Saturday, January 31, 2009

स्नानार्थियों का तांता


इसे संगम व मां गंगा की महिमा ही कही जानी चाहिए। शुक्रवार शाम तक काफी हद तक खाली नजर आ रहा माघ मेला क्षेत्र आधी रात के बाद भरना शुरू हो गया। सुबह होते होते इतनी भीड़ हो गयी कि मेला प्रशासन को कई बार श्रद्धालुओं को संगम से दूर ले जाना पड़ा। माघ मेला के चौथे महत्वपूर्ण स्नान पर्व वसंत पंचमी पर कुछ ऐसा ही नजारा रहा। वसंत पंचमी पर गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती के पावन संगम पर डुबकी मारने के लिए श्रद्धालुओं की खासी भीड़ उमड़ी व लाखों श्रद्धालुओं ने भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच संगम में डुबकी लगाई। मेला प्रशासन ने इस दौरान सत्ताईस लाख श्रद्धालुओं के स्नान का दावा किया। वसंत पंचमी का स्नान पर्व शनिवार को पूर्ण धार्मिक श्रद्धा व परंपरा के साथ मनाया गया। इस पर्व पर स्नान के लिए श्रद्धालुओं का आना शुक्रवार रात से शुरू हो गया था। शाम को खाली नजर आ रहा मेला क्षेत्र सुबह होते होते पूरी तरह स्नानार्थियों से पट गया था। परेड, झूंसी व दारागंज सहित मेला क्षेत्र की ओर जाने वाले सभी मार्ग पूरी तरह से भरे रहे। भीड़ बढ़ने के चलते मेला प्रशासन ने कई बार श्रद्धालुओं को काली सड़क स्थित पुल से झूंसी की ओर भेजा तथा त्रिवेणी मार्ग स्थित पुल से घुमा कर वापस संगम क्षेत्र पहुंचाया। इस कवायद के बीच कई श्रद्धालुओं ने संगम की जगह गंगा में ही डुबकी लगाना बेहतर समझा। वसंत पंचमी के स्नान के लिए मेला क्षेत्र में सुरक्षा की विशेष व्यवस्थाएं की गई थीं। मेला प्रबंधन ने स्नान पर्व शांतिपूर्ण व दुर्घटना विहीन ढंग से संपन्न होने का दावा करते हुए कहा कि इस दौरान करीब 27 लाख स्नानार्थियों ने संगम में डुबकी लगाई।

Thursday, January 29, 2009

भाईचारे में डूबे गांधीजी को विभाजन मंजूर न था


रघुपति राघव राजा राम गाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को रामनाम पर इस कदर भरोसा था कि वह कई बार बीमारी की स्थिति में भी उपचार के बदले रामनाम पर जोर देते थे और उन्होंने कई दफा अपनी इस भावना को व्यक्त भी किया। गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि बचपन में उन्हें भूत-प्रेत आदि से डर लगता था और इस डर को दूर करने के लिए वह रामनाम जपते थे। बचपन के भय से ही राम के प्रति लगाव का उनमें बीजारोपण हुआ। गांधीजी के आखिरी दिनों में उनके साथ रही उनकी पौत्री मनुबेन ने अपनी पुस्तक 'बापू मेरी मां' में उल्लेख किया है कि नोआखाली में आमकी नामक गांव में वे ठहरे हुए थे। वहीं उनकी तबीयत खराब हो गयी और वह बेहोश हो गए। तबीयत खराब होते ही मनु घबरा गयीं और अन्य लोगों को बुलाने लगीं। थोड़ी देर बाद होश आने पर बापू ने मनु से कहा कि वह उद्यम उन्हें अच्छा नहीं लगा। तुमसे मेरी उम्मीद यही है कि तुम और कुछ न करके सिर्फ सच्चे दिल से रामनाम लेती रहो-मेरा सच्चा डाक्टर तो मेरा राम ही है। जहां तक उसे मुझसे काम लेना होगा वहां तक वह मुझे जिलाएगा नहीं तो उठा लेगा। मनुबेन के अनुसार उसी दिन बापू ने एक बीमार बहन को पत्र लिखकर कहा कि संसार में अगर कोई अचूक दवाई है तो वह रामनाम है। यह घटना तीस जनवरी उन्नीस सौ सैंतालीस की थी यानी बापू की मृत्यु से ठीक एक साल पहले। उन्होंने लिखा है कि रामनाम में यह श्रद्धा आखिर तक बनी रही। तीस जनवरी उन्नीस सौ अड़तालीस को उन्होंने मनु से कहा था कि आखिर दम तक हमें रामनाम रटते रहना चाहिए। वह दिन बापू का आखिरी दिन साबित हुआ। महात्मा गांधी ने सत्य के साथ प्रयोग और आत्मकथा में भी ऐसा ही जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि उन्हें भूत प्रेत आदि से डर लगता था। उनकी धाय रंभा ने बताया कि इसकी दवा रामनाम है। उन्होंने आगे लिखा है कि मुझे रामनाम से अधिक श्रद्धा रंभा पर थी। इसलिए बचपन में भूत प्रेत आदि के भय से बचने के लिए मैंने रामनाम जपना शुरू किया। यह जप बहुत समय नहीं चला। पर बचपन में जो बीच बोया वह नष्ट नहीं हुआ। आज रामनाम मेरे लिए अमोघ शक्ति है। गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि बचपन में जिस चीज का उनके मन पर गहरा असर पड़ा वह था रामायण पारायण। तेरह साल की उम्र में उन्हें रामचंद्रजी के परम भक्त लाधा महाराज से रामायण सुनने का मौका मिला। वे दोहा चौपाई गाते और अर्थ समझाते। स्वयं उसके रस में लीन हो जाते और श्रोताओं को भी लीन कर देते। उनके पाठ में मुझे खूब रस आता था। यह श्रवण रामायण के प्रति मेरे अत्यधिक प्रेम की बुनियाद है। मैं तुलसीदास की रामयाण को भक्तिमार्ग का सर्वोत्तम ग्रंथ मानता हूं। गांधी की हत्या के बाद जो प्राथमिकी दर्ज करायी गयी उसमें दर्ज मनुबेन के बयान के मुताबिक गोली लगने के बाद राष्ट्रपिता के मुंह से रामनाम ही निकला। शांति के लिए नोबेल पुरस्कार नहीं मिलने की प्रमुख वजह अफ्रीका प्रवास के वक्त अफ्रीकियों के लिए संघर्ष नहीं करने और सिर्फ भारतीयों के हित की आवाज उठाने के आरोपों पर स्वयं सफाई देते हुए महात्मा गांधी ने स्पष्ट किया था कि उस देश में भारतीय खुद ही काफी दयनीय स्थिति में थे और वहां के मूल निवासी उस समय संघर्ष के लिए तैयार नहीं थे। गांधी ने अपने सहयोगी और शांति निकेतन में शिक्षाविद् रहे काका साहब कालेलकर के साथ बातचीत के क्रम में अफ्रीका की घटना का जिक्र आने पर यह सफाई दी थी जिसका जिक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा में किया है। नोबेल पुरस्कार के लिए कई बार नामित होने के बावजूद महात्मा गांधी को नोबेल पुरस्कार समिति ने दक्षिण अफ्रीका में अफ्रीकियों के लिए आवाज नहीं उठाने और असहयोग आंदोलन के दौरान हिंसक चौरीचौरा कांड के मद्देनजर नोबेल शांति पुरस्कार के लिए उनका चयन नहीं किया था। वर्ष उन्नीस सौ सैंतीस की नोबेल पुरस्कार समिति के सलाहकार जैकब वर्ममूलर ने गांधी के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें इन कारणों का उल्लेख किया गया। अफ्रीका प्रवास के दौरान अफ्रीकियों के लिए संघर्ष नहीं करने और केवल भारतीयों के हितों के लिए आवाज उठाने के आरोपों पर महात्मा गांधी ने अपने सहयोगी तथा शांति निकेतन के शिक्षाविद् रहे पद्म भूषण काका साहब कालेलकर को बताया था कि यह मेरे आत्मसंयम को दर्शाता है। दक्षिण अफ्रीका में हम भारतीय खुद ही काफी दयनीय स्थिति में थे। हमें अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था। गांधी ने कहा था कि अगर मैं अफ्रीकियों के लिए आवाज उठाता तो इससे कोई मकसद हल नहीं होता क्योंकि अफ्रीकी उस समय संघर्ष के लिए तैयार नहीं थे। बापू ने कालेलकर को बताया था कि मुझे विश्वास था कि अगर मैं अफ्रीका में अहिंसा के जरिये भारतीयों के लिए न्याय सुनिश्चित करने में सफल रहा तो इससे अफ्रीकियों को जागृति का मौन संदेश मिल जाएगा। प्रसिद्ध गांधीवादी, शिक्षाविद् तथा स्वतंत्रता सेनानी जेबी कृपलानी ने महात्मा गांधी पर अपनी पुस्तक में लिखा कि जब कोई विदेशी सत्य और अहिंसा पर संदेश देने के लिए बापू से सम्पर्क करता था तो उनका जवाब होता था-पहले मुझे भारत में बेहतर साबित होने दें तो पूरे विश्व को खुद ब खुद संदेश मिल जायेगा क्योंकि पूरा विश्व आपस में जुड़ा हुआ है। खुलापन और एक विश्व की बापू की परिकल्पना अनोखी थी। बापू ने बारह जनवरी उन्नीस सौ अट्ठाईस को यंग इंडिया में लिखा था कि मेरा लक्ष्य भारत की आजादी से कहीं बड़ा है। भारत को विदेशी दासता से मुक्त करा कर मैं पृथ्वी पर कमजोर वर्ग को दमन के खिलाफ आवाज बुलंद करने और समग्र विकास की दिशा में अग्रसर होने का संदेश देना चाहता हूं। महात्मा गांधी के जीवन दर्शन में एक विश्व खुलापन और विश्व शांति के तत्व सन्निहित हैं और इसी दर्शन के अनुरूप उन्होंने जर्मनी के खिलाफ ब्रिटेन की मदद का वायदा और भारत के विभाजन का विरोध किया। कालेलकर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि महात्मा गांधी के लेखों, भाषणों,विचार और दर्शन पर गौर करें तो स्पष्ट है कि उन्होंने एक विश्व खुलापन और विश्व शांति की अवधारणा को आत्मसात किया था। कालेलकर ने लिखा कि बापू ने मुझे बताया कि उन्नीस सौ पन्द्रह में जर्मनी के खिलाफ ब्रिटेन के नेतृत्व वाली मित्र सेना को मदद के वादे के पीछे हमारा उद्देश्य जर्मनी को पूर्ण बर्बादी से बचाना है। गांधी ने काका कालेलकर को बताया कि ब्रिटेन की मदद करके ही हम शांति सम्मेलन में बैठ सकते हैं और ब्रिटेन को बता सकते हैं कि जर्मन भी उनके भाई ही हैं और हमें एक विश्व व्यवस्था में रहना सीखना चाहिए। खुले विश्व की परिकल्पना के आधार पर ही महात्मा गांधी ने भारत के विभाजन का विरोध किया था। वसुधैव कुटुम्बकम और मानवता पर आधारित भाईचारे में दृढ़ विश्वास रखने वाले बापू हिन्दू और मुसलमान के आधार पर भारत के दो देश के रूप में विभाजन को कैसे स्वीकार कर सकते थे।

Monday, January 26, 2009

पहली बार बिना पीएम के मनाया गया गणतंत्र दिवस


देश के साठवें गणतंत्र दिवस पर राजधानी में आयोजित परेड समारोह में पहली बार प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति खली। स्वास्थ्य कारणों से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अनुपस्थित थे। ऐसा पहली बार हुआ कि कोई प्रधानमंत्री गणतंत्र दिवस पर रहा। भारतीय गणतंत्र की साठवीं सालगिरह के मौके पर यहां राजपथ पर देश के सुरक्षा बलों के अप्रतिम शौर्य की गूंज के साथ ही देश की सैन्य शक्ति और विविधतापूर्ण सांस्कृतिक विरासत के रंगबिरंगे प्रदर्शन से देशवासी राष्ट्रीय गौरव की भावना से अभिभूत हो गए। अपने अदम्य साहस और शौर्य के बलबूते दुश्मनों के छक्केछुड़ा देने और देश की आन बान और शान की रक्षा के लिए शहीद हुए ग्यारह वीर सपूतों को इस अवसर पर 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया गया। रक्षा मंत्री एके एंटनी की ओर से इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के साथ ही गणतंत्र दिवस समारोहों का शुभारंभ हुआ। करीब सवा दो घंटे चले इस कार्यक्रम के दौरान सशस्त्र सेनाओं के शौर्य और पराक्रम का नजारा मिलने के साथ देश की बहुआयामी संस्कृति की झलक भी देखने को मिली। सशस्त्र सेनाओं ने एक ओर जहां अत्याधुनिक उपकरणों का प्रदर्शन किया, वहीं सेना, नौसेना और वायुसेना के अलावा अ‌र्द्धसैनिक बलों ने मार्च पास्ट का बेहतरीन नमूना पेश किया। कार्यक्रम के दौरान स्कूली बच्चों ने भी सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए। करीब ढाई किलोमीटर लंबे राजपथ पर आयोजित भव्य रंगारंग परेड की शुरुआत में राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल इस बार के गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि कजाकस्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान एबशिवच नजरवाएव के साथ सलामी मंच पर आसीन हुयीं। इसके बाद राष्ट्रपति और मुख्य अतिथि को इक्कीस तोपों की सलामी दी गयी। राष्ट्रपति के ध्वज फहराने और राष्ट्रगान के साथ ही गणतंत्र दिवस समारोह शुरू हो गया। उत्कृष्ट बहादुरी और अनुकरणीय कर्तव्यपरायणता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए ग्यारह वीर सपूतों को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किये जाने की घोषणा किए जाने के समय उपस्थित जनसमूह की आखें नम हो गयीं। .इस बार की गणतंत्र दिवस में झांकि यां और शस्त्र प्रदर्शनों की संख्या कम रखी गयी जिससे यह समारोह दस बजे से शुरू होकर सवा बारह तक निपट गया। ..इस बार भीड अपेक्षाकृत कम आयी। ..परेड के दौरान एक बच्चे का जूता निकल गया जिसे बाद में सफाई कर्मियों ने वहां से हटाया। ..भारीभरकम अग्नि तीन प्रक्षेपास्त्र जैसे ही राजपथ पर आया वहां आये जनसमूह ने एकबारगी आंखे खुली रह गयी। ..इस बार शक्तिशाली भीष्म टैंक की गड़गड़ाहट ने परेड की अगुवाई की। ..सुरक्षा के कड़े इंतजामों के बीच जगह जगह लोगो की तलाशी ली गयी और लोगों को कुछ भी परेड स्थल पर ले जाने नहीं दिया गया। ..इस बार सूर्य किरण विमान का जलवा देखने से लोग वंचित रह गये। ..राष्ट्रपति के पति देवी सिंह शेखावत की सुंदर और लम्बी पगड़ी ने सभी का ध्यान खींचा। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार को टेलीविजन पर साठवें गणतंत्र दिवस समारोह को देखा। बाइपास सर्जरी के बाद प्रधानमंत्री एम्स में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। राजधानी दिल्ली में यातायात प्रतिबंधों के बावजूद ऐतिहासिक राजपथ पर देश के साठवें गणतंत्र दिवस समारोह को देखने के लिए लोगों का जोश पूरे उफान पर था। हालांकि यातायात प्रतिबंध के कारण लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा और समारोह स्थल तक पहुंचने के लिये कम-से-कम तीन से चार किलोमीटर तक की पैदल यात्रा करनी पड़ी। सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता करने के लिए पुलिस ने बसों को दक्षिण दिल्ली में सफदरजंग मकबरा के पास ही रोक दिया और आटो को तुगलक रोड पुलिस स्टेशन से आगे नहीं बढ़ने दिया। इसके बाद अलग-अलग श्रेणी के पासवालों को औरंगजेब रोड एवं तुगलक रोड से राजपथ तक की दूरी पैदल ही तय करनी पड़ी। प्रशासन की ओर से शटल बसों की व्यवस्था तो थी लेकिन वह सीमित थी। इन मार्गो पर सुबह आठ बजे तक कोई शटल बस नजर नहीं आयी। उस पर भी बच्चों, बूढ़ों एवं महिलाओं को भी पैदल ही इतनी दूरी तय करनी पड़ी। इतना ही नहीं लोगों को निर्देशित करने के लिये विभिन्न जगहों पर खड़े पुलिसवालों को टिकट पर अंकित कतार नंबर तक पहुंचने के लिये रूटों का पता नहीं था और उन्हें लोगों को सही जानकारी देने में कठिनाई हो रही थी। इससे लोग प्रभावित हो रहे थे।

भारतीय संस्कृति की विविधताओं से लोग हुए परिचय


भारतीय गणतंत्र के 60 वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित समारोह के दौरान राजपथ पर बिहार समेत विभिन्न राज्यों, मंत्रालयों और विभागों की ओर से झांकियां निकाली गयी। इसे समारोह में उपस्थित कजाख राष्ट्रपति, विदेशी राजदूतों, मेहमानों और कोने-कोने से आये लोगों का मन मोह लिया। समारोह के दौरान निकाली गयी झांकियों ने राजपथ पर कजाकिस्तान के राष्ट्रपति समेत वहां मौजूद तमाम लोगों को भारत की सांस्कृतिक विविधताओं तथा लोक कलाओं से परिचय कराया गया। इस अवसर पर कुल क्8 झांकियां निकाली गयी जिनमें से क्ख् राज्यों की तथा शेष विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों की थी। जबकि पिछली साल ख्म् झांकियां निकाली गयी थी। राज्यों की झांकियां आंध प्रदेश की सांस्कृतिक प्रस्तुती के साथ शुरू होकर जम्मू कश्मीर की झंाकी के साथ समाप्त हुआ। इसके बाद रेल मंत्रालय समेत कई विभागों की झांकियां प्रस्तुत की गयी। राज्यों की झांकियों में बिहार, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर, मध्य प्रदेश समेत कुल क्ख् राज्यों की झांकियां प्रस्तुत की गयी। इस अवसर पर खादी एंव ग्रामीण उद्योग आयोग की भी झंकियां निकाली गयी तथा इसमें सूत कातने वाले चरखा समेत इससे जुड़े अन्य चीजों को पेश किया गया। गणतंत्र दिवस समारोह में निकाली गई इन झांकियों के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक विविधताओं को प्रस्तुत किया गया तथा इनमें शामिल राज्यों ने अपनी अपनी संस्कृति तथा लोक कलाओं को पेश किया। बिहार की झांकी में मिथिलांचल की लोक कला के अद्भूत नजारे पेश किये गये तथा हवा में घुले मैथिली संगीत ने वहां मौजूद लोगों का मन मोह लिया। इसमें विश्व प्रसिद्ध मधुबनी पेंटिग को भी दर्शाया गया। इन झांकियों में कुछ राज्यों को छोड़कर अधिकांश राज्यों की झांकियां पिछले साल की तरह ही थीं तथा उनके प्रदर्शन में रचनात्मकता का अभाव दिखा तथा लोगों के बीच इसको लेकर कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं देखी गयी। हालांकि महाराष्ट्र की झांकी में गाय के प्रतीकात्मक रूप को शामिल कर बेहतर नजारा पेश किया गया जिसे खासकर बच्चों ने खूब पसंद किया तथा हाथ हिलाकर कलाकारों का अभिवादन किया।

Sunday, January 25, 2009

गणतंत्र दिवस पर पहली बार सूर्य ग्रहण


भारत में गणतंत्र दिवस मनाये जाने के बाद से पहली बार कल सूर्य ग्रहण के दौरान पूरे देश में ग्रहण की काली छाया में समारोह आयोजित किये जायेगें। भारतीय ज्योतिषियों के रिकार्ड अनुसार पिछले डेढ़ सौ सालों के बाद 26जनवरी को सूर्य ग्रहण आया है। इसके पूर्व जनवरी माह में 1934में 15जनवरी को सूर्य ग्रहण था लेकिन आजादी के बाद व गणतंत्र दिवस के मौके पर 60 वें वर्ष में पहली बार ख्म् जनवरी को सूर्य ग्रहण होगा। पिछले डेढ़ सौ वर्ष में पहली बार 60 वें गणतंत्र दिवस पर यह सूर्य ग्रहण देखने को मिल रहा है। इसके पूर्व 1934 में 15 जनवरी माघ कृष्ण पक्ष सोमवती एवं मौनी अमावस्या के संयोग पर देखने को मिला था। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सूर्य ग्रहण का असर हर मानव जीव पर पडे़गा। त्रिवेद्रम में सबसे पहले यह ग्रहण दो बजकर क्क् मिनिट पर दिखाई देगा तथा चार बजकर सात मिनिट पर यह पांडिचेरी में नजर आयेगा। इसके बाद भारत में यह कहीं भी दिखाई नहीं देगा। ज्योतिष के अनुसार श्रवण नक्षत्र एवं मकर राशि पर यह सूर्य ग्रहण हो रहा है जिसका असर छह माह से अधिक समय तक रहेगा। भारत की राशि भी मकर है।

Thursday, January 22, 2009

शाहजहां ने आज के दिन ही अंतिम सांस ली थी


मुगल शहंशाह शाहजहां ने आज के दिन ही अपनी बेगम मुमताज की यादगार निशानी मुहब्बत की बेमिसाल इमारत ताजमहल को निहार कर अंतिम सांस ली थी। प्रसिद्ध इतिहासकार यदुनाथ सरकार और रघुवीर सिंह लिखित 'शाहजहां की अंतिम बीमारी और मृत्यु' में इस बात का उल्लेख है कि आज के दिन 22 जनवरी 1666 को 74 बर्षीय मुगल सम्राट शाहजहां ने मरहूम बेगम मुमताज की याद में बनाये गये अलौकिक ताजमहल को अंतिम बार निहारा था। जब शाहजहां अपने पुत्र औरंगजेब की यातनापूर्ण कैद भरी जिन्दगी से तंग आ चुके और अहसास हुआ कि इस दुनिया को वह कभी भी अलविदा कह सकता है तो मुगल बादशाह ने अल्ला का शुक्रिया अदा किया और खुदा को उसकी सारी कृपाओं के लिये धन्यवाद दिया। शाहजहां ने अन्त में अंतिम क्रिया संबधी सभी आवश्यक निर्देश दिए। अपनी जीवित दोनों बेगमों अकबरावादी महल और फतेहपुरी महल तथा अपनी बड़ी बेटी जहांआरा एवं राजमहल की अन्य महिलाओं को वह मृत्यु से पूर्व दिलासा देते रहे जो उसके चारों ओर बैठकर रो रही थीं। शाहजहां ने मृत्यु से पूर्व अपना वसीयतनामा लिखकर अपने संबंधियों और नौकरों को इनाम दिये तथा अन्त में कुरान पढ़ने के निर्देश दिए। अपने होशो हवाश में शाहजहां ने मुमताज की याद में बनाये गये ताजमहल को मुस्समन बुर्ज से एक बार टकटकी लगाकर देखा और कलमा पढ़कर फिर उसने इबादत की कि 'ऐ खुदा इस लोक में मेरी गति सुधार ले और परलोक में मुझे नरक यातना से बचा ले' उसके कुछ क्षण बाद वह परलोक सिधार गए। तब शाम के सात बज रहे थे। शाहजहां चाहते थे कि उसे ताजमहल में दफनाया जाये जिससे वह मृत्यु के बाद भी अपनी बेगम मुमताज से दूर न रहे। शाहजहां के कैद के दिनों में मुस्समन बुर्ज के नीचे की सीढि़यों का दरबाजा ईट से बन्द कर दिया गया था। उस दीवार को तोड़कर किले के तत्कालीन अफसरों ने वह रास्ता खोला और शाहजहां का जनाजा निकाला जिसे यमुना के किनारे लगी हुई नाव में रखकर ताजमहल के यमुना किनारे वाले दरवाजे तक ले जाकर बेगम मुमताज के पास ही दफना दिया गया।

Wednesday, January 21, 2009

कठिन हैं चुनौतियां, ओबामा युग आरंभ




बराक हुसैन ओबामा ने मंगलवार को स्थानीय समयानुसार दोपहर 12 बजकर 6 मिनट पर अमेरिकी इतिहास की नई इबारत लिखी। अमेरिका के पहले अश्र्वेत राष्ट्रपति ओबामा ने देश के 44 राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। करीब 20 लाख लोग इस ऐतिहासिक पल के गवाह बने। आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहे अमेरिका को बदलाव का नारा देने वाले ओबामा से बड़ी उम्मीदें हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने अपने पहले संबोधन में कहा भी कि देश युद्ध के दौर से गुजर रहा है। अर्थव्यवस्था संकट में है। लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ रहा है। देश को इस स्थिति से उबारने के लिए कड़े फैसले लेने पड़ सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वह आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेकेंगे। उम्मीद और बदलाव की लहरों पर सवार होकर अमेरिका को बदलने निकले ओबामा को अमेरिका ने पहली बार एक अश्र्वेत अफ्रीकी के बेटे को अपना मुखिया बनाकर दासता और रंगभेद के तकलीफदेह इतिहास का बदला लेने का संकल्प दिखाया। उत्तेजना, जोश और भावुकता से सराबोर यह माहौल इस बात की गवाही के रहा था कि एक नए युग की शुरुआत होने जा रही है। ओबामा को वह कर दिखाना है, जो उनकी पीढ़ी में किसी को नहीं करना पड़ा। अमेरिका को उनसे चमत्कार की उम्मीदें हैं। अमेरिका के इतिहास में आजतक किसी भी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में इतनी भीड़ नहीं जुटी। शपथ ली तो ऐसा लग रहा था कि मानो दुनिया के एक नए दौर में प्रवेश करने से पहले सबकुछ ठहर गया हो। उन्होंने इस बात को स्वीकारा कि देश के सामने कई चुनौतियां हैं, लेकिन उन पर विजय पा ली जाएगी। भारत अपेक्षा करता है कि अमेरिका का नया प्रशासन भारत के साथ बढ़ते द्विपक्षीय सहयोग को और मजबूत करने वाला हो। वह आतंकवादी गुटों के सफाए के लिए पाकिस्तान पर और ज्यादा दबाव बनाए। असैन्य परमाणु सहयोग पर पहले की ही तरह पूरा समर्थन भारत को मिले। निशस्त्रीकरण पर भारत के रुख, खासकर परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न करने के फैसले को वह समझे। शपथ ग्रहण समारोह पर करीब 850 करोड़ रुपए खर्च हुए। ओबामा ने उसी बाइबिल पर शपथ ली जिस पर कभी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने शपथ ली थी। उन्हें देश के मुख्य न्यायाधीश जॉन जी रार्बट जूनियर ने शपथ दिलाई। अंतत: दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बन गए अश्र्वेत केन्याई पिता और श्र्वेत अमेरिका मां के बेटे बराक हुसैन ओबामा बीस जनवरी को अमेरिका नए इतिहास का साक्षी बन गया। अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा के शपथ ग्रहण समारोह के ऐतिहासिक पलों का गवाह बनने के लिये लगभग 20 लाख लोगों का हुजूम व्हाइट हाउस के इर्द गिर्द इकट्टा था। पिछले 70 सालों में सबसे भीषण आर्थिक दौर से गुजर रहे अमेरिकियों में उम्मीद की किरण पैदा करने वाले ओबामा के बदलाव की लहर पर सवार लाखों अमेरिकी देश के कोने-कोने से यहां इस यादगार लम्हें का हिस्सा बनने से लिये खिंचे चले आये। क्या गोरे और क्या काले इन सबके कदमों को कड़ाके की ठंड भी रोकने में नाकाम साबित हुई। इनके हुजूम को व्हाइट हाउस तक पंहुचाने के लिये एक हजार से अधिक बसों का इंतजाम किया गया था और ठसाठस भरी बसों में ये लोग दूर दराज के इलाकों से 12 घंटे तक का सफर तय कर यहां पंहुचे। देश के इतिहास में पहली बार किसी अश्वेत को दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति पद की शपथ लेते देखने के लिये ओबामा समर्थकों की भीड़ संसद भवन .केपिटल हिल. के बाहर तड़के ही एकत्रित होने लगी थी। मानो सभी को इस बात का पूरा एहसास था कि दिन निकलने का इंतजार किया तो पैर रखने की भी जगह नहीं मिलेगी। व्हाइट हाउस को दुल्हन की तरह सजाया गया था। ओबामा को अपनी ओर आकर्षित करने लिए। ओबामा व उनका परिवार श्वेत घर में प्रवेश कर चुका है। एक अश्र्वेत का श्वेत घर में प्रवेश करना इस बात का द्योतक है कि रंगभेद समाप्त हो चुका है। यहां पर रंगों को नहीं कामों को तबज्जो देंगे ओबामा। और इसी उम्मीद के साथ मैं उन्हें शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं।

Saturday, January 17, 2009

सदी का पहला पूर्ण सूर्य ग्रहण 22 जुलाई को


वर्तमान सदी का पहला पूर्ण सूर्य ग्रहण 22 जुलाई को होगा। यह देश में भी दिखायी देगा। वाराणसी और इलाहाबाद जिलों में इसे आसानी से देखा जा सकेगा। शेष जिलों में यह आंशिक सूर्य ग्रहण के रूप में दिखेगा। ग्रहण के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए 22जुलाई को बड़ी संख्या में देश व विदेश के वैज्ञानिक प्रभावित जिलों में जुटेंगे। २२ जुलाई को होने वाला पूर्ण सूर्य ग्रहण सूरत, इंदौर, भोपाल, जबलपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना को मिलाने वाली तीन सौ किलोमीटर की पट्टी पर दिखायी देगा। ख्ख् जुलाई को उक्त जिलों में दिन के समय अंधेरा छा जायेगा। सूर्य का आकार 'डायमंड रिंग' के रूप में दिखेगा। उक्त पट्टी के जिलों में पूर्ण सूर्य ग्रहण का समय तीन मिनट से कुछ अधिक रहेगा। उक्त पट्टी से बाहर के जिलों में केवल आंशिक सूर्य ग्रहण ही दिखायी देगा। क्या है सूर्य ग्रहण--सूर्य ग्रहण पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की वह खगोलीय स्थिति है जिसमें पृथ्वी और सूर्य के बीच चन्द्रमा आ जाता है। चन्द्रमा सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी पर आने से रोक देता है नतीजा दिन के वक्त अंधेरा छा जाता है। देश में इससे पहले 16फरवरी 1980, 24अक्टूबर 1995, 11 अगस्त 1999 को पूर्ण सूर्यग्रहण दिखायी दिया था। इस सदी का अगला सूर्य ग्रहण २०३४ को दिखायी देगा। यह आंशिक ग्रहण होगा जो केवल कश्मीर में ही दिखायी देगा।

Tuesday, January 13, 2009

मकर संक्रान्ति पर्व के साथ गणेश चतुर्थी भी

इस बार चौदह जनवरी को मकर संक्रान्ति पर्व के साथ ही माघकृष्ण गणेश चतुर्थी भी है और दोनों पर्वो के इस अनूठे समागम को शुभ माना गया है। जिस राशि में सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है उसे संक्रान्ति कहा जाता है। क्ब् जनवरी को सूर्य का धन राशि से हटकर मकर राशि में प्रवेश होता है, इसी से इसको मकर संक्रान्ति कहा जाता है। इस दिन से भगवान भुवन भास्कर का संचरण उत्तर की ओर होने लगता है। मकर संक्रान्ति से मिथुन राशि की संक्रान्ति तक के छ: महीनों का काल उत्तरायण कहा जाता है और कर्क राशि से धनुराशि तक सूर्य के संचरण का काल दक्षिणायन है। इसमें सूर्य का दक्षिण की ओर संचरण होता हैं। मकर संक्रान्ति ज्यादातर क्ब् जनवरी को ही पड़ती है। संयोगवश इसी दिन माघ कृष्ण चतुर्थी भी है जो अनूठा संयोग है। यह श्री गणेश चौथ के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन गणेश चौथ की व्रत करने वाली महिलायें चन्द्रदेव को अ‌र्घ्य प्रदान करती हैं। मकर संक्रान्ति पर्व के महत्व को गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीराम चरित मानस में अभिव्यक्त किया है- माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई।।

Thursday, January 8, 2009

पाक फंसा अपनी ही कूटनीति में

पाकिस्तान ने मुंबई हमले में पकडे़ गये आतंकवादी अजमल कसाब के पाकिस्तानी नागरिक होने की बात कबूलने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जनरल (सेवानिवृत्त) महमूद अली दुर्रानी को बर्खास्तगी करने केबाद अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र में अपने राजदूतों को स्वदेश बुला लिया है। जनरल दुर्रानी की बर्खास्तगी के बाद पाकिस्तान सरकार ने अचानक अमेरिका में अपने राजदूत हुसैन हक्कानी और संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि अब्दुल्ला हुसैन हारून को इस्लामाबाद बुलाने का फरमान जारी कर दिया। वाशिंगटन स्थित पाकिस्तानी दूतावास और संयुक्त राष्ट्र से इन राजनयिकों के इस्लामावाद रवाना होने की पुष्टि कर दी गयी। इन राजनयिकों को जनरल दुर्रानी की बर्खास्तगी के बाद कसाब को पाकिस्तानी नागरिक के रूप में स्वीकार करने के कारण अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में किरकिरी होने के बाद आगे की कूटनीतिक व्यूहरचना के लिये इस्लामाबाद बुलाया गया है। पिछले दो दिनों में अचानक तेजी से बदले घटनाक्रम पर विचारविमर्श के बाद ही पाकिस्तान मुंबई हमले में भारत के दावों का प्रतिउत्तर देगा। इतना ही नहीं कसाब को अपना नागरिक स्वीकारने के बाद अमेरिका की नजर में भी जरदारी सरकार की अपने मंत्रियों और आला अधिकारियों पर मजबूत नियंत्रण न होने की बात भी उजागर हुयी है। मुंबई हमले जैसे अतिसंवेदनशील मामले में जरदारी सरकार अपने आला अधिकारियों और मंत्रियों की जुबान पर लगाम कस पाने में नाकाम रही और इससे अमेरिका के लिये भी असहज स्थिति पैदा होती दिखी। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार महमूद अली दुर्रानी को बर्खास्त कर दिया गया है। प्रधानमंत्री सैयद यूसुफ रजा गिलानी ने दुर्रानी को उनके पद से इसलिए हटाया क्योंकि उन्होंने मीडिया से मुंबई आतंकवादी हमलों में गिरफ्तार अजमल आमिर कसाब के पाकिस्तानी होने की पुष्टि की थी। प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुसार दुर्रानी ने प्रधानमंत्री को विश्वास में लिए बिना यह बयान दिया था जो उनका गैर जिम्मेदाराना रवैया था। जबकि दुर्रानी को सच कबूलने की सजा मिली है। इससे स्पष्ट होता है कि पाक नेता झूठ बोलकर अपनी कुर्सी बचाए हुए हैं।

Sunday, January 4, 2009

झूठिस्तान या फिर आतंकिस्तान के नाम से जाना जाए पाक


मिलना और बिछुड़ना प्रकृति का सास्वत नियम है। फिर भी लोग उगते सूर्य को ही सलाम करते हैं। मिलना श्रंगार रस का द्योतक है। इसलिए नए तेवर, कलेवर के साथ नव वर्ष में जा चुके हैं और पुराना वर्ष स्वत: ही भूतकाल में जा पहुंचा। वर्ष ख्008 को आसानी से नहीं भुलाया जा सकता है। क्योंकि भारत की जमीन पर पूरे साल आतंकी हमले होते रहे हैं। आतंकी धमकियां मिलती रही हैं। यहां तक कि देश की राजधानी भी अछूती नहीं रही। वर्ष के ग्यारहवें महिने की ख्म् तारीख ने पूरे देश को ही नहीं बल्कि विश्र्व को हिला कर रख दिया। क्योंकि यह वही तारीख है जब मुंबई पर पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित आतंकवादियों ने हमले किए थे। और मुंबई की सुरक्षा व्यवस्था धरी की धरी रह गई थी। मुंबई का ऐतिहासिक ताज होटल जिसमें आतंकवादी प्रवेश कर के एके ब्7 से अधाधुंध गोलियां चलायीं और लगभग दौ सौ निर्दोष लोगों ने अपनी जानें गवायीं। हमारे जांबाज कमांडो ने जो अदम्य साहस का परिचय दिया, तारीफ-ए-दिल है। लगभग तीन दिन चली मुठभेड़ में नौ आतंकी ढेर हुए और एक को पकड़ लिया गया। पकड़ा गया आतंकी कसब ने पुलिसिया पूछताछ में अपने को पाकिस्तान का नागरिक बताया। उसने वह सब रहस्य खोल दिए जिसका भारत को इंतजार था। किंतु इसके बावजूद पाकिस्तान कह रहा है कि कसब मेरे देश का नहीं है। झूठ बोलने की सीमा को भी पाक लांघ गया। सारे साक्ष्य पाक के खिलाफ हैं। पाक ने अमेरिका के दबाव में दिखावटी कुछ कार्यवाही की है, लेकिन वह नाकाफी है। भारत बार-बार कह रहा है कि पाक संदिग्ध आतंकियों को मुझे सौंपे किंतु पाक कह रहा है कि मैं नहीं सौंपूंगा। अब यह तो निश्चित हो ही गया कि पाक में भूले भटके लोगों को शिवरों में आतंकी बनने के लिए प्रशिक्षिण दिया जा रहा है। इसके पहले मुशर्रफ कहते चले आ रहे थे कि पाक में एक भी आतंकी शिविर नहीं हैं। पाक में नेताओं की झूठ बोलने की बहुतायत हो गई है।मेरा तो यही मानना है कि यह देश झूठिस्तान या फिर आतंकिस्तान के नाम से जाना जाए।नया वर्ष लोगों के लिए नई सौगात लेकर आए, देश पर कहीं आतंकी हमले न हों, निर्दोष लोग मारे न जाएं, देश फिर से सोने की चिडि़या बने यही मेरी शुभकामनाएं हैं।