Sunday, July 20, 2008

शह-मात का खेल

22 जुलाई की घड़ी जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है, वैसे-वैसे सभी खेमों में जोड़ तोड़ की राजनीति जोर पकड़ती जा रही है। जो नेता या दल कभी एक मंच पर आने से कतराते थे आज वही हाथ मिला रहे हैं, एक सरकार को गिराने के लिए दूसरा सरकार को जिताने के लिए।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के आका शिबू सोरेन ने सरकार के पक्ष में वोट देने का निश्चय कर लिया है,उनके पार्टी के सभी पांचों सांसद संप्रग सरकार के पक्ष में मत देंगे। वहीं पर रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह ने मनमोहन सरकार के खिलाफ मत देने का निर्णय किया। सबसे बड़ी बात बसपा सुप्रीमो मायावती ने जद-एस के अध्यक्ष देवेगौड़ा से सरकार गिराने के लिए हाथ मिला लिया है, वाम दलों ने बसपा से दोस्ती का हाथ बढ़ाकर एक मजबूत खेमा तैयार कर लिया है। अब तीसरा मोर्चा-वाम दल-बसपा तीनों ने मिलकर संप्रग सरकार के खिलाफ वोट देने का निर्णय कर लिया है। इधर भाजपा का रुख इन तीनों खेमा से अलग है। वह सरकार के विरुद्ध मतदान तो देगी, लेकिन किसी खेमे की न तो अगुआई कर रही है और न ही खेमे में शामिल है। इधर संप्रग नेता छोटे-छोटे दलों पर अपनी ओर लाने के लिए तरह-तरह के डोरे डाल रहे हैं। वाम दल सरकार गिराने के लिए कटिबद्ध हैं। तीसरा मोर्चा पूरी तरह बिखर चुका है, इसके मुखिया मुलायम सिंह ने कांग्रेस को समर्थन ही नहीं दिया है बल्कि अन्य दलों के संासदों को तोड़ने पर लगे हुए हैं।परमाणु करार के पक्ष में और परमाणु करार के विपक्ष में 22 जुलाई को लोक सभा में मतदान होना है, यदि सरकार रहती है तो वाम दल समेत विपक्षी खेमा को सरकार की तरफ से जो ताने सुनने पड़ेंगे वह इन दलों को असहनीय पीड़ा जरूर देंगे। और यदि संप्रग सरकार जाती है तो उत्तर प्रदेश में न सिर्फ सपा मुखिया मुलायम सिंह और अमर सिंह का जीना मुश्किल कर देंगी मुख्यमंत्री मायावती, बल्कि वाम दल कांग्रेस पर इस तरह हावी हो जाएंगे कि वह देश की जनता के सामने अपना मुंह छिपाने की कोशिश करेंगे।हर दल के निलंबित व वागी सांसद अवश्य ही संसद में दल के विपरीत वोट डालेंगे, ऐसा प्रतीत होता है। कुछ सांसद सदन में पाला भी बदलेंगे। सरकार की हार-जीत का फैसला इसी तरह के सांसद तय करेंगे, क्योंकि इस समय सरकारी और विपक्षी दलों के सदस्यों की संख्या लगभग बराबर है, तो निश्चित है कि इसी तरह के सदस्य लोग सदन में अहम भूमिका निभाएंगे और इसी भूमिका में सरकार बच भी सकती है और जा भी सकती है। लेकिन सरकार के बचने के आसार ज्यादा नजर आ रहे हैं। शह-मात का खेल जारी है और देखना है जोर कितना बाजु-ए कातिल में है।