Sunday, April 12, 2009
स्वार्थी नेताओं के हौंसले पस्त करें
प्रत्याशियों के चयन में अपरोक्ष रूप से मतदाताओं की ही जिम्मेदारी होती है। चुनाव पूर्व राजनैतिक दल हर संसदीय क्षेत्र से एक पैनल बनाता है उसी से एक प्रत्याशी का चयन होता है। आजाद देश का पहला संसदीय चुनाव आज एक उदाहरण बन चुका है। जिसमें न धनबल, न बाहुबल देखा गया था। सिर्फ जनबल ने साफ-सुथरे जनप्रतिनिधि चुने। उस समय के हारे प्रत्याशियों ने जनता से कभी दूरी नहीं बनाई। आज चुनावी माहौल एक दम विपरीत हो चुका है। नेता लोग मुख्य मुद्दों से हटकर अर्नगल बातें कर रहे हैं जोकि अशोभनीय है जिसकी हम निंदा करते हैं। भारतीय लोकतंत्र की तुलना अमेरिका से कतई नहीं कर सकते हैं। दोनों देशों की व्यवस्थाओं और दोनों देशों के मतदाताओं में भिन्नता है। ऐसा नहीं है कि भारत में पूरी छूट नहीं है, प्रत्याशियों के चयन में। क्षेत्रीय मतदाताओं को इस बात का पूरा अधिकार है कि वो अपनी पसंद का प्रत्याशी चुनें। हां, चुनावी समीकरण अवश्य बदल गए है। पहले सिर्फ गिनी-चुनी पार्टियां ही होती थी राष्ट्रीय स्तर पर। नेताओं की स्वार्थपूर्ण नीति ने, न सिर्फ भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया, बल्कि क्षेत्रीय दलों को बढ़ावा दिया जिससे आज कुकरमुत्तों की तरह क्षेत्रीय दल दिखाई दे रहे हैं। मतदाता बंट रहे हैं। किसी भी दल को बहुमत नहीं मिल पा रहा है। बहुमत का मतलब पचास फीसदी से ज्यादा मत हासिल करना। खंडित जनादेश मिलने से गठबंधन की सरकारें बन रही हैं। सबसे बड़ी पार्टी के मुखिया को प्रधानमंत्री की गद्दी भले ही मिल जाती हो, लेकिन वह इच्छानुसार व समय से अपनी नीति को क्रियांवयन नहीं कर पाता है। जो कि लोकतंत्र के लिए यह स्वस्थ्य नीति नहीं है। मैं तो कहना चाहूंगा कि नेताओं को अपना स्वार्थी छोड़ देना चाहिए और क्षेत्रीय विकास को मुख्य मुद्दा बनाकर चुनावी दंगल में लड़ने के लिए आगे आना चाहिए। और यदि स्वार्थी नेता अपना मार्ग नहीं बदलते हैं तो फिर मतदाता हो जाओ होशियार और कमर कस लो ऐसे नेताओं को चुनावी लड़ाई से कर दो बाहर। क्योंकि लोकतंत्र में जनता से बड़ी ताकत कोई नहीं होती है। पार्टियां भले ही अपने-अपने प्रत्याशियों का चयन करती हों, लेकिन इन प्रत्याशियों में से किसे संसद में भेजना है इसका चयन सिर्फ क्षेत्रीय मतदाताओं को करना है। इसलिए अपनी पसंद का ही प्रत्याशी चुने, ठीक उसी तरह से जैसे एक पिता अपनी पुत्री के लिए वर का चयन करता है।
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1 comment:
bhupendra jee,
ismein koi sandeh nahin ki yadi aapkee baat sabkee samajh mein aa jaaye to yakeenan bhaartiya loktantra bhee amrekee loktantra jaisaa itihaas likh degaa.
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