Thursday, March 26, 2009

लोकतंत्र को तार-तार होने से बचाएं

जनता के लिए जनता की सरकार को गठित करने के लिए आम चुनाव की रणभेदी बज चुकी है। राजनैतिक पार्टियां प्रचार में मशगूल हैं। नेता पुराने वायदे भूलकर नए वायदों के साथ चुनाव मैदान हैं। जिन पार्टियों ने निवर्तमान सांसदों को टिकट नहीं दिया वह बगावत कर या तो दूसरे दल से टिकट पा गए या फिर निर्दलीय प्रत्याशी बनकर युद्ध मैदान में आ गए हैं क्योंकि ऐसा अवसर पांच साल के बाद ही मिलता है इसको वह आसानी से जाने नहीं देना चाहते हैं। ऐसे लोगों को जनप्रतिनिधि बनने का कोई अधिकार ही नहीं है जिनमें सत्तालोलुपता कूट-कूट कर भरी हो। संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली पार्टियां जो पैसों से टिकट देती हैं भला उस दल के जनप्रतिनिधि क्या जनता की सेवा कर पाएंगे। सबसे पहले वह अपनी भरपाई करेंगे। सांसद क्षेत्रीय विकास फंड का जम के दुरुपयोग हो रहा है। उत्तर प्रदेश को ही ले लीजिए वहां की सत्तारूढ़ पार्टी ने इसबार लोक सभा का टिकट तीस-चालीस लाख रुपए में दिया है। सोचिए, इस दल के लोग सांसद बनकर क्या जनता की सेवा करेंगे, नहीं, सबसे पहले वह दी हुई राशि की भरपाई करेंगे। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि चुने गए सांसदों को तो राष्ट्रीय गीत भी पूरी तरह से नहीं आता है। क्या यह राष्ट्रीय शर्म की बात नहीं है। चुनाव के मौके पर वोट मांगने के लिए नेता लोग तरह-तरह के आश्वासन देते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद यह लोग फिर दिखाई नहीं देते हैं। और तो और जब किसी भी दल की सरकार बनते नहीं दिखाई देती है तो फिर जनप्रतिनिधियों के बीच खरीद-फरोख्त आरंभ होने लगती है। यही है वर्तमान लोकतंत्र का ढ़ाचा। अब समय आ गया है इस जर्जर लोकतंत्र को बचाने को। लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है, उसके हाथ में वह ताकत है जिसे उसके क्षेत्र में थोपे गए उम्मीदवार को धूल चटा दें। लोकतंत्र की रक्षा के लिए अब सभी मतदाताओं को एक जुट होना पड़ेगा और ऐसे को जिताना है जो हम सभी का दुख, दर्द समझ सके। लोकतंत्र में नेता बनना आसान होता है, लेकिन नेता की राह पर चलना कठिन होता है। एक सच्चे नेता की संपत्ति क्षेत्र की जनता होती है, न कि सत्तालोलुपता और भ्रष्टाचार। निवर्तमान संसद में ऐसे जनप्रतिनिधियों ने लोकतंत्र को तार-तार कर दिया था। ऐसे लोगों द्वारा लोकतंत्र की हत्या न होने पाए,इसके लिए मतदाताओं को एक जुट होकर आगे आकर सही व्यक्ति को ही चुने। जिस पर जरा सा भी दाग हो उसको कदापि न चुनें। हम देखते हैं कि संसद में कई-कई दिनों तक हंगामे होते रहते हैं। उसकी वजह ही है कि गलत लोग चुन कर संसद में पहुंचे हैं। एक बार तो उत्तर प्रदेश विधान सभा में जो हंगामा हुआ था वह घटना जब याद आती है शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। विधान सभा में जो नंगा नाच हुआ वह इतिहास के पन्ने में दर्ज हो चुका है।मैं कुल मिलाकर यही कहना चाहूंगा कि अपने जनप्रतिनिधि को चुनने में पहले जो गलती हुई हैं उसे अब नहीं होने दें। अबकी बार योग्य व्यक्ति को ही चुने जो ईमानदार के साथ क्षेत्र की जनता के साथ कदम से कदम मिलाकर पूरे पांच साल तक चले। और जब ऐसे लोग जो मन से और कर्म से पाक हों देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में पहुंचकर क्षेत्र की मांगों को बखूबी रखेंगे और हमें उन पर गर्व होगा और उनकी शान बढ़ेगी कि क्या जनता और जनप्रतिनिधि में संबंध हैं।

Tuesday, March 24, 2009

मताधिकार का सही उपयोग करें

संसदीय चुनाव की लहर पूरे देश में आरंभ हो चुकी है। राजनैतिक पार्टियां शतरंज की बिसात बिछाने में मशगूल हैं। सत्ता की बागडोर हासिल करने की नूरा-कुश्ती शुरू हो चुकी है। इसी डोर को हासिल करने के लिए राजनैतिक पार्टियां अपने-अपने प्रत्याशी खड़े कर रही हैं। लगभग सभी राजनैतिक पार्टियों का एक ही मकसद रह गया है कि ऐन-केन-प्रकारेण सत्ता प्राप्त की जाए। इसके लिए अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को उम्मीदवार बनाने से नहीं हिचकती हैं पार्टियां। इन लोगों के डर, भय से कांपते हैं लोग और देते हैं वोट। यदि वोट नहीं दिया तो चुनाव बाद परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना पड़ता है। इसका असर ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा दिखाई पड़ता है जहां पर मतदाता कम पढ़े-लिखे हैं और अपराधियों से डरते हैं। इस तरह के लोग खड़े ही न हों इसके लिए संविधान मौन है। अपराधी प्रवृत्ति के लोग सांसद बनकर नीति-निर्धारण नहीं करते हैं, बल्कि संसद में गंभीर मसलों पर मौन धारण किए रहते हैं। पूरा सत्र निकल जाता है वह सदन में बोलते ही नहीं हैं। हां, हंगामा करवाना हो तो यह लोग संसद नहीं चलने देते हैं।
मैं तो कुल मिलाकर यही कहूंगा कि सबसे पहले सत्तालोलुप राजनैतिक पार्टियां ऐसे लोगों को टिकट न दें। यदि टिकट देतीं हैं तो इनको सही जगह पर पहुंचा दिया जाए। इन लोगों की सही जगह संसद नहीं है, बल्कि जेल ही इनकी सही जगह है। इसके लिए लोगों को जागरूप होना पड़ेगा। अपने दिल से डर निकाल कर सही उम्मीदवारों का चयन कर संसद पहुंचाएं। उत्तर प्रदेश को ही ले लीजिए बसपा ने बारह उम्मीदवार सिर्फ अपराधी-प्रवृत्ति के लोगों को टिकट दिए हैं, इनको हराने की जिम्मेदारी क्षेत्र के मतदाताओं की है। यदि सारे मतदाता एक होकर आवाज निकाल दें कि अब स्वच्छ छवि वाले ही क्षेत्र का प्रतिनिधि संसद में करेंगे तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि देश का सबसे बड़ा पंचायत भवन की तस्वीर ही बदल जाएगी। जब देश की ही तस्वीर बदलेगी तो समझिए आपके क्षेत्र की तस्वीर बदलना स्वभाविक है। लोग भय मुक्त होकर जीवन यापन कर सकते हैं। इसलिए अब मौका आ गया है अपनी सोच को बदले का, बदल डालिए और ध्वस्त कर दीजिए इन लोगों के मंसूबे।

Sunday, March 22, 2009

तेईस मार्च को शहादत दिवस: गूंज विदेशों तक सुनाई दी


ब्रितानिया हुकूमत ने जब शहीद-ए-आजम भगत सिंह को फांसी के फंदे पर लटकाया गया तो पूरे देश में आजादी पाने की ख्वाहिश और भी भड़क गई। तेईस मार्च उन्नीस सौ इक्कतीस की इस घटना की गूंज देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में सुनाई दी। तत्कालीन भारतीय नेताओं और देश विदेश के अखबारों ने गोरी हुकूमत के इस अन्यायपूर्ण फैसले के खिलाफ जबर्दस्त प्रतिक्रिया व्यक्त की। गोरी हुकूमत ने जन विद्रोह के डर से लाहौर षड्यंत्र (सैंडर्स हत्याकांड) में राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह को फांसी के लिए निर्धारित तिथि चौबीस मार्च से एक दिन पहले यानी तेईस मार्च को ही फांसी पर चढ़ा दिया था। अंग्रेजों के इस फैसले पर सुभाष चंद्र बोस ने कहा था कि यह काफी दुखद और आश्चर्यजनक घटना है कि भगत सिंह और उसके साथियों को समय से एक दिन पूर्व ही फांसी दे दी गई। चौबीस मार्च को जब हम कलकत्ता से कराची जा रहे थे तब हमें यह दुखद समाचार मिला। भगत सिंह युवाओं में नई जागरूकता का प्रतीक बन गया है। महात्मा गांधी ने अपनी अहिंसा की विचारधारा के अनुसार इस घटना पर कहा था कि मैंने भगत सिंह को कई बार लाहौर में एक विद्यार्थी के रूप में देखा। मैं भगत सिंह की विशेषताओं को शब्दों में बयां नहीं कर सकता। भगत सिंह की देशभक्ति और भारतीयता के लिए उसका अगाध प्रेम अतुलनीय है लेकिन इस युवक ने अपने असाधारण साहस का दुरुपयोग किया। मैं भगत और उसके साथी देशभक्तों को पूरा सम्मान देता हूं, लेकिन देश के युवाओं को आगाह करता हूं कि वे इस उदाहरण पर न चलें। गांधी जी की टिप्पणी के बारे में भगत सिंह के पौत्र ने कहा कि राष्ट्रपिता को ऐसी टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी। यह टिप्पणी एक तरह से क्रांतिकारियों के योगदान को नकारने जैसी थी। शहीद-ए-आजम के बलिदान पर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि हम भगत सिंह को नहीं बचा सके जो हम सबको प्यारा था। उसका साहस और बलिदान भारत के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। इस घटना पर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कहा कि अंग्रेजी कानून के अनुसार भगत सिंह को सैंडर्स हत्याकांड में दोषी नहीं ठहराया जा सकता था, लेकिन फिर भी उसे फांसी दे दी गई। उस समय के प्रसिद्ध वकील और केंद्रीय विधानसभा के सदस्य डीबी रंगचरियार ने इस शहादत पर कहा था किभगत सिंह किसी ऐसे खास अपराध का आरोपी नहीं था जिसके लिए उसे फांसी की सजा दी गई। हम इस घटना की कड़ी निन्दा करते हैं। हमें इस फांसी से गहरा सदमा लगा है।उस समय के अखबारों ने भी भगत सिंह को फांसी दिए जाने की घटना पर अंग्रेजों के खिलाफ जमकर जहर उगला। भगत सिंह एक किंवदंती बन गया है। देश के सबसे अच्छे 'पुष्प' के चले जाने से हर कोई दुखी है। हालांकि भगत सिंह अब नहीं रहा, लेकिन हर जगह 'क्रांति अमर रहे' और 'भगत सिंह अमर रहे' जैसे नारे अब भी सुनाई देते हैं। ''पूरे देश के दिल में हर समय भगत सिंह की मौत का दर्द रहेगा।'' आनंद बाजार पत्रिका ने लिखा था कि राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह की मौत से पूरे देश पर दुख का काला साया छा गया है।

Tuesday, March 10, 2009

होली मनाने की परंपरा बुंदेलखंड से हुई


रंगों के पर्व होली के जनक बुंदेलखंड के झांसी जिले के एरच कस्बे के लोगों में अब भी होलिका के जलने और प्रहलाद के बचने की खुशी बरकरार है। इस कस्बे के लोगों के लिए होलिका दहन सिर्फ एक त्योहार ही नहीं, बल्कि एक ऐसे अवसर की याद दिलाने वाला है जब उन्हें दैत्यरूपी नरेश हिरण्यकश्यप से मुक्ति और ईश्वर भक्त प्रहलाद जैसा राजा मिला था। बुंदेलखंड के झांसी में है एरच कस्बा। यह इलाका कभी हिरण्यकश्यप के राज्य की राजधानी हुआ करता था। हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानता था, मगर उसके घर प्रहलाद जैसा बेटा पैदा हुआ जो विष्णु भक्त था। बस इसी को लेकर हिरण्यकश्यप प्रहलाद से नाराज रहने लगा। तमाम धार्मिक ग्रंथ इस बात के गवाह हैं कि हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने की कई दफा कोशिश की। प्रहलाद को नदी में फेंका गया, सांपों से कटवाया गया, मगर उस पर कोई असर नहीं हुआ। हिरण्यकश्यप को वरदान था कि उसे न नर मार सकेगा न जानवर, न वह दिन में मरेगा और न रात में, इतना ही नहीं वह घर के भीतर तथा बाहर भी नहीं मरेगा। इसीलिए विष्णु भगवान को नरसिंह का अवतार लेना पड़ा था। प्रहलाद को जब हिरण्यकश्यप मारने में सफल नहीं हुआ तो उसने अपनी बहन होलिका का सहारा लिया। होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। प्रहलाद को मारने के लिए रची गई साजिश के मुताबिक बेतवा नदी के किनारे स्थित डीकान्चल पर्वत पर एक समारोह का आयोजन किया गया। इसमें तय हुआ कि होलिका नाचत-नाचते प्रहलाद को गोदी में लेकर आग में बैठ जाएगी जिसमें प्रहलाद जल जाएगा, मगर प्रहलाद को जलाने की कोशिश में हुआ उलटा। होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया। हिरण्यकश्यप को इस बात का पता चला तो वह बौखला गया और उसने प्रहलाद को मारने की कोशिश की। प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान नरसिंह के अवतार में प्रकट हुए और उन्होंने हिरण्यकश्यप को मार डाला। उसके बाद प्रहलाद को राजगद्दी सौंपी गई। मगर दानवों ने उसे राजा नहीं माना क्योंकि वह अपने पिता का कातिल था। भगवान विष्णु ने दानवों और देवताओं की एरच के पास डीकांचल पर्वत के करीब पंचायत कराई। इस पंचायत में विष्णु जी ने प्रहलाद को अपना बेटा स्वीकारा। इस पंचायत के बाद सभी ने एक दूसरे को गुलाल लगाई तभी से होली मनाई जाने लगी, जिस दिन यह पंचायत थी उस दिन पंचमी थी। एरच में खुदाई के दौरान एक ऐसी मूर्ति भी मिली है जिसमें प्रहलाद को गोदी में लिए होलिका को दिखाया गया है। इसके अलावा हिरण्यकश्यप काल की शिलाएं भी मिलीं हैं। एरच में कई ऐसे मंदिर हैं जिनमें प्रहलाद की मूर्तियां स्थापित हैं और यहां के लोग उनकी पूजा करते हैं। एरच के लोग अपने बेटों के नाम प्रहलाद तो रखते हैं मगर उसके पिता हिरण्यकश्यप और बुआ होलिका को कोई याद नहीं करना चाहता।

Sunday, March 8, 2009

चुनाव विपक्ष नहीं जीतता, सरकारें हारती हैं

पिछले चुनाव में अटल बिहारी वाजपेई के करिश्माई व्यक्तित्व और तेईस दलों वाले लगभग एकजुट राजग के बावजूद भाजपा के नेतृत्व वाला मोर्चा चुनाव हार गया था। लेकिन इस बार न तो वैसा व्यक्तित्व शीर्ष पर है और राजग के घटक दलों की संख्या भी सिमटकर फिलहाल छह रह गई है। इसके बावजूद सत्ता के सपने संजोने में राजग पीछे नहीं है। राजग के महत्वपूर्ण घटक दल बीजू जनता दल ने शनिवार को भाजपा की अगुवाई से दामन छुड़ाने की घोषणा करके उसे एक करारा झटका दिया है और साथ ही लालकृष्ण आडवाणी के 'पीएम इन वेटिंग' के सपनों को भी चकनाचूर कर दिया है। कुनबे में बिखराव की शुरूआत के बावजूद राजग की जीत के सपने पर भाजपा के एक बड़े नेता का कहना था कि चुनाव में विपक्ष नहीं जीतता बल्कि सरकार हारती है। पार्टी का दावा है कि संप्रग के आम आदमी के मुखौटे की पोल खुल चुकी है और जनता कांग्रेस को झूठे वायदे करने का सबक सिखाने के लिए बेताब है। वर्ष दो हजार चार तक भाजपा का ग्राफ काफी ऊंचा था और उसके फिर से चुनाव जीतने की उम्मीद की जा रही थी लेकिन लगभग सभी अटकलों के बरखिलाफ इंडिया शाइनिंग का नारा उल्टा पड़ गया और 'सरकार हार गई' तथा विपक्ष (कांग्रेस नीत संप्रग) जीत गया। अब भाजपा को इसी कहावत के सच होने की उम्मीद है कि 'सरकार हारेगी और विपक्ष जीतेगा।' पिछले लोस चुनाव में बड़ा झटका खाने के कुछ ही समय बाद भाजपा का ग्राफ फिर चढ़ने लगा था। लोस चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस को जहां चौदह विस चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा, वहीं भाजपा अपने सहयोगी दलों के साथ बिहार, उड़ीसा, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक आदि में लगातार जीत हासिल करती रही। लेकिन आगामी लोस चुनाव से ऐन पहले दिल्ली और राजस्थान सहित छह में से चार विस चुनाव हार जाने से उसके विजयी अभियान पर झटकेदार ब्रेक लगा। छह दलों में सिमटे राजग के घटक दल भाजपा पर अपनी शर्ते थोपने का लगातार दबाव बनाए हुए हैं जिनमें शिव सेना, जदयू, अकाली दल, इंडियन नेशनल लोकदल और राष्ट्रीय लोकदल शामिल हैं। भाजपा ने कुछ दिन पहले असम गण परिषद के राजग में शामिल होने की घोषणा की लेकिन उसने कुछ ही देर बाद इसका खंडन करते हुए कहा कि वह राजग का हिस्सा नहीं है केवल सीटों के बंटवारे को राजी हुआ है। भाजपा को इस बार पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक और केरल में कोई सहयोगी दल नहीं मिलना बड़ी परेशानी का सबब है, क्योंकि लोकसभा की कुल सीटों की एक तिहाई यानी एक सौ इकत्तर सीट इन्हीं राज्यों से हैं। पिछले आम चुनाव में भाजपा कांग्रेस से पिछड़कर एक सौ अड़तीस सीट पर सिमट गई और उसके नेतृत्व वाले राजग को कुल एक सौ इक्यासी सीटें मिलीं। उधर कांग्रेस ने अपने बूते एक सौ पैंतालीस सीटें जीतने के साथ अपने सहयोगी दलों के साथ दो सौ इक्कीसका आंकड़ा छुआ और वाम दलों के समर्थन से सरकार बनाई।

Tuesday, March 3, 2009

पाक को अब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से अलग-थलग करना होगा

विदेशी टीमों के दौरे रद होने की गाज पहले से ही झेल रहे पाकिस्तान पर अब श्रीलंकाई टीम पर लाहौर में हुए हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से पूरी अलग-थलग पड़ने का खतरा और गहरा गया है और अब आईसीसी को ही यह फैसला लेना होगा कि क्या पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय टीमों की मेजबानी के लिए महफूज है।
दूसरे टेस्ट के तीसरे दिन के खेल के लिए मंगलवार को लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम जाते हुए श्रीलंका क्रिकेट टीम की बस पर आधुनिक हथियारों से लैस कम से कम 12 आतंकियों ने हमला किया जिसमें छह क्रिकेटर घायल हो गए जबकि कम से कम छह सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गई। मुंबई में पिछले साल 26 नवंबर को आतंकी हमले के मद्देनजर भारत के पाक दौरा रद करने के बाद श्रीलंकाई क्रिकेट टीम ने दौरा करने की हामी भरकर पीसीबी को वित्तीय हानि से बचने की आस बंधाई थी लेकिन अब इस हमले ने आईसीसी और अन्य टीमों की सुरक्षा चिंताओं को वाजिब ठहराया है और पाक को बरसों नहीं तो कम से कम महीनों तक अंतरराष्ट्रीय टीमों की मेजबानी से महरूम रहना पड़ सकता है।
भारत को पाकिस्तान दौरे पर तीन टेस्ट, पांच एक दिवसीय और एक ट्वंटी 20 मैच खेलना था लेकिन मुंबई हमले के बाद सरकार ने टीम को सरहद पार जाने की इजाजत नहीं दी थी। इस हमले के बाद भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश की संयुक्त मेजबानी में होने वाले 2011 विश्व कप पर भी अनिश्चितता के बादल छा गए हैं क्योंकि टीमों को अब पाकिस्तान में खेलने के लिए राजी करना आईसीसी के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। इस पहले 2002 में कराची के शेरेटन होटल के समीप भी आत्मघाती कार धमाका हुआ था जिसमें न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम ठहरी हुई थी और इस घटना के बाद टीम दौरा रद करके स्वदेश लौट गई थी।
पिछले साल आस्ट्रेलिया ने सुरक्षा कारणों से पाक दौरा रद कर दिया था जबकि आईसीसी ने भी इन्हीं कारणों से चैंपियंस ट्राफी स्थगित करने के बाद इसकी मेजबानी पाकिस्तान से छीन ली थी। श्रीलंकाई क्रिकेट टीम ने इससे पहले पिछले माह तीन मैचों की एक दिवसीय सीरीज के लिए पाक का दौरा किया था और दो टेस्ट मैचों की सीरीज के लिए वापस लौटी थी जो पिछले एक साल में किसी विदेशी टीम का पहला टेस्ट दौरा था। पहले ही रद दौरों की मार झेल रहे पाकिस्तानी क्रिकेट की माली हालत अब इस कदर बिगड़ सकती है कि उसे खिलाड़ियों को वेतन देने में भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
पिछले साल सुरक्षा को लेकर पाकिस्तान दौरा रद करने वाली टीमों में आस्ट्रेलिया अव्वल रहा। बम विस्फोटों के मद्देनजर विश्व चैंपियन टीम ने अपना दौरा अप्रैल 2009 तक स्थगित कर दिया। विदेशी टीमों के कन्नी काटने की आशंका से ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद को पाकिस्तान में होने वाली चैंपियंस ट्राफी भी स्थगित करनी पड़ी और बाद में इसकी मेजबानी पाक से छीन ली गई। पाकिस्तानी क्रिकेट प्रेमियों को साल में एकमात्र सौगात जून में एशिया कप के रूप में मिली जिसमें भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश ने भाग लिया। इसमें भी मायूसी हाथ लगी जब मेजबान टीम फाइनल में नहीं पहुंच सकी। श्रीलंका ने भारत को हराकर यह टूर्नामेंट जीता।
पिछले साल दक्षिण अफ्रीका से अपनी धरती पर हारी पाकिस्तानी टीम ने बांग्लादेश में चिर प्रतिद्वंद्वी भारत को हराकर किटप्लाय कप जीता। वेस्टइंडीज ने भी सुरक्षा कारणों से पाकिस्तान आने से इंकार कर दिया जिसके बाद दोनों टीमों में अबुधाबी में तीन मैचों की एक दिवसीय सीरीज खेलनी पड़ी। आस्ट्रेलिया को भी अगले माह पाक का दौरा करना था लेकिन एक बार फिर उसके इंकार के बाद इस सीरीज को अबुधाबी और दुबई में स्थानांतरित कर दिया गया।

Monday, March 2, 2009

चौदहवीं लोकसभा इतिहास के पन्नों में समाहित


पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव की तिथियां आज घोषित हो जाने के साथ ही वर्तमान चौदहवीं लोकसभा के इतिहास बनने में कुछ ही दिन रह गए हैं जिसमे एक क्रिकेट की टीम भर 'ब्लैक इलेवन' को बर्खास्त करने सहित कई अनूठे रिकार्ड बने। वर्तमान चौदहवीं लोकसभा ने अपने ग्यारह सदस्यों को बर्खास्त करने का इतिहास रचा। इस 'ब्लैक इलेवन' में कबूतरबाजी (मानव तस्करी) से लेकर पैसा लेकर सदन में सवाल पूछने जैसे स्तब्धकारी आरोपों से घिरे सदस्यों को सदन के बाहर का रास्ता दिखाया गया। इस दौरान पहली बार संसद में नोटों के बंडल भी लहराए गए। कबूतरबाज़ी मामले में भाजपा सांसद बाबूभाई कटारा को बर्खास्त किया गया। इसके अलावा लोकसभा के दस सदस्य सदन में प्रश्नकाल को कमाई का जरिया बनाने के आरोप में पकड़े जाने पर निष्कासित किए गए। चार अन्य सदस्यों को विभिन्न मामलों में निलंबित किया गया। वर्तमान लोकसभा में सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के तहत सदस्यों को मिलने वाले धन का दुरूपयोग किए जाने का घोटाला भी हुआ। चौदहवीं लोकसभा ने एक और अनूठे निष्कासन का भी नज़ारा किया। लोकसभा के पहले 'कामरेड' अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को उनके मूल दल माकपा ने पार्टी से बर्खास्त कर दिया। वाम दलों द्वारा संप्रग सरकार से समर्थन वापस लेने पर अध्यक्ष पद छोड़े जाने का पार्टी का निर्देश नहीं मानने पर माकपा ने यह कार्रवाई की। इस लोकसभा में ही पहली बार अध्यक्ष के खिलाफ पक्षपात का आरोप लगाकर सम्पूर्ण विपक्ष ने हस्ताक्षर अभियान चलाया। और पहली बार ही किसी अध्यक्ष ने सदन में हंगामा करने वाले सदस्यों को दोबारा न जीतने का श्राप दिया हालांकि जिसे उन्होंने दूसरे ही दिन वापस भी ले लिया।