Sunday, May 17, 2009

बाहुबलियों का सुपड़ा साफ

बिहार व उत्तर प्रदेश में इस बार लोकसभा चुनाव में धनबल और बाहुबल का जोर नहीं चल सका और शायद यह पहला मौका है कि तमाम पार्टियों के बाहुबलियों को धूल चाटनी पड़ी। जिन उम्मीदवारों ने बाहुबल और धनबल के सहारे निर्दलीय उम्मीदवारों के रूप में या फिर छद्म उम्मीदवारों की आड़ ले कर चुनावी वैतरणी पार करने का सपना संजोया था, उनके लिए चुनावी नतीजे होश उड़ाने वाले थे क्योंकि उनमें से ज्यादातर को मुंह की खानी पड़ी। शीर्ष बाहुबलियों में गिने जाने वाले लोजपा विधायक सूरजभान को चुनाव आयोग ने चुनाव लड़ने से रोक दिया था क्योंकि उसे हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया है। सूरजभान ने अपनी पत्नी वीणा देवी को नवादा लोकसभा क्षेत्र से खड़ा कर दिया। बहरहाल, वीणा देवी को भाजपा के भोला सिंह के हाथों मुंह की खानी पड़ी। बंदूक की चमक इस बार मतदाताओं को आकर्षित करने में नाकाम रही क्योंकि वे विकास चाहते हैं। वाराणसी से मुख्तार अंसारी, प्रतापगढ़ से अतीक अहमद को लोक सभा चुनाव की वैतरणी पार नहीं कर सके। बिहार में बाहुबलियों को जब लोक सभा का टिकट नहीं मिला था तो इन लोगों ने अपनी-अपनी पत्‍ि‌नयों को चुनाव में खड़ा किया था लेकिन इन्हें भी हार का सामना करना पड़ा। अबकी बार अदालतों ने भी बाहुबलियों के प्रति कड़ा रुख अपना कर उन्हें चुनाव लड़ने की मंजूरी नहीं दी थी। मतदाताओं ने अबकी खुल कर विकास के मुद्दे पर मतदान किया और कुकरमुत्तों की तरह फैले क्षेत्रीय दलों को आगे आने से भी रोका। यही दल संसद में बाधाएं पैदा करते थे। अबकी बार के लोक सभा चुनाव में कांगे्रस के नेतृत्व वाले संप्रग को बहुमत के काफी नजदीक पहुंचाकर उन लोगों के मुंह बंद कर दिए हैं जो समर्थन देने के बदले सिर्फ खरीद फरोख्त ही नहीं करते थे बल्कि सरकार को ठीक ढ़ंग से काम भी नहीं करने देते थे। अब यह नहीं हो पाएगा। केंद्र में कांग्रेस सरकार देश के हित में निर्णय लेगी ऐसी उम्मीद बनती है। अबकी बार उसे वाम दल, सपा, राजद, लोजपा भी नहीं है।

1 comment:

संगीता पुरी said...

राजनीति को सही दिशा में ले जाने के लिए यह एक अच्‍छा संकेत तो माना ही जा सकता है।