Thursday, January 22, 2009

शाहजहां ने आज के दिन ही अंतिम सांस ली थी


मुगल शहंशाह शाहजहां ने आज के दिन ही अपनी बेगम मुमताज की यादगार निशानी मुहब्बत की बेमिसाल इमारत ताजमहल को निहार कर अंतिम सांस ली थी। प्रसिद्ध इतिहासकार यदुनाथ सरकार और रघुवीर सिंह लिखित 'शाहजहां की अंतिम बीमारी और मृत्यु' में इस बात का उल्लेख है कि आज के दिन 22 जनवरी 1666 को 74 बर्षीय मुगल सम्राट शाहजहां ने मरहूम बेगम मुमताज की याद में बनाये गये अलौकिक ताजमहल को अंतिम बार निहारा था। जब शाहजहां अपने पुत्र औरंगजेब की यातनापूर्ण कैद भरी जिन्दगी से तंग आ चुके और अहसास हुआ कि इस दुनिया को वह कभी भी अलविदा कह सकता है तो मुगल बादशाह ने अल्ला का शुक्रिया अदा किया और खुदा को उसकी सारी कृपाओं के लिये धन्यवाद दिया। शाहजहां ने अन्त में अंतिम क्रिया संबधी सभी आवश्यक निर्देश दिए। अपनी जीवित दोनों बेगमों अकबरावादी महल और फतेहपुरी महल तथा अपनी बड़ी बेटी जहांआरा एवं राजमहल की अन्य महिलाओं को वह मृत्यु से पूर्व दिलासा देते रहे जो उसके चारों ओर बैठकर रो रही थीं। शाहजहां ने मृत्यु से पूर्व अपना वसीयतनामा लिखकर अपने संबंधियों और नौकरों को इनाम दिये तथा अन्त में कुरान पढ़ने के निर्देश दिए। अपने होशो हवाश में शाहजहां ने मुमताज की याद में बनाये गये ताजमहल को मुस्समन बुर्ज से एक बार टकटकी लगाकर देखा और कलमा पढ़कर फिर उसने इबादत की कि 'ऐ खुदा इस लोक में मेरी गति सुधार ले और परलोक में मुझे नरक यातना से बचा ले' उसके कुछ क्षण बाद वह परलोक सिधार गए। तब शाम के सात बज रहे थे। शाहजहां चाहते थे कि उसे ताजमहल में दफनाया जाये जिससे वह मृत्यु के बाद भी अपनी बेगम मुमताज से दूर न रहे। शाहजहां के कैद के दिनों में मुस्समन बुर्ज के नीचे की सीढि़यों का दरबाजा ईट से बन्द कर दिया गया था। उस दीवार को तोड़कर किले के तत्कालीन अफसरों ने वह रास्ता खोला और शाहजहां का जनाजा निकाला जिसे यमुना के किनारे लगी हुई नाव में रखकर ताजमहल के यमुना किनारे वाले दरवाजे तक ले जाकर बेगम मुमताज के पास ही दफना दिया गया।

6 comments:

महेन्द्र मिश्र said...

ऐतिहासिक जानकारी प्रदान करने के लिए धन्यवाद्.

bijnior district said...

बहुत अचछी जानकारी।आभार

P.N. Subramanian said...

शाहजहाँ के बारे में इस जानकारी के लिए आभार.

Udan Tashtari said...

जानकारी के लिए आपका आभार.

Prabhakar Pandey said...

नमस्कार। धन्यवाद इस ऐतिहासिक लेख के लिए। बहुत ही काम की जानकारी। लिखते रहें।

रंजू भाटिया said...

रोचक जानकारी दी है आपने ..शुक्रिया