Wednesday, October 1, 2008

गांधी जी महान थे, लेकिन सफल नहीं




ब्रिटिश सरकार ने इंग्लैंड में पहली बार किसी राजनेता पर डाक टिकट जारी किया था पह थे महात्मा गांधी जी। जबकि यही गांधी जी भारत में अंग्रेजों के खिलाफ देश छोड़ो अभियान में लगे हुए थे। गोरे लोगों की भारत में हुकूमत थी। विरोध करने पर नेताओं को जेल में बंद कर दिया जाता था, उनमें गांधी जी सबसे आगे थे और ब्रिटिश सरकार ने उन्हीं पर डाक टिकट जारी किया। यह उनकी महानता का प्रतीक था। उनके व्यक्तित्व का प्रतीक था। महात्मा गांधी की महानता पर कभी संदेह नहीं किया गया, लेकिन उनकी सफलता पर जरूर किया गया। मनुष्य को उसकी दुष्टता से मुक्त कराने में वह उसी तरह असफल रहें जैसे बुद्ध रहे, जैसे ईसा रहे। मगर उन्हें हमेशा ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किया जायेगा जिसने अपना जीवन आगे आने वाले सभी युगों के लिए एक शिक्षा की तरह बना दिया। महात्मा गांधी ने हरिजन पत्रिका में लिखा था कि मैं प्रकृति के नियमों के बारे में अपने पूर्ण अज्ञान को स्वीकार करता हूं। लेकिन जिस प्रकार मैं संशयवादियों के समक्ष ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने में असमर्थ होने के बावजूद उसमें विश्वास करना नहीं छोड़ सकता। उसी प्रकार मैं बिहार के साथ अस्पृश्यता के पाप के संबंध को सिद्ध नहीं कर सकता। हालांकि मैं सहज ज्ञान के द्वारा इस संबंध को महसूस करता हूं।दो अक्टूबर एक और महान नेता की याद दिलाता है, वह हैं देश के पूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी। इन्होंने ही जय जवान, जय किसान का नारा बुलंद किया था। सादा जीवन और ईमानदारी तो इनमें कूट-कूटकर भरी थी। जब देश में आस्ट्रेलिया व अन्य देशों से बमुश्किल लाल गेंहू ही आ पाता था क्योंकि भारत में खाद्यान्न संकट था। जनसंख्या के हिसाब से गेंहू की मांग अधिक होने से शास्त्री जी परेशान थे। उन्होंने ही कहा था कि देश का हर व्यक्ति एक दिन व्रत रहे जिससे गेंहू की बचत हो सके। और यही नहीं सर्वप्रथम उन्होंने ही व्रत रखना शुरू किया। और देश के सामने एक उदाहरण पेश किया। ताशकंद समझौते में जाने के लिए वह जिद पकड़े थे कि वह धोती, कुर्ता में ही जाएंगे, क्योंकि परिस्थितियों ने इनकी पोशाक को धोती, कुर्ता पर समेट दिया था। लेकिन अधिक दबाव में ही रातों रात उनके लिए कोट-पेंट सिला गया तब वह ताशकंद पहुंचे। एक बार की बात है जब उनकी सरकारी गाड़ी उनके पुत्र सुनील शास्त्री घूमने के लिए ले गए थे जब वह वापस आए तो ड्राइवर से कहा कि गाड़ी की लोग बुक में इसकी इंट्री है, तो ड्राइवर घबराया। उन्होंने ड्राइवर को सख्त निर्देश दिया कि जितनी दूर घूमने गए उसका पैसा मैं खुद भरूंगा और याद रहे यह गाड़ी मुझे सरकारी कार्यो को निपटाने के लिए दी गयीं हैं, निजी कामों के लिए नहीं। उस दिन के बाद से सुनील शास्त्री ने कभी भी सरकारी गाड़ी का अपने लिए प्रयोग नहीं किया। यह थे उनके विचार और सिद्धांत। मुझे इस तरह के नेताओं को नमन करना चाहिए और मैं करता हूं। दो अक्टूबर गांधी जी और शास्त्री जी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।

1 comment:

वीनस केसरी said...

सारी पोस्ट में तो आपने दोनों वीर सपूतों की जय जय कार की है मगर पोस्ट की हेडिंग लगाई है
गांधी जी महान थे, लेकिन सफल नहीं

आपने ऐसा क्या केवल टिप्पडी बटोरने के लिए किया है ?