Saturday, November 22, 2008

मायावती की पोल खुली

वैसे तो उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती मंच से अनुसूचित जाति के खिलाफ अत्याचार न होने का संकल्प दोहराती रहती हैं, पर वास्तविकता यह है कि सब दिखावटी है क्योंकि उन्होंने इसी जाति के कई लोगों को कानूनन नौकरी देने में देरी कर रही हैं। अनुसूचित जाति की भलाई के लिए वह कदम उठाने से वह कोसों दूर हैं। इसका पर्दाफास राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने एक आदेश में किया। उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के 165 उम्मीदवारों की नियुक्ति में देरी को गंभीरता से लेते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने प्रदेश के मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (गृह) को तलब कर उनसे स्पष्टीकरण चाहा है। मुख्य सचिव अतुल कुमार गुप्ता और प्रमुख सचिव (गृह) कुंवर फतेह बहादुर से आयोग के समक्ष 12 दिसंबर को मौजूद रहने को कहा गया है। आयोग के सदस्य सत्य बहिन ने कहा कि अनुसूचित जाति से जुड़े मामलों में अयोग को कार्रवाई का अधिकार देने वाले संविधान के अनुच्छेद 338 के तहत दो अधिकारियों को समन जारी करने के आदेश दिये गये हैं। राज्य के प्रमुख सचिव (गृह) के 20 नवंबर को आयोग के समक्ष सुनवाई के लिये उपस्थित नहीं होने पर अधिकारियों को तलब करने का फैसला किया गया। उन्होंने कहा कि आयोग ने इस मुद्दे पर उनकी टिप्पणियां चाही थीं लेकिन राज्य सरकार की ओर से जवाब नहीं दिया गया। उत्तर प्रदेश में मायावती के नेतृत्व वाली बसपा-भाजपा सरकार के शासन के दौरान अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के 165 उम्मीदवारों को कांस्टेबल के पद पर चुना गया था। इसके लिये चयन प्रक्रिया 18 अगस्त 2003 को पूरी हो चुकी थी। फिरी वहां सरकार बदली और मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की सरकार ने अपने चार वर्ष के शासन के दौरान चयनित उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र नहीं दिये।

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