Sunday, April 5, 2009
दागदारों के इरादे नापाक करें
नेता लोग अपने ऊपर लगे दाग को जनता से नहीं देश की अदालतों से हटवाते हैं। जिसके निर्णय आने में सालों लग जाते हैं और जनता तब तक उसी दागदार को ही अपना प्रतिनिधि मानकर संसद तक पहुंचाती है। संशोधित भारतीय जन प्रतिनिधि अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया कि भ्रष्ट व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता। जब तक अमुक व्यक्ति पर भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध नहीं हो जाता तब तक वह कानून की नजर में दागदार नहीं होता। लेकिन इन अदालतों से भी बड़ी अदालत जनता की अदालत होती है। यही अदालत ऐसी है जो समय रहते अपना निर्णय दे सकती है। दागदार व्यक्तियों को क्षेत्र की जनता ही न चुने तो एक हद तक इस पर लगाम लग सकता है। लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि नया चुना गया प्रतिनिधि आगे चलकर बेदाग रहेगा। संसद द्वारा बनाए गए कानूनों ने ही जन प्रतिनिधियों को सुविधाओं व शक्तिओं से लैस किया है। बस, इन्हीं सुविधाओं व शक्तिओं ने जन प्रतिनिधियों को काफी हद तक भ्रष्ट भी बनाया है। क्षेत्रीय विकास कोष का तो इन लोगों ने जमकर दुरुपयोग किया है। यह लोग यहीं तक सीमित नहीं रहते हैं बल्कि अधिकारियों के स्थानांतरण और नई नियुक्तियां करवाने के एवज में मोटी रकम वसूलते हैं। इन्हीं की देखा देखी में अधिकारी भी भ्रष्ट हो जाते हैं। केंद्र द्वारा संचालित नरेगा स्कीम को ही ले लीजिए राज्यों में जमकर दुरुपयोग हो रहा है। मिड-डे मील योजना में भी ऐसी ही स्थिति है। राहुल गांधी सही ही कहते हैं कि रुपए का पांच पैसा जरूरत मंदों तक नहीं पहुंचता है। विकास के नाम पर, गरीबी मिटाने के नाम पर ढेर सारी योजनाएं बनती हैं, लेकिन ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होती है।अब इसके लिए जनता को जागरूप होना पड़ेगा, सूचना के अधिकार की जानकारी समस्त ग्रामीण जनों को होनी चाहिए। क्षेत्रीय जनता मतदान द्वारा ऐसे व्यक्ति को चुनकर संसद भेजें जिनक द्वारा क्षेत्रीय जनता की आवाज संसद में पहुंच सके। पूरे कार्यकाल को वेदाग बनाए रखें। क्षेत्रीय जनता को उन पर नाज हो। दागदार उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में आ चुके हैं, जो कि वह उस क्षेत्र के भी नहीं हैं। ऐसे बाहरी दागदारों को सबक सिखाना क्षेत्रीय जनता का पुनीत कर्तव्य है। संविधान में भी ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जिस व्यक्ति का मतदाता सूची में नाम तक नहीं है उसे उस क्षेत्र से उम्मीदवार कदापि नहीं होना चाहिए। अपराधी प्रवृत्ति के प्रत्याशी भी चुनावी मैदान के अखाड़े में राजनीतिक दलों ने पहुंचा दिया हैं हम उनके इरादों को नापाक साबित करें। चुनाव में मतदान निर्भय होकर करें। क्योंकि इस तरह के प्रत्याशियों की सही जगह संसद नहीं है, बल्कि इन लोगों की सही जगह जेल है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि अबकी बार यदि जनता ने इन दागदार उम्मीदवारों को धूल चटा दी तो फिर यह लोग चुनाव लड़ने की हिम्मत आसानी से नहीं कर पाएंगे, इसलिए क्षेत्रीय जनता को भयमुक्त होकर अपना मतदान करना है। मतदान करने अवश्य जाएं क्योंकि एक-एक मत की अपनी बड़ी अहमियत होती है।
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