Tuesday, March 10, 2009

होली मनाने की परंपरा बुंदेलखंड से हुई


रंगों के पर्व होली के जनक बुंदेलखंड के झांसी जिले के एरच कस्बे के लोगों में अब भी होलिका के जलने और प्रहलाद के बचने की खुशी बरकरार है। इस कस्बे के लोगों के लिए होलिका दहन सिर्फ एक त्योहार ही नहीं, बल्कि एक ऐसे अवसर की याद दिलाने वाला है जब उन्हें दैत्यरूपी नरेश हिरण्यकश्यप से मुक्ति और ईश्वर भक्त प्रहलाद जैसा राजा मिला था। बुंदेलखंड के झांसी में है एरच कस्बा। यह इलाका कभी हिरण्यकश्यप के राज्य की राजधानी हुआ करता था। हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानता था, मगर उसके घर प्रहलाद जैसा बेटा पैदा हुआ जो विष्णु भक्त था। बस इसी को लेकर हिरण्यकश्यप प्रहलाद से नाराज रहने लगा। तमाम धार्मिक ग्रंथ इस बात के गवाह हैं कि हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने की कई दफा कोशिश की। प्रहलाद को नदी में फेंका गया, सांपों से कटवाया गया, मगर उस पर कोई असर नहीं हुआ। हिरण्यकश्यप को वरदान था कि उसे न नर मार सकेगा न जानवर, न वह दिन में मरेगा और न रात में, इतना ही नहीं वह घर के भीतर तथा बाहर भी नहीं मरेगा। इसीलिए विष्णु भगवान को नरसिंह का अवतार लेना पड़ा था। प्रहलाद को जब हिरण्यकश्यप मारने में सफल नहीं हुआ तो उसने अपनी बहन होलिका का सहारा लिया। होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। प्रहलाद को मारने के लिए रची गई साजिश के मुताबिक बेतवा नदी के किनारे स्थित डीकान्चल पर्वत पर एक समारोह का आयोजन किया गया। इसमें तय हुआ कि होलिका नाचत-नाचते प्रहलाद को गोदी में लेकर आग में बैठ जाएगी जिसमें प्रहलाद जल जाएगा, मगर प्रहलाद को जलाने की कोशिश में हुआ उलटा। होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया। हिरण्यकश्यप को इस बात का पता चला तो वह बौखला गया और उसने प्रहलाद को मारने की कोशिश की। प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान नरसिंह के अवतार में प्रकट हुए और उन्होंने हिरण्यकश्यप को मार डाला। उसके बाद प्रहलाद को राजगद्दी सौंपी गई। मगर दानवों ने उसे राजा नहीं माना क्योंकि वह अपने पिता का कातिल था। भगवान विष्णु ने दानवों और देवताओं की एरच के पास डीकांचल पर्वत के करीब पंचायत कराई। इस पंचायत में विष्णु जी ने प्रहलाद को अपना बेटा स्वीकारा। इस पंचायत के बाद सभी ने एक दूसरे को गुलाल लगाई तभी से होली मनाई जाने लगी, जिस दिन यह पंचायत थी उस दिन पंचमी थी। एरच में खुदाई के दौरान एक ऐसी मूर्ति भी मिली है जिसमें प्रहलाद को गोदी में लिए होलिका को दिखाया गया है। इसके अलावा हिरण्यकश्यप काल की शिलाएं भी मिलीं हैं। एरच में कई ऐसे मंदिर हैं जिनमें प्रहलाद की मूर्तियां स्थापित हैं और यहां के लोग उनकी पूजा करते हैं। एरच के लोग अपने बेटों के नाम प्रहलाद तो रखते हैं मगर उसके पिता हिरण्यकश्यप और बुआ होलिका को कोई याद नहीं करना चाहता।

1 comment:

Udan Tashtari said...

अच्छी जानकारी दी, आभार.

होली की बहुत बधाई एवं मुबारक़बाद !!!