Monday, November 2, 2009
पृथ्वीराज कपूर: भारतीय सिने जगत के पहले मुगल
भारतीय फिल्मों के आदिकाल से रंगीन सिनेमा तक के सफर का हिस्सा रहे पृथ्वीराज कपूर को भारतीय सिने जगत का पहला मुगल कहा जाए तो गलत न होगा। उनकी रखी नींव पर खड़े फनकारी के साम्राज्य के नुमाइंदों ने सिने प्रेमियों के दिल पर कई दशक तक राज किया। अभिनय के ऊंचे पैमाने तय कर गए पृथ्वीराज के कालजई किरदार आज भी उतने ही जीवंत और अनोखे हैं कि कोई भी उन्हें देखकर उनके मोहपाश में बंधे बगैर नहीं रह पाता। पाकिस्तान के मौजूदा फैसलाबाद में तीन नवम्बर 1906 को पुलिस उपनिरीक्षक दीवान बशेश्वरनाथ कपूर के घर जन्मे पृथ्वीराज कपूर ने फिल्म जगत में अलग मुकाम हासिल करने वाले 'कपूर खानदान' की नींव रखी और उनकी विरासत को अगली कई पीढि़यों ने पूरी शिद्दत के साथ जिया। पृथ्वीराज अपने जमाने के सबसे पढ़े-लिखे अभिनेताओं में से थे। उन्होंने पेशावर के एडवर्ड्स कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की और फिर वकालत की पढ़ाई की। हालांकि उनका दिल रंगमंच के लिए ही धड़कता था। उसी दौरान वह प्रोफेसर जय दयाल के सम्पर्क में आए जिन्होंने पृथ्वीराज में अपने नाटकों के अनेक पात्रों को बखूबी निभाने की क्षमता देखी। वर्ष 1928 में पृथ्वीराज मायानगरी बम्बई चले आए। उस वक्त मूक फिल्मों का दौर था और उन्होंने ऐसी करीब नौ फिल्मों में काम भी किया। वर्ष 1931 में बनी देश की पहली बोलती फिल्म 'आलमआरा' में किरदार अदा करके उन्होंने भारतीय सिनेमा जगत में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवा लिया।पृथ्वीराज की कद-काठी, किरदार में डूबे हाव-भाव और संवाद अदायगी देखने वालों के दिलोदिमाग पर जल्द ही छा गई। वर्ष 1941 में आई सोहराब मोदी की फिल्म सिकंदर के मुख्य किरदार में उन्हें खूब सराहा गया। सफलता की सीढि़यां चढ़ने के दौरान उन्होंने साल 1944 में अपना थिएटर ग्रुप खोला और पृथ्वी थिएटर की स्थापना की। यह पहला आधुनिक, पेशेवर और शहरीकृत हिन्दुस्तानी थिएटर था। इस थिएटर ने अपने 16 वर्ष के जीवनकाल में ढाई हजार से ज्यादा शो पेश किए जिनमें से ज्यादातर में पृथ्वीराज ने ही प्रमुख भूमिका अदा की। पृथ्वीराज कपूर ने करीब 70 बोलती फिल्मों में काम किया जिनमें विद्यापति :1937:, पागल :1940:, सिकंदर :1941:, आवारा :1951: और आनन्द मठ :1952: में उनकी शीर्ष और सहायक भूमिकाओं को खूब तारीफ मिली। 1960 में आई फिल्म 'मुगल-ए-आजम' में उन्होंने मुगल सम्राट अकबर के किरदार को जीकर अमर बना दिया। उस फिल्म में उन्होंने हिन्दुस्तान के सम्राट के रूप में अपने कर्तव्य और पिता के सीने में भड़कते जज्बात के द्वंद्व को बेहद पुरअसर ढंग से जिया। मुगल-ए-आजम से पहले और उसके बाद भी अकबर के किरदार वाली कई फिल्में बनीं लेकिन अभिनय के लिहाज से कोई दूसरा अभिनेता मुगल-ए-आजम में दिखे जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की बराबरी नहीं कर सका। श्वेत-श्याम फिल्म मुगल-ए-आजम का मशहूर गाना 'प्यार किया तो डरना क्या', रंगीन फिल्माया गया था।हिन्दी रंगमंच और फिल्मों की महान हस्ती का दर्जा हासिल कर चुके पृथ्वीराज कपूर का 29 मई 1972 को निधन हो गया। पृथ्वीराज ने अभिनय के अलावा अपनी विरासत से भी हिन्दी सिनेमा जगत को काफी कुछ दिया। वह 'हिन्दी फिल्म कलाकारों के पहले परिवार' यानी 'कपूर खानदान' के मुखिया हैं और अपनी अगली चार पीढि़यों के रूप में उनकी विरासत आज भी हिन्दी फिल्म जगत में जिंदा है। पृथ्वीराज के बेटे राजकपूर ने हिन्दी फिल्मों के पहले 'शोमैन' का रुतबा हासिल किया था। राजकपूर ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए अनेक बेहतरीन फिल्मों में काम किया और कई यादगार फिल्में बनाईं। कई फिल्मों में उन्होंने अपने पिता की मदद भी ली। पृथ्वीराज की अन्य संतानों शशि कपूर और शम्मी कपूर ने भी फिल्मों में अपना अलग मुकाम बनाया। पृथ्वीराज के पौत्र रणधीर कपूर, ऋषि कपूर, राजीव कपूर, करण कपूर और कुणाल कपूर ने भी फिल्मों में काम किया। इनमें से विशेषकर ऋषि कपूर को बतौर अभिनेता खासी सफलता हासिल हुई। रणधीर की बेटी करिश्मा के रूप में कपूर खानदान की पहली लड़की ने अभिनय जगत में कदम रखा। उसके बाद करिश्मा की बहन करीना भी फिल्मों में आ गईं और इस वक्त की शीर्ष अभिनेत्रियों में शुमार हैं। ऋषि कपूर के बेटे रणबीर कपूर ने वर्ष 2007 में आई फिल्म 'सांवरिया' से अभिनय क्षेत्र में आमद दर्ज कराई। इस तरह पृथ्वीराज द्वारा शुरू की गई अभिनय की समृद्ध परम्परा अब भी बरकरार और फलफूल रही है।
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