वर्ष 2009 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुने गए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को यह प्रतिष्ठित सम्मान हासिल करने में टकराव दूर करने और ईरान तथा उत्तर कोरिया जैसी 'बुराई की धुरी' के साथ कूटनीति अपनाने की उनकी रणनीति, मुस्लिम जगत की ओर उनके हाथ बढ़ाने तथा परमाणु शस्त्रों से मुक्त विश्व के उनके उद्देश्य के जरिए मदद मिली होगी। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए ओबामा के चुने जाने की खबर अमेरिकियों के साथ ही शेष विश्व के लोगों के लिए भी चौंका देने वाली रही क्योंकि उनका नाम न तो संभावितों की सूची में कहीं था और न ही नोबेल शांति पुरस्कार के दावेदारों में उनके बारे में कोई अटकल थी। ओबामा ने बतौर राष्ट्राध्यक्ष एक वर्ष से कम समय बिताया है। माना जा रहा है कि विश्व का यह सबसे प्रतिष्ठित शांति पुरस्कार उन्हें काफी जल्द मिला है। गत 20 जनवरी को पदभार ग्रहण करने के बाद ओबामा अमेरिका के पहले अश्वेत अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए थे। उन्होंने अमेरिका के दो युद्ध लड़ने के तरीकों की आलोचना और मुस्लिम जगत में उसकी जवाबी प्रतिक्रिया के बाद देश का रुतबा बहाल करने के लिए निरंतर कोशिशें की हैं।ओबामा के पूर्ववर्ती अधिकारी जार्ज डब्ल्यू बुश ने ईरान, इराक और उत्तर कोरिया को 'बुराई की धुरी' करार दिया था और उन पर आतंकवाद की मदद करने और जनसंहार के हथियार की तलाश में रहने का आरोप लगाया था। मध्य पूर्व के लिए विशेष दूत की नियुक्ति के बाद ओबामा इस्राइल और फिलस्तीनी नेताओं को एक मंच पर लेकर आए ताकि क्षेत्र में टिकाउू शांति लाई जा सके। कीनियाई मूल के पिता और श्वेत मां के पुत्र 44 वर्षीय ओबामा ने ईरान और यहां तक कि म्यांमार जैसे देशों के साथ भी बातचीत के दरवाजे खोले जिन पर बीते कई वर्षो से आर्थिक प्रतिबंध लागू हैं। उनकी वैश्विक कूटनीति का मुख्य केंद्र मुस्लिम जगत की ओर हाथ बढ़ाना रहा जो अफगानिस्तान और इराक में युद्ध के चलते लंबे समय से अमेरिका को अपना दुश्मन मानता है। उन्होंने गत जून काहिरा यात्रा की जहां उन्होंने मुस्लिम जगत के साथ संबंधों पर प्रमुख भाषण किया। हालिया संपन्न संयुक्त राष्ट्र महासभा में ओबामा ने विश्व से परमाणु शस्त्रों की कटौती के लिए भी पहल की। यह कहना जल्दबाजी होगी कि ओबामा अपनी कोशिशों में कितने सफल हुए हैं लेकिन नोबेल समिति ने कहा कि वह चाहती है कि ओबामा अपनी कूटनीतिक कोशिशों को विस्तार दें।
Friday, October 9, 2009
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