Saturday, November 29, 2008

खून का तिलक लगाकर किया था राजनीति में प्रवेश


राजा नहीं फकीर के नारों से कभी नवाजे गये राजा मांडा शुरू से ही काफी भावुक थे। इनके राजनीतिक जीवन का आगाज भी इसी अंदाज में हुआ। 1962 में इलाहाबाद में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शात्री की सभा चल रही थी। उनके भाषण से वीपी इतने अभिभूत हो गये कि अपना अंगूठा चीरकर खून से शास्त्री को तिलक कर दिया। इनकी इस भावना से शास्त्री जी इतने भावुक हो गये कि उन्होंने इस नौजवान को दिल्ली आमंत्रित कर लिया। 1962 में लालबहादुर शास्त्री ने इनकी मुलाकात श्रीमती इंदिरा गांधी से करायी। इसके बाद वे राजनीति के मैदान में उतर आये। 1969 में जब विधान सभा चुनाव हुए तो श्रीमती गांधी ने इनको सोरांव विधान सभा क्षेत्र से मैदान में उतार दिया। यह चुनाव राजा मांडा काफी अच्छे मतों से जीते। इसके बाद तो उनका राजनीतिक कारवां काफी तेजी से आगे बढ़ने लगा। 1971 में वे फूलपुर संसदीय क्षेत्र से सांसद बने। संसद में पहुंचने के बाद मैडम ने इनको केन्द्र में वाणिज्य उपमंत्री बना दिया। 1977 के चुनाव में उन्होंने इलाहाबाद संसदीय सीट से किस्मत आजमायी लेकिन जनेश्वर मिश्र से हार गये। लेकिन 1980 के लोकसभा चुनाव में फिर वे इलाहाबाद संसदीय सीट से चुन लिये गये। इसी दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इन पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गयीं। इनको उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया। इसके बाद इन्होंने लोकसभा से इस्तीफा देकर फतेहपुर जिले की तिंदवारी विधानसभा से उपचुनाव लड़ा और विजयी हुए। लेकिन दो साल बाद ही इनको केन्द्र में बुला लिया गया और केन्द्रीय वाणिज्य, वित्त व रक्षा मंत्री का दायित्व सौंप गया। इसके बाद वे कांग्रेस से अलग हो गये और बोफोर्स घोटाले का पर्दाफाश करने का दावा करते हुए जनमोर्चा का गठन कर लिया। 1988 में हुए उपचुनाव में जनमोर्चा प्रत्याशी के तौर पर वे इलाहाबाद संसदीय सीट से मैदान में उतरे और विजयी हुए। 1990 में हुए चुनाव में जनता दल प्रत्याशी के रूप में इलाहाबाद लोकसभा क्षेत्र से मैदान में उतरे और भारी मतों से विजयी हुए। इसके बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए। प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद वे लगातार इलाहाबाद आते रहे।पांचवा बेटा मानती थीं ललिता शास्त्रीपूर्व प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री की पत्नी ललिता शास्त्री वीपी सिंह को अपने पांचवे बेटे के रूप में मानती थीं। वीपी सिंह ने खुद उनके घर जाकर यह आग्रह किया था जिसे उन्होंने आजीवन निभाया। बाद में उन्होंने मांडा में अपने घर के समीप ही लाल बहादुर शास्त्री सेवा निकेतन की स्थापना की। इनके नाम पर बामपुर में एक इंटर कालेज की भी स्थापना की।
छात्र राजनीति में सिंहल को हराया थापूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव में सिंहल को हराकर उपाध्यक्ष पद पर विजय हासिल की थी। यह सन 51-52 की बात है। उस समय कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी इविवि के कुलपति थे। उनके छात्रसंघ में अध्यक्ष पद पर बलिया के काशी नाथ मिश्र विजयी हुए थे।

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