Monday, July 6, 2009

ताकि बजट समझने में न आए बाधा


आपका भी मन आम बजट की बारीकियों को जानने के लिए जरूर मचलता होगा। ऐसे में आपकी जिज्ञासा शांत करने के लिए हम बजट की कठिन शब्दावली के बारे में जानकारी दे रहे हैं-बजट से मुख्यत: सरकारी राजस्व, उसके खर्चो, टैक्स तथा विभिन्न क्षेत्रों को धन आवंटन के बारे में जानकारी मिलती है। यह देश की वित्तीय सेहत को भी दर्शाता है।
शब्दावली-कर राजस्व : केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए तमाम करों व शुल्कों से प्राप्त होने वाली धनराशि को कर राजस्व कहते हैं। आयकर, कारपोरेट टैक्स, सेवा कर, उत्पाद शुल्क इसी के तहत आते हैं।
गैर कर राजस्व या अन्य राजस्व : सरकारी निवेश पर ब्याज व लाभांश तथा सरकार की अन्य सेवाओं पर प्राप्त होने वाले तमाम शुल्क इसमें शामिल हैं।
राजस्व प्राप्तियां : कर राजस्व और अन्य राजस्व को मिलाकर प्राप्त होने वाली कुल धनराशि को सरकार की राजस्व प्राप्तियां कहते हैं।
राजस्व खर्च : सरकारी विभागों व विभिन्न सेवाओं के संचालन पर खर्च होने वाली राशि, सब्सिडी, सरकारी कर्ज पर ब्याज, राज्य सरकारों को अनुदान आदि इसमें शामिल हैं। राजस्व खर्चो से कोई भी परिसंपत्ति या भौतिक उपलब्धि हासिल नहीं होती है, यह इसका नकारात्मक पहलू है।
राजस्व घाटा : कुल राजस्व खर्च और राजस्व प्राप्तियों के अंतर को राजस्व घाटा कहा जाता है।
पूंजीगत प्राप्तियां(कैपिटल रिसीट) : सरकार द्वारा आम जनता व रिजर्व बैंक से लिए जाने वाले कर्ज, विदेशी सरकारों व संस्थानों से प्राप्त होने वाले कर्ज और राज्यों द्वारा वापस किए गए कर्ज इसमें शामिल हैं।
पूंजीगत भुगतान या पूंजीगत खर्च : जमीन, मकान,मशीनरी आदि की खरीद पर सरकारी खर्च और राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों, सरकारी कंपनियों को दिए जाने वाले कर्ज इसमें सम्मिलित हैं। इस तरह के खर्चो को सकारात्मक माना जाता है।
बजट घाटा : कुल राजस्व-पूंजीगत खर्चो और कुल राजस्व-पूंजीगत प्राप्तियों के अंतर को बजट घाटा कहा जाता है।
राजकोषीय घाटा : बजट घाटे को पाटने के लिए सरकार द्वारा लिए जाने वाले कर्ज व उस पर अन्य देनदारियों को ही राजकोषीय या वित्तीय घाटा कहते हैं। इसे कुछ अलग ढंग से भी समझा जा सकता है। मान लीजिए कि किसी व्यक्ति की कुल सालाना आय एक लाख रुपये है और उसका सालाना खर्च 1.20 लाख रुपये है तो उसे अपने खर्चो को पूरा करने के लिए 20 हजार रुपये का कर्ज कहीं से लेना ही पड़ेगा। इसका मतलब यही हुआ कि वह आदमी सालाना 20 हजार रुपये के घाटे के साथ अपना व परिवार का भरण-पोषण कर रहा है। यदि वह किसी अन्य वैध तरीके से अपनी आय नहीं बढ़ाएगा तो उसका यह घाटा बढ़ता चला जाएगा। ठीक यही बात सरकार पर भी लागू होती है। ऐसी स्थिति में सरकार के लिए यह जरूरी होता है कि या तो वह अपने अनावश्यक खर्चो में कटौती करे या गैर जरूरी सब्सिडी नहीं दे, लोगों पर बगैर ज्यादा बोझ डाले तमाम स्त्रोतों से राजस्व बढ़ाए अथवा विभिन्न कर दरों को तर्कसम्मत बनाए।
प्राथमिक घाटा : कुल राजकोषीय घाटे से ब्याज बोझ को हटा देने के बाद जो राशि बचती है उसे ही प्राथमिक घाटा कहते हैं। दूसरे शब्दों में ब्याज बोझ को हटा देने के बाद जो मूल कर्ज बचता है उसे प्राथमिक घाटा कहा जाता है।
अनुदान मांग : विभिन्न मंत्रालयों व सरकारी विभागों के खर्च अनुमानों को अनुदान मांग के रूप में सालाना वित्तीय वक्तव्य में शामिल किया जाता है। इसे लोकसभा में पारित करवाना पड़ता है।
विनियोग विधेयक(एप्रोप्रिएशन बिल) : लोकसभा में अनुदान मांगों को मंजूरी मिलने के बाद इस धनराशि को कंसोलिडेटेड फंड आफ इंडिया (समेकित निधि) से निकाला जाता है। समेकित निधि से तभी कोई धन निकाला जा सकता है जब इसके लिए विनियोग विधेयक तैयार कर उसमें इस राशि को शामिल किया जाए और संसद की मंजूरी उसे मिल जाए।
समेकित निधि(कंसोलिडेटेड फंड आफ इंडिया) : सरकार द्वारा करों, कर्जो, बैंकों व सरकारी कंपनियों के लाभांश वगैरह के जरिए जुटाई जाने वाली राशि समेकित निधि में ही डाली जाती है। संसद की मंजूरी के बगैर इसका एक पैसा भी खर्च नहीं किया जा सकता।
सालाना वित्तीय वक्तव्य: बजट के कुल सात दस्तावेजों में से सबसे प्रमुख दस्तावेज को सालाना वित्तीय वक्तव्य कहते हैं। इसमें सरकार की तमाम प्राप्तियों व खर्चो या आवंटन का जिक्र किया जाता है।
वित्त विधेयक : नए टैक्स लगाने, मौजूदा कर ढांचे को स्वीकृत अवधि के बाद भी जारी रखने और कर ढांचे में संशोधन से संबंधित सरकारी प्रस्तावों को वित्त विधेयक के जरिए ही संसद में पेश किया जाता है ताकि उसकी मंजूरी मिल सके।
राष्ट्रीय ऋण : केंद्र सरकार पर घरेलू व विदेशी कर्जदाताओं के कुल कर्ज बोझ को राष्ट्रीय ऋण कहा जाता है।
सार्वजनिक ऋण : राष्ट्रीय ऋण के साथ-साथ राष्ट्रीयकृत उद्योगों और स्थानीय प्राधिकरणों के कुल कर्ज बोझ को सार्वजनिक ऋण कहा जाता है।
ट्रेजरी बिल : सरकार कम अवधि वाले कर्ज ट्रेजरी बिलों के जरिए ही जुटाती है।
पूंजीगत लाभ कर : किसी शेयर या परिसंपत्ति के खरीद मूल्य व उसके बिक्री मूल्य में अंतर यानी लाभ पर लगाए जाने वाले टैक्स को पूंजीगत लाभ कर कहते हैं।
मैट: यानी न्यूनतम वैकल्पिक कर के दायरे में वह कंपनियां आती हैं जो विभिन्न तरह की कर छूट के चलते कोई टैक्स अदा नहीं करतीं। मैट के तहत ऐसी कंपनियों को भी अपनी कमाई का एक न्यूनतम हिस्सा टैक्स के रूप में सरकारी खजाने में देना पड़ता है।

2 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत आभार. अब सुनकर समझ आ जायेगा पूरा बजट.

विवेक सिंह said...

यह तो संग्रहणीय लेख लिख दिया जी !