Sunday, September 12, 2010
सबकी नजर है अयोध्या पर आने वाले फैसले पर
अयोध्या के विवादित स्थल पर स्वामित्व संबंधी मुकदमों का निर्णय आने में अब बमुश्किल दो हफ्ते रह गए हैं। फैसला जो भी हो प्रभाव अखिल भारतीय होगा। लिहाजा राजनीतिक दलों ने अभी बिल्कुल खामोशी बना रखी है, जबकि प्रशासन ने अदालत के निर्णय पर किसी भी प्रकार की विपरीत प्रतिक्रिया से उत्पन्न होने वाली स्थिति पर काबू पाने के लिए कमर कस ली है।ऊपरी तौर पर हालांकि पूरी तरह शांति है, लेकिन कुछ राजनेताओं एवं धार्मिक संगठनों के बार-बार के इस कथन से तनाव की आशंका गहरा रही है कि अयोध्या का मामला आस्था और विश्वास का प्रश्न है।कानून और व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी संभाल रहे अधिकारियों को चिंता इस बात की है कि फैसला जो भी हो लेकिन मनमाफिक फैसला नहीं आने पर कुछ ताकतें और अराजक तत्व माहौल को बिगाड़ने की कोशिश कर सकते हैं।राम जन्म भूमि बाबरी मसजिद विवाद 1990 के दशक में देश की राजनीति पर अपना असर दिखा चुका है और इस पर स्वामित्व को लेकर 60 साल से चल रहे मुकदमों पर 24 सितंबर को अदालत फैसला जो भी सुनाए, कानून एवं व्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा होने की आशंका खारिज नहीं की जा सकती।बहरहाल, उत्तर प्रदेश प्रशासन किसी भी स्थिति पर काबू पाने के लिए अपनी कमर कस चुका है। प्रदेश में शांति और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए सभी आवश्यक तैयारियां कर ली गई हैं।विश्व हिन्दू परिषद अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए 10 लाख मंदिरो में यज्ञ कर रहे हैं और राष्ट्रपति को ज्ञापन भेज कर यह मांग करेंगे कि कानून बना कर मंदिर निर्माण की राह में आने वाली रुकावटें दूर की जाएं।पूर्व भाजपा नेता और 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचे के विध्वंस के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह ने भी अयोध्या में हर हाल में राम मंदिर के निर्माण की प्रतिबद्धता दोहराई है। उन्होंने कहा कि अदालत का फैसला भले ही हिंदुओं के विपरीत आए, लेकिन राम मंदिर से करोड़ों हिंदुओं की आस्था जुड़ी है, इसलिए संसद को कानून बना कर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ करना चाहिए।अयोध्या स्वामित्व विवाद में पक्षकार ने कहा है कि अदालत का जो भी फैसला आएगा उसका सम्मान किया जाएगा।उन्होंने कहा कि मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड और बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति मुसलमानों से अपील करेगी कि अदालत का फैसला विपरीत आने पर भी कोई अप्रिय प्रतिक्रिया न करें। आवश्यकता हुई तो हम सुप्रीम कोर्ट में जाएंगे।बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति के संयोजक ने कहा है कि निर्णय विपरीत आया तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा। पर्सनल ला बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य ने कहा कि जाहिर है कि दोनो पक्ष निर्णय अपने हक में होने की अपेक्षा रख रहे हैं, मगर महत्वपूर्ण बात यह है कि फैसला जो भी हो निहित स्वार्थी ताकतों और अराजक तत्वों को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का मौका नहीं मिलना चाहिए।सभी प्रमुख राजनीतिक दल अदालत के फैसले का सम्मान करने की बात कह रहे हैं, मगर राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि 1990 के दशक में प्रदेश और देश की राजनीति पर अपना व्यापक असर दिखा चुके इस मुद्दे पर फैसला आने के बाद राजनीति तो होगी ही।अयोध्या के विवादित स्थल पर स्वामित्व संबंधी मुकदमों की सुनवाई कर रही इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ का फैसला मुख्यत: तीन बिंदुओं पर केंद्रित है, पहला- क्या अयोध्या में विवादित स्थल पर 1528 के पहले कोई मंदिर था, जिसे तोड़ कर मस्जिद बनाई गई, दूसरा- क्या 1961 में बाबरी कमेटी की तरफ से दाखिल किया गया वाद 'टाइम बार' यानि निर्धारित समय सीमा के बाद दाखिल किया गया था और तीसरा, यह है कि क्या विवादित स्थल पर मुसलमानों का इसलिए कब्जा हो गया कि निश्चित समय के भीतर उसे चुनौती नहीं दी गई।अयोध्या विवाद यू तो सदियों पुराना है, मगर इसके मौजूदा स्वरूप का बीज 22 दिसंबर, 1949 में तब पड़ा जब मस्जिद में राम लला, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां रख दी गई और हिंदुओं ने उसे रामलला का प्रकटीकरण करार देकर वहां पूजा अर्चना शुरू कर दी। हालांकि रामलला के कथित प्रकटीकरण के बाद मस्जिद की बैरीकेडिंग कर दी गई, मगर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत को भेजे गए स्पष्ट निर्देश के बावजूद किसी ने मूर्तियों को वहां से हटाने का साहस नहीं दिखाया।यहां तक कि फैजाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी के.के. नैय्यर ने इसी मुद्दे पर अपना पद छोड़ दिया और बाद में हिंदू महासभा के टिकट पर सांसद चुने गए।अयोध्या के विवादित स्थल पर स्वामित्व संबंधी पहला मुकदमा 1950 में गोपाल सिंह विशारद की तरफ से दाखिल किया गया, जिसमें वहां रामलला की पूजा अर्चना जारी रखने की अनुमति मांगी गई थी। दूसरा मुकदमा इसी आशय से 1950 में ही परमहंस रामचन्द्र दास की तरफ से दाखिल किया गया, जिसे बाद में उन्होंने वापस ले लिया।तीसरा मुकदमा 1959 में निर्मोही अखाड़े की तरफ से दाखिल किया गया जिसमें विवादित स्थल को निर्मोही अखाड़े को सौप देने की मांग की गई थी।चौथा मुकदमा 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेन्ट्रल बोर्ड की तरफ से दाखिल हुआ और पांचवां मुकदमा भगवान श्रीरामलला विराजमान की तरफ से दाखिल किया गया।उपरोक्त पांचों मुकदमों में से परमहंस रामचन्द्र दास का मुकदमा वापस हो चुका है, जबकि शेष चार मुकदमों पर अदालत 24 सितंबर को फैसला सुनाएगी।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment