Thursday, March 26, 2009

लोकतंत्र को तार-तार होने से बचाएं

जनता के लिए जनता की सरकार को गठित करने के लिए आम चुनाव की रणभेदी बज चुकी है। राजनैतिक पार्टियां प्रचार में मशगूल हैं। नेता पुराने वायदे भूलकर नए वायदों के साथ चुनाव मैदान हैं। जिन पार्टियों ने निवर्तमान सांसदों को टिकट नहीं दिया वह बगावत कर या तो दूसरे दल से टिकट पा गए या फिर निर्दलीय प्रत्याशी बनकर युद्ध मैदान में आ गए हैं क्योंकि ऐसा अवसर पांच साल के बाद ही मिलता है इसको वह आसानी से जाने नहीं देना चाहते हैं। ऐसे लोगों को जनप्रतिनिधि बनने का कोई अधिकार ही नहीं है जिनमें सत्तालोलुपता कूट-कूट कर भरी हो। संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली पार्टियां जो पैसों से टिकट देती हैं भला उस दल के जनप्रतिनिधि क्या जनता की सेवा कर पाएंगे। सबसे पहले वह अपनी भरपाई करेंगे। सांसद क्षेत्रीय विकास फंड का जम के दुरुपयोग हो रहा है। उत्तर प्रदेश को ही ले लीजिए वहां की सत्तारूढ़ पार्टी ने इसबार लोक सभा का टिकट तीस-चालीस लाख रुपए में दिया है। सोचिए, इस दल के लोग सांसद बनकर क्या जनता की सेवा करेंगे, नहीं, सबसे पहले वह दी हुई राशि की भरपाई करेंगे। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि चुने गए सांसदों को तो राष्ट्रीय गीत भी पूरी तरह से नहीं आता है। क्या यह राष्ट्रीय शर्म की बात नहीं है। चुनाव के मौके पर वोट मांगने के लिए नेता लोग तरह-तरह के आश्वासन देते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद यह लोग फिर दिखाई नहीं देते हैं। और तो और जब किसी भी दल की सरकार बनते नहीं दिखाई देती है तो फिर जनप्रतिनिधियों के बीच खरीद-फरोख्त आरंभ होने लगती है। यही है वर्तमान लोकतंत्र का ढ़ाचा। अब समय आ गया है इस जर्जर लोकतंत्र को बचाने को। लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है, उसके हाथ में वह ताकत है जिसे उसके क्षेत्र में थोपे गए उम्मीदवार को धूल चटा दें। लोकतंत्र की रक्षा के लिए अब सभी मतदाताओं को एक जुट होना पड़ेगा और ऐसे को जिताना है जो हम सभी का दुख, दर्द समझ सके। लोकतंत्र में नेता बनना आसान होता है, लेकिन नेता की राह पर चलना कठिन होता है। एक सच्चे नेता की संपत्ति क्षेत्र की जनता होती है, न कि सत्तालोलुपता और भ्रष्टाचार। निवर्तमान संसद में ऐसे जनप्रतिनिधियों ने लोकतंत्र को तार-तार कर दिया था। ऐसे लोगों द्वारा लोकतंत्र की हत्या न होने पाए,इसके लिए मतदाताओं को एक जुट होकर आगे आकर सही व्यक्ति को ही चुने। जिस पर जरा सा भी दाग हो उसको कदापि न चुनें। हम देखते हैं कि संसद में कई-कई दिनों तक हंगामे होते रहते हैं। उसकी वजह ही है कि गलत लोग चुन कर संसद में पहुंचे हैं। एक बार तो उत्तर प्रदेश विधान सभा में जो हंगामा हुआ था वह घटना जब याद आती है शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। विधान सभा में जो नंगा नाच हुआ वह इतिहास के पन्ने में दर्ज हो चुका है।मैं कुल मिलाकर यही कहना चाहूंगा कि अपने जनप्रतिनिधि को चुनने में पहले जो गलती हुई हैं उसे अब नहीं होने दें। अबकी बार योग्य व्यक्ति को ही चुने जो ईमानदार के साथ क्षेत्र की जनता के साथ कदम से कदम मिलाकर पूरे पांच साल तक चले। और जब ऐसे लोग जो मन से और कर्म से पाक हों देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में पहुंचकर क्षेत्र की मांगों को बखूबी रखेंगे और हमें उन पर गर्व होगा और उनकी शान बढ़ेगी कि क्या जनता और जनप्रतिनिधि में संबंध हैं।

1 comment:

sarita argarey said...

नेताओं पर दबाव डालने के लिए मतदाताओं को ही पहल करना होगी । राजनीतिक दल खुद होकर कभी बदलाव नहीं चाहेंगे ,उन्हें मजबूर किया जा सकता है वोट नहीं करने का भय दिखाकर । चुनाव आयोग ने हमें मौका दिया है कि हम मतदान केन्द्र पर अपने मत का उपयोग नहीं करने की सूचना दर्ज़ करायें । मेरा मानना है कि हमें इस व्यवस्था का बड़े पैमाने पर फ़ायदा उठाना चाहिए । आप से गुज़ारिश है कि इस मुहिम में लोगों को शामिल करें ।