Wednesday, December 30, 2009

पक्का इरादा ही जीत के जज्बे का जीवन रक्त है

कामयाबी और हमारे बीच सिर्फ एक दृढ़ संकल्प का फासला होता है। पक्का इरादा ही जीत के जज्बे का जीवन रक्त है और दृढ़ निश्चय करने का मतलब है कि आप मंजिल पाने की आधी जंग जीत चुके हैं। पक्के इरादे ने महात्मा गांधी को भारत की जनता में अहिंसा जैसे मुश्किल रास्ते के जरिए आजादी की अलख जगाने में निर्णायक भूमिका अदा की। दृढ़ निश्चय ने ही बराक ओबामा को अमेरिका का पहला अश्वेत राष्ट्रपति बनकर इतिहास रचने की ताकत दी और नकारात्मक रूप से ही सही लेकिर पक्के इरादे ने ही हिटलर को इतना ताकतवर बनाया कि उसकी धमक से सारी दुनिया हिल गई। प्रख्यात विचारक नॉर्मन विंसेट पील की मशहूर किताब 'द पॉवर ऑफ पॉजिटिव थिंकिंग' के मुताबिक पक्का इरादा ही जीत की प्रेरणा और मंजिल को पाने की ललक का एकमात्र आधार होता है। सारा फर्क दृढ़ निश्चय का ही होता है। अगर यह है तो सब कुछ है और अगर यह नहीं है तो कुछ भी नहीं है। दक्षिण अफ्रीका के पीटरमारित्जबर्ग में प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद तीसरी श्रेणी में सफर करने से इनकार के बाद रेलवे प्लेटफार्म पर तिरस्कारपूर्ण ढंग से फेंके गए मोहनदास करमचंद गांधी ने इस भेदभाव को दूर करने का पक्का इरादा किया और उसी निश्चय के बल पर उन्होंने दुनिया बदल डाली।अमन से जीना है तो जंग के लिए तैयार रहो, लेकिन महात्मा गांधी की अहिंसा की विचारधारा ने हिंसा को ही समाधान का रास्ता मानने की व्याप्त सोच में बदलाव किए। बेशक इसके लिए उनका संकल्प ही सबसे बड़ी प्रेरक शक्ति था। बराक ओबामा की अमेरिका का राष्ट्रपति बनने की गाथा भी पक्के इरादे के इर्द-गिर्द घूमती है। ओबामा ने कभी अश्वेतों को दोयम दर्जे का नागरिक समझने वाले देश अमेरिका का पहला अश्वेत राष्ट्रपति बनकर इतिहास रचा। वैश्विक आर्थिक मंदी की मार झेल रहे अमेरिका को मुश्किल से उबारने के लिए एक ऐसे नेता की जरूरत थी जो आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय से लबरेज हो। ओबामा ने मंदी के निवारण के लिए अपने दृढ़ निश्चय को अपने लोकप्रिय वाक्य 'यस वी कैन' में तब्दील करके अपनी जीत की इबारत लिख दी। पक्का इरादा ही विश्व इतिहास के सबसे बड़े खलनायक माने जाने वाले हिटलर की सबसे बड़ी खासियत थी। माना जाता है कि किसी भविष्यवक्ता ने उसका हाथ देखकर कहा था कि उसकी हथेली में राजयोग की रेखा नहीं है। इस पर उसने धारदार चीज से हथेली काटकर वह रेखा बना ली थी। एक साधारण सरकारी कर्मी से जर्मनी के तानाशाह तक का सफर करने वाले हिटलर को दुनिया अच्छी नजरों से नहीं देखती लेकिन उसके दृढ़ संकल्प का लोहा दुनिया कहीं न कहीं आज भी मानती है। यह सत्य है कि हमारे और मंजिल के बीच सिर्फ एक पक्के इरादे का फासला होता है और यह दृढ़ निश्चय ही व्यक्ति को साधारण से महान बनाने की पहली सीढ़ी बनता है।

2 comments:

Udan Tashtari said...

दृढ़ निश्चय..सबसे जरुरी!!


मुझसे किसी ने पूछा
तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो,
तुम्हें क्या मिलता है..
मैंने हंस कर कहा:
देना लेना तो व्यापार है..
जो देकर कुछ न मांगे
वो ही तो प्यार हैं.


नव वर्ष की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.

Kulwant Happy said...

बधाई हो। जनसत्ता के मार्फत मुझ तक आने के लिए।