कोसी नदी के तटबंध में टूट की वजह से बिहार में तबाही मची हुई है। राज्य के बाढ़ प्रभावित जिले सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, अररिया और पूर्णिया में बाढ़ की भयावहता को देखते हुए वहां राहत कार्य चलाये जाने के लिए संकट की इस घड़ी में सभी लोगों की मदद की जरूरत है। बेघर हुए लाखों लोग न सिर्फ आर्थिक सहायता के मोहताज हैं, बल्कि मानवीय मूल्यों को जिंदा बनाए रखने के लिए सभी पहलुओं पर से गुजरना पड़ेगा। इस बाढ़ में कहीं मां से बेटा बिछुड़ रहा है, बेटे से मां बिछुड़ रही है, कहीं भाई से बहिन बिछुड़ रहा है। बाढ़ का पानी गांवों में घुसते ही लोग भाग रहे हैं अपना घर द्वार छोड़कर। ऐसी स्थिति में परिवार के सदस्य बिछुड़ते जा रहे हैं, क्योंकि भागने की होड़ मची हुई है। हजारों की संख्या में लोग बह चुके हैं, जिनका अब मिलना नामुमकिन है। ऐसा मार्मिक दृश्य देखकर आंखें नम हो जाती है, उन लोगों के लिए जो बाढ़ के शिकार हो चुके हैं। यहां तक कि पालतू जानवरों गाय, भैंसों का तो अता पता ही नही है। वह तो कब के बाढ़ की बिभीषका के शिकार हो चुके हैं। ऐसी बाढ़ 300 साल के बाद देखने को मिली है।बिहार की बाढ़ को देखते हुए केंद्र सरकार ने भले ही एक हजार करोड़ की सहायता व खाद्यान्न दिया है, लेकिन स्थिति को देखते हुए यह कम लग रही है। हालांकि गैर-सरकारी संस्थाएं भी आगे आयी हैं और बचाव कार्य में जुटी हुई हैं। अपनी जान जोखिम में डालकर सेना व अर्द्धसैनिक बल युद्ध स्तर से बचाव कार्य में जुटी हुई है। नावों के द्वारा लोगों को बाढ़ क्षेत्र से निकाला जा रहा है। कहीं-कहीं तो यह भी सुनने को आया है कि इस मुसीबत में फंसे लोगों को निकालने के लिए व्यावसायिक लोग अधिक पैसा ऐंठ रहे हैं। ऐसी स्थिति में मानवता का तकाजा बनता है कि लोग निस्वार्थ भावना से बाढ़ पीडि़तों की मदद करें। बिहार पर आई इस संकट की घड़ी में लोगों को दिल खोलकर मदद करनी चाहिए। बाढ़ का पानी घटने पर महामारी फैलने का भी खतरा बन चुका है।अब हम लोगों का कर्तव्य बनता है कि मिले हुए धन व खाद्यान्न सामग्री को ईमानदारी से बाढ़ पीडि़तों में बांटें।केंद्र में वाजपेयी सरकार ने कहा था कि सभी नदियों को मिलाया जाए। यदि सभी नदियां मिल जाएं तो बाढ़ के कहर से न सिर्फ लोगों को छुटकारा मिल जाएगा, बल्कि व्यर्थ में बहरा पानी का विद्युत बनाने आदि में उपयोग किया जा सकता है।
Saturday, August 30, 2008
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