Friday, July 18, 2008
संप्रग सरकार के बचने के आसार
भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार से जुड़े सेफगार्ड समझौते पर अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) में शामिल 35 देशों जिसमें 26 देश परमाणु आपूर्ति समूह (एनएसजी) के सामने समझौते से जुड़े पहलुओं का खुलासा करने की प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की घोषणा के बाद केंद्र की कांग्रेस नीति संप्रग सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे वाम दलों ने अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार अल्पतम में आ गयी। मनमोहन सिंह ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मुलाकात कर कहा कि हम लोक सभा में विश्वास प्रस्ताव 22 जुलाई को लाएंगे, यदि सदन का बहुमत हमारे साथ होता है तभी इस करार पर आगे कदम बढ़ाए जाएंगे अन्यथा नहीं।प्रश्न उठता है कि क्या परमाणु करार भारत और अमेरिका के बीच है या फिर मनमोहन और बुश के बीच। दोनों ही देशों की सरकारों को करार पर इतनी जल्दबाजी क्यों है। भारत की सरकार तो पूर्ण बहुमत वाली भी नहीं है। सरकार का फर्ज बनता था कि वह अपने समर्थित दलों को परमाणु करार के बारे में सारी जानकारी रखते। परमाणु करार को न्यूनतम साझा कार्यक्रम में शामिल न कर एक स्वस्थ परंपरा का उल्लंघन किया, क्या सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम को राष्ट्रहित में उचित माना जा सकता है। आज जहां मनमोहन को अपनी सरकार बचाने के लिए एक-एक वोट के लिए मोहताज होना पड़ रहा है वह स्थिति नहीं आती। यदि दोनों देशों के बीच वास्तविक रूप से करार होता तो इन दोनों नेताओं को इतनी जल्दबाजी नहीं होती, अन्यथा वह इस करार को अंतिम रूप देने के लिए नई सरकार पर छोड़ देते क्योंकि इस करार को क्रियांवयन से पहले एक लंबा रास्ता तय करना है। इससे एक बात उभर कर आती है कि ही कोई न कोई ऐसा मामला इस करार में जरूर है जो देश हित में नहीं है। भले ही एटमी वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने इस करार पर अपनी मुहर लगा दी हो फिर भी देश परमाणु करार को संदेह की दृष्टि से देख रहा है। कांग्रेस नीति संप्रग सरकार को लोक सभा में अपना बहुमत साबित करने के लिए निर्दलीय सांसदों और छोटे-छोटे दलों से सहयोग लेना पड़ रहा है।अमेरिका परमाणु करार अधिनियम 1954 की धारा 123 में इस बात का उल्लेख है कि अमेरिका उन्हीं देशों से परमाणु करार करेगा जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए हों। इस करार की लाइन में पाकिस्तान, इजरायल भी थे, किंतु दोनों देशों को दरकिनार कर भारत को चुना। जबकि भारत परमाणु अप्रसार संधि से बहुत दूर है। लेकिन भारत की खास बात रही है कि उसने परमाणु ऊर्जा का उपयोग शांति के क्षेत्र में किया है। भारत शुरू से ही एक शांति प्रिय देश है। परमाणु समझौता अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी से गुजरने के बाद अमेरिका कांग्रेस की अंतिम मुहर लगने के बाद ही इस करार का क्रियांवयन हो पाएगा। परमाणु करार मामले पर संप्रग सरकार लोक सभा में अपना बहुमत जुटाने के लिए ऐड़ी चोटी एक किए हुए है। वहीं पर विपक्षी खेमा सरकार को गिराने के लिए पुरजोर ताकत लगा रही है। वाम दलों के चारों घटक भी विपक्षी खेमा में पहुंच गए हैं, जिनकी कोशिश है सरकार को सदन में गिराने की। इसप्रकार दोनों तरफ से ही सांसदों को अपनी-अपनी तरफ करने की कोशिशें जारी हैं। सरकारी पक्ष इस करार को राष्ट्रहित बताकर निर्दलीय सांसदों व छोटे-छोटे दलों के सांसदों को प्रलोभन देकर अपनी तरफ खींच रहे हैं, जबकि विपक्षी खेमा इस करार को राष्ट्र विरोधी बताकर सरकार को उखाड़ फेंकने की जी तोड़ कोशिश कर रही है।261 सांसदों ने खुलकर सरकार के पक्ष में मत देने की विधिवत घोषणा कर दी है वहीं पर 259 सांसदों ने सरकार के विरोध में मत देने की मंशा जाहिर कर दी है, जबकि जादुई अंक पाने के लिए 271 का आंकड़ा पाना है। 22 सांसद अभी अनिर्णय की स्थिति में हैं, छोटे दलों के 11 सांसद और निर्दलीय चार सांसद ही 22 जुलाई को लोक सभा में अहम भूमिका निभाएंगे। फिलहाल दोनों ही खेमाओं की नजर इन्हीं 37 सांसदों पर लगी हुयी हैं। सरकारी पक्ष कुछ ज्यादा मजबूत दिखता है क्योंकि उसने राजकीय प्रलोभन देने शुरू कर दिए हैं, जैसे झारखंड मुक्ति मोर्चा के आका शिबू सोरेन को झारखंड की गद्दी देकर उसके बदले उनके पांच सांसदों का समर्थन पा लेना, अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोक दल के तीन सांसदों का समर्थन लेने के लिए लखनऊ हवाई अड्डा का नाम बदलकर चौधरी चरण सिंह कर देना, ममता बनर्जी का भाजपा से मेल न खाना आदि ऐसे मामले हैं जिसका लाभ सरकार को लोक सभा में देखने को मिल सकता है। अब तो सरकार दंभ भर कर कहने लगी है कि मेरे पक्ष में 280 सांसदों हैं। फिलहाल सरकार को सदन में बहुमत साबित करने के लिए एक कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है। इधर शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक उछाल मार कर कह रहा है कि सरकार बहुमत के जादुई अंक को प्राप्त कर लेगी। बहुमत साबित करने के युद्ध में यदि वाम दल हारते हैं तो इसका असर आगामी लोक सभा चुनाव पर विपरीत पड़ सकता है और यदि इनकी जीत होती है तो वाम दल समेत विपक्षी दलों को देश के आम चुनाव में अधिक लाभ मिलना तय है, लेकिन ऐसा कम ही लगता है। सदन के अंदर ऐसा जादू अवश्य काम करेगा जिसका नतीजा सरकार के पक्ष में जाएगा।
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