Sunday, March 8, 2009
चुनाव विपक्ष नहीं जीतता, सरकारें हारती हैं
पिछले चुनाव में अटल बिहारी वाजपेई के करिश्माई व्यक्तित्व और तेईस दलों वाले लगभग एकजुट राजग के बावजूद भाजपा के नेतृत्व वाला मोर्चा चुनाव हार गया था। लेकिन इस बार न तो वैसा व्यक्तित्व शीर्ष पर है और राजग के घटक दलों की संख्या भी सिमटकर फिलहाल छह रह गई है। इसके बावजूद सत्ता के सपने संजोने में राजग पीछे नहीं है। राजग के महत्वपूर्ण घटक दल बीजू जनता दल ने शनिवार को भाजपा की अगुवाई से दामन छुड़ाने की घोषणा करके उसे एक करारा झटका दिया है और साथ ही लालकृष्ण आडवाणी के 'पीएम इन वेटिंग' के सपनों को भी चकनाचूर कर दिया है। कुनबे में बिखराव की शुरूआत के बावजूद राजग की जीत के सपने पर भाजपा के एक बड़े नेता का कहना था कि चुनाव में विपक्ष नहीं जीतता बल्कि सरकार हारती है। पार्टी का दावा है कि संप्रग के आम आदमी के मुखौटे की पोल खुल चुकी है और जनता कांग्रेस को झूठे वायदे करने का सबक सिखाने के लिए बेताब है। वर्ष दो हजार चार तक भाजपा का ग्राफ काफी ऊंचा था और उसके फिर से चुनाव जीतने की उम्मीद की जा रही थी लेकिन लगभग सभी अटकलों के बरखिलाफ इंडिया शाइनिंग का नारा उल्टा पड़ गया और 'सरकार हार गई' तथा विपक्ष (कांग्रेस नीत संप्रग) जीत गया। अब भाजपा को इसी कहावत के सच होने की उम्मीद है कि 'सरकार हारेगी और विपक्ष जीतेगा।' पिछले लोस चुनाव में बड़ा झटका खाने के कुछ ही समय बाद भाजपा का ग्राफ फिर चढ़ने लगा था। लोस चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस को जहां चौदह विस चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा, वहीं भाजपा अपने सहयोगी दलों के साथ बिहार, उड़ीसा, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक आदि में लगातार जीत हासिल करती रही। लेकिन आगामी लोस चुनाव से ऐन पहले दिल्ली और राजस्थान सहित छह में से चार विस चुनाव हार जाने से उसके विजयी अभियान पर झटकेदार ब्रेक लगा। छह दलों में सिमटे राजग के घटक दल भाजपा पर अपनी शर्ते थोपने का लगातार दबाव बनाए हुए हैं जिनमें शिव सेना, जदयू, अकाली दल, इंडियन नेशनल लोकदल और राष्ट्रीय लोकदल शामिल हैं। भाजपा ने कुछ दिन पहले असम गण परिषद के राजग में शामिल होने की घोषणा की लेकिन उसने कुछ ही देर बाद इसका खंडन करते हुए कहा कि वह राजग का हिस्सा नहीं है केवल सीटों के बंटवारे को राजी हुआ है। भाजपा को इस बार पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक और केरल में कोई सहयोगी दल नहीं मिलना बड़ी परेशानी का सबब है, क्योंकि लोकसभा की कुल सीटों की एक तिहाई यानी एक सौ इकत्तर सीट इन्हीं राज्यों से हैं। पिछले आम चुनाव में भाजपा कांग्रेस से पिछड़कर एक सौ अड़तीस सीट पर सिमट गई और उसके नेतृत्व वाले राजग को कुल एक सौ इक्यासी सीटें मिलीं। उधर कांग्रेस ने अपने बूते एक सौ पैंतालीस सीटें जीतने के साथ अपने सहयोगी दलों के साथ दो सौ इक्कीसका आंकड़ा छुआ और वाम दलों के समर्थन से सरकार बनाई।
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1 comment:
सुन्दर प्रविष्टि. धन्यवाद
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