Monday, September 22, 2008

लोग आतंकवादी क्यों बनते हैं

सामान्य जन जीवन न जीने वालों में एक बात दिमाग में तब आती है जब वे शहर की चकाचौंध से इतने ज्यादा प्रभावित होने लगते हैं कि रातों रात मालामाल हो जाना चाहते हैं। बस यहीं से शुरू होने लगती है उनकी अग्नि परीक्षा। घर से शहर आते हैं उच्च शिक्षा लेने, लेकिन अधिक महत्वाकांक्षी होने के कारण उन आकाओं के घेरे में फंसने लगते हैं जो रातोंरात पैसों से मालामाल करने का सब्जबाग दिखाते हैं। बस, यहीं से शुरू होता है उन्हें अच्छे या गलत रास्ते पर ले जाने का दौर।आतंकी संगठनों को विस्तारीकरण की योजना के लिए उन्हें ऐसे युवाओं की जरूरत होती है जो उन्हीं के मजहब के हों और आकाओं के दिशानिर्देशन पर काम कर सकें। रातोंरात मालामाल हो जाने की महत्वाकांछा रखने वाले युवा लोग संगठनों के आकाओं को मिल जाते हैं, लेकिन प्रायोगिक तौर पर ऐसा होता नहीं है। एक बार संगठन में आने के बाद निकलना असंभव होता है। उन्हें ऐके 47, ऐके 56 राइफलें पकड़ा दी जाती हैं और फिर शुरू होता है उनका प्रशिक्षण कार्यक्रम। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उन्हें समाज में आतंक फैलाने के लिए विभिन्न स्थानों पर भेज दिया जाता है।आतंकवादियों के संगठनों की खास बात यह है कि उनमें मुस्लिम समुदाय के ही लोग हैं। लेकिन वे लोग यह भूल जाते हैं कि जब शहर के बाजारों में बम धमाके होंगे तो उसकी चपेट में जो भी लोग आएंगे हताहत होंगे, उनमें किसी भी जाति, धर्म के लोग हो सकते हैं। फिर कुछ समय बाद पकड़े भी जाते हैं और अदालती कार्यवाही के बाद उन्हें सजा मिलना लाजमी है। जीवन की कीमती उम्र समाप्त हो जाती है। जिन आकाओं ने मालामाल करने के सब्जबाग दिखाए थे, वह अब बहुत दूर हो जाते है। इन आकाओं को तो तुम्हारी जरूरत तभी तक रहती है जबतक कि तुम जिंदा व सुरक्षित रह कर समाज में आतंक फैलाने में लगे रहो।पड़ोसी देश हमारे देश में प्रशिक्षित आतंकवादियों को भेजकर बम धमाके करवा रहा है। निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं। उनके आका इसे सफल कामयाबी बताते हैं। वाह! समाज व राजनीति दो धड़े बन चुके हैं। धमाके होने पर लोग आक्रोश होते हैं जबकि राजनेता सिर्फ दुख व्यक्त करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते हैं। तुष्टिीकरण की राजनीति पर नेता अपना काम करने लगते हैं।मैं तो सिर्फ एक बात जानता हूं कि मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना। फिर यह तालीम किसने उन्हें दी कि मजहब ही सिखाता, आपस में बैर रखना।। कौन हैं इसके जिम्मेदार, ऐसे लोगों को फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए जिससे समाज में सुख-शांति वापस आ सके। साथ ही मैं ऐसे युवाओं का आह्वान करता हूं कि वो लोग ऐसे लोगों के बहकाबे में न आएं। समाज को स्वस्थ्य बनाएं, समाज को सुरक्षित बनाएं।

2 comments:

संगीता पुरी said...

आशा है ,भारत के सभी युवाओं को आपकी बातें सुनायी पड़ेगी..........अच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद।

Udan Tashtari said...

प्रभावी एवं अच्छा आलेख!!आभार!!!