वैज्ञानिकों को विश्वास है कि बाईस जुलाई को पड़ रहे पूर्ण सूर्यग्रहण पर प्रकृति के अनेक रहस्यों पर से पर्दा हट सकेगा क्योंकि पिछली दो सदियों में पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान ही दुनिया को चौंकाने वाले आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धान्त का सफल प्रतिपादन हो सका था और हीलियम तत्व की खोज की गई थी। बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि पूर्ण सूर्यग्रहण का धार्मिक महत्व होने के साथ उसका कितना वैज्ञानिक महत्व है। बहुत कम लोगों को पता होगा कि 18 अगस्त, 1868 को भारत में पड़े पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान ही हीलिमय तत्व की खोज की गई थी। उस दिन भारत के गुंटूर में दुनिया को चौंकाने वाले इस तत्व की खोज की गई तो पूरे विश्व के वैज्ञानिक चमत्कृत रह गए। सूर्य ग्रहण एवं चंद्रग्रहण को भारतीय लोग सदियों से बहुत महत्वपूर्ण प्राकृतिक घटना मानते रहे हैं और इसका धार्मिक महत्व तो जितना भारत में है उतना शायद ही कहीं और होगा।
फ्रांसिसी खगोलविद पियरे जैनसन ने भारत के गुंटूर में 1868 में जब पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य के क्रोमोस्फीयर के स्पेक्ट्रम में चमकीली पीली रेखा देखी तभी उन्होंने बता दिया कि 587 ़49 नैनोमीटर तरंग धैर्य की यह रेखा प्रकृति में मौजूद एक नए तत्व की वजह से है। बाद में अंग्रेज खगोलविद नार्मन लाकियर एवं अंग्रेज रसायनविद एडवार्ड फ्रैंकलैंड ने इस नए तत्व को धीरे धीरे हेलियो और फिर हीलियम नाम दिया। संभवत: यदि पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान जैनसन और फिर लाकियर ने सूर्य की किरणों एवं क्रोमोस्फीयर का वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया होता तो दुनिया को हीलियम के आविष्कार से आने वाले काफी वर्षो तक अछूता ही रहना पड़ा होता।वास्तव में पूर्ण सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के दौरान हुए वैज्ञानिक अध्ययनों से विश्व में अनेक आविष्कार एवं खोजें हुई हैं।इतना ही नहीं विश्व के अनेक अनोखे वैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन एवं उनकी पुष्टि भी पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान हुए अध्ययनों से हुई है। बीसवीं सदी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक सिद्धान्तों में से एक आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धान्त (थियरी आफ रिलेटिविटी) का परीक्षण 1919 में हुए पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों में हुआ था।
1919 के पूर्ण सूर्यग्रहण में किए गए इन प्रयोगों में ही पहली बार आइंस्टीन के सिद्धान्तों को साबित करते हुए यह पाया गया कि सूर्य के बिलकुल निकट प्रकाश का मार्ग मुड़ जाता था। इस बार बुधवार को भारत के जिस थोड़े से भाग में एक बार फिर पूर्ण सूर्यग्रहण स्पष्ट तौर पर देखा जा सकेगा उस पट्टी में सूरत, इंदौर, भोपाल, वाराणसी और पटना भी शामिल हैं।वैज्ञानिक शोध एवं अध्ययन के लिहाज से इस बार के पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान वाराणसी का विशेष महत्व होगा। इसे देखते हुए ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रोफेसर बी एन द्विवेदी, अमेरिका में कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी के भौतिकी एवं खगोल शास्त्र विभाग के प्रोफेसर डी पी चौधरी और बेंगलूर के भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के प्रोफेसर आर सी कपूर मिलकर पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान 'वाराणसी में सूर्य के लुप्त होने पर' की वैज्ञानिक घटनाओं का गंगा के किनारे अध्ययन करेंगे।22 जुलाई को वाराणसी में दिखने वाला पूर्ण सूर्यग्रहण इस सदी का सबसे लंबा दिखने वाला सूर्यग्रहण होगा जिसके चलते यह खगोलीय घटना अपने आप में नितांत अनूठी होगी। पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य के क्रोमोस्फीयर का वैज्ञानिक अध्ययन बहुत ही महत्वपूर्ण होगा। भारत के अलावा भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार एवं चीन में दीखने वाला यह पूर्ण सूर्यग्रहण वाराणसी में लगभग छह मिनट, चालीस सेकेंड का होगा और यह यहां लगभग छह बज कर 26 मिनट से छह बजकर 32 मिनट के बीच दिखेगा।
फ्रांसिसी खगोलविद पियरे जैनसन ने भारत के गुंटूर में 1868 में जब पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य के क्रोमोस्फीयर के स्पेक्ट्रम में चमकीली पीली रेखा देखी तभी उन्होंने बता दिया कि 587 ़49 नैनोमीटर तरंग धैर्य की यह रेखा प्रकृति में मौजूद एक नए तत्व की वजह से है। बाद में अंग्रेज खगोलविद नार्मन लाकियर एवं अंग्रेज रसायनविद एडवार्ड फ्रैंकलैंड ने इस नए तत्व को धीरे धीरे हेलियो और फिर हीलियम नाम दिया। संभवत: यदि पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान जैनसन और फिर लाकियर ने सूर्य की किरणों एवं क्रोमोस्फीयर का वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया होता तो दुनिया को हीलियम के आविष्कार से आने वाले काफी वर्षो तक अछूता ही रहना पड़ा होता।वास्तव में पूर्ण सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के दौरान हुए वैज्ञानिक अध्ययनों से विश्व में अनेक आविष्कार एवं खोजें हुई हैं।इतना ही नहीं विश्व के अनेक अनोखे वैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन एवं उनकी पुष्टि भी पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान हुए अध्ययनों से हुई है। बीसवीं सदी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक सिद्धान्तों में से एक आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धान्त (थियरी आफ रिलेटिविटी) का परीक्षण 1919 में हुए पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों में हुआ था।
1919 के पूर्ण सूर्यग्रहण में किए गए इन प्रयोगों में ही पहली बार आइंस्टीन के सिद्धान्तों को साबित करते हुए यह पाया गया कि सूर्य के बिलकुल निकट प्रकाश का मार्ग मुड़ जाता था। इस बार बुधवार को भारत के जिस थोड़े से भाग में एक बार फिर पूर्ण सूर्यग्रहण स्पष्ट तौर पर देखा जा सकेगा उस पट्टी में सूरत, इंदौर, भोपाल, वाराणसी और पटना भी शामिल हैं।वैज्ञानिक शोध एवं अध्ययन के लिहाज से इस बार के पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान वाराणसी का विशेष महत्व होगा। इसे देखते हुए ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रोफेसर बी एन द्विवेदी, अमेरिका में कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी के भौतिकी एवं खगोल शास्त्र विभाग के प्रोफेसर डी पी चौधरी और बेंगलूर के भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के प्रोफेसर आर सी कपूर मिलकर पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान 'वाराणसी में सूर्य के लुप्त होने पर' की वैज्ञानिक घटनाओं का गंगा के किनारे अध्ययन करेंगे।22 जुलाई को वाराणसी में दिखने वाला पूर्ण सूर्यग्रहण इस सदी का सबसे लंबा दिखने वाला सूर्यग्रहण होगा जिसके चलते यह खगोलीय घटना अपने आप में नितांत अनूठी होगी। पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य के क्रोमोस्फीयर का वैज्ञानिक अध्ययन बहुत ही महत्वपूर्ण होगा। भारत के अलावा भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार एवं चीन में दीखने वाला यह पूर्ण सूर्यग्रहण वाराणसी में लगभग छह मिनट, चालीस सेकेंड का होगा और यह यहां लगभग छह बज कर 26 मिनट से छह बजकर 32 मिनट के बीच दिखेगा।
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