Monday, July 14, 2008

डील पर लेफ्ट हुए लाल

अमेरिका भारत परमाणु करार पर केन्द्र सरकार का सहयोगी दल लेफ्ट समेत सभी विपक्षी दल करार के विरोध में बोल रहे है। लेफ्ट ने तो अपना दिया हुआ समर्थन भी वापस ले लिया है। अल्पमत में आई सरकार को समाजवादी पार्टी ने समर्थन देकर मनमोहन सरकार को न गिरने की कसम खा ली है। सरकार ने करार का ड्राफ्ट भी जारी कर दिया है इससे एक बात तो स्पष्ट होती है की करार भारत के लिए कितना लाभ और कितना हानि देगा। यदि निस्वार्थ भावना से देखा जाय तो करार से भारत को लाभ ज्यादा मिलने जा रहा है। उयेरेनियम का भण्डार एक साल के लिए कर सकते है। शान्ति के क्षेत्र में ऊर्जा का अधिक उत्पादन कर सकते है। भारत पहले से ही एक शान्ति प्रिय देश है इस कारण से असैनिक क्षेत्र में ऊर्जा का अधिक उत्पादन कर हम और अधिक मजबूत बन सकते है। अमेरिका परमाणु अधिनिम १९५४ की धारा १२३ में लिखा है की अमेरिका उन्ही देशों से करार करेगा जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्क्षर किए । इस लाइन में पाकिस्तान , इजराएल भी थे । भारत तो परमाणु अप्रसार संधि से बहुत दूर है फिर भी अमेरिका ने भारत को चुना। यह बड़े गर्व की बात है। जब भारत को परमाणु हथियार का प्रयोग ही नही करना है तो फिर अमेरिका से परमाणु करार करना बेहतर है। लेफ्ट इस मामले में राजनीती कर रही है। उनके पास कोई मुद्दा जब नही मिला तो करार को ही बना डाला हथियार। देश के प्रमुख वैज्ञानिक कलाम साहब ने भी कहा है की करार राष्ट्र हित में है। कुछ नेताओं ने तो यहाँ तक कह दिया है की करार मुस्लिम विरोधी है। जबकि करार में धर्म जाती से कोई मतलब ही नही है। करार में राष्ट्र हित सर्वोपरि होना चाहिए। करार में यदि इसके अलावा कोई छिपा मामला है तो वह मनमोहन सरकार के लिए हानिकारक हो सकता है यदि नही है है तो यह उसके लिये बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।

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