Thursday, July 15, 2010

आखिर रुपए को मिला अपना प्रतीक चिह्न


आखिर रुपए को अपना प्रतीक चिह्न मिल गया। कैबिनेट ने आईआईटी पोस्ट ग्रैजुएट डी. उदय कुमार के
डिजाइन को अपनी मंजूरी दे दी है। पांच सदस्यों वाले पैनल ने इस डिजाइन को कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा था। पैनल ने यह डिजाइन उन पांच डिजाइनों में से चुना जिन्हें आखिरी दौर के लिए चुना गया था। डी. उदय कुमार का तैयार किया हुआ यह प्रतीक चिह्न भारतीयता और अंतरराष्ट्रीयता का अद्भुत मेल जान पड़ता है। जैसा कि आप तस्वीर में देख सकते हैं इसमें देवनागरी के 'र' और रोमन कैपिटल 'R' (बगैर डंडे के) के संकेत मिलते हैं। वित्त मंत्रालय ने इसके लिए एक डिजाइन प्रतियोगिता आयोजित की थी और विजेता को 2.5 लाख रुपये के इनाम की घोषणा की थी। शर्त यह थी कि यह कंप्यूटर के स्टैंडर्ड कीबोर्ड में फिट हो जाए, राष्ट्रीय भाषा में हो और भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को दर्शाए। अभी तक भारतीय रुपये को संक्षिप्त रूप (abbreviated form) में अंग्रेजी में Rs या Re या फिर INR के जरिए दर्शाया जाता है। नेपाल , पाकिस्तान और श्रीलंका में भी मुद्रा का नाम रुपया ही है। लेकिन दुनिया की प्रमुख मुद्राओं का संक्षिप्त रूप के अलावा एक प्रतीक चिन्ह भी है जैसे अमेरिकी डॉलर को USD कहते हैं और इसका प्रतीक चिह्न $ होता है।

Thursday, July 1, 2010

कामयाब नहीं रहा शिमला समझौता

भारत और पाकिस्तान के रिश्ते में अमन-चैन कायम करने के मकसद से दो जुलाई, 1972 को हुआ शिमला समझौता अपना लक्ष्य पाने में कुछ हद तक ही कामयाब रहा है।समझौते का मकसद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते में पड़ी दरार को कूटनीतिक तरीके से पाटना था लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं हो सका और आज यह पूरी तरह अप्रासंगिक हो चुका है।यदि कूटनीतिक नजरिए से देखें तो शिमला समझौता बहुत अच्छा कदम नहीं था। इस समझौते का विरोध तत्कालीन विपक्षी दलों ने भी किया था और देश में इस पर आम सहमति नहीं बन पाई थी।उस समय इस समझौते के विरोध में जनसंघ ने एक नारा दिया था देश न हारी..फौज न हारी, हारी है सरकार हमारी।यह समझौता आज राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से कोई मायने नहीं रखता लेकिन यह सच है कि भारत और पाकिस्तान के बीच बेहतर रिश्ते कायम करने की कोशिशों की बुनियाद इसी समझौते ने रखी थी। इस समझौते के बाद भी कई दफा पाकिस्तान के साथ रिश्तों की बेहतरी के प्रयास किए गए लेकिन हालात अभी तक जस के तस हैं। शिमला समझौता रूपी आधार का इस्तेमाल कर दोनों देशों के संबंध मधुर बन सकते हैं।इस समझौते की सबसे बड़ी खामी यह थी कि इसमें 'सियाचिन ग्लेशियर-सालतोरो रिज' की लाइन को परिभाषित नहीं किया गया था।1984 में भारत ने इस क्षेत्र में अपनी सेना तैनात की और फिर पाक ने भी यहां अपनी सेना तैनात कर दी। दोनों देशों की ओर से सेना की तैनाती के बाद यह क्षेत्र दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र बन गया।