुई। इस दिन देश में सुप्रीम कोर्ट के गठन के साथ ही हाउस ऑफ लॉर्ड्स का मुल्क की सबसे बड़ी अपीलीय अदालत का दर्जा खत्म हो गया। हाउस ऑफ लॉर्ड्स पिछली शताब्दियों से देश की सर्वोच्च अदालत थी लेकिन लॉ लॉर्ड्स के वेस्टमिंस्टर में सुप्रीम कोर्ट में कामकाज सम्भालने के बाद स्थिति बदल गई। सुप्रीम कोर्ट का गठन देश की गोर्डन ब्राउन सरकार के संसदीय सुधार कार्यों का हिस्सा है। मुल्क में उच्चतम न्यायालय के गठन सम्बन्धी कानून वर्ष 2005 में पारित किया गया था। सुप्रीम कोर्ट में तब्दील होने की ऐतिहासिक घटना से ऐन पहले हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने अपने पास लम्बित आखिरी अपीलों पर 30 जुलाई को सुनवाई की। ब्रिटेन में एक सितंबर से घरेलू उपयोग में आने वाले 100 वाट के बल्बों के उत्पादन और आयात पर प्रतिबंध लग गया। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से आए यूरोपीय संघ के निर्देशों में संघ के सभी सदस्य देशों में 100 वाट के बल्बों के आयात पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है। ऐसे बल्बों की बिक्री सिर्फ मौजूदा स्टॉक के खत्म होने तक जारी रही।

जाते बरस में इतिहास बन गई बहुत सी बातें

पक्का इरादा ही जीत के जज्बे का जीवन रक्त है

कामयाबी और हमारे बीच सिर्फ एक दृढ़ संकल्प का फासला होता है। पक्का इरादा ही जीत के जज्बे का जीवन रक्त है और दृढ़ निश्चय करने का मतलब है कि आप मंजिल पाने की आधी जंग जीत चुके हैं। पक्के इरादे ने महात्मा गांधी को भारत की जनता में अहिंसा जैसे मुश्किल रास्ते के जरिए आजादी की अलख जगाने में निर्णायक भूमिका अदा की। दृढ़ निश्चय ने ही बराक ओबामा को अमेरिका का पहला अश्वेत राष्ट्रपति बनकर इतिहास रचने की ताकत दी और नकारात्मक रूप से ही सही लेकिर पक्के इरादे ने ही हिटलर को इतना ताकतवर बनाया कि उसकी धमक से सारी दुनिया हिल गई। प्रख्यात विचारक नॉर्मन विंसेट पील की मशहूर किताब 'द पॉवर ऑफ पॉजिटिव थिंकिंग' के मुताबिक पक्का इरादा ही जीत की प्रेरणा और मंजिल को पाने की ललक का एकमात्र आधार होता है। सारा फर्क दृढ़ निश्चय का ही होता है। अगर यह है तो सब कुछ है और अगर यह नहीं है तो कुछ भी नहीं है। दक्षिण अफ्रीका के पीटरमारित्जबर्ग में प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद तीसरी श्रेणी में सफर करने से इनकार के बाद रेलवे प्लेटफार्म पर तिरस्कारपूर्ण ढंग से फेंके गए मोहनदास करमचंद गांधी ने इस भेदभाव को दूर करने का पक्का इरादा किया और उसी निश्चय के बल पर उन्होंने दुनिया बदल डाली।अमन से जीना है तो जंग के लिए तैयार रहो, लेकिन महात्मा गांधी की अहिंसा की विचारधारा ने हिंसा को ही समाधान का रास्ता मानने की व्याप्त सोच में बदलाव किए। बेशक इसके लिए उनका संकल्प ही सबसे बड़ी प्रेरक शक्ति था। बराक ओबामा की अमेरिका का राष्ट्रपति बनने की गाथा भी पक्के इरादे के इर्द-गिर्द घूमती है। ओबामा ने कभी अश्वेतों को दोयम दर्जे का नागरिक समझने वाले देश अमेरिका का पहला अश्वेत राष्ट्रपति बनकर इतिहास रचा। वैश्विक आर्थिक मंदी की मार झेल रहे अमेरिका को मुश्किल से उबारने के लिए एक ऐसे नेता की जरूरत थी जो आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय से लबरेज हो। ओबामा ने मंदी के निवारण के लिए अपने दृढ़ निश्चय को अपने लोकप्रिय वाक्य 'यस वी कैन' में तब्दील करके अपनी जीत की इबारत लिख दी। पक्का इरादा ही विश्व इतिहास के सबसे बड़े खलनायक माने जाने वाले हिटलर की सबसे बड़ी खासियत थी। माना जाता है कि किसी भविष्यवक्ता ने उसका हाथ देखकर कहा था कि उसकी हथेली में राजयोग की रेखा नहीं है। इस पर उसने धारदार चीज से हथेली काटकर वह रेखा बना ली थी। एक साधारण सरकारी कर्मी से जर्मनी के तानाशाह तक का सफर करने वाले हिटलर को दुनिया अच्छी नजरों से नहीं देखती लेकिन उसके दृढ़ संकल्प का लोहा दुनिया कहीं न कहीं आज भी मानती है। यह सत्य है कि हमारे और मंजिल के बीच सिर्फ एक पक्के इरादे का फासला होता है और यह दृढ़ निश्चय ही व्यक्ति को साधारण से महान बनाने की पहली सीढ़ी बनता है।

Tuesday, December 29, 2009

कभी खुशी कभी गम भरा रहा बसपा के लिए यह साल

दो वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश की सत्ता में पूर्ण बहुमत से काबिज होने वाली बहुजन समाज पार्टी ने इस वर्ष हुए लोकसभा चुनावों में अपनी सुप्रीमो मायावती के लिए प्रधानमंत्री का ख्बाब देखा जो पूरा न हो सका परन्तु विधानसभा के उपचुनावों में आशातीत सफलता हासिल मिलने के बाद पार्टी के लिए यह वर्ष 'कभी खुशी कभी गम' जैसा रहा। अमेरिका के साथ हुई परमाणु संधि के कारण केन्द्र की सप्रंग सरकार से चुनावी वर्ष में अपना पल्ला झाड़ चुकी बसपा ने तीसरे मोर्चे से हाथ मिलाया और वामपंथी दलों ने मायावती को प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल करने का ऐलान करते हुए बसपा की आंखों में एक खूबसूरत सपना दे दिया। मायावती को प्रधानमंत्री का सपना दिखाकर वामपंथी दल भले ही पीछे हट गए लेकिन बसपा ने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में मायावती को प्रधानमंत्री के रुप में पेश करते हुए हवा में यह नारा भी उछाल दिया 'यूपी हुई हमारी, अब दिल्ली की बारी।' वर्ष 2007 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 403 सीटों में से 216 सीटें जीतने के बाद बसपा के रणनीतिकार वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कम से कम 55 से 60 सीटें जीतने की उम्मीद बांधे हुए थे। उन्हें पूरा भरोसा था कि दलित वोट बैंक और सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले के साथ साथ सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव से खफा मुसलमान को अपने साथ जोड़कर उत्तर प्रदेश में तीन चौथाई लोकसभा सीटें जीती जा सकती हैं, पर पासा उल्टा पड़ गया।बसपा के रणनीतिकारों का मायावती को प्रधानमंत्री बनाने का सपना तो पूरा हो न सका उल्टे पार्टी को 21 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। अपने टूटे फूटे संगठनात्मक ढांचे को लेकर दो दशकों से प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर रही कांग्रेस ने बसपा सुप्रीमो के प्रधानमंत्री बनने तथा 'सत्ता की चाभी' हासिल करने के दोनों सपनों को तोड़ दिया और सपा मुखिया मुलयाम सिंह यादव से छिटके मुसलमानों के मत अपनी ओर खींच लिए। कांग्रेस ने बसपा के दलितों वोट बैंक में भी सेंध मारी जिससे बसपा को काफी नुकसान पहुंचा। देश की सत्ता पर काबिज हो पाने में असफल बसपा सुप्रीमो मायावती ने लोकसभा परिणामों के बाद बडे़ रोष भरे शब्दों में कहा कि सभी राजनीतिक दल एक दलित की बेटी को प्रधानमंत्री के पद पर नहीं देखना चाहते। वर्ष 2009 के अंत में हुए विधानसभा के उपचुनाव में भारी सफलता ने बसपा का हौसला बुंलद कर दिया। इन चुनावों बसपा ने सपा के गढ़ में सेंध मारी और कांग्रेस के दो केन्द्रीय मंत्रियों के क्षेत्रों में भी अपनी विजय पताका फहराई। विधानसभा उपचुनाव के पहले तीन और बाद में 11 सीटों पर हुए उपचुनावों में बसपा ने क्रमश: दो और नौ सीटों पर सफलता हासिल की। विधानसभा के उपचुनावों से पहले बसपा की विधानसभा में 216 सीटें थीं। उपचुनावों में 11 सीटों पर फतह हासिल कर उसकी विधानसभा में सीटों की संख्या 227 हो गई। उत्तर प्रदेश से बाहर अपना विस्तार करने के प्रयास में बसपा ने इस साल महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड सहित अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े किए।पार्टी सुप्रीमो मायावती ने ताबड़तोड़ चुनावी रैलियां करके पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। लेकिन हरियाणा को छोड़कर किसी अन्य प्रदेश में पार्टी अपना खाता खोलने में नाकाम रही। हरियाणा में बसपा ने एक सीट जीती लेकिन उसके इकलौते विधायक ने पार्टी से किनारा करते हुए हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को अपना समर्थन देने की घोषणा कर दी। बहरहाल, बसपा ने मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित कुछ राज्यों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए कुछ स्थानों पर स्थानीय निकायों के चुनावों में पहली बार जीत दर्ज की। उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी द्वारा मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ मुरादाबाद मे भड़काऊ भाषण देने के बाद कथित बसपा समर्थकों ने डा. जोशी के लखनऊ स्थित आवास पर आगजनी की जिससे बसपा की छवि को धक्का लगा। विपक्ष के दबाव में राज्य सरकार ने इस मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंपी। इस पूरे मामले में सीबीआई जांच की मांग करते हुए कांग्रेस ने सरकार पर हमला जारी रखा। पिछले वर्ष 2008 दिसम्बर में औरेया जिले में हुए अभियंता मनोज गुप्ता हत्याकांड मामले में मुख्य अभियुक्त बसपा विधायक शेखर तिवारी के शामिल होने और पकड़े जाने तथा उन पर मुकदमें की कार्रवाई वर्ष 2009 में चलती रही। बसपा सरकार के लिए वर्ष 2009 का एक बड़ा झटका यह भी रहा जब 18 सितंबर को लखनऊ में कांशीराम स्मारक स्थल पर निर्माण रोकने के हलफनामे का उल्लंघन करने के मामले में मायावती सरकार की दलील पर उच्चतम न्यायालय ने असंतोष जाहिर करते हुए कहा कि ऐसी गतिविधियों पर रोक जारी रहेगी। स्मारक में निर्माण कार्य रोक दिया गया।वर्ष 2009 में बसपा में आने और बाहर निकाले जाने वालों का ताता लगा रहा। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले सपा के कई कद्दावर नेताओं ने मुलायम सिंह का साथ छोड़कर मायावती की बसपा का दामन थाम लिया। इनमें राज्यसभा के सदस्य शाहिद सिद्दीकी और बनवारी लाल कंछल शामिल हैं। चुनाव के कुछ ही समय के बाद मायावती ने इनमें से ज्यादातर नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया। एक समय में बसपा संस्थापक कांशीराम के निकट सहयोगी और राज्यसभा सदस्य बलिहारी बाबू को भी मायावती ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप लगाते हुए पार्टी से निष्काषित कर दिया। पलटवार करते हुए बलिहारी बाबू ने मायावती पर धोखे से राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिलवाने का आरोप लगाया और कांग्रेस में शामिल हो गए।

भाजपा के लिए यह साल 'ग्रेट फाल' का रहा

सही मायनों में भाजपा के लिए यह साल 'ग्रेट फाल' का रहा। पिछले साल दिसंबर में राजस्थान और दिल्ली से शुरू हुआ हार का सिलसिला इस साल दिसंबर में झारखंड तक जारी रहा। पार्टी लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव हारी और लालकृष्ण आडवाणी का प्रधानमंत्री बनने का सपना चकनाचूर हो गया। इसके बाद पार्टी की दूसरी पीढ़ी में अपना अपना वर्चस्व कायम करने का ऐसा घमासान मचा जिस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हस्तक्षेप करते हुए 'दिल्ली से बाहर' के व्यक्ति नितिन गडकरी को पार्टी अध्यक्ष बना दिया। आडवाणी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने पर वाजपेई-शेखावत-आडवाणी की मशहूर 'त्रिमूर्ति' में से एक भैरों सिंह शेखावत ने ही उसकी सार्वजनिक मुखालफत करते हुए कहा कि 'प्रधानमंत्री तो जनादेश से तय होगा'। शेखावत ने तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह से भी दो-दो हाथ करते हुए कहा कि जब मैं भाजपा में आया राजनाथ पैदा भी नहीं हुए थे। इसके बाद तो पार्टी में नेताओं के बीच आरोपों-प्रत्यारोपों और अनुशासनहीनता का 'खुला खेल फर्रूखाबादी' शुरू हो गया। इसी बीच भाजपा में दम घुटने की बात कहते हुए कल्याण सिंह ने पार्टी को एक बार फिर 'टा-टा' कह दिया। भाजपा को एक और बड़ा झटका मार्च में उसके लंबे समय के सहयोगी दल बीजद ने उससे किनारा करके दिया।जसवंत सिंह ने यह कह कर आडवाणी को परेशानी में डाल दिया कि संसद पर हमले के बाद सीमा पर सेना भेजा जाना ठीक निर्णय नहीं था। बाद में उन्होंने आडवाणी के इस दावे की भी हवा निकाल दी कि कंधार विमान अपहरण मामले में कुख्यात आतंकवादियों को छोड़े जाने के कैबिनेट के निर्णय में आडवाणी शामिल नहीं थे। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान ही दिल्ली के विवादास्पद व्यापारी सुधांशु मित्तल को असम का प्रभारी बनाए जाने पर राजनाथ और जेटली के बीच मनमुटाव इस हद तक बढ़ गया कि जेटली ने केन्द्रीय चुनाव समिति की बैठकों में शामिल होना तक छोड़ दिया। इसी दौरान पीलीभीत से पार्टी के उम्मीदवार वरुण गांधी के कथित मुस्लिम विरोधी भाषण ने पार्टी में दरार को और बढ़ा दिया। बाद में पार्टी के ही कुछ नेताओं ने कहा कि कांग्रेस को जिताने में 'दो गांधी बंधुओं का हाथ रहा, एक राहुल और दूसरे वरुण'। आडवाणी द्वारा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को निशाना बनाने की रणनीति और पार्टी में आपसी घमासान भाजपा को बहुत भारी पड़ी और वह 2004 के लोकसभा चुनाव में मिली 138 सीटों से घट कर 2009 में 116 सीट पर सिमट गई। इसके बाद पार्टी का अंदरूनी घमासान थमने की बजाए और उग्र हो गया। जून में दिल्ली में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में वरिष्ठ नेताओं के बीच हार के कारणों को लेकर आपस में ''तू-तू-मैं-मैं'' तक की नौबत आ गई। बैठक से पहले यशवंत सिन्हा को उनके सभी पदों से हटा दिया गया। लेकिन जसवंत सिंह ने उनका पत्र बैठक में बांटा। शौरी ने भी साथ दिया। बैठक में आडवाणी को भाजपा संसदीय दल का नेता नियुक्त किया गया और उन्होंने अरुण जेटली को राज्यसभा में विपक्ष का नेता तथा सुषमा स्वराज को लोकसभा में पार्टी का उप नेता नियुक्त किया।कार्यकारिणी और आडवाणी के इन फैसलों का यशवंत, जसवंत और शौरी ने कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि चुनाव में हार के जिम्मेदार लोगों को 'सज़ा की बजाय इनाम' दिया जा रहा है। हार की जिम्मेदारी तय करने के लिए 'छोटी मछलियों' को चुना गया। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी को पद से हटने को मजबूर किया गया। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसंधुरा राजे को प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता पद से हटने को कहा गया लेकिन कई महीने नाकों चने चबवाने के बाद ही वह अपनी शर्तो पर हटीं। बाद में शिमला में चिंतन बैठक के दौरान जिन्ना की तारीफ करने को मुद्दा बना कर जसवंत सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया। इस सबके बीच संघ ने पार्टी में अपना हस्तक्षेप बढ़ाते हुए नेतृत्व परिर्वतन का दबाव बनाया और यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह दिल्ली के जेटली, सुषमा, वेंकैया या अनंत कुमार की बजाय 60 साल से कम किसी 'बाहरी' व्यक्ति को भाजपा के शीर्ष पद पर चाहता है। संघ के दबाव में पार्टी में नेतृत्व परिर्वतन की प्रक्रिया तेज़ हो गई निर्धारित समय से पहले ही आडवाणी को विपक्ष के नेता पद से हटाने के दूसरे ही दिन नितिन गडकरी को राजनाथ के स्थान पर अध्यक्ष भी घोषित कर दिया गया। गडकरी ने कार्यभार संभालने के बाद पार्टी में 'नया वर्क कल्चर' बनाने की घोषणा की। उनका पहला बड़ा राजनीतिक निर्णय झारखंड में झामुमो के शिबू सोरेन के नेतृत्व में भाजपा के सहयोग से सरकार बनाने का है। उन्हीं शिबू सोरेन के नेतृत्व में जिनको 'दागी' बताते हुए केन्द्रीय मंत्री के रूप में हटाने की मांग को लेकर भाजपा कई दिनों तक संसद की कार्यवाही ठप कर चुकी है।

Monday, December 28, 2009

कानून के दांव पेंच में उलझा रुचिका मामला

रुचिका गिरहोत्रा कांड में यौन शोषण के दोषी हरियाणा के पूर्व डीजीपी एस. पी. एस. राठौर ने आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप हटवा दिया था। इसके अलावा उसने इस मामले की जांच कर रहे एक पूर्व सीबीआई अफसर को रिश्वत देने की भी कोशिश की थी। इस बीच, रुचिका के परिवार ने ऐलान किया है कि इस मामले में राठौर के खिलाफ ताजा केस दायर किया जाएगा, जिसमें उस पर रुचिका को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया जाएगा। उनका यह भी आरोप है कि राठौर ने अपने रुतबे का इस्तेमाल करके रुचिका को उसके स्कूल से निकलवा दिया था। हालांकि रिपोर्ट में छेड़छाड़, आत्महत्या के लिए उकसाने, रिपोर्ट में फर्जी दस्तावेज लगाने के आरोप लगाए थे। लेकिन राज्य में पुलिस का सबसे बड़े अधिकारी के पद पर रहते हुए राठौर ने जांच को प्रभावित करने का पूरा प्रयास किया। केस हल्का क्यों किया गया । हालांकि यही रुचिका मामले का मुख्य बिंदु है जिसे लेकर न्यायालय भी सक के दायरे में आ गई है। लेकिन प्रश्न यह है कि सीबीआई जांच में इतनी देरी क्यों होती है। न्याय के क्षेत्र में यह कहावत प्रचलित है कि देर से न्याय होने से न्याय नहीं मिल पाता है। आईपीसी, सीआरपीसी और पुलिस अधिनियम में बड़े स्तर पर संशोधन करने की जरूरत है। जब तक लोकप्रिय संशोधन नहीं होंगे, आम जनता इसी तरह पिसती रहेगी। शक्तिशाली लोग अपराध करके पाक बने रहेंगे। देश का चारा घोटाला को ही ले लीजिए, एक दशक हो गया है लेकिन अभी तक दोषी कुर्सियों पर बैठे हैं। सत्ता का सुख भोग रहे हैं। पुलिस थाने पर एफआईआर आसानी से दर्ज नहीं होती है। आम जनता को थाने से भगा दिया जाता है। जब एफआईआर ही दर्ज नहीं होगी तो कोर्ट में वाद कैसे चलेगा। और जब एफआईआर दर्ज होती है, तो पुलिस ही तोड़ मरोड़ कर एफआईआर दर्ज करती है। देखा जाए तो नेताओं ने आम जनता को आगे न आने के लिए ही पुलिस का सहारा लेकर उन्हें गलत केसों में फसवा देते है। देश पर शासन करने वाले ही जब घटिया किस्म के नेता होंगे तो ऐसा ही होगा। आम जनता कभी भी एक जुट नहीं हो सकती है। और जिस दिन यह एक हो गए उसी दिन देश की तस्वीर भी बदल जाएगी। यदि रुचिका का परिवार राठौड़ को कड़ी सजा दिलवाना चाहता है तो राठौड़ भी कम कलाकार नहीं है कि वह चुप बैठा होगा, वह भी एक कदम आगे चल रहा होगा। इसके अलावा राठौर की सहायता करने वाले कुछ तत्व भी थे जो यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि उसके खिलाफ ऐसे आरोप न लगें। रुचिका के पिता ने कहा कि सीबीआई ने पहले यह आरोप नहीं लगाया इसी लिए राठौर कड़ी सजा से बच गया। अब आईपीसी की धारा 306 के तहत राठौर के खिलाफ केस दर्ज करेंगे। इस मामले में राठौर के वकील अजय जैन ने कहा है कि रुचिका मामले को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की कोशिश कामयाब नहीं होगी क्योंकि ये आरोप तथ्यों के सामने ठहर नहीं पाएंगे।

Sunday, December 27, 2009

ग्रहणों से होगा नए साल का आगाज




31 दिसंबर को रात बारह बजे के बाद जब दुनिया नए साल 2010 के जश्न में डूब ही रही होगी, आंशिक चंद्रग्रहण के दौरान देश में चांद का लगभग आधा हिस्सा थोड़ी देर के लिए धरती के 'आगोश' में समाता दिखाई देगा। सौरमंडल के मुखिया सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की 'त्रिमूर्ति' की अद्भुत लुकाछिपी का नजारा 15 जनवरी 2010 को एक बार फिर निहारा जा सकेगा। इस दिन खंडग्रास सूर्यग्रहण के दौरान चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाएगा।आंशिक चंद्र ग्रहण की शुरूआत 31 दिसंबर को भारतीय समय के मुताबिक रात 12 बजकर 22 मिनट से होगी। चंद्रग्रहण रात एक बजकर 24 मिनट पर खत्म होगा।भारत में आंशिक चंद्रग्रहण रात 12 बजकर 53 मिनट पर अपने चरम स्तर पर होगा। इस दौरान देश में चांद के करीब पचास प्रतिशत भाग को कुछ देर के लिए पृथ्वी की छाया से ढंका देखा जा सकेगा। चंद्रग्रहण तब होता है, जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है। इस स्थिति में चंद्रमा पृथ्वी की ओट में आ जाता है, जिससे उस पर सूर्य की रोशनी नहीं पड़ पाती है। आंशिक चंद्रग्रहण के बाद 15 जनवरी 2010 को खंडग्रास सूर्यग्रहण होगा। इससे नए वर्ष के पहले महीने में दुर्लभ खगोलीय संयोग के 'चार चांद' लग जाएंगे।भारत में खंडग्रास सूर्यग्रहण सुबह 11 बजकर पांच मिनट से दोपहर तीन बजकर 30 मिनट तक दिखाई देगा। खंडग्रास सूर्यग्रहण के चरम स्तर पर सूर्य के 61 प्रतिशत से लेकर 92 प्रतिशत हिस्से को चंद्रमा ढक लेगा।

Monday, December 21, 2009

2009 रिकार्ड महंगाई के रूप में याद किया जाएगा

भारत के कृषि क्षेत्र को 2009 में सूखे के साथ बाढ़ की मार भी झेलनी पड़ी। इसका नतीजा यह हुआ कि सब्जियों के साथ-साथ दालों, चीनी तथा अनाज के दाम आसमान पर पहुंच गए, जिसका खामियाजा उपभोक्तओं को भुगतना पड़ा। कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार मई में फिर केंद्रीय सत्ता पर काबिज हुई, लेकिन कृषि उत्पादों की ऊंची कीमतों पर नियंत्रण रखने में असफल रही। पिछले दो साल के दौरान कृषि क्षेत्र खाद्यान्न उत्पादन के मामले में रिकार्ड ऊंचाई पर पहुंचा था। लेकिन इस साल खाद्यान्न उत्पादन तो पिछले साल के स्तर पर भी कायम रहने में असफल रहा है। देश का आधा हिस्सा सूखे से प्रभावित रहा। यह 1972 के बाद सूखे की सबसे खराब स्थिति है। हालांकि, 1979, 1987 तथा 2002 के साल भी सूखे के लिहाज से देश के लिए काफी खराब रहे थे। देश के 13 राज्यों के 316 जिलों में दक्षिण-पश्चिम मानसून की सालाना आगमन प्रभावित हुआ, जिससे कृषि उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ। साथ ही गेहूं निर्यात के फैसले को भी वापस लिया। सरकार ने कृषि क्षेत्र को बचाने के लिए डीजल सब्सिडी तथा अतिरिक्त बिजली आपूर्ति की घोषणा की, जिससे खड़ी फसलों को बचाया जा सके। क्षोभ की बात यह है कि आजादी के 60 साल से अधिक बाद भी देश की 60 प्रतिशत कृषि बारिश के पानी पर निर्भर है। साथ ही देश में आधुनिक वेयरहाउस या कोल्ड स्टोरेज की काफी कमी है।अभी सरकार सूखे से निपटने के उपाय पूरी तरह कर भी नहीं पाई थी कि देश के चार प्रमुख खाद्य उत्पादक राज्यों :आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र: में देर से हुई बारिश से बाढ़ आ गई। सूखे तथा बाढ़ के दोहरे प्रभाव से खरीफ के खाद्यान्न उत्पादन 2.1 करोड़ टन की कमी आई। इसकी मुख्य वजह चावल उत्पादन में 1.5 करोड़ टन की कमी थी। हालांकि, केंद्र सरकार ने दावा किया कि उसके पास राशन की दुकानों से बिक्री के लिए क्फ् महीने का खाद्यान्न का भंडार है, लेकिन इसके बावजूद खाद्य मुद्रास्फीति साल के अंत तक 19.95 प्रतिशत के दस साल के शीर्ष स्तर पर पहुंच गई है। प्याज की कीमतों ने भी लोगों की आंखों से आंसू निकाले, वहीं आलू के दाम भी ऊंचाई पर पहुंच गए। 40 रुपए प्रति किलोग्राम के स्तर पर पहुंची चीनी की मिठास भी फीकी पड़ गई। संप्रग सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून जैसे वादों के बाद सत्ता में लौटी थी। बढ़ती कीमतों के कारण सरकार को कई बार विपक्षी दलों के हमलों का सामना करना पड़ा। यदि सालाना आधार पर देखा जाए, तो आलू के दाम 136 प्रतिशत बढ़े हैं, जबकि दालें 40 फीसद महंगी हुई। प्याज 15.4 प्रतिशत चढ़ा है। अन्य खाद्य वस्तुओं में गेहूं 14 प्रतिशत, दूध 13.6 प्रतिशत, चावल 12.7 प्रतिशत और फल 11 प्रतिशत महंगे हुए।केंद्र ने कई बार कीमतों का दोष राज्य सरकारों पर डालते हुए कहा कि वे कालाबाजारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में असफल रहे हैं। साथ ही सरकार ने तर्क दिया कि पिछले पांच साल के दौरान गेहूं और चावल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में काफी बढ़ोतरी हुई है, जिसका खुदरा कीमतों पर असर पड़ा है। इस साल भी धान की सामान्य किस्म का न्यूनतम समर्थन मूल्य 100 रुपए बढ़ाकर 1,000 रुपए प्रति क्विंटल किया गया है। इन सबके बीच सरकार ने चावल और चीनी पर आयात शुल्क खत्म कर दिया। साथ ही चीनी के वायदा कारोबार पर भी रोक लगा दी गई। सरकार ने कीमतों पर नियंत्रण के लिए चावल और चीनी को खुले बाजार में जारी करने का फैसला किया। हालांकि, इन सब नकारात्मक चीजों के बीच खाद्य तेल की कीमतें उचित स्तर पर बनी रहीं। शून्य आयात शुल्क के दौर के बीच 2008-09 के अक्तूबर में समाप्त हुए सीजन में वनस्पति तेलों का आयात 86 लाख टन के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया। गेहूं, चावल और चीनी के अलावा सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए आयातित खाद्य तेल तथा दालों की बिक्री भी शुरू की, जिससे खाद्य सब्सिडी में काफी बढ़ोतरी हुई। चालू वित्त वर्ष में खाद्य सब्सिडी के 60,000 करोड़ रुपए के पार जाने की संभावना है। 2004-05 में यह 19,000 करोड़ रुपए रही थी।

Monday, December 7, 2009

रणनीति को अंतिम रूप देने में लगे नुमाइंदे

जलवायु परिवर्तन पर कोपनहेगन में शुरू शिखर सम्मेलन के दौरान विभिन्न देशों के प्रतिनिधि कार्बनडाई आक्साइड और अन्य औद्योगिक गैसों के उत्सर्जन में कटौती के नए समझौते पर कड़ी सौदे बाजी के लिए तैयार हो रहे हैं।भारत सहित दुनिया के प्रमुख देशों द्वारा उत्सर्जन कटौती की जो घोषणा की गई है उसने ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण के लिए संधि का लक्ष्य नजदीक दिखने लगा है।इस महत्वाकांक्षी करार तक पहुंचने के लिए राजनीतिक प्रयास तेज हुए हैं, लेकिन विभिन्न देशों को इसके लिए और मेहनत करनी होगी। समय आ गया है। अगले दो सप्ताह के दौरान राष्ट्रों को नतीजा देना होगा। पिछले 17 साल में जलवायु परिवर्तन पर बातचीत में कभी भी ऐसा मौका नहीं आया जब एक साथ इतने ज्यादा देशों ने उत्सर्जन कटौती की प्रतिबद्धता जताई हो।जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय रुख में कोपनहेगन पहले ही 'जलवायु परिवर्तन की समस्या का मुकाबला करने की दिशा में दुनिया के प्रयासों में एक निर्णायक मोड़' बन चुका है। करीब 15,000 प्रतिनिधियों के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा चीन के प्रधानमंत्री वेन ज्याबाओ सहित दुनिया के 100 से ज्यादा नेता 12 दिन तक चलने वाले इस शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे हैं।

जोशी ने अब रचा क्रिकेट मैदान में इतिहास

एक वोट से विधानसभा चुनाव हार कर इतिहास रचने वाले केन्द्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज मंत्री डा सी पी जोशी ने खेल की राजनीति में कदम रखने के साथ ही राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन (आरसीए) के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार इंडियन प्रीमियर लीग के अध्यक्ष और बीसीसीआई के उपाध्यक्ष ललित मोदी को संघर्षपूर्ण मुकाबले में छह मतों से पराजित किया। आरसीए के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी सक्रिय राजनेता, केन्द्रीय मंत्री और राजस्थान प्रदेश कांगे्रस के अध्यक्ष डा सी पी जोशी ने खेल राजनीति की धुरंधर हस्ती को पटकनी दी है। डा जोशी अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिले के दिन ही अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नजर आ रहे थे। मुख्यमंत्री के नजदीकी और आरसीए से लंबे समय से जुडे़ रहे शिव चरण माली के अध्यक्ष पद से अपना नाम वापस लेने के बाद डा जोशी और ललित मोदी के बीच कांटे की टक्कर होने की प्रबल संभावना नजर आने लगी। हालांकि डा. जोशी को निर्विरोध आरसीए अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के लिए रविवार की देर रात तक कोशिशें चलीं लेकिन यह फलीभूत नहीं हो सकी।आईपीएल के जनक ललित मोदी को अपने ही घर में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। राजस्थान क्रिकेट संघ (आरसीए) की सत्ता हासिल करने की मोदी की छह महीने के भीतर दूसरी कोशिश नाकाम रही। भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) के इस कद्दावर प्रशासक को अध्यक्ष पद के चुनाव में सोमवार को केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सी. पी. जोशी ने 19-13 से मात दी। चुनाव के दौरान दोनों धड़ों के बीच झड़प भी देखी गई। बीसीसीआई उपाध्यक्ष और इंडियन प्रीमियर लीग के अध्यक्ष मोदी की यह दूसरी हार है। आरसीए अध्यक्ष के रूप में मोदी का कार्यकाल इस साल की शुरुआत में खत्म हो गया था। आरसीए के चुनाव साल भर के भीतर दूसरी बार हुए हैं क्योंकि एक मार्च को हुए चुनाव में मोदी को हराने वाले संजय दीक्षित अपने गुट को एकजुट नहीं रख सके और राज्य सरकार ने एक तदर्थ समिति का गठन किया। उच्चतम न्यायालय ने आज सोमवार को चुनाव कराने के निर्देश दिए थे जिसके लिए न्यायमूर्ति (सेवानिवृत) एन. एम. कासलीवाल को पर्यवेक्षक बनाया गया था। दीक्षित सचिव के रूप में आरसीए में लौटे हैं जिन्होंने राजेंद्र सिंह राठौड़ को 19-14 से हराया।सवाई मानसिंह स्टेडियम के भीतर जैसे ही चुनाव शुरू हुए माहौल गर्म हो गया और स्थिति समय खराब हो गई जब मोदी और जोशी के समर्थक संघ के कार्यालय के सामने ही एक दूसरे से भिड़ गए। बहुप्रतीक्षित चुनाव के लिए मतदान के बाद जैसे ही वोटों की गिनती शुरू हुई, दोनों गुटों के समर्थकों के बीच झगड़ा शुरू हो गया और बाद में पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। मोदी ने आरोप लगाते हुए कहा कि मेरे कुछ समर्थकों को पीटा गया है। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। यहां पर गुंडा तत्व है, उन्हे यहां नहीं होना चाहिए। मोदी के करीबी माने जाने वाले कोटा क्रिकेट संघ के सचिव अमिन पठान, जोधपुर क्रिकेट संघ के सचिव अंजनी माथुर और रमेश गुप्ता की पिटाई की गई है। मोदी ने कहा कि यह बड़े दु़ख की बात है कि क्रिकेट में यह सब हो रहा है। लोगों को बिना किसी कारण से धमकाया जा रहा है। राजस्थान क्रिकेट संघ में काफी समय से विवाद चल रहे हैं। एक मार्च को हुए चुनाव में संजय दीक्षित ने ललित मोदी को हरा दिया था, लेकिन संजय अपने ही गुट को एकजुट नहीं रख सके और राज्य सरकार ने क्रिकेट के कामकाज के लिए एक तदर्थ समिति का गठन कर दिया था। झगड़ा उस समय शुरू हो गया जब एक गुट के लोगों ने मोदी के साथ आरसीए परिसर में करीब आधा दर्जन सुरक्षाकर्मियों पर आपत्ति जताई और इसी के बाद दोनों गुटों में बहस शुरू हो गई जो बाद में झगड़े में बदल गई। सी. पी. जोशी ने अपने को इस विवाद से अलग करते हुए कहा कि मैं झगड़े के समय वहां नहीं था। मुझ पर किस तरह से आरोप लगाए जा सकते हैं। मैं तो केवल इतना जानता हूं दूसरे गुट के लोग सुरक्षाकर्मियों के साथ वहां गए। अगर आप वोट डालने जा रहे हैं तो सुरक्षाकर्मियों को साथ ले जाने की क्या जरूरत है।राजस्थान क्रिकेट संघ कार्यकारिणी इस प्रकार है।सीपी जोशी (अध्यक्ष), डा. विमल सोनी (डिप्टी अध्यक्ष), मानवेंद्र सिंह, राजेश कुमार माथुर, राजकुमार माथुर, सुशील शर्मा, विमल शर्मा और विवेक व्यास (सभी उपाध्यक्ष), संजय दीक्षित (सचिव), केके शर्मा, मुहम्मद इकबाल, नावेंदु त्यागी, प्रदीप नागर (सभी संयुक्त सचिव), महेंद्र शर्मा (कोषाध्यक्ष), बालकृष्ण उपाध्याय, फारूक अहमद, करुणेष जोशी और शक्ति सिंह राठौर (सभी आयोजक सचिव), देव राम चौधरी ्र मेघदूत पुष्कर्णा और एन. पाल सिंह (सभी कार्यकारिणी सदस्य)।

Sunday, December 6, 2009

आसाराम बापू के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज


संत आसाराम बापू और दो अन्य के खिलाफ उनके एक पूर्व अनुयायी की हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया है। शनिवार देर रात साबरमती के रामनगर इलाके में दो अज्ञात व्यक्तियों ने राजू चांडक पर गोलियां चलाईं। इस मामले में एक एफआईआर दर्ज की गई है। चांडक के बयान के मुताबिक, आसाराम को प्रमुख आरोपी बनाया गया है। उन्हीं के कहने पर दो व्यक्तियों ने चांडक पर मोटरसाइकल से घर लौटते समय गोलियां चलाईं। चांडक वही शख्स है जो आश्रम के खिलाफ डी. के. त्रिवेदी आयोग के सामने पेश हुआ था। यह आयोग आश्रम में पढ़ने वाले दो छात्रों दीपेश और अभिषेक वाघेला की रहस्यमयी मौतों के मामले की जांच कर रहा है। साबरमती नदी के किनारे से लापता होने के दो दिन बाद इन दोनों के शव बरामद किए गए थे। बाद में राज्य सीआईडी ने आश्रम के सात शिष्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उन पर गैर इरादतन हत्या और लापरवाही का मामला दर्ज किया था। हालांकि शिष्यों की एफआईआर खारिज करने की याचिका के बाद गुजरात हाई कोर्ट ने केस की जांच पर स्टे लगा दिया था। चांडक को कंधे और छाती में गोलियां लगीं। उसे एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसका ऑपरेशन हुआ। उसकी हालत स्थिर बताई जाती है। पुलिस ने बताया कि तीनों के खिलाफ हत्या के प्रयास और आपराधिक साजिश का मामला दर्ज किया गया है। अपराध में पिस्तौल का इस्तेमाल होने की वजह से शस्त्र अधिनियम के तहत भी आरोप लगाए गए हैं। पुलिस के मुताबिक, मामले की जांच की जा रही है पर हमले का कारण अब तक पता नहीं लगा है। आसाराम और उनके अनुयायी पहले भी विवादों में घिर चुके हैं। जुलाई 2008 में अहमदाबाद के उनके आश्रम में दो छात्र रहस्यमय हालात में मृत पाए गए थे। आश्रम पर आरोप लगने के बाद आसाराम के अनुयायियों ने खूब हंगामा किया और स्थानीय लोगों ने उनकी पिटाई कर दी। उनके अनुयायियों पर सूरत में जमीन हड़पने के भी आरोप हैं। पिछले माह उनके करीब 200 अनुयायियों को एक रैली के दौरान पुलिस पर पथराव करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।