Wednesday, July 23, 2008

पराजय से विचलित हुए दल

लोकसभा में मनमोहन सरकार को मिली जीत से परेशान कई दलों में बैचेनी हो गयी। बागी सांसदों के घरों पर हमले हो रहे है। धमकी मिल रही हैं। यह कैसा लोकतंत्र जहां पर एक सांसद अपनी जनता की आवाज को सदन में नहीं रख सकता। यदि रखता भी है तो उस पर पार्टी से हटकर कार्यवाही होने लगती है। सदन के अंदर हर सांसद को अंतर्आत्मा की आवाज पर वोट देने का अधिकार मिलना चाहिए न कि पार्टी लाईन पर चलने के लिए वह बाध्य हो।लोकसभा में मिली पराजय से विचलित हुए बिना नया राजनीतिक समीकरण बनाने का संकेत देते हुए बसपा और वाम सहित दस राजनीतिक दलों के नेताओं ने कांग्रेस और भाजपा का विकल्प पेश करने की घोषणा की। इसके साथ ही भारत-अमेरिका परमाणु करार, मंहगाई और कृषि संकट जैसे मुद्दों पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ने का भी ऐलान किया गया।लोक सभा में भाजपा के पांच सांसदों द्वारा क्रास वोटिंग करने और तीन सांसदों के अनुपस्थित रहने के कारण गुस्से से तिलमिलाई भाजपा ने अपने आठों बागी सांसदों को पार्टी से निलबिंत कर दिया। इधर माकपा लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी पर कार्यवाही की धमकी दे रही है। सोमनाथ ने पार्टी लाईन से हटकर देश लाईन को पहली प्राथमिकता दी।

3 comments:

Unknown said...

पार्टी में अनुशाशन तो जरूरी है. जो सांसद पार्टी के चुनाव चिन्ह और घोषणापत्र पर चुनाव जीतता है उसे अगर पार्टी की कोई नीति स्वीकार्य नहीं तो उसे पहले लोकसभा और पार्टी से त्यागपत्र देना चाहिए. उसके बाद जो नीति उसे पसंद है उस पर आगे चलना चाहिए. यह एक नैतिक कर्तव्य है जिसका आज कल नेताओं में नितांत अभाव है. दूसरे आज कल के सांसदों की अंतरात्मा की आवाज जनता की आवाज तो बिल्कुल नहीं है. जनता ने पाटिल को हराया पर मनमोहन ने उन्हें ग्रह मंत्री बना दिया. जिस शर्मनाक तरीके से राजनेताओं ने काम किया वह तो जनता की आवाज कभी नहीं हो सकती.

कुश said...

सुरेश जी की बात से सहमत हू.. पार्टी में शामिल होते वक़्त उसे पार्टी की नीतिया और सिद्धांतो के बारे में अवश्य पता हो.. भेड़चाल के रूप में किसी पार्टी में नामांकन ग़लत है

Udan Tashtari said...

पूरा ही घटनाक्रम अफसोसजनक रहा-क्या किसी एक के लिए कहें.