Wednesday, December 30, 2009
तेलंगाना को लेकर आंध्र की राजनीति में उबाल
तेलंगाना मामले ने वर्ष 2009 के अंत में आंध्रप्रदेश की राजनीति में तूफान ला दिया और यही मुद्दा कांग्रेस के गले की हड्डी बन गया। कांग्रेस कोई ऐसा तरीका खोजने में लगी है, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। इसी साल राज्य ने करिश्माई मुख्यमंत्री वाइ एस राजशेखर रेड्डी को एक हेलीकाप्टर दुर्घटना में खो दिया। राज्य से कांग्रेस ने इस साल अप्रैल मई में हुए लोकसभा चुनावों में रेड्डी के नेतृत्व में बड़ी संख्या में सांसदों को केंद्र में भेजा और राज्य विधानसभा में भी सफलतापूर्वक सत्ता हासिल की। राज्य विकास के पथ पर अग्रसर हो ही रहा था कि रेड्डी के असमय निधन ने बहुत कुछ उलटफेर कर दिया। तीन सितंबर को कुरनूल की पहाडि़यों के पास नल्लामाला के जंगल में एक हेलीकाप्टर हादसे में रेड्डी मारे गए। इसके बाद राज्य एक के बाद एक संकट में घिरता गया और प्रशासनिक व्यवस्था प्रभावित होती रही। राज्य के हालात सामान्य करने का जिम्मा वरिष्ठ कांग्रेस नेता के रोजैया को सौंपा गया लेकिन वे पार्टी की अंदरूनी कलह में घिर गए क्योंकि दिवंगत मुख्यमंत्री रेड्डी के समर्थक उनके पुत्र जगनमोहन को सत्ता की बागडोर देने की मांग कर रहे थे। राज्य में लगभग दो माह तक कांग्रेस मुख्यमंत्री के मुद्दे पर विभाजित रही। एक ओर रोजैया और दूसरी ओर जगनमोहन को मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठ रही थी। आखिरकार पार्टी आलाकमान रोजैया को मुख्यमंत्री बनाने के लिए विद्रोहियों को मनाने में सफल रहा।इससे पहले कि रोजैया सब कुछ ठीक कर पाते, उन्हें पृथक तेलंगाना राज्य बनाने की मांग से दो चार होना पड़ गया। इस राजनीतिक संकट ने राज्य को क्षेत्रीय आधार पर बांट दिया और बड़े राजनीतिक दिग्गजों ने भी खुद को हाशिए पर पाया। कांग्रेस में इस मुद्दे पर खुल कर मतभेद उभरे। तेदेपा ने इस मुद्दे का विरोध किया। मुख्य विपक्षी दल प्रजाराज्यम का तेलंगाना में आधार ही खत्म हो गया और पार्टी प्रमुख अखंड राज्य को समर्थन के अपने रूख से पलटते नजर आए। अलगाववादी तेलंगाना राष्ट्र समिति के लिए यह मुद्दा ''करो या मरो'' की स्थिति ले कर आया। तेलंगाना मुद्दा कांग्रेस के गले की हड्डी बन गया और उसने यह कहते हुए इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया कि इस बारे में आम सहमति बनाने के लिए राजनीतिक दलों के साथ व्यापक विचार विमर्श करना होगा। साल की शुरूआत राज्य में विधानसभा चुनावों के साथ हुई। कांग्रेस 155 सीटें हासिल कर किसी तरह सरकार बनाने में सफल रही। तेदेपा ने 294 सदस्ईय विधानसभा में 92 सीटें जीत कर दमदार वापसी की। चिरंजीवी की पार्टी को मात्र 18 सीटें मिलीं। टीआरएस केवल दस विधानसभा सीटों पर सिमट गई। उसे लोकसभा चुनावों में केवल दो सीटें मिलीं। तेजी से जनाधार खोती टीआरएस को उसके प्रमुख के चंद्रशेखर राव ने मजबूत करने की कोशिश की और पृथक तेलंगाना की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठ गए। लेकिन राज्य की राजनीति में उबाल लाने वाला यह मुद्दा फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया।
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