Thursday, July 31, 2008

पाक भी एटमी डील का इच्छुक

परमाणु करार पर भारत में प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी सरकार को दांव पर लगा दी थी किंतु सरकार कैसे बची इसे सभी लोग जान गए हैं क्या अमेरिका के साथ इस तरह के करार पर पाकिस्तान में हंगामें नहीं होंगे, विरोध नहीं होंगे, विपक्षी नेताओं को सदन में हंगामा करने का मौका नहीं मिलेगा, अवश्य ही वह सब होगा जो भारत में हुआ। पाकिस्तान भी चाहता है कि वह भी भारत से पीछे न रहे। इस बात की क्या गारंटी पाक दे पाएगा कि वह परमाणु ऊर्जा का उपयोग सिर्फ शांति के लिए करेगा। पाक तो अमेरिका से कहता कुछ और है और करता कुछ और है। इस बात की भी पूरी संभावना है कि वह भारत के लिए परमाणु बम का उपयोग करे। यह तो जग जाहिर हो चुका है कि पाक प्रशिक्षित आतंकी भारत में हमले कर रहें हैं, निर्दोषों की हत्या कर रहे हैं, कारगिल की लड़ाई भारत को क्यों लड़नी पड़ी थी, सभी जानते हैं। एक तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाता है, तो दूसरी तरफ दुश्मनी का हाथ निकाल लेता है, यही पाक का उसूल रहा है भारत के लिए। कौन नहीं जानता है कि कश्मीर में आतंकी कहां से आ रहे हैं। कश्मीर के एक हिस्से को गुलाम कश्मीर के नाम से अपने कब्जे में किए हुए हैं। पाक हमेशा से शक के दायरे में रहा है। यह इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी ने पाकिस्तान के साथ परमाणु करार करने की इच्छा जताई है। अमरीकी दौरे पर गए गिलानी ने कहा है कि अमेरिका को पाकिस्तान के साथ भी परमाणु समझौता करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमेरिका को दो दक्षिण एशियाई देशों के साथ भेदभाव नहीं बरतना चाहिए और उसने जिस तरह से भारत के साथ असैन्य परमाणु समझौता किया है, उसी तरह पाकिस्तान के साथ भी उसे समझौते के लिए पहल करनी चाहिए। अमेरिका में विदेशी संबंधों की समिति के अध्यक्ष रिचर्ड एन हास से मुलाकात के दौरान गिलानी ने कहा कि अमेरिका एक ही महाद्वीप के दो देशों के साथ अलग-अलग व्यवहार नहीं कर सकता। यदि वो भारत को परमाणु समझौते के लिए उचित मानते हैं, तो हम अपेक्षा करते हैं कि पाकिस्तान को भी करार का मौका दिया जाना चाहिए।गिलानी ने पाकिस्तान-अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों सहित आतंकवाद, घुसपैठ, आर्थिक मुद्दों और पाकिस्तान में लोकतंत्र से जुड़े पहलुओं पर भी चर्चा की। गिलानी ने कहा है कि भारत और अफगानिस्तान के साथ ही पाकिस्तान सभी पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध बनाना चाहता है। उन्होंने कहा कि हम भारत के साथ कश्मीर सहित सभी मसलों का समाधान करना चाहते हैं।

Sunday, July 27, 2008

धमाकों से दहला देश

गुजरात के अहमदाबाद में हुए सीरियल धमाकों से पूरा देश दहल गया, लोगों में असुरक्षा की भावना घर गयी। पूरा देश ही असुरक्षित है, जब भी आतंकी देश के किसी भी कोने में ब्लास्ट करते हैं तो हाई अलर्ट जारी का दिया जाता है, इसके बाद फिर वही बल सुस्त पड़ कर रह जाता है। यह धमाका तो हाई अलर्ट के दौरान ही हुआ है क्योंकि बैंगलुरु में हुए धमाकों के बाद गुजरात में भी हाई अलर्ट जारी हो गया था फिर भी वहां सीरियल धमाके हुए यह बड़े शर्म की बात है कि आतंकी धमाका करके सुरक्षित भाग जाते हैं और हम मुंह ताकते रहते हैं। सरकार तो अपनी कार्यवाही की इति श्री करती है मरने वालों व घायल वालों को मुआवजा देकर और समिति बनाकर जो इसकी जांच करेगी। क्या इतने भर से धमाकों की आवाज बंद हो पाएगी। देखा जाए तो पूरा देश ही बारूद के ढ़ेर पर खड़ा है। सरकार को यदि कुछ करना ही है तो उसे सुरक्षा बलों को बढ़ाना होगा। प्रमुख स्थानों पर सुरक्षा बलों को हमेशा के लिए ही लगा देना चाहिए और भीड़ वाले क्षेत्रों में भी बल नियमित रूप से लोगों की ईमानदारी से चेकिंग करे यदि ऐसा नहीं होता है तो देश में इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी। अहमदाबाद धमाकों में मरने वालों की संख्या 45 हो गई है। इस बीच आज सुबह एक जिंदा बम बरामद होने से सनसनी फैल गई। हाटकेश्वर इलाके के जोगेश्वरी रोड पर आज सुबह कूड़ादान से एक जिंदा बम बरामद किया गया। अ‌र्द्धगोलाकार इस बम को लाल और नीले रंग के टेप से लपेट कर रखा गया था। बम को देखते ही लोगों में दहशत फैल गई और पुलिस को इसकी सूचना दी गई। जिसके बाद बम निरोधक दस्ता मौके पर पहुंचा। आधे घंटे की मशक्कत के बाद ढाई किलो के इस बम को बम निरोधक दस्ते ने निष्क्रिय कर दिया है। पुलिस के अनुसार बम में टाइमर भी लगा था। यदि यह बम फट जाता तो काफी जान—माल के नुकसान की आशंका जताई जा रही है। हालांकि, इस बीच सुरक्षा एजेंसियां संदेह जता रही हैं कि जिस तरह से हर धमाके के बाद जिंदा बम मिल रहे हैं, वो आतंकाकारियों कोई रणनीति भी हो सकती है। जयपुर, बंगलौर और अब अहमदाबाद में धमाकों के बाद पुलिस को जिंदा बम मिले हैं। माना जा रहा है कि पुलिस को गुमराह करने के लिए आतंकी इस तरह की रणनीति बना रहे हों। आमतौर पर धमाकों के बाद मिलने वाले बमों के आधार पर ही पुलिस जांच की दिशा में आगे बढ़ती है। इसलिए माना जा रहा है कि पुलिस को असली गुनाहगारों से दूर रखने के लिए आतंकी हर धमाके के बाद एक ऐसा बम छोड़ जाते हैं, जो पुलिस को गुमराह करने वाला होता है।
उल्लेखनीय है कि बंगलौर में शुक्रवार को हुए सिलसिलेवार धमाकों के एक दिन बाद ही अहमदाबाद में सिलसिलेवार 16 धमाके हुए, जिसमें अब तक 45 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है और सौ से ज्यादा लोगों के घायल होने की खबर है। बम जयपुर धमाकों की तर्ज पर साइकिलों पर टिफिन में रखे गए थे। धमाको पहले आतंककारियों ने ई-मेल के जरिए धमकी भेजी थी। ई—मेल मिलने के पांच मिनट के भीतर ही सारे धमाके हुए।गुजरात के अहमदाबाद में हुए धमाकों की जांच के लिए केन्द्र की मदद से संघीय जांच एजेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा है। गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने कहा कि जिस तरह से देश के विभिन्न राज्यों में धमाके हो रहे हैं, उसे देखते हुए राज्य सरकारों की आम सहमति से एक संघीय जांच एजेंसी बनाई जाएगी।अहमदाबाद में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के बाद राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली को हाई अलर्ट पर रखा गया है और शहर में करीब 3000 अतिरिक्त पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है।गुजरात के अहमदाबाद में हुये श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के बाद उत्पन्न स्थिति की समीक्षा के लिए के लिए राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में विचार विमर्श किया गया। गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री जयनारायण व्यास ने कहा कि विस्फोट में मारे गये लोगों को मंत्रिमंडल के बैठक में श्रद्धांजलि दी गयी और गुजरात के लोगों से इस मुश्किल की घड़ी में शांति और सौहार्द बनाये रखने की अपील की गयी। उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल ने केंद्र सरकार द्वारा लोगों में विश्वास बनाये रखने के लिए अहमदाबाद में सेना के फ्लैग मार्च के निर्णय की सराहना की है। व्यास ने कहा कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने मृतकों के संबंधियों को क्षतिपूर्ति के रूप में पांच लाख रूपये तथा घायलों को 50 हजार रुपये देने के लिये शीघ्र कार्रवाई करने के निर्देश दिये।

Saturday, July 26, 2008

टीम इंडिया की शर्मनाक हार

श्रीलंका में कोलंबो स्थित सिंहली स्पो‌र्ट्स क्लब क्रिकेट मैदान पर श्रीलंका के खिलाफ पहले टैस्ट मैच में टीम इंडिया पारी और 239 रन से हार गई है। मुरलीधरन और मेंडिस की घातक गेंदबाजी के आगे भारतीय टीम ने अपनी दूसरी पारी में भी घुटने टेक दिए। मुरली और मेंडिस की फिरकी के जादू के सामने भारतीय बल्लेबाज एकदम पस्त नजर आए। टीम इंडिया ने सभी विकेट खोकर 138 रन ही बना पाए।दूसरी पारी में भारत का पहला विकेट लंच से ठीक पहले सलामी बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग के रूप में गिरा। सहवाग ने 13 रन बनाए। हालांकि, सहवाग को आउट देने का फैसला विवादों के घेरे में आ गया है। इंग्लैण्ड के पूर्व क्रिकेटर ज्येफ बायकाट ने तीसरे अंपायर के फैसले पर ऊंगली उठाते हुए अंपायरिंग को एक बार फिर विवादों में खड़ा कर दिया है। पहली पारी में सबसे अधिक 56 रन बनाने वाले वीवीएस लक्ष्मण युवा स्पिन गेंदबाज मेंडिस के आगे ज्यादा देर न टिक सके और 21 रन बनाकर एलबीडब्लू हो गए। सचिन तेंदुलकर को मुरलीधरन ने दिलशान के हाथों कैच कराया। सचिन ने मात्र 12 रन ही बनाए। गौतम गंभीर 43 और सौरव गांगुली भी 4 रन बनाकर मुरली की गेंद पर आउट होकर पैवेलियन चलते बने। मेंडिस ने एक बार फिर राहुल द्रविड़ को दस रन के निजी स्कोर पर आउट किया।इससे पहले मुरलीधरन और मेंडिस की गेंदबाजी के सामने टीम इंडिया समर्पण कर बैठी और आखिरकार फॉलोआन टालने में नाकाम रही। श्रीलंका की पहली पारी के 600 रनों के जवाब में टीम इंडिया 223 रन ही ढेर हो गई। पहली पारी के आधार पर श्रीलंका को 377 रनों की बढ़त मिली थी।

Thursday, July 24, 2008

सोमनाथ दादा तुम जियो हजारों साल

लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी आज 80 वर्ष के हो गए। मनमोहन सिंह सरकार से समर्थन वापसी के मुद्दे और लोकसभा अध्यक्ष पद को लेकर हुए विवाद के बाद मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने दो दिन पहले उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज सुबह सोमनाथ के 20 अकबर रोड स्थित निवास पर एक अधिकारी भेजा और उसके जरिए जन्मदिन पर अपनी शुभकामनाएं उन्हें भेजीं। अधिकारी ने सोमनाथ को प्रधानमंत्री की ओर से एक गुलदस्ता भेंट किया। संसदीय कार्य मंत्री व्यालार रवि ने भी सोमनाथ को जन्मदिन के अवसर पर अपनी शुभकामना दी। हिंदू महासभा के नेता रहे एन सी चटर्जी के पुत्र सोमनाथ हाल में उस समय विवादों में घिर गए जब संप्रग सरकार से वामपंथी दलों द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के बाद माकपा ने उन्हें लोकसभा अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने को कहा लेकिन उन्होंने पार्टी का निर्देश नहीं माना जिसके लिए उन्हें पार्टी का कोपभाजन बनना पड़ा।कोलकाता और इंग्लैंड में शिक्षा प्राप्त करने वाले सोमनाथ ने कैम्ब्रिज से स्नातकोत्तर डिग्री और मिडल टेंपल से बार एट ला की उपाधि प्राप्त की।1968 में उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने। तीन साल बाद वह पहली बार अपने गृह नगर बोलपुर निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और सिर्फ 1984 को छोड़कर कभी पराजित नहीं हुए। 1984 में माकपा का गढ़ समझे जाने वाले जादवपुर निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस के टिकट पर ममता बनर्जी ने उन्हें पराजित किया था। चटर्जी पार्टी के एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने 1996 में प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए वयोवृद्घ माकपा नेता ज्योति बसु का समर्थन किया था। यह एक ऐसी पहल थी जिसका पार्टी के ज्यादातर नेताओं ने घोर विरोध करते हुए इसे ऐतिहासिक भूल करार दिया था।

बागी सांसदों पर कयामत

केंद्र सरकार के खिलाफ खड़ी हुयी विपक्षी पार्टियों के लोक सभा सदस्यों ने सदन में सरकार के विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में या तो मतदान किया है व क्रास वोटिंग की है या फिर सदन से अनुपस्थित रहकर परोक्ष रूप से सरकार को लाभ दिया है। इन्हीं दलों के आकाओं ने बागी सांसदों पर कार्यवाही करनी शुरू कर दी है। इसी लाईन में माकपा ने अपने वरिष्ठ साथी व लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। सोमनाथ दादा इस निर्णय से आहत इतने हुए हैं कि इस आहत का घाव भरने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उनके घर गए और उन्हें आश्वासन दिया कि संप्रग सरकार का बहुमत आपके साथ है। आप बिचलित न हों। वैसे देखा जाए हर सांसद अपने पार्टी के संविधान से बंधा हुआ है, वह उससे अलग निर्णय कैसे ले सकता है। जैसे देश एक कानून से चलता है वैसे ही सांसद भी पार्टी के नियमों से चलता है। उसे हर स्थिति में नियमों का पालन करना ही है, चाहे लोक सभा को चलाने वाला अध्यक्ष ही क्यों न हो उसे भी तो पार्टी के उल्लंघन पर घर से बाहर कर दिया गया है। उन्हें कुर्सी प्यारी थी न कि पार्टी।

Wednesday, July 23, 2008

पराजय से विचलित हुए दल

लोकसभा में मनमोहन सरकार को मिली जीत से परेशान कई दलों में बैचेनी हो गयी। बागी सांसदों के घरों पर हमले हो रहे है। धमकी मिल रही हैं। यह कैसा लोकतंत्र जहां पर एक सांसद अपनी जनता की आवाज को सदन में नहीं रख सकता। यदि रखता भी है तो उस पर पार्टी से हटकर कार्यवाही होने लगती है। सदन के अंदर हर सांसद को अंतर्आत्मा की आवाज पर वोट देने का अधिकार मिलना चाहिए न कि पार्टी लाईन पर चलने के लिए वह बाध्य हो।लोकसभा में मिली पराजय से विचलित हुए बिना नया राजनीतिक समीकरण बनाने का संकेत देते हुए बसपा और वाम सहित दस राजनीतिक दलों के नेताओं ने कांग्रेस और भाजपा का विकल्प पेश करने की घोषणा की। इसके साथ ही भारत-अमेरिका परमाणु करार, मंहगाई और कृषि संकट जैसे मुद्दों पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ने का भी ऐलान किया गया।लोक सभा में भाजपा के पांच सांसदों द्वारा क्रास वोटिंग करने और तीन सांसदों के अनुपस्थित रहने के कारण गुस्से से तिलमिलाई भाजपा ने अपने आठों बागी सांसदों को पार्टी से निलबिंत कर दिया। इधर माकपा लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी पर कार्यवाही की धमकी दे रही है। सोमनाथ ने पार्टी लाईन से हटकर देश लाईन को पहली प्राथमिकता दी।

Tuesday, July 22, 2008

सिंह बने किंग

प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह सरकार द्वारा लोकसभा में विश्वास मत हासिल कर लिए जाने के साथ ही देश के राजनीतिक और संसदीय इतिहास में एक नया रोमांचक अध्याय जुड़ गया।मनमोहन सरकार ने विश्वास मत 19 मतों के द्वारा जीत लिया है। सरकार के पक्ष में 275 मत और विपक्ष में 256 ही मत पड़े जबकि अनुपस्थित दस सदस्यों में भाजपा के आठ और टीडीपी के दो सदस्य थे। सिंह सरकार पर संकट की घड़ी में यह उपलब्धि अपने नाम लिखवाने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री बन गये है। देश के अब तक के संसदीय इतिहास में पांच प्रधानमंत्रियों ने अपनी सरकार पर छाये संकट के समय हासिल करने का प्रयास किया और पांचों ही उसमें असफल रहे। वे प्रधानमंत्री थे, मोरारजी देसाई, चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, एच.डी. देवेगौडा और अटल बिहारी वाजपेयी। इनमें से मोरार जी देसाई ने स्थिति को भांपकर सदन में विश्वास मत के प्रस्ताव पर मतदान से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। उनके बाद प्रधानमंत्री बने चरण सिंह को लोकसभा का विश्वास हासिल करना था लेकिन वह सदन का सामना ही नहीं कर सके। विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार कांग्रेस और भाजपा द्वारा विरोध में मतदान के फलस्वरूप सदन में विश्वास मत के प्रस्ताव पर हार गयी थी। देवेगौड़ा ने कांग्रेस का समर्थन नहीं मिलने के कारण विश्वास मत प्रस्ताव पर मतदान से पहले ही त्यागपत्र दे दिया था। अटल बिहारी वाजपेयी 1996 में सदन में मतदान से पहले ही अपनी 13 दिन की सरकार का इस्तीफा देने पर विवश हो गये थे जबकि 1998 में उनकी सरकार विश्वास मत का प्रस्ताव एक वोट से हार गयी थी। इसप्रकार मनमोहन सिंह ने एक इतिहास रचकर सिंह किंग बन गए।

सरकार की जीत निश्चित

लोक सभा में भाजपा के सांसद अशोक अरगल ने सपा द्वारा रिश्वत देने का न सिर्फ आरोप लगाया बल्कि एक-एक हजार के तीन करोड़ के नोटों की गड्डी दिखाकर सदन में हंगामा खड़ा कर दिया और लोक सभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को विश्वास प्रस्ताव पर जारी बहस निलंबित करनी पड़ी।सपा नेता मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह ने इस आरोप का न सिर्फ खंडन किया बल्कि भाजपा सांसद को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग कर डाली। अमर सिंह ने भाजपा पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वह इसे सिद्ध करके दिखाएं।ऐन वक्त पर जब पूरा देश संसद की कार्यवाही देख रहा हो और वहीं पर इस तरह की घटना अचानक घटे, यह देश के लिए न सिर्फ शर्म की बात है, बल्कि नेताओं के गिरते हुए आचरण से आम जनता को भी ठेस पहुंची है। सदन के अध्यक्ष की अब जिम्मेदारी बनती है कि वह इस पूरी घटना की निष्पक्ष जांच कराकर इस बेहूदापन मामले को देश के सामने लाएं।हो सकता है कि संप्रग सरकार के न गिरने पर कुछ दलों द्वारा उठाया गया कदम हो। क्योंकि कुछ दल महसूस करने लगे होंगे कि मनमोहन सरकार का गिरना मुश्किल है, ऐसी स्थिति में सरकार समर्थित सपा को बदनाम करने के लिए ही नहीं बल्कि सरकार की भी बदनामी हो और सदन बाधित हो। विपक्ष द्वारा हताशा में उठाया गया यह कदम हो सकता है। यदि उसने ऐसा किया है तो यह बहुत बड़ा शर्म का विषय है, और यदि नहीं है तो फिर इसकी निष्पक्ष जांच से दूध का दूध और पानी का पानी हो जाऐगा।देश आज परमाणु करार पर लोक सभा में सरकार की विदायी या फिर सरकार का रहना दोनों ही रूप देखना चाहती है। एशिया का सबसे बड़ा शेयर बाजार बीएसई के संवेदी सूचकांक ने जो आज उछाल पैदा की है उससे भी साबित होता है कि सरकार मतदान के जरिए गिरेगी नहीं। भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवानी ने तो एक शब्द भी अमेरिका के खिलाफ बोला तक नहीं है। यह कैसी राजनीति है कि सदन के अंदर कुछ और दिखते हैं सदन के बाहर और कुछ और दिखते हैं। देश को परमाणु ऊर्जा की कल अवश्य जरूरत पड़ेगी इसी व्यवस्था के लिए परमाणु करार किया जा रहा है। सरकार की जीत निश्चित हो चुकी है अभी कुछ छड़ों में ही इसके परिणाम सामने आ जाएंगे।

Sunday, July 20, 2008

शह-मात का खेल

22 जुलाई की घड़ी जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है, वैसे-वैसे सभी खेमों में जोड़ तोड़ की राजनीति जोर पकड़ती जा रही है। जो नेता या दल कभी एक मंच पर आने से कतराते थे आज वही हाथ मिला रहे हैं, एक सरकार को गिराने के लिए दूसरा सरकार को जिताने के लिए।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के आका शिबू सोरेन ने सरकार के पक्ष में वोट देने का निश्चय कर लिया है,उनके पार्टी के सभी पांचों सांसद संप्रग सरकार के पक्ष में मत देंगे। वहीं पर रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह ने मनमोहन सरकार के खिलाफ मत देने का निर्णय किया। सबसे बड़ी बात बसपा सुप्रीमो मायावती ने जद-एस के अध्यक्ष देवेगौड़ा से सरकार गिराने के लिए हाथ मिला लिया है, वाम दलों ने बसपा से दोस्ती का हाथ बढ़ाकर एक मजबूत खेमा तैयार कर लिया है। अब तीसरा मोर्चा-वाम दल-बसपा तीनों ने मिलकर संप्रग सरकार के खिलाफ वोट देने का निर्णय कर लिया है। इधर भाजपा का रुख इन तीनों खेमा से अलग है। वह सरकार के विरुद्ध मतदान तो देगी, लेकिन किसी खेमे की न तो अगुआई कर रही है और न ही खेमे में शामिल है। इधर संप्रग नेता छोटे-छोटे दलों पर अपनी ओर लाने के लिए तरह-तरह के डोरे डाल रहे हैं। वाम दल सरकार गिराने के लिए कटिबद्ध हैं। तीसरा मोर्चा पूरी तरह बिखर चुका है, इसके मुखिया मुलायम सिंह ने कांग्रेस को समर्थन ही नहीं दिया है बल्कि अन्य दलों के संासदों को तोड़ने पर लगे हुए हैं।परमाणु करार के पक्ष में और परमाणु करार के विपक्ष में 22 जुलाई को लोक सभा में मतदान होना है, यदि सरकार रहती है तो वाम दल समेत विपक्षी खेमा को सरकार की तरफ से जो ताने सुनने पड़ेंगे वह इन दलों को असहनीय पीड़ा जरूर देंगे। और यदि संप्रग सरकार जाती है तो उत्तर प्रदेश में न सिर्फ सपा मुखिया मुलायम सिंह और अमर सिंह का जीना मुश्किल कर देंगी मुख्यमंत्री मायावती, बल्कि वाम दल कांग्रेस पर इस तरह हावी हो जाएंगे कि वह देश की जनता के सामने अपना मुंह छिपाने की कोशिश करेंगे।हर दल के निलंबित व वागी सांसद अवश्य ही संसद में दल के विपरीत वोट डालेंगे, ऐसा प्रतीत होता है। कुछ सांसद सदन में पाला भी बदलेंगे। सरकार की हार-जीत का फैसला इसी तरह के सांसद तय करेंगे, क्योंकि इस समय सरकारी और विपक्षी दलों के सदस्यों की संख्या लगभग बराबर है, तो निश्चित है कि इसी तरह के सदस्य लोग सदन में अहम भूमिका निभाएंगे और इसी भूमिका में सरकार बच भी सकती है और जा भी सकती है। लेकिन सरकार के बचने के आसार ज्यादा नजर आ रहे हैं। शह-मात का खेल जारी है और देखना है जोर कितना बाजु-ए कातिल में है।

Friday, July 18, 2008

संप्रग सरकार के बचने के आसार

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार से जुड़े सेफगार्ड समझौते पर अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) में शामिल 35 देशों जिसमें 26 देश परमाणु आपूर्ति समूह (एनएसजी) के सामने समझौते से जुड़े पहलुओं का खुलासा करने की प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की घोषणा के बाद केंद्र की कांग्रेस नीति संप्रग सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे वाम दलों ने अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार अल्पतम में आ गयी। मनमोहन सिंह ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मुलाकात कर कहा कि हम लोक सभा में विश्वास प्रस्ताव 22 जुलाई को लाएंगे, यदि सदन का बहुमत हमारे साथ होता है तभी इस करार पर आगे कदम बढ़ाए जाएंगे अन्यथा नहीं।प्रश्न उठता है कि क्या परमाणु करार भारत और अमेरिका के बीच है या फिर मनमोहन और बुश के बीच। दोनों ही देशों की सरकारों को करार पर इतनी जल्दबाजी क्यों है। भारत की सरकार तो पूर्ण बहुमत वाली भी नहीं है। सरकार का फर्ज बनता था कि वह अपने समर्थित दलों को परमाणु करार के बारे में सारी जानकारी रखते। परमाणु करार को न्यूनतम साझा कार्यक्रम में शामिल न कर एक स्वस्थ परंपरा का उल्लंघन किया, क्या सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम को राष्ट्रहित में उचित माना जा सकता है। आज जहां मनमोहन को अपनी सरकार बचाने के लिए एक-एक वोट के लिए मोहताज होना पड़ रहा है वह स्थिति नहीं आती। यदि दोनों देशों के बीच वास्तविक रूप से करार होता तो इन दोनों नेताओं को इतनी जल्दबाजी नहीं होती, अन्यथा वह इस करार को अंतिम रूप देने के लिए नई सरकार पर छोड़ देते क्योंकि इस करार को क्रियांवयन से पहले एक लंबा रास्ता तय करना है। इससे एक बात उभर कर आती है कि ही कोई न कोई ऐसा मामला इस करार में जरूर है जो देश हित में नहीं है। भले ही एटमी वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने इस करार पर अपनी मुहर लगा दी हो फिर भी देश परमाणु करार को संदेह की दृष्टि से देख रहा है। कांग्रेस नीति संप्रग सरकार को लोक सभा में अपना बहुमत साबित करने के लिए निर्दलीय सांसदों और छोटे-छोटे दलों से सहयोग लेना पड़ रहा है।अमेरिका परमाणु करार अधिनियम 1954 की धारा 123 में इस बात का उल्लेख है कि अमेरिका उन्हीं देशों से परमाणु करार करेगा जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए हों। इस करार की लाइन में पाकिस्तान, इजरायल भी थे, किंतु दोनों देशों को दरकिनार कर भारत को चुना। जबकि भारत परमाणु अप्रसार संधि से बहुत दूर है। लेकिन भारत की खास बात रही है कि उसने परमाणु ऊर्जा का उपयोग शांति के क्षेत्र में किया है। भारत शुरू से ही एक शांति प्रिय देश है। परमाणु समझौता अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी से गुजरने के बाद अमेरिका कांग्रेस की अंतिम मुहर लगने के बाद ही इस करार का क्रियांवयन हो पाएगा। परमाणु करार मामले पर संप्रग सरकार लोक सभा में अपना बहुमत जुटाने के लिए ऐड़ी चोटी एक किए हुए है। वहीं पर विपक्षी खेमा सरकार को गिराने के लिए पुरजोर ताकत लगा रही है। वाम दलों के चारों घटक भी विपक्षी खेमा में पहुंच गए हैं, जिनकी कोशिश है सरकार को सदन में गिराने की। इसप्रकार दोनों तरफ से ही सांसदों को अपनी-अपनी तरफ करने की कोशिशें जारी हैं। सरकारी पक्ष इस करार को राष्ट्रहित बताकर निर्दलीय सांसदों व छोटे-छोटे दलों के सांसदों को प्रलोभन देकर अपनी तरफ खींच रहे हैं, जबकि विपक्षी खेमा इस करार को राष्ट्र विरोधी बताकर सरकार को उखाड़ फेंकने की जी तोड़ कोशिश कर रही है।261 सांसदों ने खुलकर सरकार के पक्ष में मत देने की विधिवत घोषणा कर दी है वहीं पर 259 सांसदों ने सरकार के विरोध में मत देने की मंशा जाहिर कर दी है, जबकि जादुई अंक पाने के लिए 271 का आंकड़ा पाना है। 22 सांसद अभी अनिर्णय की स्थिति में हैं, छोटे दलों के 11 सांसद और निर्दलीय चार सांसद ही 22 जुलाई को लोक सभा में अहम भूमिका निभाएंगे। फिलहाल दोनों ही खेमाओं की नजर इन्हीं 37 सांसदों पर लगी हुयी हैं। सरकारी पक्ष कुछ ज्यादा मजबूत दिखता है क्योंकि उसने राजकीय प्रलोभन देने शुरू कर दिए हैं, जैसे झारखंड मुक्ति मोर्चा के आका शिबू सोरेन को झारखंड की गद्दी देकर उसके बदले उनके पांच सांसदों का समर्थन पा लेना, अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोक दल के तीन सांसदों का समर्थन लेने के लिए लखनऊ हवाई अड्डा का नाम बदलकर चौधरी चरण सिंह कर देना, ममता बनर्जी का भाजपा से मेल न खाना आदि ऐसे मामले हैं जिसका लाभ सरकार को लोक सभा में देखने को मिल सकता है। अब तो सरकार दंभ भर कर कहने लगी है कि मेरे पक्ष में 280 सांसदों हैं। फिलहाल सरकार को सदन में बहुमत साबित करने के लिए एक कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है। इधर शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक उछाल मार कर कह रहा है कि सरकार बहुमत के जादुई अंक को प्राप्त कर लेगी। बहुमत साबित करने के युद्ध में यदि वाम दल हारते हैं तो इसका असर आगामी लोक सभा चुनाव पर विपरीत पड़ सकता है और यदि इनकी जीत होती है तो वाम दल समेत विपक्षी दलों को देश के आम चुनाव में अधिक लाभ मिलना तय है, लेकिन ऐसा कम ही लगता है। सदन के अंदर ऐसा जादू अवश्य काम करेगा जिसका नतीजा सरकार के पक्ष में जाएगा।

Monday, July 14, 2008

डील पर लेफ्ट हुए लाल

अमेरिका भारत परमाणु करार पर केन्द्र सरकार का सहयोगी दल लेफ्ट समेत सभी विपक्षी दल करार के विरोध में बोल रहे है। लेफ्ट ने तो अपना दिया हुआ समर्थन भी वापस ले लिया है। अल्पमत में आई सरकार को समाजवादी पार्टी ने समर्थन देकर मनमोहन सरकार को न गिरने की कसम खा ली है। सरकार ने करार का ड्राफ्ट भी जारी कर दिया है इससे एक बात तो स्पष्ट होती है की करार भारत के लिए कितना लाभ और कितना हानि देगा। यदि निस्वार्थ भावना से देखा जाय तो करार से भारत को लाभ ज्यादा मिलने जा रहा है। उयेरेनियम का भण्डार एक साल के लिए कर सकते है। शान्ति के क्षेत्र में ऊर्जा का अधिक उत्पादन कर सकते है। भारत पहले से ही एक शान्ति प्रिय देश है इस कारण से असैनिक क्षेत्र में ऊर्जा का अधिक उत्पादन कर हम और अधिक मजबूत बन सकते है। अमेरिका परमाणु अधिनिम १९५४ की धारा १२३ में लिखा है की अमेरिका उन्ही देशों से करार करेगा जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्क्षर किए । इस लाइन में पाकिस्तान , इजराएल भी थे । भारत तो परमाणु अप्रसार संधि से बहुत दूर है फिर भी अमेरिका ने भारत को चुना। यह बड़े गर्व की बात है। जब भारत को परमाणु हथियार का प्रयोग ही नही करना है तो फिर अमेरिका से परमाणु करार करना बेहतर है। लेफ्ट इस मामले में राजनीती कर रही है। उनके पास कोई मुद्दा जब नही मिला तो करार को ही बना डाला हथियार। देश के प्रमुख वैज्ञानिक कलाम साहब ने भी कहा है की करार राष्ट्र हित में है। कुछ नेताओं ने तो यहाँ तक कह दिया है की करार मुस्लिम विरोधी है। जबकि करार में धर्म जाती से कोई मतलब ही नही है। करार में राष्ट्र हित सर्वोपरि होना चाहिए। करार में यदि इसके अलावा कोई छिपा मामला है तो वह मनमोहन सरकार के लिए हानिकारक हो सकता है यदि नही है है तो यह उसके लिये बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।