Tuesday, September 2, 2008

होमवर्क से परेशान छात्र


आजकल पब्लिक स्कूलों में एक बात फैशन में आ चुकी है कि पढ़ाओ कम और घर से काम करके लाने को डायरी में निर्देश दे दिए जाते हैं। जब मैं स्वपोषित मान्यता प्राप्त विद्यालय में पढ़ा तब सारे अध्यापक जी जान से क्लास में न सिर्फ खुद मेहनत करते थे, बल्कि छात्रों से भी उतनी ही मेहनत कराते थे। खास तौर से साइंस के छात्रों के प्रति अध्यापक एक-एक शब्द को स्पष्ट करते हुए चलते थे। उस समय न तो ट्यूशन का बोल बाला था और न ही होम वर्क का। सारा काम प्रेक्टीकल था। हर छात्र से कक्षा में ही रोजाना टेस्ट लिया जाता था। इसके बाद नए विषय की जानकारी दी जाती थी। यदि किसी को कोई बात समझ में न आ रही हो तो वह सीधे अध्यापक से पूछ सकता था। अध्यापक खुश होकर उस छात्र को कक्षा में पूरी जानकारी देते थे। क्या मेल था उस समय छात्र और अध्यापक का।आज पब्लिक स्कूलों में फीस भी अधिक लग रही है और पढ़ाई से छात्र क्या उनके माता-पिता भी संतुष्ट नहीं दिखाई देते हैं। इन स्कूलों में महिला अध्यापिकाओं की भीड़ है। यह अध्यापिकाएं प्रशिक्षित भी नहीं होती हैं और स्कूल प्रबंध तंत्र कम वेतन पर इन लोगों को रख लेते हैं। यही अध्यापिकाएं स्कूलों में पढ़ाने के बाद घर पर ट्यूशन भी पढ़ाती हैं। और तो और ट्यूशन में भी होम वर्क दिया जाता है। छात्र होम वर्क करते-करते इतना थक जा रहा है कि वह परेशान है होम वर्क करने से। स्कूल वर्क का चलन घटता जा रहा है। इसके लिए कौन जिम्मेदार हैं, स्कूल प्रबंध तंत्र या टीचर। प्रबंध तंत्र पैसे कमाने में लगा हुआ है। उसे यह देखने की फुरसत कहां कि वह हर टीचर का ब्यौरा रोज मांगे। आज जरूरत है माता-पिता की जागरूपता। लोगों की जागरूपता के साथ ही सरकार को भी कड़े कदम उठाने चाहिए।

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

सही बात है।आजकल यही हो रहा है।इन पब्लिक स्कूलों में।