Wednesday, January 20, 2010
बुंदेलखंड की प्यास कौन बुझाएगा
उत्तर प्रदेश राज्य का पिछड़ा क्षेत्र बुंदेलखंड, जिसकी सीमा मध्य प्रदेश राज्य से सटी हुई है, विकास से परे है। जिस बुंदेलखंड के विकास के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने न सिर्फ 80,000 हजार करोड़ की मांग प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से की थी बल्कि अलग बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण गठित करने की पुरजोर कोशिश की थी, अब उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की बात नहीं कही। अलग बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण गठित होने से अलग राज्य की मांग को और बल मिलता, किंतु अब ऐसा दिखाई नहीं पड़ता। क्योंकि इसके लिए दोनों राज्य तहेदिल से तैयार नहीं हैं।वैसे देखा जाए अलग राज्य बनने से नेताओं के स्वार्थ तो अवश्य पूर्ण होते हैं लेकिन क्षेत्रीय जनता ही विकास से दूर रहती है। असम को भी सात राज्यों में विभाजित करके टुकड़े तो अवश्य हो गए लेकिन वह राज्य आज भी विकास से दूर हैं। राज्यों के टुकड़े करने से विकास की कल्पना करना व्यर्थ है। प्रतिवर्ष जब हर जिले के विकास के लिए प्रोजेक्ट निर्धारित होता है तो वह धन कहां चला जाता है। क्यों नहीं इस धन का ईमानदारी से विकास कार्यो में लगाया जाता है। ठेकेदारी प्रथा में विकास के खर्चो में आए हुए धन का बंदर बांट हो जाता है। यही कारण है कि बनी हुई नई सड़कें कुछ ही महीनों के बाद खराब हो जाती हैं। सरकारी बसों की खरीद में जमकर बंदर बांट होता है। सरकारी इमारत बनाने में भी यही स्थिति है। अब तो क्षेत्रीय विकास के लिए सांसद और विधायकों के कोटे भी निर्धारित हैं। सरकार अलग से खर्च कर रही है, फिर भी विकास से क्षेत्र पिछड़े हुए हैं। इसकी वजह है कि विकास के लिए सरकारी कार्य कागजों पर ही होते हैं। और यदि विकास कार्य होगा भी तो किसी निश्चित दायरे में ही। बिहार से अलग झारखंड राज्य को गठित हुए काफी समय हो गया है किंतु वहां विकास नहीं हो पाया। वहां की जनता आज भी अपने को असुरक्षित मानती है। तेलंगाना को लेकर जो घमासान चल रहा है वह भी गलत है। सभी लोगों को मिलकर ईमानदारी से बीड़ा उठाना होगा कि क्षेत्र के विकास के लिए कार्य करूंगा। ठेकेदारी के नाम पर जनता का करोड़ों रुपए डकार नहीं जाऊंगा।बुंदेलखंड की जनता जब सूखे की चपेट में आयी थी तब कहां चली गई थी मायावती की सरकार। वहां के लोग पलायन कर रहे थे, क्यों नहीं रोका गया था उन लोगों को। बुंदेलखंड में बिजली की समस्या, पानी की समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है, जबकि वहां बिजली उत्पादन के लिए चार-चार बांध बने हुए हैं, फिर भी जनता लालटेन जलाने के लिए मजबूर है। सिंचाई के लिए पानी को बेंच दिया जाता है, लेकिन किसानों को खेत सींचने के लिए पानी नहीं मिलता। बुंदेलखंड आज भी प्यासा है। इसकी प्यास को कौन बुझाएगा। कौन बिजली की रोशनी से जगमगाहट करेगा इन गांवों को। कौन पक्की सड़कों से हर गांव को जोड़ेगा। उद्योगों के नाम कुछ नहीं है। जो उद्योग लगाए भी गए थे उनकी भी बुरी हालत है। नए उद्योग लग नहीं रहे हैं। फिर भी क्षेत्रीय जनता और क्षेत्रों की तुलना में संयम का परिचय दे रही है। मैं चाहता हूं कि बुंदेलखंड राज्य गठित भी न हो और क्षेत्र का विकास भी हो जाए।
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