जिनेवा में आज धरती के गर्भ में कराए जाने वाले प्रयोग को लेकर कुछ इस तरह की हवा फैली कि इससे से छोटे-छोटे ब्लैक होल्स पैदा होंगे जो दुनिया को तबाह कर देंगे। फिजिक्स की स्टैंडर्ड मार्डन थ्योरी के अनुसार प्रोटोन विस्फोट करने पर उसमें हिक्स पार्टिकल्स निकले चाहिए। उसी की खोज के लिए यह प्रयोग हो रहा है। हिक्स पार्टिकल्स निकले तो स्टैंडर्ड मार्डन थ्योरी पक्की हो जाएगी और फिजिक्स का भविष्य सुदृढ़ हो जाएगा। नहीं निकले तो वैज्ञानिकों को इस थ्योरी पर फिर से सोचना होगा। इससे धरती को कोई खतरा नहीं है। ब्लैक होल्स में इतनी ताकत होती है कि वे आसपास की वस्तुओं को घसीट कर बड़े होते जाते हैं जिससे धरती नष्ट हो सकती है। इस प्रयोग में पहली बात ब्लैक होल्स बनेंगे ही नहीं और यदि बने भी तो इतने छोटे-छोटे होंगे कि कुछ समय बाद वे खुद नष्ट हो जाएंगे। इसलिए यह आशंका निर्मूल है कि दुनिया खत्म हो जाएगी। प्रयोग में जितनी गति से व जितनी ऊर्जा निकलती है, आकाश से उससे कहीं अधिक ऊर्जा व गति वाली कास्मिक किरणें आती रहती हैं। ये लाखों सालों से आ रही हैं। जब उनसे दुनिया खत्म नहीं हुई तो इस प्रयोग से कैसा भय। वास्तव में ब्लैक होल्स किसी तारे के विकासक्रम का अंतिम बिंदु है, जिस समय उसका आकार सूर्य से दस से पंद्रह गुना ज्यादा हो जाता है। तारे के विशाल आकार ग्रहण कर लेने पर उसमें भयंकर विस्फोट होता है। यह तारे की सुपरनोवा स्थिति कहलाती है। बाहर का कोई भी गुरुत्वाकर्षण बल इसे रोकने में समर्थ नहीं होता है। इस स्थिति में तारे का घनत्व इतना बढ़ जाता है कि कोई भी प्रकाश (फोटान) उसके गुरुत्व क्षेत्र के बाहर ही नहीं जा पाता। तारे के घनत्व के इस अनंत विस्तार को ही ब्लैक होल्स कहा जाता है। आम धारणा है कि ब्लैक होल्स किसी वैक्यूम क्लीनर की तरह हर चीज को अपने अंदर खींच लेता है, लेकिन यह धारणा नहीं है। यदि हमारा सूर्य उतने ही द्रव्यमान के ब्लैक होल्स में बदल जाए तो उससे पृथ्वी की कक्षा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। हां, पृथ्वी का तापमान जरूर बड़ जाएगा, लेकिन सौर चुंबकीय तूफान किसी भी तरह से पृथ्वी को नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे। कोई भी पिंड या ग्रह तभी ब्लैक होल्स में समायगा जब वह श्वार्जचाइल्ड रेडियस पार कर जाएगा। इसके पार करते ही पिंड की चाल प्रकाश की चाल 5 लाख किलो मीटर प्रति सेकेंड के बराबर हो जाएगी। स्विटजरलैंड और फ्रांस की सीमा पर यह अभूतपूर्व परीक्षण हो रहा है। यह जमीन के एक सौ मीटर गहरे और 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में कई देशों के वैज्ञानिक हैं जिसमें भारत से खगोल वैज्ञानिक गए हुए हैं। इस सुरंग में तापमान माइनस 200 डिग्री सैल्सियस है। इस परियोजना पर लगभग चार खरब रुपए का खर्चा आया है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर 1998 में काम शुरू हो गया था।
Wednesday, September 10, 2008
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3 comments:
वैज्ञानिकोa को प्रयोग करने की छूट तो मिलनी ही चाहिए। इतने सारे वैज्ञानिकों का इस कार्यक्रम से जुड़े होने से संदेह करना व्यर्थ लगता है। हमारी शुभकामनाएं वैज्ञानिकोa के साथ हैं।
इस तरह के प्रयोग पिछले 50 साल से चल रह हैं, अत: लोगों का संदेह व्यर्थ है.
-- शास्त्री जे सी फिलिप
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मिडिया की उछाली कहानी है.
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